‘नमामि गंगे पर्यावरण मैत्रिक परियोजना से सकारात्मक परिणाम मिलने की संभावनाएं’
गाँव कनेक्शन 25 Feb 2018 7:00 PM GMT
सीएसआईआर – एनबीआरआई में चल रहे जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण और जैव विविधता संरक्षण विषयक दो-दिवसीय सीजीईएस–एनबीआरआई राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन तकनीकी सत्र के विशेष व्याख्यान में बोलते हुए वनस्पति विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. योगेश कुमार शर्मा ने बताया कि नमामि गंगे पर्यावरण मैत्रिक परियोजना पांच वर्षीय कार्यक्रम (2015-2020) के रूप में 20,000 रुपए की स्वीकृत धन राशि के बजट के साथ प्रारंभ की गई।
उन्होंने आगे कहा कि पहले भी विभिन्न परियोजनाओं द्वारा प्रयास होते रहे हैं लेकिन अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है जिसके सकारात्मक परिणाम मिलने की संभावनाएं अधिक हैं। डॉ. शर्मा ने बताया कि नमामि गंगे का मुख्य उद्देश्य गंगा को प्रदूषण मुक्त करना, इसका संरक्षण तथा इसको पुनर्जीवन देना है। गंगा नदी उत्तराखंड से बंगाल की खाड़ी तक लगभग 2500 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए लगभग 8 प्रान्तों से जुड़ी है और इसका विस्तृत मैदान लगभग 46% आबादी को प्रत्यक्ष रूप से पोषित करता है।
एक अन्य विशेष व्याख्यान में बाबा भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी के डॉ. नवीन कुमार अरोड़ा ने फसलों में पैदावार बढ़ने के वृद्धि उत्प्रेरक राइजोबैक्टेरिया के प्रयोग की चर्चा करते हुए कहा कि इससे पौधों के रोगों और भूमि की लवणता से निपटने में भी मदद मिलती है।
सीमैप के वैज्ञानिक डॉ. रमेश कुमार श्रीवास्तव ने धार्मिक स्थलों पर अर्पित फूलों के सदुपयोग के बारे में बताते हुए कहा कि इनसे सुगन्धित तेल, सुगन्धित जल तथा अगरबत्ती व कोन बना कर पर्यावरण कि रक्षा के साथ गरीब महिलाओं और बेरोजगार युवको को रोजगार के साधन उपलब्ध कराये जा सकते हैं। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया की उकता तकनीकी का हस्तांतरण शिर्डी साईं स्थान के नजदीक एक युवा उद्यमी को किया जा चूका है तथा माँ वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड के अधीन कार्यरत प्रसाद किट बनाने वाली महिलाओं को भी हाल ही में प्रशिक्षित किया जा चुका है।
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अन्य प्रस्तुतियों में वनस्पति विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के पंकज कनौजिया ने मक्के पर क्रोमियम के प्रभाव, तथा बाबा भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी के मोहम्मद बाकिर ने लकड़ी के ईधन की खपत और उसका जंगल पर पड़ने वाले प्रभाव सम्बन्धी किये गए एक अध्यन के बारे में चर्चा की।
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