काम की बढ़ती मांग के बावजूद मनरेगा के बजट में 38,500 करोड़ रुपए की कटौती

कोरोना महामारी के संकट में लॉकडाउन के दौरान मनरेगा ही ग्रामीणों के आजीविका का साधन बन सकी। इस बीच केंद्र सरकार ने मनरेगा को बढ़ावा भी दिया, मगर अब केंद्रीय बजट 2021-22 में सरकार ने मनरेगा में 38,500 करोड़ रुपये की कटौती कर दी है। मनरेगा में इतने बड़े पैमाने पर कटौती का क्या असर हो सकता है, पढ़िए रिपोर्ट ...

Kushal MishraKushal Mishra   6 Feb 2021 11:01 AM GMT

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काम की बढ़ती मांग के बावजूद मनरेगा के बजट में 38,500 करोड़ रुपए की कटौतीकोरोना लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के जरिये ग्रामीणों को मिल सका था रोजगार। फोटो : गाँव कनेक्शन

मनरेगा यानी ग्रामीण स्तर पर साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी देने वाली दुनिया की सबसे बड़ी योजना। कोरोना संकट के समय में मनरेगा ही ग्रामीणों के रोजगार का सबसे बड़ा जरिया बनी और अभी भी रोजगार पाने के लिए मनरेगा में काम की मांग बढ़ी हुई है, इसके बावजूद सरकार ने बजट 2021-22 में मनरेगा के लिए बजट के संशोधित अनुमानों से 38,500 करोड़ रुपए कम आवंटित किए हैं।

मनरेगा में रोजगार की बढ़ती मांग के आंकड़ों को देखते हुए यह उम्मीद जताई जा रही थी कि सरकार मनरेगा के लिए बड़े बजट का ऐलान करेगी, मगर सरकार ने इस आम बजट में इस योजना के लिए 73,000 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं जो पिछले बजट की तुलना में तो अधिक है मगर संशोधित अनुमान, 111,500 करोड़ रुपये से 34.5 प्रतिशत कम है।

कोरोना महामारी के दौर में बेरोजगारी दर दिसम्बर 2020 में 9.15 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। भारत में महामारी शुरु होने से ठीक पहले, जनवरी 2020 में यह दर 6.06 प्रतिशत थी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने संशोधित अनुमानों में इस योजना के बजट को 61,500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर सीधे 111,500 करोड़ रुपए कर दिया था। लेकिन अभी तक न तो महामारी का प्रकोप ख़त्म हुआ है और न ही बेरोज़गारी के हालात पहले जैसे हुए फिर भी सरकार ने मनरेगा के बजट में संशोधित अनुमानों की तुलना में 38,500 करोड़ रुपए कम कर दिया हैं।

चूंकि संशोधित अनुमान आने के बाद उसे ही बजट माना जाता है, ऐसे में मनरेगा में बजट (mgnrega budget 2021) बढ़ाए जाने की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए सरकार ने मनरेगा योजना के लिए बजट काफी कम कर दिया है। आपको यह भी बता दें कि वित्त वर्ष 2019-20 में मनरेगा पर कुल 71,687 करोड़ रुपए ख़र्च हुए थे।

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अगर इस बजट की तुलना हम 2019-20 में होने वाले कुल ख़र्च से करते हैं तो इस राशि में सिर्फ़ 1.8 प्रतिशत की ही बढ़ोत्तरी हुई है। बजट दस्तावेजों के अनुसार 2019-20 में 60,000 करोड़ रुपये मनरेगा के लिए आवंटित किये गए थे जिसे संशोधित बजट में बढ़ा कर 71,002 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इस पूरे वित्त वर्ष में मनरेगा पर 71,687 करोड़ रुपये खर्च हुए, जो बजट आवंटन से 685 करोड़ रुपये ज्यादा था।

कोरोना संकट को देखते हुए पिछले साल केंद्र सरकार ने मनरेगा के बजट में 40,000 करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी की थी। इस अतिरिक्त बजट की घोषणा के साथ केंद्रीय वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि इस बजट के बाद मनरेगा में कुल 300 करोड़ मानव दिवस पैदा किये जा सकेंगे।

केंद्र सरकार ने आम बजट में कम किया मनरेगा योजना के लिए बजट। फोटो : गाँव कनेक्शन

मानव दिवस यानी एक व्यक्ति को एक दिन का काम मिलता है तो वह एक मानव दिवस कहलाता है। जैसे कि किसी राज्य में सरकार ने 5 करोड़ मानव दिवस रोज़गार उपलब्ध कराया और उस राज्य में मनरेगा के तहत 10 लाख मज़दूरों को काम मिला तो इसका अर्थ यह है कि उस राज्य में औसतन एक मज़दूर को एक साल में 50 दिन का काम ही मिला है।

दूसरी ओर मनरेगा की आधिकारिक वेबसाइट के पर नजर डालें तो 6 फरवरी तक देश भर में 327 करोड़ मानव दिवस पैदा किये जा चुके हैं जो लक्ष्य से कहीं ज्यादा है। ये आंकड़े बताते हैं कि रोजगार के लिए मनरेगा में ग्रामीणों की काम की मांग अभी भी बड़े स्तर पर बनी हुई है।

मनरेगा में ग्रामीणों की रोजगार की मांग को लेकर यह हालात और भी विकट नजर आते हैं यदि हम मनरेगा के सरकारी आंकड़ों को ट्रैक करने के लिए बनाए गए एक समूह पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) की हालिया रिपोर्ट को देखते हैं।

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दिसम्बर में आई इस रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि देश भर में 97 लाख ग्रामीण परिवार ऐसे हैं जिनको मनरेगा में काम मांगने के बावजूद एक भी दिन काम नहीं मिल सका। इसके अलावा मनरेगा में रोज़गार के लिए जॉब कार्ड को लेकर आवेदन करने वाले 45.6 लाख परिवारों के जॉब कार्ड तक नहीं बन सके, जबकि नवम्बर तक मनरेगा के लिए आवंटित बजट की 71 फीसदी धनराशि (74,563 करोड़ रुपये) खर्च की जा चुकी थी।

ऐसे में कोरोना महामारी से लोगों की आजीविका पर पड़े दुष्प्रभावों और रोजगार की बढ़ती मांग को देखते हुए इसके बजट में कटौती करने की वजह से, मनरेगा मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करने वाले विशेषज्ञ इस बजट को निराशाजनक बता रहे हैं।

झारखण्ड में मनरेगा मजदूरों के लिए काम कर रहे और नरेगा संघर्ष मोर्चा से जुड़े देब्माल्या नंदी ने 'गाँव कनेक्शन' से कहा, "यह निराशाजनक है कि केंद्र सरकार वर्तमान ग्रामीण रोजगार संकट की अनदेखी कर रही है, जबकि ग्रामीणों को रोजगार के अवसर देने के लिए मनरेगा में खर्च को और बढ़ाने की जरूरत थी। वास्तव में इस महामारी ने दिखाया है कि देश में रोजगार के लिए मनरेगा पर बहुत अधिक निर्भरता है।"

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"मात्र 73,000 करोड़ के बजट से सरकार ने अगले वर्ष के लिए कुल 270 से 280 करोड़ मानव दिवस का प्रावधान किया है, जबकि मार्च तक यह आंकड़ा 340 करोड़ तक पहुँच सकता है। ऐसी स्थिति में न सिर्फ यह रोजगार के दायरे को सीमित करेगा, बल्कि आने वाले वर्ष में वेतन भुगतान में भी असमय देरी होगी," देब्माल्या नंदी बताते हैं।

दूसरी ओर ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े अर्थशास्त्री भी मनरेगा के लिए आवंटित बजट पर सवाल उठा रहे हैं और मनरेगा के लिए बजट को लगभग दोगुना किये जाने की मांग कर रहे हैं।

बेंगलुरु में अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्री और मनरेगा मजदूरों के लिए काम कर रहे, राजेंद्र नारायन 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "सरकार को इस योजना को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। इसलिए मनरेगा के लिए सरकार न सिर्फ कम से कम 2 लाख करोड़ रुपये का आवंटन करें, बल्कि कृषि से मेल खाने के लिए राज्यों की न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाए। इसके अलावा साल में 100 दिन रोजगार मिलने को कम से कम 150 दिनों तक बढ़ाना चाहिए। बड़े पैमाने पर बजट आवंटन में कमी होने से कमजोर घरों में और भी ज्यादा संकट पैदा होगा।"

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