कानपुर के चमड़ा कारोबार पर संकट, चार लाख लोगों के रोजी-रोटी का क्या होगा ?

ऐसे में जब देश में बेरोजगारों की संख्या बहुत ज्यादा है, रोजगार देने वाले कारोबार भी सरकार तंत्र की लापरवाही की वजह से धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं। कानपुर में होने वाला चमड़ा व्यापार पर भी सिमट रहा है।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   1 Dec 2018 10:30 AM GMT

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कानपुर। पूरी दुनिया में अपने चमड़ा करोबार के लिए मशहूर कानपुर की टेनरियों पर एक बार संकट मंडरा रहा है। नोटबंदी और मवेशियों को लेकर हुए बवाल से पहले ही नुकसान झेल रहे इस कारोबार के लिए इस बार प्रयागराज में लगने वाला अर्धकुंभ नई मुसीबत लेकर आया है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने अचानक टेनरियों को बंद करने का आदेश दे दिया, ऐसे में कच्चा माल खराब होने से जहां करोड़ों के नुकसान की आशंका जताई जा रही तो वहीं लाखों लोगों के रोजगार पर भी मुसीबत आ गई है, वो भी ऐसे समय जब देश में लाखों लोगों के सामने रोजगार का संकट है।

28 साल के मोहम्मद शहान लेदर डिजाइनिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता अहमद रेहान के साथ टेनरी चलाते हैं। सरकार के आदेश से नाराज शहान कहते हैं "सरकार को लगता है कि गंगा में सारा गंदा पानी टेनरियों से ही जाता है, जबकि इसमें सच्चाई नहीं है। प्राइमरी वाटर ट्रीटमेंट हर टेनरी में मालिकों ने खुद लगवाए हैं। बावजूद इसके दोषी हम ही हैं। जब चाहे तब बंद रखने का आदेश आ जाता है। ऐसे में हमें खुद पता नहीं हमारा भविष्य किस ओर जाएगा।"

प्रयागराज में होने वाले कुंभ मेले में साफ गंगा का पानी पहुंचे इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहले आदेश दिया था कि कानपुर/जाजमऊ की सभी टेनरियों को 15 दिसंबर से 15 मार्च तक बंद रखा जाए। व्यापारी 15 दिसंबर के हिसाब से अपने ऑर्डर की पूर्ति कर रहे थे कि अचानक 18 नवंबर को आदेश आता है कि 20 नवंबर से ही टेनरियों में काम नहीं होगा।

टेनरी से लेदर निकालता मजदूर

सरकार के इस फैसले से नाराज टेनरी मालिक अहमद रेहान कहते हैं "दुनिया के बाजार में हमारी विश्वसनीयता तो पहले से ही गिर रही थी। ऐसे में अचानक आए इस आदेश से हमारे सामने बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। हम 15 दिसंबर के हिसाब से तैयारी कर रहे थे। बाहरी देशों में त्योहारी सीजन आने वाला है, ऐसे में वहां मांग बढ़ जाती है। लेकिन अब हम बहुत से ऑर्डर पूरा नहीं कर पा रहे हैं। बायर्स बांग्लादेश और पाकिस्तान की ओर रुख कर रहे हैं। तीन महीने की बंदी में तो वैसे ही करोड़ों का नुकसान होने वाला था, ऐसे में असमय बंदी के कारण ये नुकसान और बढ़ जाएगा।"

चार साल पहले यानी 2014 में जाजमऊ और कानपुर के क्षेत्रों में 402 रजिस्टर्ड टेनरी यानी चमड़े के कारखाने संचालित थे। लेकिन सरकार की लगातार उदासीनता और उपेक्षा के कारण अब महज 260 टेनरियों ही चल रही हैं। बाकी लगातार घाटे के कारण या तो बंद हो गईं या फिर जिला प्रशासन द्वारा सीज कर दी गयीं।

लेदर कॉउंसिल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कभी यहां से 12,000 करोड़ रुपए का चमड़ा व्यापार था, जो घटकर महज 2000 करोड़ रुपए तक रहा गया है। कारोबार में 40 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गयी है।

स्माल टेनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हफीजुर रहमान (बाबू भाई) बताते हैं, "2014 से पहले यहां 20 से 25 ट्रक खाल रोज आता था, करीब 1200 मजदूर मिलों में दिन रात काम करते थे। चार लाख लोग तो सीधे जबकि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मिलाकर लगभग 20 लाख इस कारोबार से जुड़े हैं। और खास बात यह है कि इस व्यापार से हर समुदाय के लोग जुड़े हैं। ऐसे में हमारे साथ सरकार का रवैया संतोषजनक नहीं कहा जा सकता।"


कानपुर में रजिस्टर्ट कंपनियों के अलावा लगभग 1000 घरों में भी चमड़े से जुड़ा काम होता है। इन सब पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

हफीजुर रहमान आगे कहते हैं, "हम खुद चाहते हैं कि मां गंगा स्वच्छ हों लेकिन इसके लिए बस हमारी कुर्बानी ही क्यों? जहां टेनरियां नहीं हैं वहां गंगा दूषित क्यों हैं? सरकार के आदेशानुसार सभी टेनरियां प्राइमरी वाटर ट्रीटमेंट करती हैं। इसके तहत सॉलिड वेस्टेज को रोक लिया जाता है। इसके बाद कनवर सिस्टम से होते हुए पानी सीईटीपी (संयुक्त शुद्धिकरण संयंत्र) पहुंचता है। काॅमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) पूरी तरह संचालित न हो पाने के कारण यह समस्या आ रही है, ऐसे में दोषी कौन है।"

"हम पानी ट्रीट करके ही डिस्चार्ज करते हैं। इसके बाद इसे तीन स्तर पर ट्रीटमेंट होना रहता है जो सरकार की जिम्मेदारी है। ऐसे में कार्रवाई हमेशा हमारे ऊपर ही होती है। इससे विश्व बाजार में हमारी विश्सनियता लगातार खत्म हो रही है।
हफीजुर रहमान, अध्यक्ष, स्माल टेनर्स एसोसिएशन


वाणिज्य मंत्रालय के रिपोर्ट की मानें तो भारत से कभी 7.5 बिलियन डॉलर का लेदर का कारोबार होता था जो अब सिमटकर 6.5 बिलियन डॉलर पर आ गया है। जबकि छोटे से देश वियतनाम का लेदर का कारोबार 8 बिलियन डॉलर से बढ़कर 15 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है।

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पिछले 20 वर्षों से पुलिस और सेना के जवानों को लेदर का बेल्ट सप्लाई करने वाले व्यापारी नरेंद्र सिंह तोमर इस बार का ऑर्डर नहीं पूरा पा रहे हैं। नरेंद्र बताते हैं, "हम तीन महीने की होने वाली बंदी से वैसे ही परेशान थे। अब तो कभी भी आदेश आ जाता है कि टेनरियां बंद रहेंगी। ऐसे में हमें माल नहीं पाता। मैं कई वर्षों से पुलिस और सेना के जवानों को बेल्ट की सप्लाई करता था, लेकिन इस ऑर्डर कैंसिल करना पड़ा, क्योंकि जब टेनरियां चलेंगी ही नहीं तो हम आगे का व्यापार कैसे करेंगे।"

टेनरी में काम करने वाले मजदूर चांद आलम कहते हैं, "अब इन तीन महीनों में क्या करूंगा, कुछ समझ नहीं आ रहा। घर का खर्च कैसे चलेगा, बच्चों के स्कूल की फीस कैसे जमा होगी। अब हमारे पास कहीं बाहर जाने के अलावा कोई दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है।"

टेनरी संचालाकों का आरोप है कि जल निगम की नाकामी की सजा हमें मिल रही है। जबकि हम हर साल सरकार को दो करोड़ 78 लाख टैक्स के रूप में देते हैं। कामन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) पूरी तरह संचालित न हो पाने के कारण उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुंभ मेले तक टेनरियों को बंद रखने का फैसला लिया है जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस साल मई जाजमऊ के सीईटीपी और पंपिंग स्टेशनों को ठीक करने के लिए 17.68 करोड़ रुपए का बिल पास किया था। 12 नवंबर तक इसका संचालन पूरी क्षमता के साथ शुरू हो जाना था जो नहीं हो सका।

टेनरी के बाहरी काम करता मजदूर

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इस बारे में जन निगम कानपुर के प्रोजेक्ट मैनेजर घनश्याम दुबे बताते हैं, "सीईटीपी में काम चल रहा है, जबकि सीवेज की मरम्मत होने के कारण 20 नवंबर से टेनरियों को बंद कराया गया है। 15 दिसंबर की बंदी से पहले टेनरियां शुरू हो सकता हैं, हालांकि अभी कोई समय निश्चित नहीं किया गया है।"

भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने चमड़ा उद्योग का निर्यात वर्ष 2020 तक 20 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन कानुपर में जो हो रहा उसे देखते हुए मुश्किल ही है कि ये लक्ष्य पूरा हो सके।

टेनरी मालिक नैयर जमाल बताते हैं, "हम पानी ट्रीट करके ही डिस्चार्ज करते हैं। इसके बाद इसे तीन स्तर पर ट्रीटमेंट होना रहता है जो सरकार की जिम्मेदारी है। ऐसे में कार्रवाई हमेशा हमारे ऊपर ही होती है। इससे विश्व बाजार में हमारी विश्सनियता लगातार खत्म हो रही है। यही कारण है कि हमारा कारोबार लगातार घट रहा है। पूरा चमड़ा उद्योग संकट में है। हमारे खरीददार बांग्लादेश और पाकिस्तान जा रहे हैं। अगर तीन महीने की बंदी होती है तो तीन लाख लोग तो सीधे तौर पर बेरोजगार हो जाएंगे और लगभग 1000 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है।"

लखनऊ से जाजमऊ जाने का रूट



   

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