मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक किसान की पूरी फसल बिजली के बिजली के तार से भड़की चिंगारी की वजह से खाक हो गई। आग तो बुझ गई, लेकिन इससे हुए नुकसान की वजह से सदमे में आकर उसने अपनी जिंदगी खत्म कर ली। ये किसी एक जिले या एक किसान का दुख नहीं है, यहां हर साल ही आगजनी से परेशान किसान आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हैं। इस साल भी राज्य के अलग-अलग ज़िलों में हज़ारों एकड़ फसल खाक होने की खबरें आईं। इनमें से अधिकांश का कारण शॉर्ट सर्किट रहा। वहीं बिजली विभाग का अपना रोना है। मेंटिनेंस के नाम पर वे सिर्फ पेड़ों की शाखा काटने तक ही सीमित हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दमोह जिले के चिलौन्ध गाँव के किसान बेदीलाल अहिरवार (55) ने 31 मार्च 2021 को कीटनाशक पी लिया। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 2 अप्रैल को उनकी मौत हो गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक परिवार के सदस्य पप्पू अहिरवार ने बताया कि “बेदी लाल अहिरवार की एक एकड़ की गेहूं की फसल में आग लग गई। वह इसी से परेशान था। खेत में आग लगने का कारण शार्ट सर्किट था।”
“खेतों के ऊपर से बिजली की तार जा रहे हैं। एक खंभे से दूसरे खंभे के बीच 20 से 30 मीटर की दूरी है, जिससे तारें ढीली हो जाती हैं। तेज हवा या आंधी चलती है तो तारें एक-दूसरे से टकराती हैं और इनसे चिंगारी (स्पार्क) निकलती है, जिससे फसल में आग लग जाती है। गर्मी के दिनों में ऐसा अक्सर होता है, लेकिन आज तक बिजली विभाग की ओर से कोई इंतजाम नहीं किया गया।” यह कहना है रीवा जिले के गाँव चचाई के किसान प्रेमलाल विश्वकर्मा (55) का।
“मेरे पास खुद की खेती लायक एक एकड़ ही जमीन है बाकी बटाई में खेती करते हैं। बिजली विभाग केवल बिल दो … बिल दो पर ही ध्यान देता है। अभी कुछ दिन पहले हमारे ही समाज के किसान भैया लाल (52) की फसल जल गई, साथ में उसकी झोपड़ी और पंप के लिए बना घर भी।” प्रेमपाल ने गुस्से में कहा।
कलेक्ट्रेट सतना राहत शाखा के रिकॉर्ड अनुसार जिले में वर्ष 2017 में 867, 2018 में 686, 2019 में 854, 2020 में 891 और 2021 में अब तक 241 इस तरह की घटनाएं हुईं है, लेकिन राहत राशि कुछ ही किसानों को मिली। रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2017 में 80, 2018 में 76, 2019 में 105 और 2020 में 68 लोगों को राहत राशि दी गई। कुछ के मामले अभी लंबित हैं। पशुधन हानि में 2017 से 2020 तक 1060 पशुपालकों को राहत राशि दी जा चुकी है।
मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, जबलपुर के स्काडा (सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्विशन) के डाटा के अनुसार 20 और 21 अप्रैल 2021 को ही कृषि के 11 केवी (किलोवाट) के 46 फीडर खराब या बंद मिले। यह फीडर 18 बिजली संभागों के हैं। इन फीडरों के खराब या बंद होने से करीब 368 गांव की कृषि बिजली प्रभावित हुई। इनके बंद होने की वजह फॉल्ट है। बिजली संभागों में छतरपुर, दमोह नार्थ, दमोह साउथ, छिंदवाड़ा ईस्ट, गाडरवारा, जबलपुर ओएंडएम, कटनी सिटी, कटनी ओएंडएम, खजुराहो, नरसिंहपुर, पन्ना, पृथ्वीपुर, रीवा ईस्ट, शहडोल, सीधी ओएंडएम, त्यौंथर, टीकमगढ़ और बैढऩ के कृषि फीडर बंद या खराब थे। इन 11 केवी के 46 कृषि फीडरों से करीब 2601 ट्रांसफॉर्मर जुड़े हैं, जिनकी बिजली बंद है।
झूलते तारों को ऊपर करने के लिए खुद किए इंतजाम
“बिजली की तारों का मेंटेनेंस करने के लिए बिजली विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों को समय ही नहीं है। तारें इतनी ढीली हैं कि सिर के ऊपर भी आ जाती हैं। चार साल पहले की बात है, ढीली तारों के टकराने से गांव के भैयालाल पाठक, इंद्रभान पाठक और दस अन्य किसानों के लगभग 30 एकड़ की फसल में आग लग गई थी। सूचना देने पर भी बिजली विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद फिर किसानों ने मिलकर कम्पटी (बांस को बीच से फाड़ कर तारों को अलग कर देते हैं) बांधी थी। तारों की स्थिति आज भी वैसी है।” यह कहना है सतना जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम भटगवां के किसान जय सिंह परिहार (45) का। जय सिंह 8 एकड़ के मालिक हैं। उनके खेत के ऊपर से बिजली की तार गुजर रही हैं, जो अभी भी झूल रही हैं।
मध्य प्रदेश अभियंता संघ के प्रदेश महासचिव वी. के. एस. परिहार ने गाँव कनेक्शन’ को फोन पर बताया, “बिजली विभाग हर साल दो बार तारों का मेंटेनेंस करता है। बारिश से पहले अप्रैल-मई के माह में और बारिश के बाद अक्टूबर में। आगजनी का कारण शॉर्ट सर्किट हो सकता है और बिल्कुल हो सकता है। किसान कहते हैं तो गलत नहीं कहते हैं। ट्रांसफार्मर की ड्यू उड़ना, स्पार्क होना, तारों का आपस में टकराव सहित कई कारण हो सकते हैं। मेंटेनेंस के दौरान तारों की कसावट, लाइन के रास्ते में आने वाले पेड़ों की छंटाई, इंसुलेटर आदि की भी जांच की जाती हैं। जरूरत महसूस होने पर ठीक भी किया जाता है।”
“बिजली विभाग के मेंटेनेंस का काम इतना ढीला है कि कभी-कभी तो 10 से 15 दिन तक फीडर को सुधारा नहीं जाता है, ऐसे में किसानों को खेतों की सिंचाई करने के लिए डीजल मोटर का सहारा लेना पड़ता है। इसका खर्च भी खुद उठाना होता है। इतना ही नहीं ट्रांसफॉर्मर के खराब होने पर भी ये जल्दी नहीं आते। छोटा-मोटा फॉल्ट किसान खुद ही सुधार लेते हैं। हाल ही में आसपास के गांव पडरौता, इटमा, वसुधा और कूंची के किसानों के खेत में आग लग चुकी है। फसल कितनी जली इसका अनुमान नहीं है लेकिन शार्ट सर्किट के कारण ही आग लगी।” गुस्से में भरे बालगोविंद ने गांव कनेक्शन को बताया। बालगोविंद सतना जिले के मसनहा गांव के रहने वाले हैं।
सरकारी योजनाओं का अपना है दावा
मध्य प्रदेश के ऊर्जा विभाग द्वारा जारी प्रशासकीय प्रतिवेदन 2019-20 में दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना के तहत फीडर विभक्तिकरण, मीटरीकरण, वितरण प्रणाली सुदृढ़ीकरण एवं ग्रामीण विद्युतीकरण के कार्यों के लिए कुल राशि 2865 करोड़ की कुल 50 परियोजनाएं स्वीकृत की गईं थी। इन परियोजनाओं में मार्च 2020 तक 19557 गांवों में सघन विद्युतीकरण, बीपीएल परिवारों को निशुल्क कनेक्शन दिए जाने के साथ-साथ 142 उपकेन्द्रों में एलटी लाइन के कार्य, सांसद आदर्श ग्राम के तहत 46 ग्रामों में विद्युतीकरण किया जा चुका है।
रीवा जिले के गांव डेल्ही के किसान बब्बू कुशवाहा (55) ने गाँव कनेक्शन को बताया, “खेत से दो तीन फ़ीट ऊपर से बिजली की तार गई है। हवा के कारण एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं तो आग लग ही जाती हैं। मैंने कई बार शिकायत की, लेकिन बिजली विभाग के अधिकारी ने मुझे डांट कर भगा दिया और ये भी कहा कि बिल जमा कराओ पहले।”
मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, जबलपुर के सिवनी (सर्किल) ज़िला के अधीक्षण अभियंता पी. के. मिश्रा ने बताया, “इस बात से इनकार नहीं कि बिजली के कारण खेतों में आग नहीं लगती, लेकिन कंपनी के स्पष्ट निर्देश रहते हैं कि ट्रांसफॉर्मर या बिजली के तार के नीचे की फसल पहले काट ली जाए। कटाई के बाद वहां पानी डाल दे, लेकिन किसान भाई ऐसा नहीं करते।”
“जहां तक बात मेंटिनेंस की है बिजली कंपनी प्री मानसून और पोस्ट मानसून मेंटिनेंस करवाती है। इसमें ज्यादातर पेड़ों की शाखा काटी जाती हैं, ताकि हवा चलने पर बिजली के तारों से टकराएं नहीं।” यह कहना सेवा निवृत्त अधीक्षण अभियंता एस. के. सिंह का।
वह आगे कहते हैं, “कंपनी मेंटेनेंस का ऐसा कोई फंड नहीं देती। जिस भी कनिष्ठ अभियंता (जेई) या फिर कार्यपालन अभियंता (ई ई) को जरूरत होती है तो वह विभाग के जरिए मेंटेनेंस में काम आने वाले इंस्ट्रूमेंट की खरीद कर सकता है।”
राहत राशि से नहीं निकलती निवेश की गई रकम
सतना जिले के रामनगर के किसान सियाशरण साकेत ने गांव कनेक्शन को बताया, उनके खेत में पिछले साल आग लग गई थी। करीब एकड़ से कम जमीन है, मुआवजा मिला तो लागत के हिसाब से कम ही था। मात्र 3000 रुपये मिले थे। मेरी मांग है कि मध्य प्रदेश शासन राहत राशि या क्षतिपूर्ति बढ़ाए।
जिले के अंतर्गत रामनगर तहसील के हल्का के पटवारी आशीष तिवारी ने गांव कनेक्शन को बताया, “आरबीसी (रेवन्यू बुक) परिपत्र 64 के अनुसार सिंचित जमीन में 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसान को 30 हजार रुपये एवं 2 हेक्टेयर से ज्यादा वाले जमीन वाले किसान को 27 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर क्षतिपूर्ति दी जाती है। इसी तरह असिंचित जमीन में 2 हेक्टेयर से कम पर 16 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर और 2 हेक्टेयर से अधिक पर 14 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर दिए जाने का प्रावधान है।”
सतना जिला कलेक्टरेट की राहत शाखा से मिली जानकारी के मुताबिक 2019-20 में आग लगने का घटना से जन-पशु हानि, फसल क्षति, मकान-दुकान क्षति के तहत कुल 20,62,4270.00 रुपये राहत राशि के रूप में दिए गए, जिसमें किसान भी शामिल हैं।
एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “तहसील स्तर पर रिकॉर्ड रहता है। केवल राहत राशि वितरण कलेक्टर के जरिए होता है, जो कई घटनाओं के लिए एक साथ दी जाती है। आज कल कुछ को तो फसल बीमा से राहत राशि मिल जाती है, जिसका डेटा कलेक्टर कार्यालय में नहीं है।”
गौरतलब है कि बिजली की तारों के वजह से हर साल ही हज़ारों किसानों के खड़ी फसल खाक हो जाती है। किसान के हाथ मुआवजा के नाम पर प्रशासन की ओर से क्षति पूर्ति दी जाती है, जो इतनी कम होती है कि किसान द्वारा खेती में लगाई गई लागत भी नहीं निकल पाती। ऐसे में ये सदमा उन्हें बर्दाश्त नहीं होता।
(इनपुट: मोहित शुक्ला, सीतापुर, उत्तर प्रदेश)
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