मिलिए ज़ू कीपर राजेश कुमार से, जिनके लिए बच्चों की तरह हैं जानवर

स्लो ऐप के फॉरेस्टर पार्टनर चैनल पर सुनिए जू कीपर राजेश कुमार की कहानी। राजेश दिल्ली के राष्ट्रीय प्राणी उद्यान में काम करते हैं। जानिए कहानी जानवरों से उनके लगाव की।
the slow app

बचपन में हम सब एक न एक बार चिड़ियाघर जरूर गए होंगे। हो सकता है कि हम में से कुछ को चिड़ियाघर बहुत अच्छा लगा हो और कुछ को ज्यादा पसंद ना आया हो और कुछ को बस इससे नफरत ही हो गई हो। लेकिन जानवरों की देखभाल करने वाले जू कीपर सबको पसंद आते थे।

हां, इस बात को लेकर जरूर हैरानी होती थी कि जानवर कैसे ज़ू कीपर की बात सुनते हैं? या फिर वे कितने बहादुर होते थे कि जानवरों के बाड़े में घुस जाते हैं? क्या वे जानवरों के दोस्त होते थे? वे जानवरों की देखभाल कैसे करते हैं? बहुत सारे सवाल होते थे।

स्लो ऐप के फॉरेस्टर चैनल में सीधे एक ज़ू कीपर से यह सब बातें जानने को मिलीं। मिलिए राजेश कुमार से, जो 71 हेक्टेयर में फैले दिल्ली के चिड़ियाघर में काम करते हैं। कुमार जिन जानवरों की देखभाल करते हैं, वह उनके साथ अपने संबंधों के बारे में बताते हैं।

जानवरों के व्यवहार को समझना कुमार के काम का बड़ा हिस्सा है

लगभग 4 मिनट की एक लघु फिल्म की शुरुआत धूप से सराबोर हरे-भरे घास के मैदान से होती है। रोशनी लुका-छुपी का खेल खेलती है और उड़ते हुए पक्षियों, मोर, स्तनधारी जीवों, गौर और तेंदुए के शॉट्स दिखाए जाते हैं। यही दिल्ली के चिड़ियाघर की पहचान हैं।

कुमार कहते हैं, “जानवर बात नहीं कर सकते और हम उनकी आवाज है।” पानी के टैंक से छाल का टुकड़ा निकालते हुए कुमार बताते हैं, “मेरी पूरी जिंदगी इनके इर्द-गिर्द ही घूमती है। हमें उनकी देखभाल करनी होती है, उनके खाने और आश्रय का ध्यान रखना होता है। उनके बाड़े में साफ सफाई का भी ख्याल रखना होता है। हम पूरी ईमानदारी और लगन से काम करते हैं। सुबह में, मैं हर बाड़े में जाता हूं और देखता हूं कि वहां कुछ ऐसा तो नहीं है जो जानवरों को परेशान करें।”

हमें चिड़ियाघर की जरूरत क्यों है? कुमार जवाब देते हैं, “यहां जानवर लंबे समय तक जीवित रहते हैं। हम नियमित अंतराल पर उनका मेडिकल चेकअप करवाते हैं। हम उन्हें समय पर खाना खिलाते हैं। अलग-अलग मौसम के हिसाब से उन्हें अलग-अलग खाना दिया जाता है।”

बाघ की तरफ इशारा करते हुए कुमार कहते हैं, “गर्मियों में हम इसे 10 किलो मांस देते हैं और सर्दियों में 12 किलो। गर्मी के मौसम में उनपर पानी की बौछार के अलावा उन्हें हर वह चीज की जाती है जो उन्हें भीषण गर्मी से बचाकर रखे। सर्दियों में उन्हें कड़ाके की ठंड से बचाकर रखा जाता है।”

एक जानवर के व्यवहार को समझना कुमार के काम का एक बड़ा हिस्सा है। इस लघु फिल्म में पानी में तैरते हुए कछुए और पेलिकन की उड़ान और उड़ान भरने के लिए तैयार पेलिकनों की तस्वीरें भी हैं। आखिर में कुमार कहते हैं, “वे सभी हमारे बच्चों की तरह हैं। हम अपना पूरा दिन उनके साथ बिताते हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनकी देखभाल करने का मौका मिला। हम उनके लिए कितना भी करें, वह कम ही रहेगा।”

यह शो स्लो कंटेंट ने तैयार किया। कैमरा और प्रोडक्शन अभिषेक वर्मा और मोहम्मद सलमान का है। संपादन पी मधु कुमार और ग्राफिक्स कार्तिक द्वारा किए गए हैं।

अनुवाद: संघप्रिया मौर्य

स्लो ऐप डाउनलोड करें

Recent Posts



More Posts

popular Posts