मोहब्बत की बेमिसाल धरोहर ताजमहल हो रहा है बदरंग

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   2 April 2017 7:15 PM GMT

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मोहब्बत की बेमिसाल धरोहर ताजमहल हो रहा है बदरंगदुनिया में मोहब्बत की बेमिसाल धरोहर माना जाने वाला ताजमहल।

नई दिल्ली (भाषा)। विश्व धरोहर और दुनिया में मोहब्बत की बेमिसाल धरोहर माना जाने वाला ताजमहल यमुना नदी में गंदगी और कीड़ों के प्रकोप से बदरंग होता जा रहा है। समय-समय पर ‘‘मड पैक'' और विभिन्न तत्वों का घोल चढ़ाकर इसके संरक्षण के प्रयास किए जाते है लेकिन कीड़ों के प्रकोप की समस्या का स्थाई समाधान निकालने की पहल अभी तक नहीं देखी गई है।

सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, उत्तरी क्षेत्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार तूफान और बारिश के कारण हाल ही में ताजमहल के संगमरमर की सतह पर हरे और काले धब्बे उभर आए और ये कीड़ों की गतिविधियों के कारण उभरे हैं और यह ताजमहल के रंग को फीका कर रहा है।

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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षण पुरातत्व रसायनज्ञ डा. एम के भटनागर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ताजहमल के संगमरमर की सतह पर कीड़ों की गतिविधियों को कम करने के लिए कुछ जांच की गई हैं, उपयुक्त अनुपात में कुछ तत्वों का घोल तैयार किया गया और प्रकाश में रात के समय ताजमहल पर लगाया गया इसके परिणामस्वरुप हजारों की संख्या में कीड़े इसमें फंस गए।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘ इस तरीके का अन्य स्मारकों पर भी उपयोग किया जायेगा। इस बारे में अध्ययन बिना किसी कोष के किया जा रहा है।'' इसमें कहा गया है कि ताजमहल की दीवारों पर हमला करने वाले कीड़ों की समस्या का स्थाई समाधान निकालने के लिए ‘अध्ययन परियोजना' चलाने के कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं।

ताजमहल की संगमरमर की दीवारों पर कीड़ों के प्रकोप की जांच के लिए आगरा के जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन 27 मई 2016 को किया गया था।

आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, समिति के निरीक्षण में निम्नलिखित तथ्य सामने आए। ताजमहल की उत्तरी दीवारों पर हरे धब्बे दिखाई दिए, साथ ही मच्छर के आकार के कुछ कीड़े भी झुंड के रूप में विचरण करते हुए दिखाई पड़े। इसके अतिरिक्त ताजमहल के आधार पर यमुना की तरफ लाल पत्थर पर भी कीड़ों का प्रकोप दिखाई दिया। समिति ने इन कीड़ों का स्रोत यमुना के दलदल में पाया तथा नदी के किनारे कीड़ों के झुंड भी देखे गए।

सूचना के अधिकार के तहत मुरादाबाद स्थित आरटीआई कार्यकर्ता सलीम बेग ने ताजमहल को प्रदूषण के खतरे से बचाने के लिए किए गए कार्यों के बारे में जानकारी मांगी थी।

समिति ने कहा कि समिति के सदस्य एवं अधीक्षण पुरातत्व रसायनज्ञ डा. एम के भटनागर ने अवगत कराया कि उक्त कीड़े शैवाल खाते हैं तथा गंदगी में पनपते हैं, ये कीड़े विशेष रूप से रुके हुए पानी एवं दलदल में प्रवास करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, उक्त कीडे शैवाल खाकर ताजमहल की संगमरमर की दीवारों पर उत्सर्जन क्रिया करते हैं। इसके परिणाम स्वरुप दीवारों पर हरे रंग के दाग और धब्बे बन जाते हैं, यद्यपि दीवारों पर ‘मड पैक' पद्धति द्वारा नियमित रूप से सफाई भी करवाई जाती है. लेकिन कीड़ों की बढ़ती संख्या के कारण इस समस्या का निराकरण अत्यंत कठिन हो रहा है।

अभी तक के अध्ययन के अनुसार कीड़ों के उत्सर्जन से ताजमहल की दीवारें हरी या काली हो रही हैं, परन्तु इसका कोई गंभीर असर संगमरमर की सतह पर होता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है।
डा. एम के भटनागर अधीक्षण पुरातत्व रसायनज्ञ

निरीक्षण दल ने यह आशंका जताई कि यदि इन कीड़ों की बढ़ती संख्या को तत्काल नहीं रोका गया तो ये कीड़े सैकड़ों की संख्या में झुंड के रूप में ताजमहल परिसर में दिखाई देते हैं जिस कारण पर्यटकों का भ्रमण करना अत्यंत कठिन हो जाएगा. इसके परिणामस्वरुप शहर और देश का पर्यटन भी प्रभावित होगा। समिति ने जांच के दौरान कीड़ों के बढ़ने के कई कारण पाए गए, जिसमें यमुना के पानी का दूषित होना एवं पानी का प्रवाह न होना शामिल है। दूषित पानी होने के कारण छोटी मछलियों की संख्या में कमी आना भी एक समस्या है जो कीड़े के लिए उत्तरदाई शैवाल तथा कीडों के लार्वा को खाते हैं।

समिति के अनुसार नदी में जलस्तर कम होने, अत्यधिक रेत एवं गंदगी तथा पानी का प्रवाह न होने के कारण नदी के किनारों पर दलदल का बन जाना तथा नदी में अत्यधिक गंदगी और कचरे का होना शामिल है।

आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, समिति ने इन समस्याओं के निराकरण के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं। इनमें नदी के जलस्तर को बढ़ाते हुए पानी के प्रवाह को तेज किए जाने का प्रयास करना शामिल है। अन्य सुझावों में चूंकि कीड़े रात्रि के समय और कृत्रिम प्रकाश में अधिक सक्रिय होते हैं, अत: ताजमहल पर रात के समय में प्रकाश व्यवस्था को प्रतिबंधित करना, नदी की नियमित सफाई एवं नदी में कूड़ा कचरा आदि डाले जाने पर कडाई से रोक लगाना एवं नदी के किनारे दलदल की स्थिति से बचने के लिए नियमित रुप से रेत को हटाना शामिल है।

समिति ने अपने सुझाव में कहा है कि कीडों को नष्ट करने के लिए प्रभावकारी कीटनाशकों के प्रयोग से बचा जाए क्योंकि कीटनाशकों के प्रयोग से यमुना एवं आसपास की पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण असंतुलन हो सकता है। वैज्ञानिकों की सहायता से पारिस्थितिकी के अनुकूल तरीके से कीडों को पकड़ने के प्रयास किये जा सकते हैं।

          

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