गांवों में पांव पसार रहा है कोरोना संक्रमण, बिस्तर और वेंटिलेटर की कमी से जूझ रहे हैं जिला अस्पताल

गाँव कनेक्शन की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि कई जिला अस्पताल बिस्तर और वेंटिलेटर की कमी से जूझ रहे हैं। इसके साथ ही उन्हें संचालित करने वाले प्रशिक्षित तकनीशियनों की भी भारी कमी है।
COVID19

राज्य की राजधानी लखनऊ से उत्तर-पूर्व दिशा की ओर लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर बाराबंकी शहर स्थित है, जहां कोविड-19 के मरीज और उनके परिजन आईसीयू बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर या रेमेडिसविर इंजेक्शन के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कोविड के मामले बढ़ने के कारण जिले के डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी चिंतित हैं।

बाराबंकी के जिला अस्पताल में कोविड-19 मरीजों के लिए ना तो एक अलग वार्ड है और ना ही यहां वेंटिलेटर की कोई व्यवस्था है।

जिला अस्पताल में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के जिला महासचिव और फार्मासिस्ट आरपी सिंह ने बताया, “बाराबंकी जिला अस्पताल में एक भी वेंटिलेटर नहीं है, लेकिन हमें उम्मीद है कि जल्द ही इसके खरीद की व्यवस्था की जाएगी।” सिंह के अनुसार वरिष्ठ जिला अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि जिला अस्पताल के लिए जल्द से जल्द वेंटिलेटर खरीदने की कोशिश की जा रही है।

फिलहाल जिला अस्पताल में आने वाले कोविड संक्रमित मरीजों को बाराबंकी के तीन निजी अस्पतालों – आस्था हॉस्पिटल एंड डायग्नोस्टिक सेंटर, मायो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और हिंद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में भेज दिया जाता है। पटेल ने गांव कनेक्शन को बताया कि इन निजी अस्पतालों में लगभग 50 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। इनमें से 27 वेंटिलेटर हिंद में, 20 मेयो में और तीन आस्था में हैं।

कोविड-19 की दूसरी लहर ने पूरे भारत को बुरी तरह से प्रभावित किया है। पिछले 24 घंटों में संक्रमण के 414,182 से अधिक नए मामले सामने आए हैं। 20 करोड़ से अधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में भी संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं। यहां लगभग आधे मरीज ग्रामीण इलाकों से हैं।

गांव कनेक्शन, ग्रामीण भारत से संबंधित सभी तरह की जानकारी आप तक लगातार पहुंचा रहा है। महामारी के इस दौर में गांवों के लोग भी बुखार, सर्दी और खांसी की चपेट में आ रहे हैं। ये सभी कोविड-19 के लक्षण हैं। कथित तौर पर लोग मर भी रहे हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि शहरी अस्पतालों में आज जिस तरह बड़ी संख्या में मरीज पहुंच रहे हैं, आने वाले समय में यही स्थिति जिला अस्पतालों में भी होने वाली है।

ज्यादातर जिला अस्पतालों में वेंटिलेटर ही नहीं है और अगर है भी तो उसे चलाने वाले तकनीशियन नहीं हैं। (सभी तस्वीरें अरेंजमेंट)

इसलिए इस समय का महत्वपुर्ण सवाल यह है कि खतरनाक साबित हो रही कोविड-19 की दूसरी लहर का सामना करने के लिए ये जिला अस्पताल कितने तैयार हैं?

भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफ़ॉर्म गाँव कनेक्शन की एक पड़ताल के मुताबिक राज्य के कई जिला अस्पतालों में या तो वेंटिलेटर की व्यवस्था नहीं हैं या वहां के मेडिकल संबंधी उपकरण खराब हैं। कुछ अस्पतालों में इन वेंटिलेटरों को संचालित करने के लिए प्रशिक्षित तकनीशियनों की भी कमी है।

वेंटिलेटर एक चिकित्सा उपकरण है, जिसका उपयोग गंभीर मरीजों को सांस लेने में मदद करने के लिए किया जाता है। कोरोना वायरस फेफड़ों को बुरी तरह से प्रभावित करता है। यह ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट का कारण भी बनता है, इसलिए इलाज के दौरान कुछ मरीजों को जीवन रक्षक वेंटीलेटर की आवश्यकता पड़ती है।

वेंटिलेटर नहीं कर रहे हैं काम

उत्तर प्रदेश में उन्नाव में सदर तहसील के अचलगंज के निवासी देवेंद्र पांडे (65 साल) कोरोना संक्रमित हैं। वे कानपुर के एक अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं और जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। इस वक्त वेंटिलेटर कितना महत्वपुर्ण है यह उनसे बेहतर कौन जान सकता है।

पांडे इस वर्ष अप्रैल के पहले सप्ताह में कोरोना संक्रमित पाए गए थे। अस्पताल जाने के बजाय उन्होंने घर पर ही खुद को अलग-थलग कर लिया और खुद का ‘इलाज’ करने लगे। जब उन्होंने कुछ बेहतर महसूस किया, तो वे अपने कपड़े की दुकान पर काम करने के लिए जाने लगे।

इसके बाद दुर्भाग्य से वह एक बार फिर बीमार पड़ गए और उन्हें उन्नाव के एक कोविड-19 अस्पताल में ले जाया गया। लेकिन पांडे के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल ने उन्हें वहां भर्ती लेने से इनकार कर दिया। काफी भटकने के बाद आखिरकार उन्हें 20 किलोमीटर दूर पड़ोसी जिले कानपुर में एक निजी अस्पताल में बिस्तर मिला, जहां वह अभी भी हैं।

लंग्स में संक्रमण फैलने के बाद ऑक्सीजन लेवल कम होने लगता है तब मरीज को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। 

ऐसा नहीं है कि 36 लाख की आबादी वाले उन्नाव जिले में वेंटिलेटर नहीं है। यहां के ‘उमा शंकर दीक्षित संयुक्त जिला अस्पताल’ में लगभग 100 बेड और 14 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक बीबी भट के मुताबिक उनमें से कोई भी काम नहीं कर रहा है, इसलिए वे मरीजों के लिए उपलब्ध नहीं हैं।”

भट ने गाँव कनेक्शन को आगे बताया, “जिला अस्पताल में बीस वेंटिलेटर थे, लेकिन उनमें से छह सरस्वती मेडिकल कॉलेज में भेजे गए हैं, जो कि जिले का एकमात्र कोविड एल -2 अस्पताल है।”

कोविड मरीजों के लिए समर्पित सरस्वती मेडिकल कॉलेज अस्पताल में लगभग 40 वेंटिलेटर हैं और सभी कार्यशील हैं। उन्नाव जिला अस्पताल के एक चिकित्सक प्रेम कुमार सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, “इतने वेंटिलेटर भी कम हैं क्योंकि कोरोना संक्रमण के तेजी से फैलने के कारण मरीजों की संख्या में भारी वृद्धि हो रही है।” सिंह उत्तरप्रदेश में मेडिकल एंड पब्लिक हेल्थ मिनिस्ट्रियल एसोसिएशन, जो कि डॉक्टरों का एक यूनियन है के अध्यक्ष भी हैं।

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यह पूछे जाने पर कि जिला अस्पताल में वेंटिलेटर की व्यवस्था क्यों नहीं है, सिंह ने कहा, “जिला अस्पताल, कोई कोविड अस्पताल नहीं हैं, इसलिए यहां वेंटिलेटर नहीं है।”

इस दौरान, उन्नाव जिले में हर दिन कोरोना संक्रमण के 250 से 300 नए मामले सामने आ रहे हैं। वेंटिलेटर को छोड़ भी दें, तो कोविड परीक्षण करना भी जिले में एक चुनौती की तरह है। सिंह ने बताया, “जिले में व्यवस्था नहीं होने के कारण, यहां के RT-PCR परीक्षण के नमूने लखनऊ के पीजीआई अस्पताल [संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज] में भेजे जाते हैं। परीक्षण की रिपोर्ट आने में सात से दस दिन का वक्त लग जाता है। कोरोनो संक्रमण के प्रसार को रोकने में यह एक और बड़ी बाधा है।”

वेंटिलेटर संचालित करने के लिए नहीं है प्रशिक्षित तकनीशियन

राज्य में उन्नाव से लगभग 180 किलोमीटर उत्तर में शाहजहांपुर में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जिला अस्पताल स्थित है। जहां के अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी रोहताश कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यहां 20 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं, लेकिन इसके संचालन के लिए प्रशिक्षित लोगों की कमी है। हर कोई इसे संचालित नहीं कर सकता है।”

उन्होंने बताया कि एक ट्यूब मरीज के विंडपाइप में डाली जाती है और इसका दूसरा छोर ऑक्सीजन में पंप करने वाले वेंटिलेटर से जुड़ा होता है। वेंटिलेटर का संचालन करने के लिए प्रशिक्षित व्यक्ति एक समय में एक ही कमरे में स्थित तीन से चार वेंटिलेटर को संभाल सकता है।

वेंटिलेटर के अलावा गांवों में टेस्टिंग को लेकर भी दिक्कत हो रही है। 

लेकिन, वेंटिलेटर की मदद से ऑक्सीजन ले रहे एक मरीज को भी संभालना आसान नहीं होता है।

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में सामान्य चिकित्सक सलाहकार के तौर पर 21 साल तक काम कर चुके सुतापा पाल ने गांव कनेक्शन को बताया, “जब रोगियों को साँस लेने में कठिनाई का अनुभव होता है, तो उन्हें ऑक्सीजन दिया जाता है। लेकिन, इसके बावजूद अगर सांस लेने में तकलीफ हो, तो उन्हें अस्पताल की निगरानी के बीच वेंटिलेटर की मदद से ऑक्सीजन दी जाती है।”

पाल ने आगे कहा, “वेंटिलेटर संचालित करने के लिए प्रशिक्षित लोगों की कमी है। मैं एक मरीज को वेंटिलेटर नहीं दे सकती, मुझे इसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की जरूरत है।”

पाल कहते हैं, “इस समय की सबसे बड़ी जरूरत जिला अस्पतालों में आईसीयू और वेंटिलेटर की व्यवस्था करना है, इसके साथ ही ग्रामीण भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बिस्तरों की संख्या में बढ़ोतरी करना भी बहुत जरूरी है। लेकिन अगर हमारे पास गाँवों और जिलों में प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी नहीं होंगे, तो इस स्थिति में हम इन उपकरणों का लाभ नहीं उठा पाएंगे।”

ग्रामीण भारत में कोरोना का संक्रमण का बढ़ता जा रहा है। 

रोहताश कुमार और शाहजहाँपुर के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक यूपी सिन्हा, दोनों ने गाँव कनेक्शन को बताया कि ऐसे प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी है जो शाहजहाँपुर जिला अस्पताल में वेंटिलेटर का संचालन और निगरानी कर सकते हैं।

30 लाख की आबादी वाले इस जिले में 2,300 से अधिक गाँव हैं। 4 मई को इस जिला अस्पताल में 115 कोविड मरीज भर्ती थे, जिनमें से छह वेंटिलेटर पर थे।

खराब हो चुके हैं वेंटिलेटर

राज्य की सीमा के बाहर शाहजहाँपुर से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर मध्य प्रदेश में सरदार वल्लभभाई पटेल जिला अस्पताल सतना स्थित है। इस अस्पताल के एक अधिकारी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमारे अस्पताल में कुल नौ वेंटिलेटर हैं।”

उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इनमें से एक वेंटिलेटर दो साल पहले शॉर्ट सर्किट की वजह से क्षतिग्रस्त हो गया था, और शेष आठ में से इस वक्त केवल दो ही काम कर रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा, “लेकिन हमारे पास इसे संचालित करने के लिए कोई तकनीशियन नहीं है। हमारे ऐसे डॉक्टर जो इसे संचालित करना जानते हैं, वे फिलहाल कोरोना संक्रमित हो गए हैं।

सतना में कुल 13 निजी कोविड समर्पित अस्पताल हैं। लेकिन उनमें से केवल एक एम.पी. बिड़ला अस्पताल और प्रियंवदा बिड़ला कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में ही एक वेंटिलेटर है। जिले का एकमात्र अन्य निजी अस्पताल जहां वेंटिलेटर की व्यवस्था है, वह बच्चों का अस्पताल है, जो कि कोविड-19 मरीजों के लिए नहीं है।

पर्याप्त जाँच किट न होने की वजह से गांवों में जाँच नहीं हो पा रही। 

22 लाख से अधिक की आबादी वाले इस जिले में 3 मई को संक्रमण के 272 नए मामले सामने आए थे, जबकि तीन लोगों की मौत हुई है। यहां पर्याप्त आपातकालीन देखभाल सेवाओं की कमी है, इसलिए यहां के गंभीर मरीजों को इलाज के लिए सतना के निकटवर्ती रीवा जिले में लगभग 56 किलोमीटर दूर भेजा जाता है।

उम्मीद की एक किरण

वेंटिलेटर या उन्हें संचालित करने वाले तकनीशियनों की कमी से जूझ रहे इन जिला अस्पतालों के विपरीत एक डिवीजनल अस्पताल मिर्जापुर भी है, जहां ना केवल 28 वेंटिलेटर हैं बल्कि तकनीशियन भी हैं।

मिर्जापुर के बैरिस्टर यूसुफ इमाम डिविजनल अस्पताल के डॉक्टरों का दावा है कि उनके पास अत्याधुनिक वेंटिलेटर हैं। सुपरिटेंडेंट-इन-चीफ कमल कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “एल-2 अस्पताल में 28 वेंटिलेटर हैं।” लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उन वेंटिलेटरों के संचालन के लिए केवल तीन तकनीशियन ही हैं।

डिवीजनल अस्पताल मिर्ज़ापुर के एक डॉक्टर विकास सिंह ने स्पष्ट किया, “हमारे पास आधुनिक वेंटिलेटर हैं जिनके संचालन के लिए ऑपरेटर की आवश्यकता नहीं है।” उन्होंने समझाया कि आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक वेंटिलेटरों के विपरीत, आधुनिक वेंटिलेटर में ट्यूब को मरीज के विंडपाइप में डालने की जरूरत नहीं होती है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि एक तकनीशियन आसानी से 10 से 12 आधुनिक वेंटिलेटरों को एक साथ संभाल सकता है।

उन्होंने आगे कहा, “वेंटिलेटर, इंजेक्शन और दवाइयां हमारे डिवीजनल अस्पताल में उपलब्ध हैं। यह सिर्फ महामारी का भयावह दृश्य है जो एक समस्या पैदा कर रहा है।” 4 मई को L2 अस्पताल के कुल 50 बिस्तरों में से 18 पर कोविड मरीजों का कब्जा था।

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में महामारी के दूसरे लहर का सामना करने के लिए सरकार अपने स्तर पर पर्याप्त प्रयास कर रही है।

राज्य सरकार के अतिरिक्त स्वास्थ्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने गांव कनेक्शन को बताया, “हमने कोरोना संक्रमित लोगों के लिए शुरुआती पहचान अभियान शुरू किया है, जहां हमारी टीमें प्रत्येक गांव में घर-घर जा रही हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हमारी टीमें ग्रामीणों से उनके लक्षणों के बारे में बात कर रही हैं और मेडिकल किट वितरित कर रही हैं।”

प्रसाद आगे बताते हैं, “इस दौरान, कोविड परीक्षण के लिए भी हमारी टीमें गांवों में काम कर रही है। तेजी से ग्रामीणों का एंटीजन टेस्ट किया जा रहा है। प्रत्येक जिले में दो सामुदायिक हॉल को कोविड अस्पतालों में परिवर्तित किया जा रहा है, जिनमें से प्रत्येक में 50 बिस्तरों की व्यवस्था है।

उनके मुताबिक इन सामुदायिक केंद्रों के कुछ बिस्तरों में ऑक्सीजन की व्यवस्था होगी, लेकिन वहां वेंटिलेटर नहीं होगा। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “जिन मरीजों को अधिक देखभाल की आवश्यकता होगी, उन्हें जिला या मंडल अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों या अन्य बड़े अस्पतालों में भेजा जाएगा।”

बाराबंकी से वीरेंद्र सिंह, शाहजहां पुर से राम जी मिश्रा, उन्नाव से सुमित यादव, मिर्ज़ापुर से बृजेन्द्र दुबे, मध्य प्रदेश के सतना से सचिन तुलसा त्रिपाठी की रिपोर्ट।

राइटिंग और एडिटिंग- पंकजा श्रीनिवासन

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

अनुवाद- शुभम ठाकुर

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