बरसात में कमी इस वर्ष घटा सकती है शहद की मिठास
Devanshu Mani Tiwari 6 March 2018 3:20 PM GMT
जहां विदेशी बाज़ारों में शहद की कम होती मांग मधुमक्खी पालकों के लिए एक सिरदर्द बनी हुई थी, वहीं इस वर्ष कम बरसात होने से फूलों में नेक्टर ( रस ) कम पड़ जाने के कारण देश में शहद उत्पादन में गिरावट आ सकती है।
राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2016-17 में देश में शहद का उत्पादन 94,400 टन रहा, लेकिन इस वर्ष देश में शहद का उत्पादन कम पड़ सकता है। इस बार कम बरसात के कारण फूलों में नेक्टर कम रहा, इस कारण फूल समय से पहले ही सूख गए। इसका असर शहद उत्पादन पर पड़ेगा।
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वर्ष 2006 से यूपी में गोरखपुर, सीतापुर, रायबरेली और लखनऊ जिलों में मधुमक्खी पालन क्षेत्र में किसानों को बढ़ावा दे रहे व्यवसायी नमित कुमार सिंह ( 48 वर्ष) बताते हैं,'' मौसम में उतार- चड़ाव और ज़्यादा गर्मी के कारण पिछले दो वर्षों से शहद उत्पादन अच्छा नहीं रहा है। दो वर्ष पहले एक मौनवंश (मक्खियों के बाक्स) से लगभग 30 से 40 किलो तक शहद मिल जाता था, वहीं अब एक मौनवंश से पालक को केवल 20 से 22 किलो तक ही शहद निकाल मिल पाता है। "
घटते शहद उत्पादन का असर विदेशी बाज़ारों में भी दिखा है। विदेशी बाज़ारों में भारतीय शहद की कीमत ज़्यादा होने के कारण अब अमेरिका, सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा और बांग्लादेश जैसे निर्यातक देश अन्य देशों का रुख कर रहे हैं। निर्यात के आर्डर कम होने से मधुमक्खी पालक किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं क्योंकि निर्यात माल को घरेलू बाज़ार में खपाना बोर्ड की के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। घरेलू बाज़ारों में शहद की मांग बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड ने ' संडे हो या मंडे- रोज खाओ अंडे ' विज्ञापन की तर्ज पर ' शुक्र हो या शनि रोज खाओ हनी ' विज्ञापन शुरू करने का सरकार को प्रस्ताव भेजा है।
कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ( एपीडा) के मुताबिक भारत के उत्तरी पूर्वी भाग और महाराष्ट्र में शहद उत्पादन के लिए प्रमुख क्षेत्र है। भारत में पाई जाने वाली शहद की प्रमुख किस्में ( रेप्सीड / सरसों का शहद, नीलगिरी शहद, लीची शहद, सूरजमुखी शहद, करंज/ पोंगमिआ शहद, मल्टी-फ्लोरा हिमालयी शहद, बबूल शहद, जंगली वनस्पति शहद, मल्टी और मोनो फ्लोरा शहद) हैं।
'' शहद की अच्छी मात्रा मिलने के लिए इन दिनों में तापमान 20 से 25 डिग्री तक होना चाहिए था, लेकिन इस वर्ष मार्च में ही 35 डिग्री तापमान है। यह मौसम छत्तों में शहद बनने के प्रोसेस के लिए खराब है। सरसों का मौसम निकल चुला है, इसलिए हम अब आने वाले लीची के मौसम का इंतज़ार कर रहे हैं। उम्मीद है कि इस मौसम में शहद अच्छा होगा, अभी मधुमक्खी पालकों की हालत बहुत खराब है।'' नमित कुमार आगे बताते हैं।
हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले में पिछले दो वर्षों में तेज़ी से घटी मधुमक्खियों की आबादी के कारण यहां के मौनपालकों को कुंतलों में मिलने वाली शहद की पैदावार की जगह अब तीन से चार किलो शहद की पैदावार मिल रही है। कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश के मुताबिक मधुमक्खियों में फैल रही बीमारी के कारण क्षेत्र में मधुमक्खियां छत्तों में ज़्यादा समय तक नहीं रह पा रही है। इससे शहद का उत्पादन घट रहा है।
वैश्विक स्तर पर कृषि में मधुमक्खियों की भागीदारी पर काम कर रही अमेरिका की संस्था यूएस एग्रीकल्चर रिसर्च सर्विस के अनुसार वर्ष 2009 -10 की सर्दियों के दौरान मधुमक्खियों में फैलने वाली बीमारी कालोनी कोलेप्स डिसऑर्डर सीसीडी से मधुमक्खियों के एक तिहाई हिस्से की मृत्यु हो गई, जिसका असर वैश्विक खाद्य आपूर्ति पर आज भी दिखता है।
देश में घटती मधुमक्खियों की आबादी को शहद के कम उत्पादन की मुख्य वजह बताते हुए यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टीकल्चर साइंस, बागलकोट (कर्नाटक) के कीट विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. जाननेश्वर गोपाली बताते हैं,'' भारत में पिछले एक दशक में मौसम में बदलाव के कारण करोड़ों की संख्या में मधुमक्खियां खत्म हो चुकी हैं। मधुमक्खियों की घटती संख्या से पूरे देश में शहद उत्पादन के साथ साथ फलों व सब्जियों पर गहरा असर पड़ा है।''
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