SC-ST विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अफसरों के अधिकारों का किया था बचाव, जानें क्या है पूरा मामला

Kushal MishraKushal Mishra   3 April 2018 3:18 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
SC-ST विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अफसरों के अधिकारों का किया था बचाव, जानें क्या है पूरा मामलाइलाहाबाद में सोमवार को भीम सेना और समाजवादी पार्टी के समर्थकों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ उठाई थी आवाज।

एक तरफ जहां एससी-एसटी कानून में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के फैसले के खिलाफ देश भर में दलित संगठनों ने ‘भारत बंद’ के साथ हिंसक आंदोलनों को अंजाम दिया है, दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी सरकारी अफसरों के अधिकारों को भी सुरक्षा देने की शुरुआत की है, जो ऐसे मामलों का सामना कर रहे हैं।

एससी-एसटी अधिनियम यानि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम को देश में जनवरी, 1990 में पूरे भारत में लागू किया गया था। एससी-एसटी लोगों के विरुद्ध होने वाले क्रूर और अपमानजनक अपराध या उनका सामाजिक बहिष्कार करना, को इस क़ानून के तहत अपराध माना गया है।

आज सख्त कानून के तहत आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी करने का प्रावधान है, साथ ही अग्रिम जमानत पर रोक है। इसके अलावा कुछ ऐसे अपराध जो भारतीय दंड संहिता में शामिल हैं, उनके लिए इस कानून में अधिक सजा निर्धारित की गई है।

गुरुग्राम में फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करते लोग।

बीती 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद इस कानून के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। साथ ही, ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी थी। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में सरकारी अफसरों की आधिकारिक क्षमता को सुरक्षा देने की शुरुआत की और कहा कि ऐसे मामलों में सरकारी अफसरों की गिरफ्तारी नियुक्त वरिष्ठ अधिकारियों की स्वीकृति के बिना नहीं की जा सकती।

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ देश भर के दलित संगठनों ने दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और कहा कि इस फैसले से ऐसे समुदाय के लोगों की आवाज कमजोर होगी।

ऐसे शुरू हुआ विवाद

  • महाराष्ट्र में अनुसाचित जाति से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति ने सरकारी अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन समेत दो जूनियर अधिकारियों के खिलाफ अपने ऊपर कथित जातिसूचक टिप्पणी को लेकर शकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता का आरोप था कि दोनों जूनियर अफसरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को सुभाष महाजन ने रोका।
  • गैर अनुसूचित जाति के अफसरों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में कथित जातिसूचक टिप्पणी की थी। इस पर पुलिस ने मामला दर्ज करने के लिए वरिष्ठ अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन से स्वीकृति मांगी, मगर महाजन द्वारा स्वीकृति न दिए जाने पर दोनों जूनियर अधिकारियों के साथ महाजन पर भी पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया।
  • सरकारी अफसरों की दलील थी कि अगर एससी-एसटी व्यक्ति के खिलाफ ईमानदारी से टिप्पणी करना अपराध की श्रेणी में आएगा तो ऐसे में सरकारी अफसरों को काम करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

मुथरा में ट्रेन रोककर प्रदर्शन करते लोग।

  • इस मामले के खिलाफ सुभाष महाजन महाराष्ट्र हाई कोर्ट गए, मगर हाई कोर्ट ने अपने फैसले में स्वीकृति न दिए जाने पर आपत्ति जताई और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला सुनाया।
  • इस पर महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा खारिज करने का आदेश दिया, बल्कि इस कानून में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने के आदेश के साथ अग्रिम जमानत पर भी मंजूरी दी।
  • सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ देश भर में दलित संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, दलित संगठनों की ओर से केंद्र सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की। जिस पर सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई।
  • मगर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से दाखिल पुनर्विचार याचिका पर तत्काल सुनवाई से इंकार कर दिया था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने अलग-अलग राज्यों में भारत बंद का आह्वाहन किया और सोमवार को कई हिंसक प्रदर्शनों को अंजाम देने के साथ सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। इस हिंसक आंदोलनों में 11 लोगों की मौत हो गई।

यह भी पढ़ें: जबरन शारीरिक संबंध बनाने वाला पति दोषी नहीं : गुजरात उच्च न्यायालय

दलित प्रदर्शन : SC/ST एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कई राज्यों में हिंसा

 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.