Coronavirus : भारत में बढ़ सकती हैं दवा की कीमतें, कोरोना का दवा कारोबार पर असर

कोरोना वायरस से जुड़ी आपात स्थिति के उत्पन्न होने से करोड़ों लोगों पर सीधा असर पड़ा है। एक लाख लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं और साढ़े तीन हजार से ज्‍यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इन गिनतियों के परे करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनकी जिंदगियां और जीविका पर इस बीमारी का अदृश्य असर पड़ रहा है। गांव कनेक्शन की सीरीज "कोरोनाश" के सातवें भाग में आज पड़ताल दवा कारोबार से जुड़े लोगों पर कोरोना के असर के बारे में।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   14 March 2020 12:48 PM GMT

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''अगर चीन से आयात होने वाला कच्‍चा माल जल्‍द नहीं आया तो कुछ दिनों में दवा की कीमतें बढ़ जाएंगी। हम तो अभी ही दोगुने रेट से ज्‍यादा पर कच्‍चा माल खरीद कर दवा बना रहे हैं, लेकिन यह कब तक चलेगा! हम दवा बना रहे हैं, लेकिन दवाओं की बिक्री ही नहीं है। खरीददार कहते हैं कि हम इतनी महंगी दवाई नहीं खरीदेंगे। ऐसे में हम क्‍या करें!'' यह ऊहापोह भरी बातें जगदीप सिंह की हैं, जिनकी पंजाब के मोहाली में दवा बनाने की फैक्‍ट्री है।

पंजाब ड्रग मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के अध्‍यक्ष और पेरेक्‍स फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के मालिक जगदीप की पेरशानी की वजह उनसे करीब 3600 किलोमीटर दूर चीन में फैला कोरोना वायरस है। इस वायरस की वजह से चीन में दवा बनाने के लिए प्रयोग में आने वाले कच्‍चे माल का प्रोडक्‍शन ठप पड़ा है। ऐसे में भारत के दवा करोबार पर इसका सीधा असर पड़ रहा है।

भारत में दवा कंपनियां चीन से बल्क ड्रग्स या एक्टिव फार्मास्यूटिक्ल इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) का आयात करती हैं। एपीआई को ऐसे समझा जा सकता है कि यह वो कच्‍चा माल होता है जिससे दवाएं बनाई जाती हैं। इससे टैबलेट, कैप्सूल और सिरप बनते हैं। भारत में फिलहाल 80 फीसदी एपीआई चीन से आता था, जोकि अब नहीं आ पा रहा। इसकी वजह से दवा कंपनियों को दोगुने-तीगुने दाम पर एपीआई खरीदना पड़ रहा है।

चीन से कच्चे माल की सप्लाई बाधित होने की इस समस्‍या के मद्देनजर ही केंद्र सरकार ने एक जरूरी कदम भी उठाया है। देश में दवाओं की कमी न हो इसके लिए सरकार ने 26 दवाओं के निर्यात पर रोक लगा दी है। डायरक्टरेट जनरल ऑफ फॉरन ट्रेड (DGFT) द्वारा जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, पेरासिटामोल, मेट्रॉनिडेक्जॉल, विटामिन बी1, बी12, टिनिडैजॉल, ऐंटिबायॉटिक और टीबी की दवा जैसी 26 दवाओं के निर्यात पर रोक लगाई गई है।

सरकार के जरूरी दवाओं के निर्यात पर रोक लगाने के फैसले से एक बात तो साफ होती है कि हालात वाकई में खराब हैं। इन जरूरी दवाओं का स्‍टॉक खत्‍म न हो जाए इसीलिए ऐसा निर्णय लिया गया। दवा करोबार में आए इसी संकट पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (NIPER) के एक प्रोफेसर नाम न लिखने की शर्त पर बताते हैं, ''यह पॉजिट‍िव हालात नहीं हैं, इमरजेंसी सिचुएशन है। भारत का दवा करोबार पूरी तरह से चीन पर निर्भर करता है। हम एपीआई के मामले में आत्‍मनिर्भर नहीं हैं। अब जब यह हालात पैदा हुए हैं तो सरकार बैठक कर रही है और इस क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर होने की बात की जा रही है, लेकिन यह एक दम से मुमकिन तो है नहीं।''

''दवा की इंडस्‍ट्री में सबसे पहले बल्क ड्रग्स या एक्टिव फार्मास्यूटिक्ल इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) खरीदी जाती है। एपीआई खरीदने के बाद कंपनियां उसका फॉर्मुलेशन बनाती हैं। चीन से सस्‍ते दाम में एपीआई आता था। अब जब वहां लॉक डाउन की वजह से एपीआई नहीं आ रहा तो कंपनियां दूसरी जगह से महंगे में एपीआई खरीद रही हैं और इसका सीधा असर दवाओं के कॉस्‍ट पर पड़ रहा है। क्‍योंकि यह शुरुआती वक्‍त है तो अभी खुदरा दवाओं के रेट में ज्‍यादा फर्क नहीं देखने को मिलेगा, लेकिन यह स्‍थ‍िति ज्‍यादा दिन तक बनी रही तो खुदरा दवाएं भी महंगी होंगी। जो असर अभी व्‍यापारियों तक सीमित है वो आने वाले वक्‍त में आम नागरिकों पर भी पड़ने लगेगा।'' - NIPER के प्रोफेसर कहते हैं

व्‍यापारियों पर पड़ रहे जिस असर की बात NIPER के प्रोफेसर कह रहे हैं उसे ऐसे समझ सकते हैं कि भले ही खुदरा बाजार में दवाएं बढ़े हुए दाम में नहीं बिक रहीं, लेकिन थोक बाजार में दवाएं बढ़े हुए दाम में बिकने लगी हैं। उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अमीनाबाद में दवाओं का थोक बाजार है। इस थोक बाजार में सिपला कंपनी के एक पैरासिटामॉल टैबलेट की कीमत पहले 5.20 रुपए थी जो कि अब बढ़कर 5.70 रुपए हो गई है। इसी तरह एमॉक्‍सिलीन नाम की जीवन रक्षक दवा के एक टैबलेट की कीमत पहले 6.25 रुपए थी जो कि अब बढ़कर 7.25 रुपए हो गई है।

इन बढ़ी हुई कीमतों पर उत्‍तर प्रदेश सर्जिकल एसोसिएशन के महामंत्री और दवाओं के थोक व्‍यापारी अनिल उपाध्‍याय कहते हैं, ''अभी फुटकर दवाओं के एमआरपी (अध‍िकतम खुदरा मूल्‍य) में फर्क नहीं आया है। थोक बाजार में दवाएं बढ़े हुए रेट पर बिकने लगी हैं। हालात ऐसे ही बने रहे तो जल्‍द ही एमआरपी भी बदल कर आ जाएगी।''

अनिल बताते हैं, ''चीन के लॉक डाउन की वजह से सर्जिकल सामानों पर भी काफी असर पड़ा है। चीन से सर्जिकल का भी बहुत सामान आता है। इनमें मास्क, ब्लड शुगर की स्ट्रिप्स, थर्मामीटर, सर्जिकल स्टिक्स, ब्लेड्स, ग्लव्ज शामिल हैं। इन सामानों की सप्‍लाई न होने की वजह से मार्केट में इसका स्‍टॉक कम होता जा रहा है।

कितना महंगा हुआ एपीआई

एक सवाल यह भी है कि चीन से कच्चे माल की सप्लाई बाधित होने की वजह से एपीआई कितना महंगा हो गया है। इसका जवाब पेरेक्‍स फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के मालिक जगदीप सिंह देते हैं। वो बताते हैं, ''बुखार में इस्‍तेमाल होने वाली सबसे कॉमन दवा पैरासिटामॉल का एपीआई दो महीने पहले 265 रुपए किलो था। अब इसका दाम 450 रुपए किलो हो गया है। यह करीब 60 से 70 प्रतिशत का उछाल है।''

इसी तरह एलर्जी की दवा बनाने के लिए मॉन्‍ट‍ीलुकास्‍ट सॉल्‍ट आता है। यह सॉल्‍ट पहले 29 हजार रुपए किलो मिल रहा था। अब इसका दाम दोगुना बढ़कर 58 हजार रुपए हो गया है। ऐसे ही निमोस्लाइड बनाने के लिए कच्‍चा माल 500 रुपए किलो में आता था। अब इसका दाम 1500 रुपए किलो हो गया है। - जगदीप सिंह कहते हैं

एपीआई के बढ़े हुए दाम से यह बात तो समझ आती है कि दवा बनाने वाली कंपनियां महंगा सौदा कर रही हैं। जब कंपनियों को दवा बनाने के लिए महंगा सामान मिलेगा तो इसका असर नीचे भी देखने को मिलेगा। फिलहाल यह असर कंपनी और व्‍यापारी वर्ग के बीच में दिख रहा है। हालात ऐसे ही बने रहे तो आने वाले दिनों में दवाओं की बढ़ी कीमतें आम आदमी को भी परेशान कर सकती हैं।

जगदीप कहते हैं, ''कोरोना ने दवा कारोबार को बुरी तरह धक्‍का दिया है। हम बढ़े हुए दाम पर एपीआई लेकर दवा बना रहे हैं, लेकिन हमारे कस्‍टमर माल लेने को तैयार ही नहीं। उनका साफ कहना है कि महंगा माल नहीं खरीदेंगे। कितने कंपनी वाले तो ऐसे हैं जिनके बने बनाए कस्‍टमर तक टूट गए हैं। यह कोरोना का मामला जल्‍द खत्‍म हो तो हम राहत की सांस लें।''


 

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