ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन से जूझ रहा है देश, लोकसभा में नदियों को जोड़ने की उठी मांग

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ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन से जूझ रहा है देश, लोकसभा में नदियों को जोड़ने की उठी मांग

लखनऊ। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने भाजपा के दो सांसदों शिवकुमार सी उदासी और कनकमल कटारा द्वारा उठाए गए ग्लोबल वार्मिंग पर सवालों का जवाब दिया। उन्‍होंने कहा कि देश जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहा है, भयंकर गर्मी से लेकर बाढ़ लाने वाली बारिश तक झेल रहा है। वहीं समुद्र का स्‍तर भी तेजी से बढ़ रहा है। जल संकट से बचने के लिए लोकसभा में नदियों को जोड़ने की मांग की गई।

दरअसल, सांसदों ने जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों का विवरण मांगा था और ग्लोबल वार्मिंग के कारण देश में असामान्य मौसम की स्थिति जानने की भी मांग की थी। उन्होंने यह भी पूछा था कि क्या सरकार ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय विचार-विमर्श के विवरण पर कोई वैज्ञानिक अध्ययन किया है।

इसके जवाब में अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि हां, इन मौसम की घटनाओं और उनके प्रतिकूल प्रभावों पर कई वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं। भारी वर्षा और तापमान की चरम सीमा जैसे हीट वेव्स, सेमीराइड क्षेत्रों में शिफ्टिंग आदि के बाद कुछ निष्कर्ष निकला हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के साथ संभावित संबंध हो सकते हैं।

अश्विनी कुमार चौबे

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चौबे ने कहा कि अध्ययनों में ग्लोबल वार्मिंग की पृष्ठभूमि के खिलाफ भारत में अत्यधिक वर्षा की आवृत्ति और परिमाण में बढ़ते रुझान की सूचना दी गई है। समुद्र के स्तर में वृद्धि और वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न परिणामों में से एक है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार, भारतीय तट के किनारे समुद्र के स्तर अलग-अलग दरों पर बदल रहे हैं।

चौबे ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव वाले क्षेत्रों में मध्य और उत्तर भारत और पश्चिमी हिमालय अत्यधिक वर्षा के रूप में जाना जाता रहा है। वहीं उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में मध्यम सूखे के रूप में जाना जा रहा हैं।

उन्‍होंने इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की पांचवीं आकलन रिपोर्ट के हवाले से कहा कि पिछली सदी में वैश्विक समुद्र का स्तर औसतन 1.8 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा था। इन आकड़ों को देखने के बाद पता चलता है कि भारत में कुछ तटीय क्षेत्रों में समुद्र के स्तर में बदलाव की दर वैश्विक औसत से अधिक थी। पश्चिम बंगाल में डायमंड हार्बर ने 1948 से 2005 के बीच प्रति वर्ष समुद्र की वृद्धि दर 5.16 मिमी दर्ज की गई। गुजरात के कांडला में प्रति वर्ष समुद्र की वृद्धि दर 2.89 मिमी दर्ज की गई।

हाल ही में गांव कनेक्शन सर्वे की रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई थी कि जलवायु परिवर्तन किसानों के लिए बड़ी समस्या है। सर्वे के अनुसार हर पांचवां किसान जलवायु परिवर्तनके कारण परेशान है।

चौबे ने एक अन्य सांसद के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि पिछले 40 से 50 वर्षों के दौरान भारतीय तटों पर समुद्र के स्तर में सालाना 1.3 मिमी की वृद्धि हुई है। उन्‍होंने कहा कि विनाशकारी मौसम की घटनाओं के 2018 में 1,428 जीवन तबाह हो गया, जिनमें से 842 लोगों की मौत बाढ़ और भारी वर्षा के कारण हुई है।

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लोकसभा में नदियों को जोड़ने की उठी मांग...

लोकसभा में शुक्रवार को कई सदस्यों ने देश में जल संकट को दूर करने एवं पशुधन विकास को बढ़ावा देने की मांग उठाई और कहा कि नदियों को जोड़ने की प्रकिया को तेज किया जाना चाहिए। बुंदेलखंड क्षेत्र में जल संकट और छुट्टा गोवंश की समस्या को दूर करने के लिए केन-बेतवा नदी संपर्क परियोजना द्वारा नहरों का निमार्ण विषय पर भाजपा सांसद कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल के गैर सरकारी संकल्प पर जारी चर्चा में हि‍स्सा लेते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि देश में गंभीर जल संकट है और आने वाले समय में यह संकट और गहरा जाएगा, इसलिए इस पर तेजी से कदम उठाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि नदियों को जोड़ने के लिए केंद्र सरकार को विभि‍न्न राज्यों के बीच चल रहे विवादों को खत्म कराने का प्रयास करना चाहिए। कांग्रेस नेता ने कहा कि किसानों के विकास के लिए पशुधन एक प्रमुख साधन रहा है, लेकिन अब इसमें विकास नहीं हो रहा है। सरकार को इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है।

सदन में भाजपा सांसद भानु प्रताप सिंह वर्मा ने प्रस्ताव किया कि कि उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के किसान राज्य के अन्य भागों की तुलना में अपर्याप्त सिंचाई सुविधा, कम उपज और जोतों में विसंगति का सामना कर रहे हैं। इसलिए, यह सभा इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार से आग्रह करती है कि वह बुंदेलखंड क्षेत्र के लघु और सीमांत किसानों के कल्याण के लिए अधिक प्रभावी योजना बनाए। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड के किसानों की दशा बहुत ही दयनीय है।

अन्ना प्रथा के तहत खुले छोड़े गए पशु फसल बर्बाद करते हैं। समय से सिंचाई नहीं मिलने से भी किसान परेशान हैं। उन्होंने कहा कि बारिश के मौसम में पानी को समुद्र में जाने से रोकने का हमारे पास साधन नहीं है। इसके लिए नये बांध बनाए जाने की जरूरत है। बुंदेलखंड में बने पुराने बांधों में गाद जमा हो गई है, जिसे निकालने की जरूरत है। बांधों की सफाई हुई होती, तो आज जल भंडारण की समस्या नहीं होती।

वर्मा ने केन-बेतवा नदियों को जोड़ने संबंधी भाजपा सांसद कुंवर पष्पेंद्र सिंह चंदेल के संकल्प की सराहना करते हुए कहा कि इससे बेतवा नदी के किनारे के किसानों को लाभ मिलेगा। भाजपा के जगदंबिका पाल ने बुंदेलखंड में जल संकट को लेकर कहा कि वीरों की धरती रहा यह क्षेत्र जल संकट का सामना कर रहा है, जो पूरे देश के लिए चिंता का विषय है। इस बारे में कारगर कदम उठाना चाहिए। (इनपुट भाषा)


   

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