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फूलों के किसानों पर कोरोना का साया: “अगर ऐसा रहा तो खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलाना पड़ेगा”

कोरोना वायरस की दूसरी लहर से लोग परेशान हैं, जिसका असर लाखों लोगों के कारोबार पर भी पड़ा है। फूलों की खेती करने वाले किसान भी इससे बच नहीं पाए हैं, शादियों की सीजन में अच्छी कमाई करने वाले किसान इस बार नुकसान उठा रहे हैं।
flower cultivation

दूसरों की खुशियों में फूल बिखेरने वाले (फूल उगाने वाले किसान) आज खुद कांटों के बीच जीने को मजबूर हैं, वजह है कोरोना के बढ़ते मामले और इसके कारण लगा लॉकडाउन। फूल उगाने वाले किसान नीरज त्रिपाठी को आजकल इस बात की चिंता सताए जा रही है कि अगर 15 दिन ऐसा ही माहौल रहा तो खेत में लगे फूलों पर ट्रैक्टर चलाना पड़ जाएगा। उन्होंने इस उम्मीद से तीन एकड़ में गुलदाउदी (सेवंती) लगाई थी कि शादियों के सीजन में अच्छी कमाई हो जाएगी, लेकिन अब कमाई तो दूर खर्च भी निकालना मुश्किल हो रहा है।

नीरज त्रिपाठी (39) मध्य प्रदेश के सतना के बगहा वार्ड नंबर एक में फूलों की खेती करते हैं। नीरज गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मैं तो बर्बाद हो गया हूं, मेरे तो बहुत खराब हालात हैं, मैंने पहले नवंबर में पौधे लगाए थे, जिसमें जनवरी में फूल आए थे। जनवरी, फरवरी, मार्च में इस बार शादियां ही नहीं थीं, तो मेरा जो फूल 250 रुपये किलो में बिकता था वो कुछ 40 रुपये किलो में बिका और कुछ खेत में ही खराब हो गया। फिर मैंने सोचा कि चलो कोई बात नहीं अप्रैल, मई में जो शादियां हैं, इसमें कवर हो जाएगा।”

मध्य प्रदेश के सतना के किसान नीरज त्रिपाठी। फोटो: अरेंजमेंट

लेकिन नीरज को कमाई की उम्मीद नहीं बची है, वो कहते हैं, “अब तो कोई उम्मीद भी नहीं है। अब किसी शादी में 50 लोग आ रहे हैं तो लोग डेकोरेशन में कोई खर्च नहीं कर रहे हैं, यहां तक की जयमाला का स्टेज सजाने के लिए भी लोग फूल नहीं ले रहे हैं। अब यही बचा है कि फूलों को खेत में ही जोत दें, इस तरह तो बर्बाद हो गए हैं। किसी तरह लोन लेकर खेती शुरू की थी। अभी मेरे खेत में 11 लाख का माल है और अभी गर्मी भी बढ़ रही है। फूल जलने लगे हैं, इससे बचाने के लिए खेत की ज्यादा सिंचाई की भी जरूरत होती है।” उन्होंने आगे कहा कि इस समय फूल नहीं बिक रहे हैं तो पैसा भी नहीं आ रहा है, इसलिए सिंचाई भी नहीं कर रहे हैं, अब यही लग रहा है दवा पानी डालने का कोई मतलब नहीं है।

नवंबर में लगाए पौधों से ही कटिंग लगाए थे नए पौधे

नीरज ने नवंबर में जो पौधे लगाए थे, उन्हीं से कटिंग तैयार करके जनवरी में नई पौध लगा दी थी। उन्हें अप्रैल में कमाई की अच्छी उम्मीद थी कि 15 अप्रैल तक फूल आने लगेंगे और उसी के बाद शादियां शुरू हो जाएंगी। नीरज का खेत 20 अप्रैल तक पूरी तरह से फूलों से भर गया है।

कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मध्य प्रदेश में 30 अप्रैल तक लॉकडाउन लगा दिया गया है। अगर ऐसा ही रहा तो लॉकडाउन बढ़ भी सकता है।

गुलदाउदी की कटिंग बुके और सजावट के काम आती है, लेकिन इस बार ग्राहक ही नहीं मिल रहे हैं। 

कोरोना के असर से फूलों के कारोबार, मांग और उससे जुड़े लोगों पर असर पड़ रहा है। फूलों की खेती करने वाले किसान फूलों को ऐसे तैयार करते हैं कि मार्च-अप्रैल में नवरात्रि और फिर उसके बाद शादियों से अच्छी कमाई हो जाती है। साथ ही साल भर मंदिरों और दूसरे कार्यक्रमों में फूलों की मांग बनी रहती है।

नीरज आगे बताते हैं, “एक लाख पौधे मैंने 2 रुपये 80 पैसे के हिसाब से कोलकाता से मंगाए थे तो मान के चलिए कि 3 लाख का तो पौधा ही मंगाया। इसके अलावा मेरी खुद की जमीन नहीं है, पांच साल के लिए लीज पर जमीन ली है, उसका किराया अलग, पानी के लिए बोर भी कराया था। खेती में कम से कम मैंने सात से आठ लाख रुपये लगाए हैं।” नीरज ने 12000 हजार प्रति एकड़ सालाना किराए के हिसाब से खेत लिया है, तीन एकड़ का इन्हें 36 हजार रुपए हुए, ट्यूबवेल में एक लाख, पूरे खेत की फेंसिंग में एक लाख, 60000 रुपए मजदूरी, 35000 रुपए में सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर, बिजली कनेक्शन के लिए तीन महीने का 25000 रुपए और फर्टीलाइजर और कीटनाशक में 25000 रुपए लगे। इसके अलावा भी बहुत से खर्च लगे।

इस साल आई कोरोना की दूसरी लहर पिछले साल 2020 के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है। 23 अप्रैल को कोरोना के पॉजिटिव मामलों की संख्या 3,45,147 हो गई है। इन 24 घंटों में 2621 लोगों की कोरोना की वजह से मौत हो गई। देश में 23 अप्रैल को एक्टिव केसों की संख्या 25,50,778 हो गई है।

अभी नहीं हारी है हिम्मत

नीरज ने इस बार खेती शुरू की थी, उन्होंने हॉर्टिकल्चर में एमएससी की पढ़ाई की है और हॉर्टिकल्चरिस्ट की नौकरी करते हैं, जिसमें वो गार्डन वगैरह डिजाइन करते हैं। खेती की शुरुआत करने के बारे में वो कहते हैं, “मुझे लगा कि मैं अपने लिए भी काम शुरू करता हूं। इसलिए अपने घर के पास ही सतना में फूलों की खेती शुरू करने का सोचा और अपने दूसरे दोस्तों को भी इसे करने के लिए कहता। लोगों का भी रुझान बढ़ेगा और घर के पास भी रहेगा, लेकिन इस बार किस्मत ने धोखा दे दिया। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी है, इन्हीं पौधों से कटिंग तैयार करूंगा, अगर सब सही रहा तो आगे तो कमाई हो ही जाएगी।”

ये अकेले नीरज की परेशानी नहीं है। मध्य प्रदेश के सतना से लगभग 455 किमी दूर उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के किसान रवि पाल (31) का भी यही हाल है। रवि पाल मैनपुरी जिले के सुल्तानगंज ब्लॉक के गाँव पद्मपुर छिबकरिया के रहने वाले हैं और इन्होंने चार साल पहले नौकरी छोड़कर फूलों की खेती शुरू की थी। उनको देखकर उनके जिले में लगभग 250 से 300 बीघा (लगभग 154 से 185 एकड़) में गेंदे की खेती होने लगी है।

यूपी के मैनपुरी के रवि पाल की फूलों की फसल गर्मी से सूखने लगी है, लेकिन अब बिक ही नहीं रही है तो सिंचाई करने का कोई फायदा नहीं।

पिछले साल भी लॉकडाउन और कोरोना की वजह से इन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार शुरू में हालात ठीक थे तो इन्हें लगा कि शादियों के सीजन में अच्छी कमाई हो जाएगी, लेकिन कोरोना के बढ़ने से एक बार फिर नुकसान हो रहा है।

40 रुपये किलो का रेट 15-20 रुपये पर अटका

रवि गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “इस बार तो बहुत नुकसान हो रहा है। नवरात्रि में जो फूल 30-40 रुपये किलो बिक रहा था, वही अब 15-20 रुपये में बिक रहा है। पिछले साल भी यही हुआ था। फूलों की खेती करने वालों की शादियों में ही अच्छी कमाई होती है, लेकिन इस बार लोग डर रहे है और खर्च ही नहीं कर रहे हैं।”

उत्तर प्रदेश में शनिवार और रविवार को वीकेंड लॉकडाउन लग रहा है, जबकि कई जिलों में रात में कर्फ्यू लग रहा है।

पिछले साल भी कोरोना की वजह से इन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

वो आगे कहते हैं, “पहले हमने सोचा ही नहीं था कि ऐसा कुछ हो जाएगा, पिछले 10-15 दिनों में सब हुआ है। इस बार 16 बीघा में फूलों की खेती है, एक बीघा में 3 से 4 हजार की लागत आती है, ऐसे में लगभग 50 से 60 रुपए की लागत आयी है, अगर बाजार सही रहता है तो 70-80 रुपए किलो तक फूल बिक जाते हैं, लेकिन अभी तो मुश्किल से 15-20 रुपए किलो में बिक रहा है, जिससे तो मजदूरी भी नहीं निकल रही।”

रवि कानपुर, फर्रुखाबाद और आगरा जैसी मंडियों में फूल बेचते हैं, लेकिन हर जगह के हालात खराब हैं।

रवि ने 11 बीघा में गेंदा और 5 बीघा में कैमोमाइल लगाया है, गर्मी बढ़ने से कैमोमाइल की फसल तो अब सूखने भी लगी, लेकिन अब कमाई ही नहीं हो रही तो सिंचाई करने का कोई मतलब नहीं, रवि कहते हैं कि इसे ऐसे ही सूख जाने दूंगा और फिर इसी पर ट्रैक्टर चला कर जुताई करा दूंगा।

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