दूषित पेयजल से गाँव भी नहीं रहे अछूते

हमारे देश में ज्यादातर ग्रामीण आबादी पीने के पानी के लिए भूजल के स्रोतों पर ही निर्भर है, ऐसे में लाखों ग्रामीण हर साल गंदे पानी से होने वाली बीमारियों का शिकार हो रहे हैं

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   28 Nov 2019 8:23 AM GMT

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दूषित पेयजल से गाँव भी नहीं रहे अछूते

भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने कुछ दिन पहले पीने के पानी को लेकर एक रिपोर्ट जारी थी, जिसमें दिल्ली समेत 20 राज्यों के राजधानियों के पानी की गुणवत्ता की जांच की गई। जांच में सिर्फ मुंबई में नल से सप्लाई होने वाले पानी को सभी 11 मानकों पर खरा पाया गया, जबकि अन्य शहरों के पानी के नमूने एक या एक से अधिक मानकों में खरे नहीं उतरे।

ये रिपोर्ट शहरों की थी, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में भी भूजल काफी प्रदूषित हो गया है। भूजल में मिल रहे रसायनों के कारण यह जहरीला हो रहा है। हमारे देश में ज्यादातर ग्रामीण आबादी पीने के पानी के लिए भूजल के स्रोतों पर ही निर्भर है, ऐसे में लाखों ग्रामीण हर साल गंदे पानी से होने वाली बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।

" हमारे गाँव के लोगों को कैंसर हो रहा है। कैंसर से अभी तक करीब 56 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, करीब दर्जन भर पीड़ित हैं। हमारे रिश्तेदार गाँव आने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि गाँव का पानी पीने से वे भी कैंसर की चपेट में आ सकते हैं। यही नहीं, दूसरे गाँव के लोग न तो हमारे गाँव की बेटियों से शादी करना चाहते हैं और न ही अपनी बेटियों को हमारे गाँव में भेजना चाहते हैं।"

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ये दर्द है उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद के बहरौली गाँव के रहने वाले प्रमोद कुमार शर्मा (35 वर्ष) का। रामगंगा नदी के किनारे बसे इस गाँव में इंडिया मार्का हैंडपंपों से आर्सेनिक युक्त पानी निकल रहा है। इस गाँव की तरह देश के सैकड़ों गाँव में दूषित पानी लोगों को समय से पहले बूढ़ा, कैंसर, मधुमेह और लीवर संबंधित बीमारियां दे रहा है।

ग्रामीण क्षेत्र में दूषित होते पेयजल के बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जल प्रौद्योगिकी संभाग के वैज्ञानिक विपिन कुमार ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "वर्तमान समय में गाँव और शहर में कोई अंतर नहीं रह गया है। ग्रामीणों ने भी शहरी जीवनशैली अपना ली है। कुछ दशक पहले तक गाँव में कुछ परिवारों में ही सर्फ और साबुन का प्रयोग होता था, लेकिन आज हर व्यक्ति इनका उपभोग कर रहा है। इन सब में रासायनिक पदार्थ होते हैं, जो भूगर्भ जल को दूषित कर रहा है। इसके साथ ही किसान बहुत ज्यादा रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करने लगा है, जिसका परिणाम वह दूषित जल के रूप में भुगत रहा है। अगर समय रहते हम लोग नहीं चेते तो स्थिति और गंभीर हो जाएगी।"

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"बचपन में हम लोग कुएं का पानी पीते थे। बाद में हैंडपंप का पानी पीने लगे। दोनों का पानी बहुत मीठा और साफ था। गाँव के किसी भी व्यक्ति को पेट से संबंधित कोई बीमारी नहीं थी। लेकिन कुछ साल पहले एक टीम आई और यह बता कर चली गई कि जमीन के अंदर का पानी दूषित हो गया है। इसमें फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा हो गई है, जो सेहत के लिए खतरनाक है। अब ऊपर जाने (मरने) का वक्त आ गया तो सब बोल रहे हैं आरओ का पानी पीओ।" यह कहना है उत्तर प्रदेश के जनपद गोरखपुर के गाँव रक्षवापार निवासी रामवृक्ष मिश्रा (95 वर्ष) का।


वरिष्ठ भू-जलविद और जल एवं भूमि प्रबन्ध संस्थान, मध्य प्रदेश के पूर्व निदेशक कृष्ण गोपाल व्यास ने गाँव कनेक्शन को बताया, "औद्योगीकरण के कारण आज कारखानों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। इनसे निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को नदियों, नहरों, तालाबों आदि किसी अन्य स्रोतों में बहा दिया जाता है, जिससे जल में रहने, वाले जीव-जन्तुओं व पौधों पर तो बुरा प्रभाव पड़ता ही है साथ ही जल पीने योग्य नहीं रहता और प्रदूषित हो जाता है। ज्यादातर कारखाने शहर से दूर ग्रामीण क्षेत्रों में लगते आए हैं या लग रहे हैं और समुचित प्रबंधन न होने कारण इनसे निकलने वाला दूषित जल भूजल को प्रभावित कर रहा है।"

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" सबसे पहले कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। नदी या अन्य किसी जल स्रोत में अपशिष्ट बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कानून कदम उठाने चाहिए। इसके साथ ही समाज व जन साधारण में जल प्रदूषण के खतरे के प्रति चेतना उत्पन्न करनी चाहिए।" उन्होंने आगे बताया।

गुजरात में भूमिगत पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था एसीटी के सदस्य गिरीश कुमार भी ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदूषित होते भूजल को लेकर काफी गंभीर हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, " भूमिगत जल आपस में मिला होता है। शहर और गाँव की सीमा तो हमने तय कर रखी है, लेकिन जमीन के अंदर के पानी की कोई सीमा नहीं है। कारखानों से निकलने वाला गंदा पानी जमीन के अंदर के पानी से मिल जाता है। जब हम जमीन से पानी निकालते हैं तो हर तरफ से पानी आता है। ऐसे में गाँव और शहर के भूजल में कोई अंतर नहीं है।"


पांच जुलाई 2019 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करते हुए कहा था, " देश में 'हर घर नल और हर घर जल' पहुंचाया जाएगा। 'जल जीवन मिशन' के तहत वर्ष 2022 तक सभी ग्रामीण घरों में 'हर घर जल' के लिए राज्यों के साथ मिलकर जल शक्ति मंत्रालय काम करेगा। भारत में पानी की सुरक्षा और सभी भारतीयों को साफ पेयजल उपलब्ध कराना मोदी सरकार की पहली प्राथमिकता है। इस दिशा में हमारी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है।"

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केंद्रीय मृदा लवणता संस्थान, लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक वीके मिश्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया, " शुद्ध पेयजल कैसा हो, इस विषय पर बहुत ज्यादा प्रयोग किये हैं। हमारे देश में पानी की गुणवत्ता को तय करने का एक मापदंड बनाया गया है। पीने के पानी का रंग और स्वाद अच्छा होना चाहिए। पानी में आर्सेनिक, लेड, सेलेनियम, मरकरी तथा फ्लोराइड, नाइट्रेट समेत केई तत्व पाए जाते हैं। सभी का अपना एक निश्चित अनुपात होता है, अगर वह तत्व से ज्यादा होगा तो वह पानी शरीर के लिए नुकसानदायक होगा। बढ़ती जनसंख्या के बढ़ते दबाव और भूजल का अंधाधुंध दोहन दूषित जल जैसी समस्या पैदा कर रहा है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जिसमें 1 बिलियन से अधिक नागरिक हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत में 21 प्रतिशत संचारी रोग असुरक्षित जल और स्वच्छता प्रथाओं की कमी से जुड़े हैं। इसके अलावा, पाँच वर्ष से कम आयु के 500 से अधिक बच्चे अकेले भारत में दस्त से मरते हैं।"

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भारतीय मानक ब्यूरो ने पेयजल में निम्नलिखित तत्वों का एक मानक तय किया है

पीएच 6.5 से 8.5
टीडीएस 500 एमजी/लीटर
कठोरता 200 एमजी/लीटर
नाइट्रेट 45 एमजी/लीटर
सल्फेट 200 एमजी/लीटर
फ्लाराइड 1 एमजी/लीटर
क्लाराइड 250 एमजी/लीटर
आर्सेनिक 0.01 एमजी/लीटर
कॉपर 0.05 एमजी/लीटर
कैडिएम 0.003 एमजी/लीटर
क्रोमिएम 0.05 एमजी/लीटर
शीशा 0.01 एमजी/लीटर
लोहा 0.03 एमजी/लीटर
जिंक 5 एमजी/लीटर


पानी पर काम करने वाली संस्था वाटर एड के रीजनल मैनेजर फारुख ने बताया, " भूमिगत जल में कई तरह के तत्व पाए जाते हैं जो मानव शरीर के लिए घातक होते हैं। देश के कई राज्यों में भूजल काफी दूषित जो चुका है। सरकार हर घर को पानी मुहैया कराने की बात कर रही है, लेकिन सरकार को अभी गुणवत्ता युक्त पानी पर विशेष ध्यान देना चाहिए।"

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उत्तर प्रदेश में लोगों तक पेय जल पहुंचाने के जिम्मेदार विभाग यूपी जल निगम के मुख्य अभियंता (ग्रामीण) जीपी शुक्ला गांव कनेक्शन को बताते हैं, "अत्यधिक जलदोहन की वजह से भूगर्भ जल बहुत तेजी से नीचे जा रहा है। कल कारखानों से निकलने वाली दूषित पानी नदियों में छोड़ा जा रहा है जो भूगर्भ जल को दूषित कर रहा है। प्रदेश सरकार मार्च 2021 तक फ्लोराइड प्रभावित जिलों में पाइप लाइन से पानी मुहैया कराने जा रही है। इसके लिए युद्ध स्तर पर कार्य किए जा रहे हैं।"

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