प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की अंब्रैला सुरक्षा में कई छेद हैं सरकार !
Arvind Shukla 22 Feb 2018 5:06 PM GMT
“आजादी के बाद अगर किसी सरकार के पांच साल के कार्यकाल को किसी योजना के लिए याद किया जाए, शोध किया जाए तो नरेंद्र मोदी सरकार के पांच साल लोगों को सुरक्षा देने के लिए याद किए जाएंगे, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इनमें से एक है।“ केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने फिक्की में फसल बीमा पर आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में कुछ इस तरह योजना की खूबियां गिनाईं।
शेखावत ने कहा, “मैं खुद एक किसान हूं और जानता हूं कि कैसे एक किसान बीज बोने से लेकर फसल कटने और बिकने तक कभी चैन से नहीं सोता। वो कभी मार्केट से डरता है तो कभी मौसम से। लेकिन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने ऐसे किसानों के जोखिम को काफी हद तक कम करने की कोशिश की।“
दिल्ली में व्यापार एवं उद्योग संगठन ‘फिक्की’ की ओर से ‘कृषि बीमा में तेजी’ ( Agriculture Insurance ) विषय में बोलते हुए शेखावत ने आगे कहा, “आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2014-15 के मुकाबले वर्ष 16-17 में कृषि कवरेज दोगुना हुआ है, लेकिन ये संख्या बहुत कम है और इसे तेजी से बढ़ाने की जरुरत है। इसकी एक बड़ी समस्या राज्यों से सहयोग न मिलना है, कृषि राज्य का विषय है इसलिए केंद्र सीधे दखल नहीं दे पाता, जो समस्या की वजह बनती है।“ उन्होंने फिक्की से कहा कि वो अलग-अलग राज्यों में कृषि बीमा पर कार्यक्रम कराए।
दिल्ली में जब मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत योजना की तारीफ कर रहे थे, उसी समय दूसरी ओर दिल्ली से करीब 1000 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के शिवनी जिले के केवलारी तहसील में कुछ किसान बैंक के सामने धरने पर बैठ गए। बुधवार को स्थानीय भारतीय स्टैट बैंक शाखा के सामने भूख हड़ताल करने वाले शिवम बघेल का आरोप है कि 2016 में ओले गिरने से जो क्षति हुई थी, उसका अब तक पैसा नहीं मिला, जबकि बैंक ने प्रीमियम पूरा काटा था।
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शिवम के साथ कई और किसान जुड़ गए हैं, 2016 के बाद एक बार फिर शिवम की फसल बर्बाद हुई है। वो बताते हैं, “मैं परासनाली गांव का रहने वाला हूं, मेरे पिता प्रीतम सिंह बघेल के पास 3 हेक्टेयर गेहूं था, जो इस बार बर्बाद हो गया। बीमा के क्लेम के लिए बैंक गया तो पता चला इस बार मेरा प्रीमियम नहीं काटा गया। इतना ही नहीं, 2016 में मेरा और मेरे जैसे कई किसानों का गेहूं बर्बाद हुआ था, उसका कोई क्लेम नहीं मिला है।“
शिवम की एक मांग में तकनीकी पेंच फंस रहा है, जबकि 2016 वाले केस में बैंक लिखित में शिकायत मांग रहे हैं। स्टैट बैंक के फील्ड मैनेजर गिरीशपंच पाल गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “2016 के ज्यादातर दावों का भुगतान हो गया है। इन लोगों को क्लेम क्यों नहीं मिला, लिखित शिकायत मिलने पर इसकी जांच होगी, मैंने धरने पर बैठे लोगों से कहा कि वो लिखित में शिकायत करें।”
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लेकिन 2018 में जिस गेहूं की फसल चौपट होने की बात की जा रही है, उसे लेकर पाल अलग तर्क देते हैं, “बैंक कुछ नहीं कर सकता क्योंकि लाभार्थी किसान ने किसान क्रेडिट कार्ड से रबी सीजन (1 अक्टूबर) में कोई लेनदेन नहीं किया, इसलिए प्रीमियम हीं नहीं कटी, ऐसे में क्लेम का तकनीकी रूप से दावा नहीं बनता है।“ हालांकि शिवम का अपना तर्क हैं वो कहते हैं, “2012 से उनके पिता जी के नाम केसीसी है, और बैंक ने हमेशा उससे बिना बताए प्रीमियम काटा, फिर इस बार क्यों ऐसा नहीं किया, अगर कोई नियम कानून था तो किसानों को बताया क्यों नहीं गया।“
बीमा के दावों और भुगतान को लेकर कई राज्यों के किसान फरियाद लगाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड वाले हिस्से में स्थित ललितपुर के किसान भी अक्सर दैवीय आपदा के शिकार होते हैं। ललितपुर जनपद मुख्यालय से 32 किमी पूर्व-उत्तर दिशा ललितपुर तहसील के टेनगा गाँव के इन्दपाल सिंह (42 वर्ष) बताते हैं, "पिछले साल खरीफ और रबी, दोनों फसल के दौरान केसीसी खाते से बैंक वालों ने बीमा राशि का काटी थी, बेमौसम बरसात के चलते फसल जल मग्न हो गयी, जिसमें काफी नुकसान हुआ, लेकिन हमें बीमा तो एक पैसा नहीं मिला।“
वो आगे बताते हैं, “बैंक वाले फसल बीमा का पैसा किसान क्रेडिट कार्ड से काट लेते हैं, कोई लिखित रसीद किसानों को नहीं दी जाती। जब बीमा कम्पनी किसानों का पैसा काटती हैं, किसान की फसल का नुकसान होने पर बीमा कम्पनी बीमा की राशि नहीं देती। जब कम्पनी बीमा का पैसा देना नहीं चाहती तो खातों से पैसा क्यों काटा जाता हैं?”
वो आगे बताते हैं, “बैंक वाले फसल बीमा का पैसा किसान क्रेडिट कार्ड से काट लेते हैं, कोई लिखित रसीद किसानों को नहीं दी जाती। जब बीमा कम्पनी किसानों का पैसा काटती हैं, किसान की फसल का नुकसान होने पर बीमा कम्पनी बीमा की राशि नहीं देती। जब कम्पनी बीमा का पैसा देना नहीं चाहती तो खातों से पैसा क्यों काटा जाता हैं?”
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प्रधानमंत्री फसल बीमा का पूरा काम बीमा कंपनी करती है, लेकिन प्रीमियम काटने और किसान को बीमा कंपनी से पैसा लेने का काम बैंक करती हैं। जबकि बीमा उन्हें मिलता है, जिनके दावों पर राजस्व विभाग और बीमा कंपनी अपने नियमों के अनुकूल पाते हैं। किसान लगातार लेखपाल, बैंक कर्मचारी और बीमा एजेंट पर लापरवाही का आरोप लगाते रहे हैं।
‘कृषि बीमा में तेजी’ विषय पर आयोजित इस सेमिनार में खुद केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने माना कि राज्यों की ढिलाई, कर्मचारियों की कमी समेत कई ऐसे मुद्दे हैं, जिसके चलते योजना का ज्यादा से ज्यादा लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है।
हालांकि खुद कृषि राज्य मंत्री ने इसका उपाय भी बताए, कृषि विभाग के अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “देश में करीब साढ़े पांच करोड़ किसानों को सुरक्षा अंब्रैला के नीचे लाया गया है, इऩ किसानों के मोबाइल नंबर, नाम पता और आधार नंबर तक सारी जानकारी कृषि विभाग के पास है, अगर इनके खेतों की जियो टैगिंग हो जाए और उन्हें सैटेलाइट से जोड़ा जा सके तो हर हफ्ते, 15 दिन में न सिर्फ किसानों को पूरी जानकारी दी जा सकती है, बल्कि मंत्रालय के पास भी पूरा डाटा मौजूद हो सकता है, जो अभी एक बड़ी समस्या है।“
“अगर इनके खेतों की जियो टैगिंग हो जाए और उन्हें सैटेलाइट से जोड़ा जा सके तो हर हफ्ते, 15 दिन में न सिर्फ किसानों को पूरी जानकारी दी जा सकती है, बल्कि मंत्रालय के पास भी पूरा डाटा मौजूद हो सकता है, जो अभी एक बड़ी समस्या है।“
फसल बीमा योजना में बड़ा अड़ंगा जोखिम नापने के तरीका का भी है। अगर एक पूरे गांव में या इलाके में नुकसान न हुआ हो तो बीमा कंपनियां उसे नुकसान नहीं मानती, जबकि कई बार ऐसा हुआ है कि एक ही गांव एक हिस्से में ओले गिरते हैं, दूसरे हिस्से में पानी की एक बूंद नहीं गिरती है।
किसान नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम लखनऊ में आयोजित किसान मुक्ति सम्मेलन में फसल बीमा योजना को किसानों के साथ छलावा बताते हैं। वो कहते हैं,” मोदी सरकार ने फसल बीमा योजना में किसानों से पहले 24 हज़ार करोड़ रुपए का प्रीमियम लिया और फिर उसके बदले में उन्हें महज़ आठ हज़ार करोड़ रुपए ही वापस किए।”
दिल्ली में फिक्की के इसी कार्यक्रम में शामिल हुए प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार के वरिष्ठ पत्रकार सयातन बेरा टिवटर पर लिखते हैं, “आज कार्यक्रम के दौरान फसल बीमा पर हरियाणा सरकार के एक प्रतिनिधि ने कहा कि कार्यान्वयन में गिरावट के लिए राज्यों को दोष देना आसान है, लेकिन बीमा कंपनियां बड़े प्रीमियम संग्रह के बावजूद जमीन पर निवेश नहीं कर रही हैं, इसका अर्थ है कि जब मुसीबत में किसानों के पास कोई उपाय नहीं है।“
Today at a FICCI conf. on Crop Insurance a Haryana Govt. representative said this: Easy to blame states for implementation glitches, but insurance companies are not investing on ground despite large premium collections (means farmers have no where to go when in trouble)
— Sayantan Bera (@sayantanbera) February 21, 2018
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