डेयरी कारोबार की हकीकत: 50 रुपए वाले दूध में किसानों को मिलते हैं सिर्फ 20 से 25 रुपए

राजस्थान, हरियाणा समेत कई राज्यों में दूध के दाम 30 से 20 प्रतिशत तक गिरे हैं, लेकिन जो उपभोक्ता दूध खरीद रहा है उसके दामों में गिरावट नहीं है तो इसका मुनाफा ये निजी डेयरी कंपनियां उठा रही हैं।

Diti BajpaiDiti Bajpai   22 Sep 2018 8:35 AM GMT

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डेयरी कारोबार की हकीकत: 50 रुपए वाले दूध में किसानों को मिलते हैं सिर्फ 20 से 25 रुपए

लखनऊ। बाजार में तमाम डेयरी कंपनियां अपने पैर पसारने में लगी हुई हैं। हाल में बाबा रामदेव भी अब डेयरी सेक्टर में अपनी कंपनी लेकर आए हैं। उन्होंने ऐलान किया है कि वे बाजार में अन्य कंपनियों से सस्ता दूध बेचेंगे। लेकिन इन सबके बीच एक महत्वपूर्ण सवाल यह रह जाता है कि इससे दुग्ध उत्पादकों, किसानों को क्या फायदा होगा?

देश में डेयरी उद्योग करीब 6 लाख करोड़ रुपए का है और महज एक लाख करोड़ ही संगठित क्षेत्र में है, बाकी असंगठित है। एडेलवाइस सिक्युरिटीज की आई ताजा रिपोर्ट के अनुसार, डेयरी क्षेत्र का कारोबार सालाना 15 प्रतिशत की दर से बढ़ता हुआ 2020 तक 9,400 अरब रुपये तक पहुंच जाने की उम्मीद है। मगर इसकी जमीनी हकीकत यह भी है कि भले ही देश का डेयरी उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन उसकी तुलना में किसानों की आमदनी बढ़ने की बजाए लगातार घट रही है।

"राजस्थान, हरियाणा समेत कई राज्यों में दूध के दाम 30 से 20 प्रतिशत तक गिरे हैं, लेकिन जो उपभोक्ता दूध खरीद रहा है उसके दामों में गिरावट नहीं है तो इसका मुनाफा ये निजी डेयरी कंपनियां उठा रही हैं। किसान की लागत जितनी लगती है, उतना किसान नहीं निकाल पा रहा है।" ऐसा कहना है डेयरी संचालक एम. एस. तरार का। मेरठ जिले में तरार पिछले कई वर्षों से डेयरी चला रहे हैं और कई किसानों को दूध उत्पाद बनाकर बाजार में बेचने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं।

तरार ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "अगर सरकार दूध का रेट नहीं दे सकती हैं तो चारा बनाने वाली मशीन पर सब्सिडी ही दें। उदाहरण के लिए हरे चारे में हम लोग मक्का देते हैं तो अगर उसको प्रोसेस करके साइलेज बना लें तो उसकी न्यूट्रीशियन वैल्यू बढ़ जाती है, जिससे उत्पादकता भी बढ़ेगी और गुणवत्ता भी अच्छी होगी। किसानों को घाटा भी कम होगा।"

भूमिहीन एवं सीमांत किसान के लिए डेयरी व्यवसाय उनके जीवनयापन का एक जरिया बन गया है। करीब 7 करोड़ ऐसे ग्रामीण किसान परिवार डेयरी से जुड़े हुए हैं। साथ ही 176.35 मिलियन टन उत्पादन के साथ भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। दुधारू पशुओं की संख्या भी सबसे ज्यादा भारत में है, लेकिन पिछले पांच सालों में दूध के दाम सही न मिलने से किसानों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।


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गोरखपुर जिले के रायगंज गाँव में रहने वाले राजकुमार यादव के पास 12 गाय थीं, लेकिन अब उनके पास सिर्फ एक गाय बची है जिसका दूध वह घर में ही इस्तेमाल करते हैं। डेयरी को हटाने का कारण पूछने पर उन्होंने बताया, "एक दिन में एक दुधारू जानवर पर 350 रुपए का खाने का खर्चा आता है अगर वो बीमार पड़ गई तो और खर्चा जोड़ लो। दूधिया, जो गाँव में दूध लेने के लिए आते हैं, वो 25 रुपए में ले जाते हैं और 45 रुपए में बेचता है। पशु आहार से लेकर डॉक्टर की फीस पर जितना खर्चा आ रहा था उतनी लागत नहीं निकल पा रही थी, इसलिए डेयरी हटानी पड़ी।"

रायगंज गाँव के राजकुमार ही नहीं, बल्कि कई किसानों ने डेयरी व्यवसाय को छोड़कर पोल्ट्री व्यवसाय शुरू कर दिया है। रायगंज गाँव के केशव मौर्या बताते हैं, "सरकार किसानों से पूछती ही नहीं है और न जानने की कोशिश करती है आखिर नुकसान कहां हो रहा है। अगर सरकार दाम नहीं बढ़ा सकती तो पशु के खाने के खर्च को कम कर दे। उसी से ही किसान का भला होगा।"

छोटे किसान गाँव या तहसील में बने कोऑपरेटिव या प्राइवेट सेंटर पर दूध बेचते हैं। अलग-अलग जगहों से इकट्ठा हुआ यह दूध चिलिंग सेंटर पर जमा किया जाता है। इसके बाद यह डेयरी तक पहुंचता है। असंगठित क्षेत्र में दूध की कीमत संगठित क्षेत्र की तुलना में काफी कम होती है। संगठित क्षेत्र में सिर्फ 20 फीसदी दूध की खपत होती है।

आईवीआरआई के संयुक्त निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. महेश चंद्र ने बताया, " पहले निजी डेयरी कंपनियां किसानों का शोषण करती थीं। बाद में किसानों को राहत देने के लिए दुग्ध उत्पादन सहकारी समितियां आईं, मगर ये भी निजी डेयरी कंपनियों को दूध बेचने लगी और किसानों को बोनस तक नहीं मिला। यानि किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने आगे बताया, "गुजरात जैसे राज्यों में डेयरी कोऑपेरेटिव अच्छा चल रहा है। वह किसानों को सीधे लाभ दे रहे हैं। अगर किसानों को इस व्यवसाय से मुनाफा कमाना है तो सरकार पर आश्रित न हो फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी (एफपीओ) बनाएं और खुद शुरू करें। जितना बकरी और सूकर पालन से मुनाफा हो जाता है। उतना डेयरी से नहीं हो रहा है।"

दूध में उपलब्ध फैट और एसएनएफ के आधार पर ही दूध की कीमत तय होती है। कोऑपरेटिव की तरफ से दूध के जो दाम तय किए जाते हैं, वह 6.5 फीसदी फैट और 9.5 फीसदी एसएनएफ के होते हैं, इसके बाद जिस मात्रा में फैट कम होता जाता है उसी तरह कीमत में कमी आती है।

जो किसान बाजार में दूध बेच देते हैं यानी जो ग्राहकों तक सीधे दूध को पहुंचाते हैं उन्हें तो काफी फायदा हो जाता है लेकिन जो लोग ऐसा नहीं कर पाते उन्हें मजबूरन दूध को तमाम निजी डेयरी कंपनियों के केंद्रों पर ओने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है। "हम गाँव से जब दूध लेते हैं तो 25 रुपए भैंस के दूध के और 22 रुपए गाय के दूध के देते हैं और बाजार 45 रुपए में बेचते हैं, इसमें हम 10 लीटर पानी मिलाते हैं क्योंकि यह हमारी मजबूरी है हमें भी मुनाफा कमाना होता है।" ऐसा बताते हैं नारस यादव। नारस गोरखपुर जिले के रायगंज गाँव से दूध खरीद कर मंडी में बेचने का काम करते हैं।

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कुछ महीनों पहले ही बोतलबंद पानी से सस्ते दूध को लेकर महाराष्ट्र समेत कई राज्यों के किसानों गुस्सा का सड़कों पर उतरा था। बावजूद इसके किसानों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। जून 2018 की नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कॉपरेटिव सेक्टर पूरे देश में सबसे कम रेट महाराष्ट्र के किसानों के हैं। "किसान से सस्ते दामों पर बिचौलियों दूध खरीद कर 45 रुपए में बेच देता है। वहीं निजी कंपनियां सस्ते दामों पर लेकर लोगों तक 50 से 55 रुपये की क़ीमत में दूध को बेच देते हैं। अगर इस व्यवसाय में मुनाफा होता है तो वह है बिचौलिया और निजी डेयरी कंपनियों को।" दूध संघ से जुड़े डेयरी संचालक पन्ने लाल यादव ने बताया।

"दूध के दाम पिछले कई वर्षों से नहीं बढ़े लेकिन किसानों को अब दिक्कत इसलिए आ रही है क्योंकि उत्पादन लागत बढ़ रही है। पहले कैटल फीड का 50 किग्रा का बैग 500 रुपए का था, वही अब 1000 रुपए में मिलता है।" महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के कुरूंदवाड के अमूल शंकर ने बताया, "एक गाय पर एक दिन मे 150 रुपए लागत लगती है, उसका एक लीटर दूध 14 रुपए में बिकता में है और लोगों तक 50 से 55 रुपए में जाता है। किसान हमेशा घाटे में रहता है और फायदा कोई और उठाता है।"


      

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