युवाओं के लिए मजबूरी नहीं मजा बनता जा रहा क्राइम

कई ऐसी फिल्‍में और वेब सीरिज भी आई हैं, जिसमें अपराध और अपराधी का महिमा मंडन किया गया। युवाओं के बीच इस तरह की फिल्‍मों को लेकर एक अलग ही आकर्षण देखने को मिलता है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   24 Jan 2019 12:24 PM GMT

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युवाओं के लिए मजबूरी नहीं मजा बनता जा रहा क्राइम

लखनऊ। उत्‍तर प्रदेश की राजधानी में पिछले साल नवंबर में कुछ युवाओं ने एक युवक को इस कदर पीटा कि उसकी आंख फूट गई। इस घटना को मोहल्‍ले के कुछ ऐसे युवाओं ने अंजाम दिया, जो खुद का गैंग बनाने की बात किया करते थे। हाल के दिनों में युवाओं के जुर्म से जुड़ी ऐसी खबरें अक्‍सर देखने सुनने को मिल जाती हैं, जहां मजे और तैश के मिले जुले भाव में युवाओं ने जुर्म का रास्‍ता अपना लिया। यह घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि युवाओं के लिए अब क्राइम मजबूरी नहीं मजे की चीज बनता जा रहा है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देखें तो तस्‍वीर और साफ होती है। गिरफ्तार किए गए आरोपियों में से 44 प्रतिशत की उम्र 10 से 30 साल के बीच थी (2011 के आंकड़ों के मुताबिक)। वहीं, 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या 37 लाख 37 हजार 870 थी। इनमें से 16 लाख 73 हजार 597 गिरफ्तार आरोपियों की उम्र 18 साल से 30 साल के बीच थी। यह कुल गिरफ्तार अपराधियों का करीब 44.7 प्रतिशत होता है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत में जुर्म की दुनिया में युवाओं की भागीदारी कितनी ज्‍यादा है।

एडिशनल एसपी एसटीएफ विशाल विक्रम सिंह।

युवाओं में जुर्म के बढ़ते मामलों पर बात करते हुए एडिशनल एसपी एसटीएफ विशाल विक्रम सिंह कहते हैं, ''इसके कई कारण हैं। सबसे पहले परिवार, फिर समाज, शिक्षा और आर्थिक स्थिति का इसमें अहम रोल है। आप अपने परिवार से सीखते हैं। वहीं से आपको अच्‍छे और बुरे का ज्ञान होता है। पहले हम जिस गांव में रहते थे, जो हमारे पड़ोसी थे उनका लिहाज होता था। उस वक्‍त समाज का डर था, जोकि अब खत्‍म होता जा रहा है। पहले कोई पड़ोसी आकर शिकायत करता था तो मां बाप उसपर ध्‍यान देते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। ये नजरअंदाज करना ही कई बार युवाओं को निरंकुश भी कर देता है।''

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बता दें, हाल ही में कई ऐसी फिल्‍में और वेब सीरिज भी आई हैं, जिसमें अपराध और अपराधी का महिमा मंडन किया गया। युवाओं के बीच इस तरह की फिल्‍मों को लेकर एक अलग ही आकर्षण देखने को मिलता है। चाहे वो मिर्जापुर का कालीन भाई हो या फिर रंगबाज का श्रीप्रकाश शुक्‍ला, ये कैरेक्‍टर युवाओं के बीच काफी पसंद किए गए।

युवाओं पर इन वेब सीरिज के असर को पुलकित खरे (24 साल) की बात से समझा जा सकता है- ''मैंने जब मिर्जापुर देखी तो सबसे पहला ख्‍याल आया कि सही काम करने से कभी कामयाबी नहीं मिलेगी। आपको जल्‍दी कामयाब होना है तो गलत काम करना ही होगा।'' पुलकित कहते हैं, ''मेरे ऊपर वेब सीरिज का ऐसा असर हुआ था कि कई घंटे तक मैं वेब सीरिज के कैरेक्‍टर गुड्डू भैया की तहर बात कर रहा था। अब सोचता हूं तो लगता है अलग ही पागलपन सवार था।'' पुलकित प्राइवेट जॉब करते हैं।

पुलकित की ही तरह कई ऐसे युवा हैं जिनपर इस तरह की वेब सीरिज का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। लेकिन गैंगस्‍टर का गुणगान करने वाली ऐसी फिल्‍मों को लेकर यह बहस भी चल पड़ी है कि इनसे हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है। क्‍लिनिकल साइक्‍लोजिस्‍ट उदय सिन्‍हा कहते हैं, ''अपराध का महिमा मंडन करने वाली फिल्‍मों का असर सीधे युवाओं पर होता है। ऐसा इस लिए भी है कि युवा ऐसे कैरेक्‍टर से बड़ी जल्‍द प्रभावित हो जाता है। क्‍योंकि वैसा बनने के लिए उसे कुछ खास मेहनत नहीं करनी। इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि किसी को डॉक्‍टर बनना है तो पढ़ाई करनी होगी। किसी को फौज में जाना है तो उस हिसाब की मेहतन, लेकिन अपराध का रास्‍ता ऐसी मेहतन और लगन नहीं मांगता।'' उदय सिन्‍हा मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (आईएचबीऐएस) में क्‍लिनिकल साइक्‍लोजिस्‍ट डिपार्टमेंट के एचओडी हैं। उदय सिन्‍हा आगे कहते हैं, ''सब लोग तेंदुलकर नहीं बन सकते, लेकिन वास्‍तव वाला संजय दत्‍त बनना आसान है। कहीं न कहीं यह दिमाग पर असर करता है, उनसे बच्‍चे सीखते हैं। यह सब रोल मॉडल भी बन जाते हैं।''

क्‍लिनिकल साइक्‍लोजिस्‍ट उदय सिन्‍हा।

''आज युवाओं में कुठा बहुत है। इस वजह से गुस्‍सा भी है। ऐसे में गुस्‍से से अपराध का रास्‍ता खुल जाता है। अपराध का तत्‍काल प्रभाव युवाओं को बहुत अच्‍छा लगता है। इस लिए वो ज्‍यादा दूर की सोचते भी नहीं।'' उदय सिन्‍हा क्‍लिनिकल साइक्‍लोजिस्‍ट

इस तरह की फिल्‍मों के असर पर एडिशनल एसपी एसटीएफ विशाल विक्रम सिंह कहते हैं, ''90 के दशक के बाद हमारा कल्‍चर ओपन हुआ। इंफॉर्मेशन क्रांति में कई चीजें मिली। ऐसे में हजार चीजें हैं आपके आसपास, अब आपको चुनना है कि क्‍या सही है और क्‍या गलत। यह आपको तय करना है कि आप किस चीज से प्रभावित होते हैं, अपहरण-रंगबाज जैसी वेब सीरीज से या उरी, सिंघम और भ्रष्‍टाचार मिटाने को लेकर बनी गब्‍बर इज बैक जैसी फिल्‍मों से।''

''हम सिर्फ यूथ को जिम्‍मेदार नहीं बता सकते। हम सब इसके लिए जिम्‍मेदार हैं। हमारी जिम्‍मेदारी है कि हम युवाओं की एनर्जी को सही दिशा दें। युवाओं में बहुत एनर्जी होती है, जरूरत है उसे सही दिशा देने की।'' - विशाल विक्रम सिंह (एडिशनल एसपी एसटीएफ)

वहीं, उदय सिन्‍हा कहते हैं, ''पूरे समाज को सेंसिटिव होने की जरूरत है। हेल्‍थ मिनिस्‍ट्री ने पॉलिसी बनाई है कि अगर कोई एक्‍टर/एक्‍ट्रेस स्‍मोक करता है तो एक कैप्‍शन आता है कि ''धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।'' ऐसे ही वॉयलेंट सीन के दौरान भी ऐसा क्‍यों नहीं किया जाता। कम से कम कुछ तो किया जाए। हम सबको इसमें भगीदारी करनी होगी तब कहीं जाकर यूथ का माइंडसेट ऐसा बनेगा जहां क्राइम उसके लिए क्राइम ही होगा, मौज मस्‍ती की चीज नहीं।

   

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