यूपी: कन्नौज में डेंगू की दहशत, रुपया भी जा रहा, जान से भी हाथ धो रहे लोग, प्लेट्लेट्स चढ़ाने की जिलों में मशीन नहीं

कन्नौज में डेंगू के कहर से दहशत मची हुई है। सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाओं से लोग संतुष्ट नहीं हैं तो निजी अस्पताल, नर्सिंग होम और पैथोलॉजी के संचालक डेंगू के नाम पर मनमाना बिल वसूल रहे हैं। जिले में प्लाज्मा चढ़ाने की सुविधा तक नहीं है।

Ajay MishraAjay Mishra   1 Nov 2021 1:24 PM GMT

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कन्नौज (यूपी)। कन्नौज में एक सितंबर से लेकर 30 अक्टूबर तक डेंगू के 1049 मामले सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज किए जा चुके हैं, जबकि सैकड़ों लोग निजी अस्पतालों में भर्ती हैं, घरों से इलाज करा रहे हैं उनका कहीं जिक्र नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले में अब तक डेंगू से एक मौत हुई है लेकिन कई-कई कॉलोनियों और गांवों में लोगों के मुताबिक एक ही जगह 2-3 मौत हो चुकी हैं।

कन्नौज में ही नगर पंचायत तिर्वा के मोहल्ला दुर्गानगर निवासी राजीव बाथम (30 वर्ष) की मां सुदामा देवी को डेंगू हुआ था, 6-7 दिन कानपुर के एक अस्पातल में इलाज चला फिर उनकी मौत हो गई। राजीव बाथम बताते हैं, " आज (29 अक्टूबर) को अम्मा की तेरहवीं है। उन्हें डेंगू हो गया था। कानपुर में इलाज कराया ढाई से 3 लाख रुपए खर्च हो गए।"

अमित बाथम के 14 साल के भतीजे ने भी डेंगू के चलते दम तोड़ दिया। सभी फोटो- अजय मिश्रा

राजीव आगे कहते हैं, "कम से कम छह महीने से गली में गंदगी है। ज्यादातर लोग नालियों से निकलते हैं। गंदगी को लेकर शिकायत की लेकिन हर बार नगर पंचायत (तिर्वा) की ओर से फर्जी निस्तारण कर दिया जाता है।"

कन्नौज जिले में ही ठठिया खेड़ा ग्राम पंचायत के कृष्ण कुमार की मां को डेंगू हैं। निजी अस्पताल में भर्ती हैं और 30 हजार रुपए खर्च हो चुके हैं। उनके मुताबिक निजी अस्पातल में 1000-1300 रुपए सिर्फ खून और डेंगू की जांच के ही ले लेते हैं।

गांवों में मौतों से दशहत

कृष्ण कुमार गांव कनेक्शन को बताते हैं, "इन दिनों इतनी हालत खराब है कि हर घर में दो-तीन लोग डेंगू या बुखार से पीड़ित हैं। पड़ोस में जो सोनेलाल का घर है उनका नाती भी खत्म हो चुका है। चार-पांच लोग अब भी उनके घर में बुखार से पीड़ित हैं। गांव में गंदगी का अंबार है। हालात इतने बद्तर होने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की टीम एक बार भी नहीं आई है।"

राजीव बाथम की मां सुदामा देवी और सोनेलाल के नाती दोनों की मौतों का आंकड़ा सरकार के रजिस्टर में नहीं हैं। क्योंकि दोनों निजी अस्पातल में इलाज करा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग सिर्फ इलाइजा कि रिपोर्ट मानता है जबकि निजी अस्पतालों में डेंगू के मरीज भरे पड़े हैं वहां डेंगू की किट से जांच होती है। जिसके लिए तिमारदारों से अच्छे खासे पैसे लिए जाते हैं।


कन्नौज जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर दूर ठठिया खेड़ा के आशीष कुमार मजदूरी करते हैं लेकिन अपने घर में बीमार लोगों का इलाज निजी अस्पताल और ड़ॉक्टर से करवा रहे हैं। वो कहते हैं, मेरे घर में पांच लोगों को बुखार है। मम्मी, पत्नी, भांजा सब बीमार हैं। सुना था निजी में अच्छा इलाज होता है इसलिए जा रहे हैँ। मरीज सीरियस हो या दिक्कत हो तो सरकारी में सुनते ही नहीं। मेरे गांव में दो लोगों को मौत हो चुकी है। कोई आया (अधिकारी) तो है नहीं।"

दरअसल, स्वास्थ्य महकमे की रिपोर्ट के मुताबिक कन्नौज में अब तक कुल कोरोना के मामले 9231 हैं, इसमें 9116 स्वस्थ्य हो चुके हैं। मृतकों की संख्या 122 दर्ज है। यानि तकरीबन 513 औसत केस हर महीने कोरोना संक्रमण के मिले हैं। दूसरी ओर पहली सितम्बर 2021 से 30 अक्तूबर 2021 तक डेंगू के मामले 1049 पाए गए हैं।

निजी अस्पतालों, घरों में मरीज भरे पड़े हैं

स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक पहली सितंबर से 30 अक्टूबर तक जिले में डेंगू के 1049 केस सामने आए हैं। इसमें केवल राजकीय मेडिकल कॉलेज तिर्वा में होने वाली एलाइजा जांच रिपोर्ट के ही मरीज शामिल हैं, जो स्वास्थ्य महकमे की रिपोर्ट है। दूसरी ओर हजारों लोगों ने बुखार आने के बाद प्राइवेट पैथोलॉजी और नर्सिंगहोम और निजी अस्पतालों में भी जांच कराई, जिसमें कईयों की डेंगू पॉजिटिव रिपोर्ट आई। साथ ही मच्छरजनित ही मलेरिया की भी पुष्टि हुई। टाइफाइड के भी कई केस सामने आए हैं, लेकिन इन रिपोर्टों को सरकारी में शामिल नहीं किया गया है। यहां तक की मृतकों का आंकड़ा भी बुखार से होने में एक ही बताया गया है, जबकि गांवों-कस्बों की खाक छानने पर ग्रामीण इस आंकड़े को झुठलाते हैं। 30 अक्तूबर को ही जिले में एलाइजा जांच में 22 डेंगू के केस मिले।


कन्नौज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. विनोद कुमार कहते हैं, "29 अक्तूबर तक 1027 केस डेंगू के जिले में हैं। जिला अस्पताल और छिबरामऊ के 100 शैय्या अस्पताल में सैंपल लेने के बाद राजकीय मेडिकल कॉलेज में ही सब सैंपल जाते हैं, वहीं एलाइजा की जांच होती है। इन आंकड़ों में निजी पैथोलॉजी व नर्सिंगहोम में होने वाली जांच की संख्या नहीं है।"

सीएमओ ने आगे कहा, "बुखार से जिले में अब तक केवल एक मौत हुई है वो भी लखनऊ में। बुखार का पीक टाइम है, किस कारण मौत हुई है पता करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम से उसका डेथ ऑडिट कराते हैं।"

सीएमओ डॉ. कुमार आगे कहते हैं, "पिछली साल कोरोना संक्रमण ज्यादा था, इसलिए डेंगू के केस दब गए थे। अगस्त, सितम्बर, अक्तूबर में मच्छर जनित बीमारियां जैसै डेंगू व मलेरिया के केस ज्यादा आते हैं। इस बार मलेरिया के मरीज नहीं हैं, लेकिन डेंगू के केस अधिक हैं।"

कन्नौज के शहर हों कस्बा या फिर गांव हर जगह तबाही मची है। यहां तक की स्थानीय लोग कहने लगे हैं कि ये कोरोना से ज्यादा रफ्तार में बढ़ रहा है। स्थानीय लोग इसलिए भी ज्यादा परेशान हैं क्योंकि कन्नौज में रहने वाले मरीज की अगर हालत गंभीर हुई और प्लेटलेट्स चढ़ाने का नंबर आया तो दूसरे कानपुर, लखनऊ या आगरा भेजा जाता है। क्योंकि जिले के अस्पातलों में प्लेटलेट्स चढ़ाने की सुविधा ही नहीं है।


कन्नौज में प्लाजा चढ़ाने की सुविधा नहीं

कन्नौज को 1997 में जिला का दर्जा मिला था, उसके बाद 24 साल हो चुके हैं लेकिन जिला अस्पताल या राजकीय मेडिकल कॉलेज में प्लेटलेट्स चढ़ाने की सुविधा नहीं है। डेंगू के मरीजों को सामान्य तौर 20 हजार से कम प्लेट्लेट्स होने पर प्जामा दिया जाता है। इसके अलावा मरीज को ब्लीडिंग होने पर भी प्लाजा दिया जाता है।

प्जामा मशीन की सुविधा के बारे में बात करने पर सीएमओ डॉ. विनोद कुमार कहते हैं, "ब्लड काउंट यानि सीबीसी में प्लेटलेटस पता चलती है। जिन मरीजों के 20 हजार से कम प्लेटलेटस होती हैं, उनको प्लाज्मा चढ़ाया जाता है। अभी कन्नौज में प्लाज्मा चढ़ाने की सुविधा नहीं है। जिला अस्पताल में भवन बनने का काम शुरू हो गया है।"

वहीं इस बारे में बात करने पर राजकीय मेडिकल कॉलेज तिर्वा के सीएमएस डॉ. दिलीप सिंह बताते हैं, " सेफरेटर मशीन का लाइसेंस लेना होता है। नार्मल ब्लड लेने के बाद प्लाज्मा को अलग किया जाता है। जिला अस्पताल, राजकीय मेडिकल कॉलेज में यह मशीन नहीं है। ऐसे मरीजों को कानपुर भेजा जाता है।"


दिल्ली से आई टीम ने देखे हालात

कन्नौज पिछले कई महीनों से डेंगू की मार से परेशान हैं। इसकी खबर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के अधिकारियों को है। फरुर्खाबाद में कथित अनजाने बुखार के प्रकोप के दौरान भी कन्नौज में भी कई मौते हुई थीं। डेंगू के बिगड़ते हालातों को देखते हुए अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में दिल्ली से तीन सदस्यीय टीम कन्नौज आई थी, जिसमें शामिल डॉ. डीएन गिरी, डॉ. शौकत कमाल और डॉ. आशीष वाजपेयी ने कई क्षेत्रों का भी निरीक्षण किया था।

सीएमओ डॉ. विनोद कुमार के मुताबिक, "जो डेंगू के केस निकल रहे हैं, उन गांव में क्या एक्टिविटी हुई है, वह देखने के लिए ही दिल्ली से टीम आई थी।"

बुखार से सूने हो गए कई परिवार

डेंगू के प्रकोप में बूढ़े, बच्चे, जवान सभी हैं। तहसील तिर्वा इलाके के कस्बा ठठिया निवासी 32 साल के अमित बाथम का भतीजा अऩूप 14 साल का था। 21 अक्टूबर को उसकी मौत हो गई। वो अपने परिवार का इकलौता बेटा था अमित बताते हैं, " कक्षा 9 में पढ़ता था एक दिन दुकान पर गया। वापस आया तो बुखार था। दवा लाए तो डॉक्टर ने कहा शाम को जांच जरूर करा लेना। जांच के बाद तिर्वा के एक निजी हॉस्पिटल में डेंगू पॉजिटिव की रिपोर्ट आई। दूसरी जांच में लीवर इंफेक्शन बताया और उसके बाद कानपुर रेफर कर दिया। वहां इलाज के दौरान वह खत्म हो गया। कितना खर्च आया, यह हिसाब जोड़ा नहीं है। अब परिवार में मृतक की तीन बहनें रह गई हैं।"


डेंगू में कई परिवार सूने हो गए हैं। किसी का बेट गया है तो किसी की बुढ़ापे का लाठी ही चली गई है। ठठिया गांव उपासना सिंह (26 साल) बताती हैं, "मम्मी-पापा डेंगू की चपेट हैं। पहले गांव में ही दवा ली, फिर कानपुर चले गए। डॉक्टर ने कहा कि प्लेटलेट्स बहुत कम हैं तो कानपुर ले जाओ। मम्मी का इलाज में 80 हजार रुपए और पापा का अब तक 20-25 हजार रुपए खर्च हो चुका है। सरकारी अस्पतालों में सुनवाई नहीं होती है।"

इसी गांव के श्रीकृष्ठ ठठिया (66 वर्ष) थोड़ा कम सुनते हैं। जोर से पूछने पर बताते हैं, "करीब 20 दिन पहले खेतों में शौच को गए थे तो ओस में पैर भींग गए थे। उसके बाद शरीर गर्म हो गया। जांच कराई तो प्लेटलेट्स कम निकलीं। 1300 रुपए जांच के लिए लिए थे। उसके बाद बेटे को बुखार आया। हम घबड़ाएं न इसलिए अपनी दिक्कत नहीं बताई। बाद में हालत खराब हुई और कानपुर गया। बाद में उसकी मौत हो गई।"

श्रीकृष्ण ठठिया की बेटी उमा (40 वर्ष) की शादी मेरठ में हुई है। इकलौते भाई और पिता के बीमारी की खबर सुनकर भागती हुई आई थीं। वो बताते हैं, भाई का नाम हरिओम (25 वर्ष) बुखार आता रहा। गांव में दवा लेता रहा, सोचा नहीं था कि हालत खराब हो जाएगी। कानपुर ले गए थे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 22 अक्तूबर को खत्म हो गया। 60-70 हजार रुपए लग गया होगा।"

उमा के परिवार में अब अब बुजुर्ग पिता ही बचे हैं। 4 साल पहले उनकी मां की मौत हो गई थी दो साल पहले एक भाई की निधन हो गया। वो कहती हैं, 2 साल पहले एक भाई खत्म हो गया। अब दूसरा भी गया। चार साल में तीन लोग खत्म हो गए। अब तक यहां कोई भी अधिकारी या डॉक्टर नहीं आया है देखने के लिए।"

ऐसे करें डेंगू से बचाव

सीएमओ डॉ. विनोद कुमार बताते हैं कि साफ पानी में डेंगू का मच्छर होता है, यह दिन में काटता है। पूरे बाजू के कपड़े और फुल पैंट पहने। डब्बा व कूलर आदि में पानी इकट्ठा न होने दें। मच्छर दूर करने वाले पदार्थ आदि रखें। मच्छरदानी लगाकर सोएं। नाली में पानी न जमा होने दें और घास भी हटा दें। बरसात के सीजन में मच्छर पनपते हैं।

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