किसान अब एक टन पराली से कमा सकेंगे करीब 5500 रुपए

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   9 Feb 2018 2:15 PM GMT

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किसान अब एक टन पराली से कमा सकेंगे करीब 5500 रुपएसख्ती के बाद भी प्रदेश में किसान पराली जला रहे हैं। फाइल फोटो

नई दिल्ली। खेतों में फसलों के अवशेष यानी पराली पर अभी कुछ दिन पहले दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में काफी हल्ला मचा था कि किसानों की वजह से पर्यावरण बिगड़ रहा है। पर अब किसानों और सरकार के लिए एक अच्छी खबर है कि पराली को नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन (एनटीपीसी) खरीदेगा। एनटीपीसी एक टन पराली के लिए करीब 5500 रुपए देगी। एक एकड़ खेत में दो टन तक पराली निकलती है।

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खेतों में फसलों के अवशेष यानी पराली जलाने से होने वाले वायु-प्रदूषण को बचाने के लिए नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन (एनटीपीसी) अब पराली का इस्तेमाल अपने संयंत्र में करेगा। देश में सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) ने दादरी स्थित अपने संयंत्र के लिए रोजाना 1,000 टन कृषि अवशेषों की खरीद के लिए निविदा आमंत्रित की है।

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पैलेट्स की कैपिंग कीमत 5500 रुपए टन व ब्रिकेट्स यह कीमत 6,600 रुपए प्रति टन।

कंपनी के एक प्रवक्ता ने बताया, "बायोमास आधारित पैलेट्स की टेस्ट फायरिंग के आरंभिक चरण पूरे होने पर एनटीपीसी ने प्रति दिन 1000 मीट्रिक टन कृषि अवशेष आधारित ईंधन यानी बायोमास (500 मीट्रिक टन प्रतिदिन कृषि अवशेष पैलेट्स और 500 मीट्रिक टन प्रतिदिन टॉरेफाइड कृषि अवशेष पैलेटस या ब्रिकेट्स) की खरीद के लिए निविदा आमंत्रित की है।"

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पिछले दिनों केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह बताया था कि इस पराली का उपयोग कोयले के साथ किया जाएगा। कोयले में 10 प्रतिशत पराली मिलाई जाएगी और उसका बिजली प्लांट में ईंधन के रूप में इस्तेमाल होगा।

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पिछले दिनों उत्तर भारत में पराली जलाने से दिल्ली और आसपास के इलाकों में वायु प्रदृषण की स्थिति गहराने पर राष्ट्रीय हरित अभिकरण ने एनटीपीसी से फसलों के अवशेष का उपयोग कर बिजली पैदा करने के विकल्प पर विचार करने को कहा था। एनटीपीसी ने उसी समय दादरी संयंत्र में पराली का इस्तेमाल करने की बात कही थी।

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किसानों के पास धान की कटाई और अगली फसल वाले गेहूं की बुवाई के बीच काफी कम समय होता है, इसलिए वो पराली जला देने पर मजबूर होते हैं। कोई 14 दिनों के अंतराल में किसानों को पिछली फसल को काटना, बेचना और अगली रबी फसल की बुवाई भी सम्पन्न करनी होती है। धान की भूसी जला देना सबसे आसान होता है। दुर्भाग्य से किसान की इस मजबूरी को ठीक से समझा ही नहीं गया। बजाय उनकी मदद करने के, पूरी ताकत उन्हें दबा देने में लगा दी जाती है।

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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार अकेले पंजाब में ही करीब 200 लाख टन पराली जलाई जाती है। कृषि योग्य भूमि का करीब 70 प्रतिशत किसानों द्वारा कचरा जलाने के चक्कर में जला डाला जाता है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि इससे कार्बन-डाई-ऑक्साइड का स्तर 70 प्रतिशत बढ़ जाता है। कार्बन-मोनो ऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर क्रमशः 7 और 2.1 प्रतिशत बढ़ जाता है जिससे श्वसन और दिल की समस्याएं बढ़ जाती हैं। ये भी कहा गया कि इससे जमीन के पोषक तत्व जैसे फॉस्फोरस पोटेशियम, नाइट्रोजन, सल्फर आदि कम हो जाते हैं, लगभग 1.5 लाख टन सालाना।

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एनटीपीसी की विज्ञप्ति के अनुसार निविदा दो वर्षों के लिए मंगाई गई है जिसमें रोजाना 1000 टन पराली खरीदी जाएगी। इसमें पैलेट्स की कैपिंग कीमत 5500 रुपए टन तय की गई है और ब्रिकेट्स यह कीमत 6,600 रुपए प्रति टन निर्धारित की गई है।

इनपुट आईएएनएस

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