विश्व महिला दिवस विशेष : गोरेपन के पीछे क्यों बौराए हैं हम भारतीय ? 

Kanchan PantKanchan Pant   7 March 2018 8:50 PM GMT

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विश्व महिला दिवस विशेष : गोरेपन के पीछे क्यों बौराए हैं हम भारतीय ? विश्व महिला दिवस पर विशेष : 

जब एक मिस वर्ल्ड, एक कामयाब फिल्म अभिनेत्री को उसका प्यार सिर्फ इसलिए ठुकरा सकता है कि क्योंकि उसका रंग दूध की तरह सफेद नहीं है, तो हमारी क्या हैसियत थी? सांवले रंग वाली करोड़ों लड़कियों और लड़कों के सामने फेयरनेस प्रॉडक्ट्स के विज्ञापन रोज़ ऐसे ही सवाल, ऐसी ही चुनौतियां रख देते हैं।

कोई साल 2008 की बात है। नौकरी के शुरुआती दौर के तनाव के बाद हम अपनी ज़िंदगियों में सैटल हो रहे थे। अब घरवालों की चिंता थी हमारी शादी, और हम उस ‘समवन स्पेशल’ को तलाश कर रहे थे, जिसे अब तक पढ़ाई और फिर नौकरी के स्ट्रगल में हमने आज तक खोजने की कोशिश नहीं की...लेकिन हमारी तलाश पूरी होने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी, क्योंकि उन्हीं दिनों टीवी पर प्रियंका चोपड़ा पॉन्ड्स फेयरनेस क्रीम विज्ञापन में हमें ये बता रही थीं कि सांवले लोगों को प्यार करने का प्यार पाने का हक़ नहीं है।

जब एक मिस वर्ल्ड, एक कामयाब फिल्म अभिनेत्री को उसका प्यार सिर्फ इसलिए ठुकरा सकता है कि क्योंकि उसका रंग दूध की तरह सफेद नहीं है, तो हमारी क्या हैसियत थी? सांवले रंग वाली करोड़ों लड़कियों और लड़कों के सामने फेयरनेस प्रॉडक्ट्स के विज्ञापन रोज़ ऐसे ही सवाल, ऐसी ही चुनौतियां रख देते हैं। (नीचे वीडियो देखिए)

विज्ञापन कंपनियों ने खूब भुनाया है गोरेपन की चाह को

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2012 में गोरेपन का दावा करने वाले कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स का बाज़ार करीब 2 हज़ार 3 सौ करोड़ रुपए का था, 2014 में ये बढ़कर 3 हज़ार करोड़ का हो गया...एक अनुमान के मुताबिक 2017 में हिंदुस्तान ने करीब 5 हज़ार करोड़ रुपए इन कॉस्मेटिक कंपनियों की जेबों में भरे हैं। बाज़ार के जानकार कहते हैं साल 2024 तक ये व्यापार दोगुना हो सकता है। यानी गोरेपन को खूबसूरती का पर्याय बनाना, सांवले रंग को किसी कमी, किसी कमज़ोरी की तरह दिखाने का फॉर्मूला कम से कम विज्ञापन कंपनियों को खूब रास आ रहा है।

नीचे वीडियो में देखिए शाहरुख खान को लिखी गई एक चिट्ठी... जो आप को सोचने पर मजबूर कर देगी

करोड़ों युवाओं के आत्मविश्वास को छलनी कर रहे हैं ये विज्ञापन

भारत में गोरेपन के इस पागलपन को सबसे पहले हिंदुस्तान यूनीलीवर ने भुनाया। हिंदुस्तान यूनीलीवर ने 1975 में फेयर एंड लवली के नाम से पहली बार फेयरनेस क्रीम भारतीय बाज़ार में लेकर आई। कुछ ही वक्त में ये क्रीम ज़्यादातर औरतों के ड्रेसिंग टेबल का हिस्सा बन गई। इसके बाद नब्बे के दशक में इमामी नेचुरल हर्बल क्रीम के साथ बाज़ार में उतरी, 1999 में गोदरेज ने फेयर ग्लो के नाम से क्रीम निकाली. जिसका ब्रांडिंग थी ‘गोरेपन से कोई समझौता नहीं’. टीवी पर ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई जिसमें गोरे होने को नौकरी, शादी और प्यार में कामयाब होने का एकमात्र फॉर्मूला बताया जाने लगी। (नीचे वीडियो में एक फेयरनेसक्रीम का विज्ञापन है)

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सिर्फ महिलाएं नहीं पुरुष भी फेयरनेस प्रॉडक्ट्स के एडिक्ट

शुरुआत में गोरेपन की क्रीम सिर्फ महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई जा रही थीं। इसी बीच साल 2003 में एक सर्वे में पता चला कि 30 प्रतिशत पुरुष भी फेयरनेस क्रीम का इस्तेमाल करते हैं, जबकि अब तक माना जाता था कि ये क्रीम सिर्फ महिलाओं के लिए हैं....इस सर्वे के आने के सिर्फ 2 साल के अंदर इमामी ने पुरुषों की पहली फेयरनेस क्रीम लॉन्च कर दी। बॉलीवुड सुपर स्टार शाहरुख़ ख़ान इसके ब्रांड एंबेसडर बन गए और अब तक उनके स्टारडम से ये क्रीम खूब बिक रही है।

गोरेपन का बुखार फैलाने के लिए फिल्म स्टार्स भी ज़िम्मेदार

हैरानी की बात ये है इन फेयरनेस प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करने वाले ज़्यादातर लोग जानते हैं कि सालों इस्तेमाल करने के बाद भी उनका रंग हल्का नहीं हुआ, नहीं होगा...फिर भी एक झूठी उम्मीद में चेहरे पर क्रीम पोतते जाते हैं। गोरेपन के इस फितूर को एक पूरी पीढ़ी के दिमाग में डाल देने में बहुत बड़ा हाथ उन सेलीब्रिटी सितारों का भी है, जिनके लाखों करोड़ों फैन्स उनकी एक-एक अदा को कॉपी करते हैं।

टीवी पर आकर जब शाह रुख़ ख़ान बड़े कॉन्फिडेंस से बताते हैं कि उन्होंने अलाना-फलाना क्रीम को अपना हमसफर बना लिया, इसलिए वो सुपरस्टार बन गए, तो वो करोड़ों लोग उस क्रीम को इस्तेमाल करना चाहते हैं. क्योंकि सुपरस्टार आखिर कौन नहीं बनना चाहता? मिस वर्ल्ड प्रियंका चोपड़ा अगर पांच-पांच एपीसोड वाली सीरीज़ में अगर अपने सांवलेपन की वजह से अपना प्यार खो बैठे, और फिर कोई क्रीम लगाकर गोरी हो जाए, और प्यार वापस पा ले, तो कौन लड़की नहीं चाहेगी ऐसी चमत्कारी क्रीम इस्तेमाल करना? (नीचे वीडियो एक फेयरनेसक्रीम का विज्ञापन है।)

शाहरुख़ ख़ान, प्रियंका चोपड़ा, ऐश्वर्या राय, सोनम कपूर, शाहिद कपूर, जॉन अब्राहिम...ऐसे सेलिब्रिटीज़ की लिस्ट बहुत लंबी है, जिन्होंने गोरेपन के इस पागलपन को बढ़ाने में योगदान दिया है। ये सितारे पता नहीं जानते भी हैं कि नहीं, लेकिन ये मामला सिर्फ चेहरे का रंग एक-दो शेड कम कर लेने का नहीं है। पता नहीं इन्हें ये खयाल आता भी है कि नहीं, कि गोरेपन के इस महिमामंडन से सांवले रंग वाले लड़के-लड़कियों का आत्मविश्वास धीरे-धीरे कम होने लगता है, जिसका असर उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक ज़िंदगी दोनों में पड़ता है।

गोरा या सांवला होना कोई व्यक्तिगत प्रतिभा या कोई उपलब्धि नहीं है, लेकिन इन विज्ञापनों ने गोरेपन को कामयाबी की सीढ़ी बता कर एक पूरी पीढ़ी की सोशियल कंडीशनिंग करने की कोशिश की है, और आमतौर पर कामयाब भी रहे हैं।

गोरा या सांवला होना कोई व्यक्तिगत प्रतिभा या कोई उपलब्धि नहीं है, लेकिन इन विज्ञापनों ने गोरेपन को कामयाबी की सीढ़ी बता कर एक पूरी पीढ़ी की सोशियल कंडीशनिंग करने की कोशिश की है, और आमतौर पर कामयाब भी रहे हैं। विज्ञापनों की रेगुलेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने 2014 में एक गाइडलाइन जारी की थी. जिसमें कहा गया था कि विज्ञापनों में सांवले लोगों को कमतर, अनाकर्षक, दुखी, डिप्रेस्ड या परेशान ना दिखाया जाए। ना ही ये कहा जाए कि सावंले लोगों को प्यार, शादी या नौकरी जैसे मामलों में नुकसान झेलना पड़ता है और ना ही सावंले लोगों किसी खास आयवर्ग, जाति, धर्म या क्षेत्र से जुड़ा हुआ दिखाया जाए।

इन गाइडलाइंस के बाद विज्ञापन कंपनियों ने अपनी पोशिनिंग कुछ बदली ज़रूर लेकिन अब भी गोरेपन का पागलपन इन विज्ञापनों पर भारी है। क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि ये बड़े-बड़े सितारे इन विज्ञापनों की नैतिक ज़िम्मेदारी लें, कोई स्टैंड लें, जैसे कंगना रणौत, नंदिता दास, कल्कि कोचिन, रनबीर सिंह, रणदीप हुडा जैसे सितारों ने लिया है...फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन ना करने का फैसला।

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