डॉक्टरों के पास नहीं है जरूरी सामान, कैसे लड़ेंगे कोरोना से जंग?
Ranvijay Singh 6 April 2020 8:02 AM GMT
कोरोना वायरस से जंग की शुरुआत में ही भारत में करीब 50 डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। यह आंकड़ा 3 अप्रैल तक का है। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए हमारे फ्रंट लाइन वारियर्स कहे जाने वाले डॉक्टर्स कितने तैयार हैं इसका अंदाजा सोशल मीडिया में वायरल एक वीडियो से लगाया जा सकता है।
यह वीडियो उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजकीय मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्सिंग पर तैनात एक मेडिकल स्टाफ का है। यह मेडिकल स्टाफ बता रही है कि मेडिकल कॉलेज में कोरोना के मरीजों के लिए आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है। इसके मद्देनजर जब मेडिकल स्टाफ ने अस्पताल प्रशासन से मास्क और सेनिटाइजर की मांग की तो उन्हें टर्मिनेट कर दिया गया। साथ ही उनसे बिना पूछे उनकी आधी सैलरी भी काट ली गई है। इस घटना के खिलाफ मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्सिंग पर तैनात स्टाफ हड़ताल पर चले गए हैं।
यह एकलौता मामला नहीं है जहां मेडिकल स्टाफ कोरोना के मरीजों की देखभाल के लिए जरूरी साजो सामान की मांग कर रहे हों। देश के अलग-अलग राज्यों में नर्स से लेकर डॉक्टर तक मास्क और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) की मांग कर रहे हैं। पीपीई वह सूट होता है जिसे पहन कर डॉक्टर कोरोना के मरीजों को इलाज करते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि भारत अभी इस महामारी से जंग के शुरुआती दौर में है, अभी देश के चुनिंदा अस्पतालों तक कोरोना के मरीज सीमित हैं। अगर यह संख्या बढ़ती है और भारत में इस वायरस का कम्युनिटी स्प्रेड होता है तो मेडिकल स्टाफ के लिए हालात और बुरे हो जाएंगे।
इस समय हमारे मेडिकल स्टाफ को सबसे ज्यादा सहयोग करने की जरूरत है। वे जीवनदाता हैं और योद्धा की तरह मैदान में हैं। बांदा में नर्सों और मेडिकल स्टाफ को उनकी निजी सुरक्षा के उपकरण न देकर और उनके वेतन काट करके बहुत बड़ा अन्याय किया जा रहा है।
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) April 4, 2020
यूपी सरकार से मैं अपील करती हूँ कि..1/2 pic.twitter.com/hjpR78sacT
ऐसा नहीं कि हालात अभी भी बहुत ठीक हैं। अगर ठीक होते तो पटना में स्थित बिहार के कोरोना अस्पताल एनएचसीएच के जूनियर डॉक्टर्स को N95 मास्क और पीपीई के लिए प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक को खत लिखना पड़ता। इन डॉक्टर्स ने अपने लेटर में लिखा कि अस्पताल में डॉक्टर्स तक को मास्क नहीं मिल पा रहा तो मरीजों को कहां से मिलेगा? साथ ही उन्होंने खुद के संक्रमित होने की आशंका भी जाहिर की क्योंकि वो बिना जरूरी साजो सामान के कोरोना के संदिग्धों का इलाज कर रहे थे।
एनएमसीएच के जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि रमन बताते हैं, ''पीपीई और N95 मास्क की तो हर जगह कमी है। हम भी इसी कमी का सामना करते हुए मरीजों का इलाज कर रहे हैं। जबकि यह तो बिहार का कोरोना अस्पताल है तो यहां पर्याप्त मात्रा में किट और मास्क होने चाहिए थे।
हमने खुद को क्वारंटीन करने की मांग इसलिए की थी कि हम बिना WHO की गाइडलाइन का अनुपालन किए कोरोना के संदिग्ध मरीजों का इलाज कर रहे थे, बाद में उन्हीं में से कुछ कोरोना पॉजिटिव मरीज निकले। इसके बाद कई डॉक्टर्स की तबीयत खराब हुई तो हम सब ने अपनी जांच कराई, ड्यूटी डॉक्टर ने हमसे कहा कि आप सब को एहतियात के तौर पर क्वारंटीन रहना चाहिए। फिर हमने लेटर लिखा, जिसमें 83 जूनियर डॉक्टर्स को सेल्फ क्वारंटीन लेने की अनुमति मांगी गई थी, लेकिन हमें अनुमति नहीं मिली। ऐसे में हम दवा लेकर काम कर रहे हैं। हमने अपनी कोरोना जांच भी कराई है, यह अच्छा है कि रिजल्ट अभी नेगेटिव हैं। इन सब के बाद भी डर तो है ही।'' - रवि रमन बताते हैं
पीपीई और N95 मास्क की कमी को देखते हुए ही एनएमसीएच के जूनियर डॉक्टर्स का यह एसोसिएशन खुद अपने स्तर पर भी यह प्रयास कर रहा है कि कोई समाजिक संगठन इन्हें यह चीजें उपलब्ध करा दे। रवि रमन कहते हैं, ''अब ऐसी घड़ी में सरकार को क्या दोष देना, हम अपने स्तर पर भी प्रयास कर रहे हैं कि कोई यह सामान दान कर दे। इस संबंध में हमने कई संगठनों से बात भी की है। लेकिन यह बात भी समझनी होगी कि अगर इस वायरस का कम्युनिटी स्प्रेड होता है तो डॉक्टर्स के लिए बहुत दिक्कत हो जाएगी, इसलिए पहले से तैयार रहने की जरूरत है।''
यह तो बात हुई उन डॉक्टर्स की जो अभी कोरोना के मरीजों के इलाज में जुटे हैं। इनके अलावा बहुत से ऐसे भी डॉक्टर्स हैं जिनके क्षेत्र में अभी कोरोना के मरीज नहीं हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि इन खबरों को देख-सुनकर उनके मन में क्या ख्याल आता होगा। इसी बारे उत्तर प्रदेश के सीतापुर में स्थित एक सीएसची पर तैनात डॉक्टर से बात हुई। उन्होंने नाम न लिखने की शर्त पर बताया, 'जब हम यह खबरें देखते हैं कि डॉक्टरों के पास मास्क नहीं है तो हमें डर लगता है। यह डर कि कल को अगर इन मरीजों का इलाज हमें करना हुआ तो क्या होगा। हम अपने काम से पीछे नहीं हट सकते, किसी मरीज का इलाज न करें यह हो नहीं सकता, लेकिन हमारी जान को भी तो खतरा है।'
देश में पीपीई और मास्क की कमी है यह बात सरकार भी मानती है। स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने इस बारे में कहा था, ''पीपीई की समस्या देश में है। इसके पीछे की वजह है कि कपड़ा इनपोर्ट होता था। भारत सरकार ने पिछले 2 महीने में प्रयास किए हैं और हम उस स्टेज पर आ चुके हैं कि हम पीपीई इंडिया में बना पाएं। इसके साथ ही हम विदेशों से भी पीपीई मंगाने की कवायद कर रहे हैं।'' साथ ही सरकार की ओर से कई बार यह अपील भी की गई है कि N95 मास्क सभी लोग इस्तेमाल न करें, यह मास्क स्वास्थ्य कर्मियों के लिए होते हैं।
कोरोना से जंग में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए जरूरी साजो सामान की कमी पर जन स्वास्थ अभियान से जुड़ी डॉ. सुलक्षना नंदी कहती हैं, अगर हम यह कह रहे हैं कि सभी लोग घर में रहें और हमारे डॉक्टर्स इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं तो उनको जो जरूरी चीजें हैं वो उपलब्ध करानी चाहिए। आने वाले वक्त में अगर वायरस और फैलता है तो इसका सीधा असर स्वास्थ्य कर्मियों पर ही पड़ेगा। अगर स्वास्थ्य कर्मियों को सही सुविधाएं नहीं मिल पाएंगी तो ऐसे हाल में हम यह जंग कैसे जीतेंगे।''
यह भी नहीं कि डॉक्टरों के लिए जरूरी साजो सामान की कमी से सिर्फ भारत ही जूझ रहा है, बल्कि इस कमी से इटली, स्पेन जैसे विकसित देश भी अछूते नहीं हैं। इटली में स्वास्थ्य कर्मी सरकार से संसाधनों की लगातार मांग कर रहे हैं। इटली के बेरगामो में एक छोटा अस्पताल चलाने वाले डॉ. फ्रांसेस्का डे गेनारो ने सरकार को एक खुला खत लिखा कि 'कृपया करके हमें अकेला मत छोड़िए, हमें मेडिकल उपकरणों और जरूरी सामानों की जरूरत है।' बेरगामो के इस अस्पताल में 460 स्टाफ में से 90 स्टाफ कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। वहीं, इटली में कोरोना के इलाज कर रहे करीब 19 मेडिकल स्टाफ कोरोना से संक्रमित होकर मर चुके हैं।
इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मी कितनी खतरनाक लड़ाई लड़ रहे हैं। इन हालातों में उनके पास जरूरी साजो सामान का होना बेहद आवश्यक है। यह भी गौर करने वाली बात है कि इटली में डॉक्टर संसाधनों और सामानों की गुहार तब लगाने लगे जब वहां कम्युनिटी स्प्रेड हो चुका है, जबकि भारत में कोरोना से जंग की शुरुआत में ही डॉक्टर्स के पास यह सुविधाएं मौजूद नहीं हैं। ऐसे में अगर इन कमियों को जल्द से जल्द दुरुस्त नहीं किया गया तो इसका खतरनाक असर हमारे स्वास्थ्यकर्मियों पर पड़ सकता है।
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