नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5: शिशु मृत्यु दर में गिरावट लेकिन कुपोषण और मोटापे की चपेट में बच्चे, 'आधी आबादी' खुद संभाल रही अपना बैंक खाता

देश के 22 राज्यों में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट आ गई है। रिपोर्ट के अनुसार जहां कई राज्यों में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी तो वहीं शिशु मृत्यु दर में गिरावट भी आई है। महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) की समस्या अभी बनी हुई है तो खुद अपना बैंक खाता संभालने वाली महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है। सर्वे पर विस्तृत रिपोर्ट-

Mithilesh DharMithilesh Dhar   14 Dec 2020 2:45 PM GMT

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women bank account holders, number of bank account holders in bihar, national family health survey, jan dhan khata, how many women use mobileतमाम योजनाओं के बाद भी देश में कुपोषण की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। (फोटो- गांव कनेक्शन)

केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने शनिवार (12 दिसंबर) को नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NHFS-5) की पांचवी रिपोर्ट का पहला भाग जारी कर दिया है। सर्वे में वर्ष 2019-20 के आंकड़े शामिल किए गये हैं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश में जहां कुपोषण और मोटापा तेजी से बढ़ रहा है तो वहीं शिशु मृत्यु दर में कमी भी आई है। देश में खुद अपना बैंक खाता संभालने और मोबाइल फोन रखने वाली महिलाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की इस रिपोर्ट में देश के 22 राज्‍यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया है। देश के 6.1 लाख से अधिक परिवारों से मिली जानकारी पर आधारित रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये हैं। आइये कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण और हमसे-आपसे जुड़े मुद्दों पर नजर डालते हैं।

पांच वर्ष से छोटे बच्चों में बढ़ा कुपोषण

एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार देश में बच्चों (पांच वर्ष से कम आयु) का स्वास्थ्य चिंताजनक स्थिति में है। इससे पहले 2015-16 में आई रिपोर्ट में बच्चों में कुपोषण घटा था, लेकिन इस बार की रिपोर्ट में मामले बढ़ गये हैं। रिपोर्ट के अनुसार 13 राज्यों में अपनी उम्र में सामान्य से कम लंबाई वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। वहीं लंबाई के हिसाब से कम वजन वाले बच्चों की संख्या 12 राज्यों में बढ़ी है।


उम्र के हिसाब से कम लंबाई वाले बच्चे सबसे ज्यादा अभी मेघालय में हैं। मेघालय में ऐसे बच्चों की संख्या 46 फीसदी है जो वर्ष 2015-16 के दौरान 43 फीसदी थी। इसके इसके बाद नंबर आता है बिहार का, हालांकि बिहार में पिछले वर्षों की तुलना में स्थिति में सुधर आया है।

बिहार में वर्ष 2015-16 यह संख्या 48.3 फीसदी थी जो वर्ष 2019-20 में घटकर लगभग 43 फीसदी पर पहुंच गई है। गुजरात के 39 फीसदी बच्चों की लंबाई उम्र के हिसाब से कम है जो वर्ष 2015-16 में 38.5 फीसदी थी तो वहीं पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा 33.8 फीसदी पहुंच गया जबकि 2015-16 में हुए सर्वे में यह 32.5 फीसदी था।

बच्चों का कुपोषण चाइल्ड स्टंटिंग (शिशु वृद्धिरोध), चाइल्ड वेस्टिंग (शिशु निर्बलता), चिल्ड्रेन अंडरवेट और चाइल्ड मॉर्टलिटी रेट (शिशु मृत्यु दर) पर मापा जाता है।


उम्र के हिसाब से कम वजन वाले बच्चों के मामले में भी बिहार की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है और पिछले सर्वे रिपोर्ट के हिसाब से प्रदेश में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2015-16 में बिहार में 20.8 फीसदी बच्चों का वजन उम्र के हिसाब से कम था तो वहीं वर्ष 2019-20 में यह आंकड़ा 22.9 फीसदी पर पहुंच गया। पश्चिम बंगाल में स्थिति जस की तस बनी हुई है।

वहां पिछले सर्वे के दौरान भी 20.3 फीसदी बच्चों का वजन उम्र के अनुसार कम था। 2019-20 की रिपोर्ट में भी ऐसे बच्चों की संख्या 20.3 फीसदी ही है। वर्ष 2019-20 में तेलंगाना में ऐसे बच्चों की संख्या में सबसे ज्यादा 5.1% की बढ़ोतरी हुई है जबकि हिमाचल में 4.5 और केरल में 3.7% का इजाफा हुआ है।

सर्वे के मुताबिक, बिहार, हिमाचल, असम, केरल, मिजोरम, नागालैंड, तेलंगाना, मणिपुर, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और लक्षद्वीप जैसे हिस्सों में पांच साल से कम उम्र के कमजोर बच्चों का प्रतिशत बढ़ा है, जबकि पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में की स्थिति पहले जैसे ही है।

बच्चों और महिलाओं में एनीमिया यानी खून की कमी की समस्या बढ़ी

पांच वर्ष के कम उम्र के बच्चों में खून की कमी की समस्या बढ़ी है। असम में सबसे ज्यादा 68% बच्चों को एनीमिया है, पिछले सर्वे यानी 2015-16 के तुलना में यह 33 फीसदी बढ़ा है। वहीं जम्मू-कश्मीर में 18.9 (72.7) प्रतिशत, गुजरात में 17.1 (79.7) प्रतिशत, महाराष्ट्र में 15.1 (68.9) प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 14.8 (69%) प्रतिशत का इजाफा हुआ।


बच्चों की ही तरह देश के ज्यादातर बड़े राज्यों की महिलाओं (15 से 49 वर्ष) में खून की कमी की समस्या तेजी से बढ़ी है। आसाम में तो 2015-16 की अपेक्षा ऐसी महिलाओं की सख्या में लगभग 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं गुजरात में 10 फीसदी से ज्यादा तो वहीं पश्चिम बंगाल में लगभग 9 फीसदी कह बढ़ोतरी हुई है। बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक में ऐसी महिलाओं के संख्या पिछले पांच साल में बढ़ी है।

मोटापा बच्चों और बड़ों के लिए बड़ी समस्या

बच्चों (5 वर्ष से कम) और बड़ों में मोटापा की समस्या बढ़ती जा रही है। 20 राज्यों के बच्चों में मोटापा बढ़ा है। लद्दाख इस मामले में सबसे पहले पायदान है जहां करीब 13.4 फीसदी बच्चे मोटापे से जूझ रहे हैं। गोवा, दादर एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव में मोटापे के शिकार पांच साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या कम हुई है।

पिछले सर्वे की तुलना में सिर्फ बच्चों में ही नहीं मोटापे से ग्रस्त वयस्कों की संख्या में भी इजाफा हुआ है।


सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की महिलाओं (15 से 49 वर्ष) के बीच मोटापे की शिकायत में बढ़त दर्ज की गई जबकि 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुरुषों (15 से 49 वर्ष) में इस समस्या में इजाफा हुआ है। केरल और अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में सबसे ज्यादा करीब 38% महिलाएं मोटापे से ग्रस्त हैं।

नवजात बच्चों की मृत्यु दर में गिरावट

NFHS-5 की रिपोर्ट अनुसार, NFHS-4 (2015-16) की तुलना में 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नवजात बच्चों की मृत्यु दर (प्रति 1,000 जन्मों पर मौत) में कमी आई है। 18 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे रहे जहां शिशु मृत्यु दर और पांच से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई।


सर्वे के साथ जारी अपने बयान में स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वास्थ्य सेवाओं और टीकाकरण में सुधार को मृत्यु दर में कमी का कारण बताया है।

अपना बैंक अकाउंट खुद चलाने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी

देश में पिछले कुछ वर्षों में न सिर्फ आधी आबादी यानी महिलाओं (15 से 49 वर्ष के बीच) के नाम पर बैंक खातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, बल्की अपना खाता खुद चलाने वाली महिलाओं की भी संख्या बढ़ी है। पांचवें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (National Family Health Survey 2019-20) के अनुसार 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 80 से 90 फीसदी तक महिला खाताधारक खुद ही अपना अकाउंट चलाती हैं।


रिपोर्ट के अनुसार सबसे नीचे नागालैंड है फिर भी वहां 64 फीसदी महिला खाताधारक खुद अपना अकाउंट चलाती हैं। बिहार में खुद अपना अकाउंट चलाने वाली महिलाओं की संख्या 26.4 (2015-16) फीसदी से बढ़कर 76.7 फीसदी पहुंच गई। कर्नाटक में यह संख्या 59.4 फीसदी से बढ़कर 88.7 फीसदी पहुंच गई। इसी तरह असम में यह 45.4 फीसदी से बढ़कर 78.5 फीसदी और गुजरात में 48.6 फीसदी से बढ़कर 70 फीसदी पहुंच गई।

यह भी पढ़ें- भूख की गंभीर श्रेणी में भारत, 14 फीसदी आबादी कुपोषण की शिकार, नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान की स्थिति बेहतर

सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। गोवा में यह संख्या 91.2 फीसदी है जबकि गुजरात और आंध्र में 50 फीसदी से थोड़ा कम है। सिक्किम, केरल, लक्षद्वीप, नगालैंड, मिजोरम, लद्दाख और अंडमान एंड निकोबार द्वीप समूह में 80 से 90 फीसदी महिलाएं मोबाइल फोन इस्तेमाल करती हैं।

मालिकाना हक में खास सुधार नहीं

बात अगर प्रॉपर्टी (संपति) पर मालिकाना हक की बात है तो इसमें परिणाम में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है। पिछले सर्वे के मुकाबले इस बार कर्नाटक में संपति पर मालिकाना हक तेजी से बढ़ी है जबकि असम और बिहार में इसमें गिरावट आई है। लद्दाख में सबसे ज्यादा 72 फीसदी महिलाओं के पास मकान या जमीन का एकल या संयुक्त मालिकाना हक है। इसके बाद कर्नाटक (67.6 फीसदी), तेलंगाना (66.6 फीसदी) और मेघालय (65 फीसदी) का स्थान है। मणिपुर, जम्मू कश्मीर, दादरा, नगर हवेली और दमन एवं दीव में महिला संपति की मालकिन की संख्या 53 से 58.4 फीसदी है।

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