बच्चों के लिए जानलेवा साबित होने वाली गले की बीमारी डिप्थीरिया के मिले कई मरीज, ऐसे करें बचाव

जीवाणु से होने वाला यह रोग टांसिल और श्वास नली को प्रभावित करता है, संक्रमण की वजह से एक झिल्ली बन जाती है, जिसकी वजह से मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   21 Aug 2019 5:28 AM GMT

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बच्चों के लिए जानलेवा साबित होने वाली गले की बीमारी डिप्थीरिया के मिले कई मरीज, ऐसे करें बचाव

सघन टीकाकरण के बावजूद डिप्थीरिया यानि गले की बीमारी को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सका है। डिप्‍थीरिया एक ऐसी संक्रामक बीमारी है जो बच्‍चों के लिए काफी खतरनाक होती है। आम बोलचाल की भाषा में इस बीमारी को गलाघोंटू भी कहा जाता है। थोड़ी सी सावधानी, एंटीबायोटिक दवाओं और टीकों से इस बीमारी से बचा जा सकता है। दिल्ली और यूपी में डिप्थीरिया के कई मामले सामने आए हैं।

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ईएनटी विभाग के डॉक्टर वीरेंद्र वर्मा ने बताया, " डिप्थीरिया एक प्रकार के संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है। यह कॉरीनेबैक्टेरियम बैक्टीरिया के संक्रमण से होता है। इसके चपेट में ज्यादातर बच्चे आते हैं। हालांकि बीमारी बड़ों में भी हो सकती है। बैक्टीरिया सबसे पहले गले करता है। इससे सांस नली तक इंफेक्शन फैल जाता है।"

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"संक्रमण की वजह से एक झिल्ली बन जाती है, जिसकी वजह से मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। एक स्थिति के बाद इससे जहर निकलने लगता है जो खून के जरिए दिमाग और ह्दय तक पहुंच जाता है और उसे नुकसान पहुंचाने लगता है। इस स्थिति में पहुंचने के बाद मरीज की मौत का खतरा बढ़ जाता है।" उन्होंने आगे बताया।

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उत्तर प्रदेश के बुलंद शहर में 12 और गोरखपुर-बस्ती मंडल में डिप्थीरिया के छह मामले सामने आए हैं। यूपी के महानिदेशक परिवार कल्याण नीना गुप्ता ने प्रदेश के सभी सीएमओ को एक पत्र भेजकर इसकी तस्दीक की है। वहीं, दिल्ली में भी 14 केस और सामने आए हैं।

गोरखपुर के सीएमओ डॉ. श्रीकांत तिवारी ने बताया, " गोरखपुर जनपद में डिप्थीरिया के दो संदिग्ध केस रिपोर्ट हुए हैं, इसे देखते हुए एहतियातन यह कदम उठाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी केंद्रों से डीपीटी द्वितीय बूस्टर का टीका लगवाने के लिए बच्चा मोटिवेट करने वाली आशा कार्यकर्ता को भी 50 रूपये की प्रोत्साहन राशि मिलती है। अगस्त माह में अभियान के तौर पर टीडी और डीपीटी द्वितीय बूस्टर डोज लगाया जाएगा और छूटे हुए बच्चे कवर किए जाएंगे।"


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डिप्थीरिया से बचाव

-जीवाणु से होने वाला यह रोग टांसिल और श्वास नली को प्रभावित करता है

-इससे सांस लेने में दिक्कत, गर्दन में सूजन, बुखार और खांसी आते हैं

-मरीजे के संपर्क में आने वाले को भी यह बीमारी हो जाती है

-इसका समय से उपचार न हो तो यह जानलेवा भी हो सकती है

-टीकाकरण इसका सबसे बेहतर उपचार है

- डिप्थीरिया से बचाव के लिए बच्चों को डीपीटी का टीका लगवाएं


बच्चों में डिप्थीरिया रोकने का सबसे प्रभावी उपाय सभी बच्चों को सक्रिय प्रतिरक्षण प्रदान करना है। भारत में यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) के तहत इसकी सिफ़ारिश की जाती है। एकल एंटीजन डिप्थीरिया टीकाकरण उपलब्ध नहीं है। सामान्यत: टीकाकरण अन्य टीकों जैसे कि डीपीटी के टीके (डिप्थीरिया + पर्टुसिस + टेटनस टोक्साइड) या पेंटावेलेंट वैक्सीन (डीपीटी + हैप बी + हिब वैक्सीन) के साथ मिलाकर दिया जाता है।

यूआईपी में डीपीटी की 5 खुराकों की सिफ़ारिश की जाती हैं। तीन खुराकें 6, 10 और 14 सप्ताहों तथा दो बूस्टर खुराक एक बूस्टर ख़ुराक 16 से 24 महीने की अवस्था एवं दूसरी बूस्टर खुराक 5 से 6 वर्ष की अवस्था में दी जाती है। यदि किसी बच्चे को डीपीटी में होने वाले पर्टुसिस टीके के घटक से परेशानी होती है, तो पेडियाट्रिक डीटी का टीका दिया जाना चाहिए।


किशोरों और वयस्कों को प्राय: टिटनेस टोक्साइड के साथ कम मात्रा में डिप्थीरिया टोक्साइड दिया जाता है। भारत में यूआईपी के तहत चयनित राज्यों में पेंटावेलेंट वैक्सीन का उपयोग भी किया जाता है। डब्ल्यूएचओ ने टीकाकरण रहित 7 वर्ष की अवस्था तथा उससे अधिक आयु की अवस्था तक के बच्चों के लिए सलाह दी है कि दो खुराकें, 1 से 2 महीनों के अंतराल और तीसरी खुराक 6 से 12 महीनों के बाद दी जानी चाहिए। इसके बाद बूस्टर खुराक को लंबी अवधि तक सुरक्षा देने के लिए कम से कम 1 वर्ष के अंतराल पर 5 बार दिया जा सकता है।

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