केरल बाढ़: बांधों को बरी करने वाली जल आयोग की रिपोर्ट में हैं कई खामियां
गाँव कनेक्शन 19 Sep 2018 11:44 AM GMT
मयंक अग्रवाल,
बाढ़ के हालात बिगड़ने पर अक्सर बांधों को दोष दिया जाता है। लेकिन केरल के इतिहास की सबसे भयानक बाढ़ के बाद भी बांधों पर उंगली नहीं उठाई गई है। भारत के केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने केरल की बाढ़ त्रासदी पर अपनी ताजा रिपोर्ट में लिखा है, "केरल में बांध न तो बाढ़ की वजह बने और न ही उन्हें रोकने में कोई भूमिका निभाई"। इस रिपोर्ट ने सीधे-सीधे इस त्रासदी के लिए भारी वर्षा को ही जिम्मेदार ठहराया है।
हालांकि, रिपोर्ट ने केरल के पोरिंगलकुथु बांध के निरीक्षण और उससे पानी छोड़े जाने की क्षमता पर पुनर्विचार की जरूरत बताई है। इस रिपोर्ट में केरल के सभी जलाशयों के रूल कर्व (पानी स्टोर करने की अधिकतम और न्यूनतम सीमा) की समीक्षा की बात कही है ताकि बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए जलाशय में गुंजाइश (फ्लड कुशन) बनी रहे।
ऐतिहासिक अभिलेखों के मुताबिक, केरल ने 1924 में भी सबसे भयानक बाढ़ का सामना किया था। सीडब्ल्यूसी ने अपनी रिपोर्ट में भी कहा है कि, "15-17 अगस्त 2018 को केरल में हुई बारिश भी 16-18 जुलाई 1924 में हुई बारिश के जैसी थी।"
इस रिपोर्ट के मुताबिक, "15-17 अगस्त 2018 को आए तूफान से केरल के पेरियार, पांबा, चलाकुडी और भारतपुजा इलाके में भारी बाढ़ आई। 1 जून 2018 से 19 अगस्त 2018 को असामान्य तौर पर हुई भारी बारिश की वजह से केरल के 14 में से 13 जिले बुरी तरह से बाढ़ग्रस्त हो गए।" इसके बावजूद केंद्रीय जल आयोग को इसमें बांधों की कोई भूमिका नहीं दिखाई दी। आयोग का विश्लेषण था, "मौसम विभाग के आंकड़ों के हिसाब से 1 जून 2018 से 19 अगस्त 2018 तक केरल में 2,346.6 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि उम्मीद थी कि 1649.5 मिलीमीटर बारिश होगी। यह बारिश सामान्य से 42 फीसदी ज्यादा थी। 1 अगस्त 2018 से 19 अगस्त 2018 तक केरल में कुल 758.6 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि सामान्यतया इस समयांतराल में 287.6 मिलीमीटर बारिश होती है। यह सामान्य से 164 प्रतिशत अधिक थी।" 758.6 मिलीमीटर बारिश में से महज तीन दिनों- 15 से 17 अगस्त के बीच 414 मिलीमीटर बारिश हुई जिसकी वजह से भयानक बाढ़ आई।
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रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि, "15 से 17 अगस्त के बीच हुई भारी बारिश की वजह से लगभग 35 बांधों के दरवाजे खोल दिए गए। अगस्त 2018 में जलाशय या तो अपनी अधिकतम सीमा तक भरे हुए थे या उससे कुछ फुट नीचे थे। जून से जुलाई 2018 के बीच सामान्य से अधिक बारिश की वजह से 14 अगस्त को सभी बांध अपनी अधिकतम सीमा के आसपास तक भरे हुए थे। अगर ये कुछ फुट कम भी भरे होते तब भी बाढ़ की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता क्योंकि भयानक तूफान तीन-चार दिनों तक चलता रहा। किसी भी हालत में पहले दिन की बारिश के बाद ही बांधों को खोलना ही पड़ता। इसलिए बांधों की भूमिका न तो बाढ़ के हालात खराब करने में है और न ही उसे नियंत्रित करने में।"
केंद्रीय जल आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था, "अगर केरल मेंफिर ऐसी तेज बारिश होती है तो इसी तरह की बाढ़ आएगी। बांधों की भूमिका न तो बाढ़ की स्थिति गंभीर करने में है न उसे रोकने में।"
केरल सरकार की अंतर्राज्यीय जल सलाहकार समिति में स्पेशल अफसर जेम्स विल्सन का कहना था, "केरल की बाढ़ में बांधों की भूमिका पर जल आयोग का कहना सही है।" विल्सन के मुताबिक, "बदली परिस्थितियों में मॉनसून के बीच सूखे के कई दौर आने लगे हैँ, इसलिए हमें मजबूरन पानी का कुछ हिस्सा सिंचाई और पीने के लिए रखना पड़ता है। अगर हम अपने सबसे बड़े जलाशय में 20 पर्सेट पानी रखें तब भी इस बार जितनी बारिश हुई थी उस हिसाब से हमारे बांध 5 से 6 घंटे में भर जाते और हमें शेष पानी बहाने के लिए बांधों के गेट खोलने ही पड़ते।"
हालांकि, केंद्रीय जल आयोग ने केरल के सभी जलाशयों में अधिकतम और न्यूनतम पानी स्टोर करने के मानकों की समीक्षा को जरूरी बताया, खासतौर पर ऐसे बड़े बांधों की जिनकी लाइव स्टोरेज क्षमता 200 एमसीएम से ज्यादा है। ऐसा इसलिए ताकि ताकि बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए जलाशय में गुंजाइश (फ्लड कुशन) बनी रहे, विशेषकर मॉनसून के शुरूआत में। इस पर विल्सन का कहना था, "केरल की नदियां हिमालय की नदियों की तरह सदावाहिनी नहीं हैं इसलिए अगर हमने 20 पर्सेंट का फ्लड कुशन भी रखा तो जरूरत के समय पानी उपलब्धता संकट में पड़ जाएगी।"
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कुछ अहम बिंदुओं को अनदेखा करती है आयोग की रिपोर्ट
"केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट बांधों से जुड़े कुछ अहम मुद्दों को अनदेखा करती है।" साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के संयोजक हिमांशु ठक्कर कहते हैं। एसएएनडीआरपी जल संसाधन पर काम करने व ले लोगों और संगठनों का एक नेटवर्क है।
ठक्कर पूछते हैं, "क्या केरल के बांधों में रूल कर्व (पानी स्टोर करने की अधिकतम और न्यूनतम सीमा) का पालन किया गया था? क्या केरल में बांधों से कम से कम पानी छोड़ने के लिए सारे कदम उठाए गए थे? केरल के बांधों ने कौन से अतिरिक्त कदम उठाए? क्या केरल के बांधों के पास बाढ़ पूर्वानुमान, आपातकाल कार्ययोजना, नीचे बहने वाली जलधाराओं की वहन क्षमता का आंकलन, बाढ़ के नक्शे थे? क्या संभावित खतरे के मार्ग पर पड़ने वाले लोगों को चेतावनी दी गई।"
वह कहते हैं, "बिना इन सवालों का जवाब दिए इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि केरल के बांधों का बाढ़ में कोई योगदान नहीं था, महज एक वैचारिक दावा है जिसका मकसद बांधों और बांध के नियंताओं को दोषारोपण से बचाना है। बिना यह पूछे कि केरल में रूल कर्व का पालन हुआ था या नहीं अब यह कहना कि केरल के बांधों के रूल कर्व की समीक्षा जरूरी है, रिपोर्ट की असंगतता दर्शाता है।" ठक्कर का अगला सवाल है, "अगर केरल में मौजूद कोई भी जलाशय मददगार साबित नहीं हो सकता था तो फिर भविष्य में और जलाशय बनाने से भी कोई फायदा नहीं होना चाहिए।"
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तबाही का मंजर
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, आठ राज्यों में बाढ़ के चलते इस मॉनसून के मौसम में कुल 1375 लोगों की जान गई और 400 से अधिक घायल हो गए। आठ राज्यों में से, केरल में नुकसान सबसे ज्यादा हुआ यहां अब तक (18 सितंबर तक) 498 लोगों की मौत हुई और कम से कम 140 लोग घायल हुए। बाढ़ से 46,867 जानवरों और 1.72 करोड़ पोल्ट्री की जान चली गई।
बाढ़ से 54 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। इसने 1,952 घरों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और 21, 964 घरों को आंशिक नुकसान पहुंचाया। बाढ़ ने कुल 57,000 हेक्टेयर फसल क्षेत्र को प्रभावित किया, 4,920 पेड़ उखड़ गए, 3,652.5 किलोमीटर जिलों की सड़कों, 2590.49 किलोमीटर पंचायत रोड, 106.1 किलोमीटर राज्य राजमार्गों और 5400 से अधिक बिजली के खंभों को नुकसान पहुंचाया।
(यह लेख Mongabay में प्रकाशित हो चुका है।)
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