पिछले कई दिनों से घर बैठे मोहम्मद जाबिर को डर सताने लगा है कि अगर ऐसे ही लंबे वक्त तक लॉकडाउन रहा तो अपने परिवार के आठ लोगों का पेट कैसे भर पाएंगे।
मोहम्मद जाबिर (29) उत्तर प्रदेश के अमरोहा में ढोलक बनाने का काम करते हैं, लेकिन कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन से पूरी तरह से काम ठप पड़ गया है। जब तक काम चलता था तो दिन का चार-पांच सौ रुपये कमा लेते थे।
अपनी परेशानी बताते हुए मोहम्मद जाबिर कहते हैं, “घर में चार बहनें, मेरे वालिद, अम्मी, मैं और पत्नी को मिलाकर कुल आठ लोग हैं। इसमें मैं अकेले कमाने वाला और मैं भी अब घर बैठा हूं।”
जाबिर का गाँव पंजुसरा, अमरोहा से करीब तीन किमी दूर पड़ता है। यहां से हर दिन वो अमरोहा जाकर ढोलक बनाने का काम करते थे। जाबिर आगे कहते हैं, “पहले दिन में चार-पांच सौ रुपये तो कमा ही लेता था, जिससे आराम से घर का खर्च चल जाता था। इस समय सारे कारखाने बंद हो गए हैं। अब कारखाने के मालिक ही क्या करें, जब ढोलक ही नहीं बिकेगी तो बनवाकर क्या करेंगे।”
जाबिर के गाँव के एक दर्जन से अधिक लोग ढोलक बनाने का काम करते हैं, लेकिन इस समय सबका काम ठप पड़ा है। पिछले साल भी उनका काम प्रभावित हुआ था।
उत्तर प्रदेश के अमरोहा में ढोलक का कारोबार सदियों पुराना है। अमरोहा में बनी ढोलक सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों तक मशहूर है।
अमरोहा में सैफी क्राफ्ट नाम से ढोलक बनाने का कारखाना चलाने वाले शाहकार आफताब सैफी (46) के हालात भी ठीक नहीं हैं। उनके यहां हर दिन सौ से ज्यादा ढोलक, डमरू बना करते थे, लेकिन अब सब बंद पड़ा है।
शाहकार बताते हैं, “यहां मामला बहुत खराब है। यहां पर लोगों के सामने अपने औजार तक बेचने की नौबत आ गई है, इस समय कुछ काम नहीं चल रहा है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति तो कारीगरों की है, उनके पास कोई काम ही नहीं बचा है। होली तक माल बना भी और बिका भी था। एक कारखाने में हर दिन 150-200 ढोलक तो बन ही जाती है, अभी सब जीरो हो गया है।”
शाहकार के अनुसार कोरोना और लॉकडाउन का असर सबसे ज्यादा कारीगरों पर ही पड़ा है। वो कहते हैं, “हम लोग तो किसी तरह से गुजारा कर लेते हैं, कई पार्टी के पास पैसे फंसे हैं वो आ रहे हैं, लेकिन कारीगर को कहां से देंगे, एक कारीगर पांच से सात सौ रुपए तो कमा लेते हैं।”
एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) में अमरोहा की ढोलक भी शामिल है। ओडीओपी से जुड़ने के बाद लोगों को फायदा भी हुआ है। शाहकार कहते हैं, “ओडीओपी से बहुत फर्क पड़ा है, सरकार की मदद से हमारे काम को बढ़ावा मिला है, लेकिन जब लॉकडाउन ही है तो सरकार क्या करेगी। ये कोरोना की वजह से नुकसान हो रहा है।”
33 वर्षीय राजीव कुमार प्रजापति का परिवार पिछली कई पीढ़ियों से ढोलक के कारोबार से जुड़ा हैं, वो खुद 18-20 साल से ढोलक के काम को देख रहे हैं।
राजीव कुमार बताते हैं, “स्थिति बहुत ज्यादा खराब है। सिर्फ उन्हीं लोगों का थोड़ा बहुत काम चल रहा है, जो ऑनलाइन काम करते हैं। हमारा ऑनलाइन का काम है, लेकिन वो भी दस से बीस प्रतिशत ही हो रहा है और मुझे लग रहा है कि आने वाले कुछ दिनों में ये भी बंद करना पड़ जाएगा।”
“क्योंकि कच्चे माल की दिक्कत होने लगी है। ढोलक में लगने वाले हैंडल अलीगढ़ से आते हैं, जिस पॉलीथिन से इसे पैक करते हैं वो दिल्ली से आता है। जितना स्टॉक हमारे पास था वो अभी तक चल रहा था, लेकिन अब वो भी खत्म हो रहा है, “राजीव ने आगे बताया।
ढोलक बनाने के लिए पोपलर की लकड़ी का उपयोग होता है, जिसे अमरोहा और आसपास के जिलों के किसान लेकर आते हैं, लेकिन लॉकडाउन लगने से वो भी बंद पड़ गया है।
राजीव ऑनलाइन बिक्री तो करते ही हैं, लेकिन उनके अनुसार 75 प्रतिशत बिक्री ऑफलाइन ही होती है, जो हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन और प्रयागराज जैसे तीर्थ स्थल पर हो जाती है, लेकिन अब जब कुछ बंद पड़ा है तो ब्रिक्री भी प्रभावित हुई है।
राजीव के कारखाने में आम दिनों में हर दिन हर दिन 500 से 1000 ढोलक बन जाते थे, जो इस समय सौ भी नहीं पहुंच पा रहा है।
ढोलक हस्तकला एसोसिएशन के अनुसार अमरोहा में छोटे-बड़े कारखानों को मिलाकर 350 कारखाने हैं, जिनमें आम दिनों में हर दिन 25000 के करीब ढोलक बनायी जाती है। इन कारखानों में दस हजार के करीब लोग जुड़े हुए हैं।
राजीव ढोलक हस्तकला एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, वो बताते हैं, “अब मैं तो ई-कॉमर्स से जुड़ा हुआ हूं तो कुछ प्रोडक्शन हो जा रहा है, लेकिन जो ऑफलाइन ही बेचते हैं। उनका बिजनेस तो पूरी तरह से बंद ही पड़ा है। मेरे यहां 10-12 से कारीगर काम करते थे, लेकिन इस समय सिर्फ 4-5 लोग ही काम कर रहे हैं।”
अमरोहा में ढोलक बनाने का काम वैसे तो साल भर चलता रहता है, लेकिन नवरात्रि, होली या फिर शादियों में इसकी डिमांड ज्यादा बढ़ जाती है।