ढोकरा शिल्प: ओडिशा के आदिवासी परिवारों की जिंदगी में खुशी ला रही यह शिल्प कला

पुराने ढोकरा शिल्प को अपनाने और उस पर काम करने की वजह से न सिर्फ ओडिशा के कई आदिवासी निवासियों को रोजी रोटी कमाने में मदद मिली है, बल्कि यह भी सुनिश्चित हुआ है कि वह अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। उनके उत्पादों को ओडिशा ग्रामीण विकास और विपणन सोसायटी बाजार तक पहुंचाने में मदद भी कर रही है।

Ashis SenapatiAshis Senapati   4 Aug 2022 11:28 AM GMT

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ढोकरा शिल्प: ओडिशा के आदिवासी परिवारों की जिंदगी में खुशी ला रही यह शिल्प कला

ढोकरा शिल्प उत्पादों की बिक्री ज्यादातर ओआरएमएएस की तरफ से आयोजित शिल्प मेलों में की जाती है। साथ ही, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर शिल्प की काफी मांग है। सभी फोटो: विपिन राउत

ओडिशा के क्योंझर जिले के अलेखपाड़ा गाँव के एक आदिवासी निवासी जगन्नाथ जेना अपने परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम होने पर काफी खुश हैं, पुराने ढोकरा शिल्प का अभ्यास करते हुए कुछ ऐसा करें जो उन्हें हमेशा सुखद लगता है।

40 वर्षीय शिल्पकार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारा गाँव ढोकरा शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। यह प्राचीन शिल्प हमारे पूर्वजों के जमाने से ही हमारी आजीविका का स्रोत रहा है। राज्य सरकार के शिल्प मेलों का आयोजन शुरू करने के बाद अब हम लोग दोबारा काम पर लग गए हैं।"

ओडिशा रूरल डेवलपमेंट एंड मार्केटिंग सोसायटी (ORMAS) के संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी बिपिन राउत के अनुसार, कटक, ढेंकनाल, क्योंझर, अंगुल, मयूरभंज, कंधमाल, रायगढ़, गजपति, कालाहांडी और कोरापुट जिलों में जेना जैसे 5 हजार कारीगर रहते हैं। जो ढोकरा शिल्प के उत्पादन में अपनी पारंपरिक कौशल को समर्पित करने में सक्षम हैं, जो न सिर्फ उनकी आदिवासी पहचान के संरक्षण को सुनिश्चित कर रहा है बल्कि उन्हे रोजी रोटी कमाने में भी मदद कर रहा है।

राउत ने बताया, "ओडिशा अपने ढोकरा धातु की ढलाई के लिए काफी मशहूर है जो एक प्राचीन शिल्प है। सजावटी सामान के साथ साथ इस्तेमाल करने वाले सामान जैसे कंटेनर, विभिन्न आकृतियों के बक्से, लैंप और लैंप स्टैंड, टेबल टेबल टॉप आदि इन आदिवासी निवासियों के जरिए बनाए गए ढोकरा शिल्प के कुछ उत्कृष्ट नमूने हैं।"


अधिकारी ने आगे बताया की ढोकरा कला में आर्थिक बदलाव को कारीगरों के बीच समूहों का गठन कर के और कौशल विकास प्रदान करने में सरकार की सहायता से सुगम बनाया गया था।

राउत ने बताया, "इसके अलावा, जरूरी मशीनों और टूलकिट खरीदने के लिए ओआरएमएएस की तरफ से दी गई धनराशि ने ग्रामीणों को अपने शिल्प का अभ्यास करने में मदद की। ओआरएमएएस ने एक सुविधा एजेंसी की शक्ल में पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद की मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिए फॉरवर्ड लिंकेज बनाने में मदद की। उनके उत्पादों की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार काफी सराहना की जाती है।"

ढोकरा शिल्प उत्पादों की बिक्री ज्यादातर ओआरएमएएस की तरफ से आयोजित शिल्प मेलों में की जाती है। साथ ही, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर शिल्प की काफी मांग है।

पारंपरिक शिल्प ने महामारी को मात देने में आदिवासियों की मदद की

मुंबई में अपनी नौकरी खोने के दर्दनाक अनुभव के साथ साथ कोविड-19 प्रकोप में अपनी जान गंवाने के डर से सुदाम मांझी से अपने परिवार के करीब रहकर रोजी रोटी के साधन खोजने का आग्रह किया गया।

ओडिशा के कटक जिले के बड़ाबरसिंगी गांव के एक आदिवासी निवासी मांझी ने गांव कनेक्शन को बताया, "मैंने कई सालों तक मुंबई में एक सुरक्षा गार्ड की नौकरी की है। लेकिन कोरोना आया तो मैंने अपनी नौकरी खो दी, जिसकी वजह से मैं अपने परिवार से बहुत दूर रह रहा था। मुझे एहसास हुआ कि मुझे घर पर काम खोजने और अपनों के करीब रहने की जरूरत है क्योंकि पारिवारिक जीवन अप्रत्याशित है।"

ढोकरा कला को बढ़ावा देने और ग्रामीण निवासियों के लिए बेहतर आजीविका सुनिश्चित करने के लिए ओडिशा में गांव स्तर पर कई स्वयं सहायता समूह काम कर रहे हैं, माझी के गाँव में मां तारिणी स्वयं सहायता समूह ने मांझी और और उनकी पत्नी कुसुम सहित कुल 30 ग्रामीणों को रोजगार दिया है। स्थायी रोजगार प्रदान करना इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि आदिवासी परिवार शांति से रहें।

मांझी ने गांव कनेक्शन को बताया, "महामारी ने हमारे लिए नई चुनौतियां पैदा कर दी हैं। लेकिन अब हम अपने काम में व्यस्त हैं। मैं अब कमाई के लिए अपने गांव को नहीं छोड़ूँगा। हम हर महीने इस शिल्प से लगभग 10 हजार रुपये तक कमा रहे हैं, यह उससे कहीं ज्यादा है जो मैं मुम्बई से कमा कर घर भेजता थे।"

माझी जैसे सैकड़ों आदिवासी नौकरी छोड़ने या खोने के बाद अपने गांव लौटने के साथ ही ढोकरा कला का उत्पादन धीरे धीरे बढ़ रहा है।

ओआरएमएएस के लिए काम करने वाले अधिकारी राउत ने गांव कनेक्शन को बताया कि लगभग 70 प्रतिशत ढोकरा शिल्प कारीगर शहर से अपने गांवों वापस आ गए हैं, जिससे कुल शिल्प उत्पादन में लगातार वृद्धि हुई है।

स्थानीय तौर पर उपलब्ध सामग्रियों से बनता है टिकाऊ पुराना शिल्प

ढोकरा शिल्प का काम करने वाले कारीगर धातु की ढलाई के लिए मोम का उपयोग करने की पारंपरिक पद्धति का पालन करते हैं। अजय भुइयां, एक कारीगर मयूरभंज जिले के कुलियाना गांव से गांव कनेक्शन को बताया, "मैंने अपने पिता से शिल्प से वस्तुओं को बनाने की कला सीखी थी। हम अपना काम सुबह जल्दी शुरू करते हैं क्योंकि दिन के समय धातु की ढलाई करते समय आग के पास बैठकर काम करना संभव नहीं है, क्योंकि यह बहुत गर्म हो जाती है।"


ढोकरा शिल्प में, पीतल मुख्य धातु है जिसका इस्तेमाल अच्छा उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। ढोकरा कास्टिंग में इस्तेमाल होने वाले दूसरे कच्चे माल में मोम, मिट्टी के मोम के धागे और कोयला शामिल हैं।

ओडिशा में हस्तशिल्प बनाने वाले स्वयं सहायता समूहों और कारीगरों के संगठन ओडिशा सिलिपी महासंघ की सचिव प्रिया रंजन कर ने गाँव कनेक्शन को बताया कि इस्तेमाल किया जाने वाला कच्चा माल शुद्ध पीतल नहीं है, बल्कि इसमें दूसरी धातुओं का भी मिश्रण होते हैं जो इसे आम तौर पर अनोखा रूप देता है।

वह कहती हैं, "इस प्राचीन शिल्प में जटिल डिजाइन बनाने के लिए मिट्टी का सांचा बनाने और नदी की मिट्टी से एक और परत बनाने की एक विस्तृत प्रक्रिया भी शामिल है। फिर सांचे को एक भट्टी में रखा जाता है, जिससे मोम पिघल कर निकल जाता है।"

कर ने बताया, "सांचा फिर पिघले हुए बेल धातु से भरा जाता है, और एक बार सांचा जब कठोर हो जाता है, जटिल डिजाइन को प्रकट करने के लिए इसे कई घंटों तक भरा दिया जाता है, "कार ने कहा।

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