न करें पैनिक बाइंग- भारत में भरे हैं अनाज के गोदाम

Arvind ShuklaArvind Shukla   23 March 2020 12:00 PM GMT

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not to Panic Buying, do not store groceries, Lav Aggarwal, Union Health Ministryलोग जरूरत से ज्यादा सामान खरीद रहे हैं, जबकि सरकार कह रही है देश में खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं होगी।

देश के कई हिस्सों से खबरें आई हैं कि लोग कोरोना से लॉकडॉउन (मार्केट बंदी, आगे के हालातों) के चलते घर के लिए ज्यादा से ज्यादा राशन खरीद रहे हैं। कुछ जगहों पर लोगों ने कई महीनों के लिए आटा, दाल,चावल और तेल खरीद लिया है। इससे खुदरा बाजारा में खाने-पीने की कई चीजों की कीमतों में तेजी भी आई है। लोगों को लग रहा है कि देश में आने वाले दिनों में खाने-पीने की किल्लत हो सकती है। लेकिन सरकार और आंकड़े ये कहते हैं कि ऐसा बिल्कुल नहीं है, सरकार के पास आने वाले समय के लिए पर्याप्त अनाज है।

देश में सरकारी कोटे से राशन लेने वाले लोगों के लिए एक साथ 6 महीने का राशन जारी करते हुए केंद्रीय उपभोक्ता एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने कहा, "हमारे (सरकार) गोदाम में पर्याप्त अनाज है। हमने राज्य सरकारों से कहा है कि वो एक साथ 6 महीने का राशन कार्ड धारकों को दे दें।" केंद्रीय मंत्री ने ये भी कहा कि सरकार के पास इस वक्त 435 लाख टन अधिशेष खाद्यान्न (सरप्लस अनाज) है, जिसमें 22.19 लाख टन गेहूं और 162.79 लाख टन चावल शामिल है।

भारत में तीन सीजन में अनाज की खेती होती है, ये रबी की सीजन है, जिसमें गेहूं, चना, सरसों, दालें आदि की बड़े पैमाने पर खेती होती है। भारत में ये रबी की सीजन में हार्वेस्टिंग यानी फसल कटाई का समय है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र (वर्षा आधारित सिंचाई) वाले राज्यों में गेहूं की नई फसल आ चुकी है, जबकि पंजाब, हरियाणा, यूपी बिहार समेत उत्तर भारत के राज्यों में अप्रैल के पहले हफ्ते में नई फसल आनी शुरू हो जाती है।

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यानि गोदामों में रखे अनाज के अतिरिक्त लाखों टन अतिरिक्त अनाज बाजारों में आएगा।

"हम भी कई दिनों से देख रहे हैं पिछले कई दिनों से लोग महीने-महीने भर का राशन खरीद रहे हैं, लेकिन इसकी कोई जरूरत नहीं है। दुनिया और भारत में भी खाद्यान के काफी स्टॉक (भंडारण) हैं। गेहूं और चावल के अलावा देश में 30 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक है। अगर दाल दालों की बात करें तो हमारे पास दिसंबर 2019 में 16 लाख टन स्टॉक था, जिसमें से साढ़े 8 लाख टन वितरण पहले ही शुरू कराया जा चुका है, फिर भी बफर स्टॉक की मात्रा काफी है।" देश के प्रख्यात खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं।

कृषि मंत्रालय ने इस साल गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार 10.62 करोड़ टन होने की अनुमान जताया था। साल 2019 में देश में 10.36 करोड़ टन गेहूं पैदा हुआ था। साल 2018-19 में भारत ने गेहूं का 226,225 टन गेहूं का निर्यात भी किया था। कृषि वैज्ञानिकों और सरकार चालू सीजन में गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान भी जताया था क्योंकि इस बार दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून के दौरान लंबे समय बारिश होने से देश में गेहूं का रकबा बढ़ गया था हालांकि मार्च आते-आते परिरस्थितयां थोड़ी बदल गई हैं। कोरोना के साए के बीच देश के कई राज्यों में मार्च के महीने में भारी बारिश, ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान पहुंचा है। लेकिन, राज्यों के मुताबिक इसा ज्यादा असर नहीं होगा।

मार्च के महीने में सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश के 75 में से 60 जिलों में हुआ लेकिन यूपी सरकार की 19 मार्च को केंद्र को भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक यहां कुल बुवाई रकबे 92.91 लाख हेक्टेयर (60 जिलों) में से 2.89 लाख हेक्टेयर एरिया में ही 33 फीसदी से ज्यादा नुकसान हुआ है।

भारत में गेहूं, चावल, आलू, मक्का और चीनी प्रमुख अनाज और खाद्य पदार्थ हैं। देश में इनमें से गेहूं, चावल और चीनी का लाखों टन बफर स्टाक है। भारत में अनाज के भंडारण के लिए जिम्मेदार केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम की वेबसाइट के मुताबिक भारत के गोदामों में मार्च 2020 तक 584.97 लाख मीट्रिक टन गेहूं और चावल उपलब्ध है। भारत में एफसीआई की स्थापना फूड कॉरपोरेशन एक्ट 1964 के तहत हुई है, जिसका लक्ष्य खाद्य जरूरतों को पूरा करना है।

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लेकिन सरकारी खरीद के तहत देश की कुल उपज का मात्र कुछ फीसदी ही खरीदा जाता है, बाकि खुले मार्केट में जाता है। भारत सरकार पीडीएस और बफर स्टॉक के लिए हर साल पैदा होने वाले कुल गेहूं का करीब एक तिहाई और उत्पादन का 15 फीसदी चावल सरकारी कीमतों (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीदती है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में 75 करोड़ लोगों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम प्रति यूनिट (व्यक्ति) 5 किलो अनाज हर महीने बेहद कम दरों (3 रुपए किलो चावल और 2 रुपए किलो पर गेहूं) देती है। पंजाब को छोड़ बाकी राज्यों में एक-एक महीने का राशन मिलता है। लेकिन कोरोना के चलते 6 महीने का राशन एक साथ दिया जाएगा। भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए अप्रैल महीने में 135 लाख टन चावल और 74.2 लाख टन गेहूं की जरूरत होगी

कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए कई देशों ने अपने देश की सीमाएं सील कर दी हैं। संक्रमण रोकने के लिए बंदरगाहों पर हो रहा नियंत्रित आवागमन भी जांच-पड़ताल के चलते देरी से हो रहा है। भारत में कई राज्यों में होटल, ढाबे से लेकर दुकानें तक बंद करने के आदेश जारी किए जा चुके हैं। लेकिन इस दौरान राशन की दुकानें (सरकारी और निजी) खुली रहेंगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 मार्च को राष्ट्र को राष्ट्र संबोधन में कहा कि लोगों से 22 मार्च (रविवार) के दिन जनता कर्फ्यू की अपील की थी पीएम ने लोगों से अपील की वो ज्यादा से ज्यादा घर पर रुकें और बहुत जरूरत पर ही बाहर निकलें। फिलहाल पंजाब और महाराष्ट्र में कर्फ्यू और देश के 75 जिलों में लॉकडाउन है।

अनाज के अलावा दूध जरुरी खाद्य उत्पादन है, लेकिन भारत में फिलहाल उसकी कोई दिक्कत नजर नहीं आती है। दुग्ध उत्पादन में भारत पिछले कई वर्षों से पहले पायदान पर है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में भारत में 187.7 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था।

कोरोने के चलते दूध और उसके उत्पादों की भी पैनिक बाइंग के बारे में पूछने पर देश के सबसे बड़े दूध उत्पादन संगठन अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने कहा कि, भारत के पास प्रचुर मात्रा में दूध है। अमूल अभी से 15-17 फीसदी ज्यादा प्रोडक्शन कर रहा है, हम चाहें तो इसे और बढ़ा सकते हैं लेकिन इसकी जरूरत नहीं, जैसा कि प्रधानमंत्री जी ने कहा भी था कि जनता कर्फ्यू आदि (लॉकडाउन में भी) दूध की सप्लाई और संबंधित दुकानें खुली रहेंगी, तो लोगों को पैनिक बाइंग से बचना चाहिए।

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पैनिक बाइंग यानि हड़बड़ी और आशंका के चलते के चलते लोग अनाज के साथ सब्जियों की भी खरीद कर रख रहे हैं। पैनिक बाइंग होने पर खुदरा कारोबारी कई बार कीमतें बढ़ा देते हैं लेकिन आशंका और हड़बड़ी में बढ़ी कीमतों पर सामान खरीदने को मजबूर होते हैं।

लखनऊ की नवीन गल्ला मंडी में सब्जी के कारोबारी जयवंत सोनकर के मुताबिक लोग आलू और प्याज जैसी सब्जियां ज्यादा खरीद रहे हैं। ओले आदि से सब्जियों से नुकसान हुआ लेकिन उसका ज्यादा फर्क नहीं है। क्योंकि लखनऊ में तो सिलीगुड़ी और नाशिक से भी सब्जियां आती हैं, बस कोरोना के चलते ट्रांसपोटेशन में दिक्कत न हो।" लखनऊ में लॉकडाउन के बाद जसवंत समेत कई दूसरे कारोबारियों ने सब्जी की होम डिलीवरी तक की शुरुआत की है।

भीड़ में कम जाने की हिदायत और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही शहरी लोगों की पैनिक बाइंग का असर सब्जी समेत कई उत्पादों के रेट पर पड़ा है। यूपी की पॉश कॉलोनी गोमतीनगर में सोमवार को 20 रुपए किलो वाला आलू 25-30 में बिका क्योंकि 15-20 दुकानदारों की जगह 5-7 दुकानदारों ने ही सब्जी के ढेले लगाए थे।

लखनऊ की सब्जी मंडी।

कोरोना का असर नेपाल में दिख रहा है। भारत के पड़ोसी देश नेपाल, जहां सब्जी से लेकर नमक तक काफी कुछ भारत से निर्यात किया जाता है, वहां आलू, प्याज से लेकर टमाटर तक के रेट कई गुणा बढ़ गए हैं। नेपाल में टमाटर (70-80 रुपए, नेपाली रुपए) आलू 50 से 60 रुपए किलो बिक रहा है।

लोगों की समान जमा करने की प्रवृत्ति के पीछे सोशल मीडिया पर दूसरे देशों से आ रहे वीडियो को भी माना जा रहा है। चीन, जर्मनी और इटली समेत कई देशों में कोरोना से हालात बिगड़ने के बाद वहां की सरकारों ने लॉकडाउन किया, जिसके चलते कई जगहों पर खाने पीने की किल्लत भी हुई। संक्रमण रोकने के लिए कई देशों के बीच हवाई-यात्रायात पर पाबंदी लगा दी गई है। तो कई देशों ने अपनी सीमाएं सामान के आवागमन के लिए भी सील कर दी हैं।

देविंदर शर्मा करते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जरूरी चीजों की किल्लत नहीं होगी, सप्लाई नहीं रुकेगी लेकिन सरकार को चाहिए वो कुछ कदम ऐसे उठाए जिससे लोगों में भरोसा जाए कि सरकार कुछ सख्त कदम उठा रही है। जैसे सिंगापुर में पेनिंग बाइंग से बचने के लिए प्रति परिवार के अनाज के स्टॉक की लिमिट तय कर दी गई है। केरल ने अपने प्रदेश में सभी लोगों (अमीर-गरीब को निश्चित मात्रा में चावल देने की बात की है। ऐसे कदम उठाए जाने से लोगों में भरोसा जाएगा और अगर कोरोना के चलते अगल लंबे समय तक लॉकडाउन की स्थिति आती है तो लोगों का धैर्य बना रहेगा उनका घर चलता रहेगा।'

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देश में ग्रामीण मामलों के वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा टीवी में संसदीय मामलों के प्रभारी अरविंद कुमार सिंह फोन पर कहते हैं,

"पिछले कुछ वर्षों से भारत में खान-पान काफी बदला है। अब सिर्फ लोग गेहूं-चावल नहीं खाते। हमारे यहां सरकारी गोदामों में इतना अनाज कि सरकार के लिए उसका सही इस्तेमाल एक मुद्दा था। इसके अलावा आलू प्रमुख देश का प्रमुख खाद्यान है। लाखों टन आलू कोल्ट स्टोरेज में पहुंच चुका है। उसके अलावा फल और सब्जियों की भी कमी नहीं है। बस ये है कि सरकार जमाबंदी न होने दे तो आने वाले वक्त कीमतों पर भी ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा।"

लेकिन ये स्थितियां कोरोना का असर विश्वव्यापी है, चीन और अफ्रीका समेत कई देशों में खेती प्रभावित हुई है। चीन में कई खाने पीने वाली कई चीजों की कीमतें बढ़ गई है। अगर कोरोन का त्रासदी लंबी खिचती है तो उसका असर भारत पर भी पड़ेगा।

साउथ अफ्रीका में एग्रीकल्चर डिजास्टर मैंनेजमेंट से जुड़ी एंड्रा चैंबर कहती हैं,

"कोराना को इकनामिक वायरस कहिए क्योंकि इसने पूरी दुनिया में खाद्य आपूर्ति को प्रभावित किया है।"

   

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