छोटी नदियां, बड़ी कहानियां : छोटी नदियों को आखिर कौन बचाएगा?

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छोटी नदियां, बड़ी कहानियां : छोटी नदियों को आखिर कौन बचाएगा?शहर की गंदगी से बने गाद के टीले

अमिताभ अरुण दुबे

‘कुलबहरा की कहानी’ की आखिरी कड़ी की शुरूआत हम इसी बड़े सवाल से कर रहे हैं। देश का हर शहर सबसे साफ़ शहर बनना चाहता है, लेकिन ऐसा तो नहीं खुद को साफ़ रखने के लिए शहर अपने करीब बसे गांव या छोटी नदियों को कहीं गंदा तो नहीं कर रहे हैं?

अगर ऐसा है तो ‘स्वच्छ भारत अभियान’ एक रस्म से बढ़कर कुछ और साबित नहीं होने वाला। सरकार को ऐसे किसी भी शहर को स्वच्छ शहर का तमगा नहीं देना चाहिए, जो अपने दायरे में आने वाली छोटी नदियों में शहर की गंदगी को बहाता हो। अपने नज़दीक बसे गांव, जंगल या ज़मीन पर शहर का कचरे को डंप करता हो। हालांकि स्वच्छता के पैमाने पर शहरी कचरे का प्रबंधन तो आता है, लेकिन ‘नदियों की सफाई’ के बारे में कोई जिक्र तक नहीं है।

ऐसा क्यों है? एक बड़ा सवाल है। देश की नदियां अगर दम तोड़ रहीं है। तो कहीं ना कहीं इसमें सबसे बड़ा हाथ शहरों का ही है। नदियों की सफाई के लिए बनाई जा रही योजनाएं में इस पहलू को व्यापक तौर पर शामिल करने की दरकार है।

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शहर से शिकायत है

छोटी नदियां बड़ी कहानियां सीरीज़ में जब हमने कुलबहरा की कहानी की शुरूआत की थी। उस समय कुलबहरा में भरपूर पानी बह रहा था। दुर्भाग्य की बात आखिरी कड़ी तक आते आते कुलबहरा का पानी अब सूख चुका है। हमें जानकर हैरानी और अफ़सोस दोनों हुआ। जिस कुलबहरा को हम अब तक हम बहता हुआ देखते आ रहे थे। वो शिकारपुर तक आते पूरी तरह सूख गई।

हालांकि इस बार मॉनसून भी कमज़ोर रहा, लेकिन ग्रामीण बताते हैं कि दिसंबर के महीने में कुलबहरा का पानी सूख जाना हैरानी की बात है। छिंदवाड़ा से थोड़ी दूर पर मौजूद शिकारपुर गांव में कुलबहरा नदी नहीं मैदान बन चुकी है। गांव के किसान डालसिंह माहोरे बताते हैं, “सर्रा-इमलीखेड़ा भरतादेव में बढ़ते शहरी प्रदूषण की वजह से कुलबहरा की ज़िंदगी अब ख़तरे में है। शहर की गंदगी की वजह से शिकारपुर तक आते आते नदी सूख जाती है।” डालसिंह मोहरे ने हमें कुलबहरा में बना गंदगी का पहाड़ भी दिखाया। शहर का प्लास्टिक, पूजा पाठ के सामान मूर्तियों के विसर्जन से निकले मिट्टी कुलबहरा में बिखरी पड़ी है।" डालसिंह कहते हैं अगर शहर वाले नदी को गंदा ना करें तो कुलबहरा की धारा आज भी निर्मल रह सकती है। लेकिन अफ़सोस कि बात शहर खुद को साफ़ रखना चाहते हैं। लेकिन गांव की नदियों की किसी को कोई फिक्र तक नहीं है।

शहर की गंदगी का गाद

स्टॉपडेम से बदलेगी तस्वीर

ज़िले के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के प्रयास से शिकारपुर में स्टॉप डेम का काम तेज़ी से चल रहा है। इस साल फरवरी में सांसद ने इसका शिलन्यास किया था। करीब ढ़ाई करोड़ की इस परियोजना का काम दिसंबर तक पूरा हो जाएगा। फिलहाल डेम में गेट लगाने का काम ज़ोरो पर चल रहा है। पीजी कॉलेज से बीएससी के पढ़ाई कर रहे गाँव के युवा किसान सुनील माहोरे बताते हैं, “स्टॉप डेम बन जाने से अगले सीज़न से शिकारपुर के लोगों को भरपूर पानी मिल सकेगा।” सुनील कहते हैं कि गांव में स्टॉप डेम का बनना एक सपने के पूरा होने जैसा है। कुलबहरा से लगे खेतों खलिहानों को इसका फायदा मिलेगा। सुनील के मुताबिक शिकारपुर में गर्मियों में पानी का संकट विकराल रूप ले लेता है। खेतों के लिए बामुश्किल ही पानी मिल पाता है। गांव के कुएं अभी से दम तोड़ने लगे है।

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शिकारपुर में बनता स्टॉप डेम

समृद्ध हैं कुलबहरा के कछार

खेती के लिहाज से कुलबहरा के कछार बेहद समृद्ध नज़र आते हैं। कुलबहरा जहां अच्छी हालत में बह रही है। उसके आसपास भू जलस्तर अच्छी स्थिति में है। दरअसल, खेत और नदी का सीधा संबंध होता है। नदी सीधे और अप्रत्यक्ष तौर या कृत्रिम तौर पर खेतों को लाभ पहुंचाती है। चंदनगांव में मौजूद आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय के पराड़कर बताते हैं, “क्रॉप प्लानिंग यानी फसलों को लगाने की वैज्ञानिक कार्य योजना में नदियों का बड़ा महत्व है। कुलबहरा के किनारे खेतों में फैली समृद्धि इसकी मिसाल भी है।” वरिष्ठ पत्रकार जगदीश पवार के मुताबिक “इस बार मॉनसून में बारिश अच्छी नहीं हुई। खेतों में पानी नहीं बहा। इसलिए नदियां भी सूख रही है। नदियों के नैचुरल फ्लों में खेतों का बड़ा योगदान रहता है।” इमलीखेड़ा में क्या कुलबहरा औद्योगिक प्रदूषण का शिकार है। इस सवाल पर जगदीश कहते हैं“ इमलीखेड़ा में औद्योगिक इकाइयों में काम ही नहीं चल रहा। इसलिए औद्योगिक प्रदूषण जैसी कोई बात नहीं है।”

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कुलबहरा किनारे खेती करने वाले किसान बीरबल

खेती को मिला कुलबहरा का वरदान

शिकारपुर के 58 साल के किसान बीरबल बताते हैं, “उनके खेत कुलबहरा से लगे हुए हैं। बचपन में पक्की पहली तक पढ़ाई करने के बाद से ही खेती कर रहा हूं। कुलबहरा में पहले साल भर पानी बहता था। तब पानी की दिक्कत जैसी कोई बात ही नहीं थी। खेतों को जानवरों इंसानों सबको पानी मिलता था।” बीरबल कहते हैं ज़िले में जहां जहां कुलबहरा बह रही है। उसके आसपास के खेतों में आपको काली मिट्टी ही दिखाई देगी। कुलबहरा की वजह से पांच एकड़ खेती में वो अपने बड़े परिवार का भरण पोषण कर पाते हैं। लंबे अर्से से खेती करते आ रहे बीरबल बताते हैं “ उन्होंने खेती बाड़ी मेंकभी कोई सरकारी मदद या कर्ज़ नहीं लिया। कुलबहरा से उन्हें भरपूर पानी मिला।”

बहरहाल, दबे पांव हमारी सभ्यता एक बड़े जल संकट की ओर तेज़ी से बढ़ रही है। अगर वक़्त रहते हम अब नहीं जागे, तो बड़ी मुसीबत से घिर जाएंगे। छोटी नदियां बचेंगी तब ही हम बड़ी नदियों को भी बचा पाएंगे। इसके बिना नदी संरक्षण के सारी कोशिशें अधूरी ही रह जाएंगी। शहरों को नदियों की सफ़ाई के लिए आगे आना होगा। हक़ीक़त में तब ही तस्वीर और तकदीर दोनों बदलेगी।

स्टॉप डेम से बदलेगी शिकारपुर की तकदीर

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