भयावह बाढ़ के बाद केरल के सामने सूखे का संकट

भयावह बाढ़ के बाद केरल की कई नदियां और कुएं सूखने लगे हैं। कई हिस्सों में भूजल का स्तर बहुत तेजी से गिरने लगा है। सूखे की स्थिति देखते हुए मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने राज्य विज्ञान, तकनीक एवं पर्यावरण परिषद को प्रदेश में बाढ़ के बाद की स्थिति का अध्ययन करने और उत्पन्न समस्या का समाधान सुझाने का निर्देश दिया है

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   10 Nov 2018 12:10 PM GMT

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भयावह बाढ़ के बाद केरल के सामने सूखे का संकट

लखनऊ। भयावह बाढ़ का दंश झेल चुके केरल के सामने अब नई परेशानी खड़ी हो गई है। भयावह बाढ़ के बाद राज्य की कई नदियां और कुएं सूखने लगे हैं। कई हिस्सों में भूजल का स्तर बहुत तेजी से गिरने लगा है। सूखे की स्थिति देखते हुए मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने राज्य विज्ञान, तकनीक एवं पर्यावरण परिषद को प्रदेश में बाढ़ के बाद की स्थिति का अध्ययन करने और उत्पन्न समस्या का समाधान सुझाने का निर्देश दिया है।

इस साल केरल में औसत से 36 प्रतिशत से भी अधिक पानी बरसा लेकिन उसकी गति तथा अवधि भूजल रीचार्ज के लिये उपयुक्त नहीं थी। इस कारण क्षेत्रीय भूजल स्तर में अपेक्षित इजाफा नहीं हुआ। उसके असर से नदियों का प्रवाह कम हुआ और कुओं का जलस्तर घटने लगा है। केरल में बरसात दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व मानसून से होती है।

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केरल में सबसे अधिक 3934 मिलीमीटर बरसात उत्तर केरल स्थित कुट्टीयादी बेसिन में और सबसे कम 1367 मिलीमीटर बरसात अमरावती बेसिन में होती है। इस साल जून से अगस्त के बीच केरल में 33 प्रतिशत अधिक बरसात हुई वहीं सितम्बर माह में उसकी मात्रा सामान्य बरसात (56 मिलीमीटर) का मात्र 14 प्रतिशत (7.9 मिलीमीटर) है। इस साल 29 मई को मानसून ने केरल में दस्तक दी थी। उसके बाद अगस्त में आई तेज बारिश के कारण कई दिन तक उसकी लगभग सभी नदियाँ उफान पर थीं। उस दौरान लगभग सभी सिंचाई बाँधों से अतिरिक्त पानी भी छोड़ा गया था।

साभार:इंटरनेट

वरिष्ठ भूजलविद और राजीव गाँधी जल प्रबन्ध मिशन मध्य प्रदेश के सलाहकार तथा जल एवं भूमि प्रबन्ध संस्थान, मध्य प्रदेश पूर्व निदेशक कृष्णगोपाल व्यास ने बताया, " बरसात के दिनों में कछार की धरती पर बरसे पानी का वह हिस्सा जो सतह से बहकर नदी को मिलता है। केरल में यह एक साल में दो बार होता है। उल्लेखनीय है कि भारत में भूजल पुनर्भरण का काम अन्तिम पायदान पर है।

इसका कुप्रभाव जलस्रोतों की पानी देने की क्षमता पर पड़ता है। यह पूरे देश में हो रहा है। केरल उससे अछूता नहीं है। सितम्बर माह में ही नदियों और कुओं के जलस्तर की गिरावट का सीधा-सीधा सम्बन्ध भूजल स्तर के गिरने से है।"

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भूवैज्ञानिक बिपिन कुमार का कहना है, " बारिश होने का मतलब ये नहीं होता कि वहां का जल स्तर ऊपर रहेगा। जब तक हम लोग वाटर रीचार्ज के तरीकों का सही तरीके से प्रयोग नहीं करेंगे तब तक भूजल स्तर गिरता जाएगा। केरल में भी यही हाल रहा। इस बार औसत से ज्यादा बारिश हुई, और करीब एक माह तक बाढ़ से भी बेहाल रहा। लेकिन वहां अचानक से भूजल स्तर गिरने लगा है। बाढ़ की वहज से हजारों कुएं और तालाब नष्ट हो गए जो जल स्तर को ऊपर रखने में मददगार होते हैं। कई डैम टूट गए। इस वजह से भी वहां सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई है।"


केरल के कई इलाके पेरियार, भरतपुझा, पंपा और कबानी जो कुछ दिनों पहले तक बाढ़ की चपेट में थे जहां नदियां बाढ़ के दौरान उफन रही थीं। अब इसमें पानी का स्तर बहुत तेजी से नीचे गिर रहा है। यही नहीं कई जिलों से कुओं के सूखने के साथ ही उनके ढह जाने की भी खबरें आ रही हैं जिसने राज्य सरकार के पशीने पर सिलवटें लानी शुरू कर दी हैं।

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सिर्फ पानी का स्तर नहीं गिर रहा है बल्कि यहां केंचुओं के सामूहिक खात्मे समेत कई मुद्दों ने केरल के विभिन्न हिस्सें को चिंतित किया है। बाढ़ ने कई स्थानों पर भूमि की स्थलाकृति बदल दी है और खासतौर पर, इदुक्की और वायनाड जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में जमीन में किलोमीटर लंबी दरारें आ गई हैं।

बरसात के मौसम में जब धरती पर पानी बरसता है तो उसका कुछ अंश धरती की गहराईयों में अपने आप उतर जाता है। यह काम प्रकृति खुद करती है। धरती के विभिन्न भागों में पानी सोखने की क्षमता जुदा-जुदा होती है पर कितना पानी जमीन में उतरेगा, यह मिट्टी और उसके नीचे पाई जाने वाली चट्टानों के गुणों पर निर्भर होता है।

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रेत और बजरी की परतों और मौसम के कुप्रभाव से अपक्षीण चट्टानों में सबसे अधिक पानी रिसता और संरक्षित होता है। पानी के नीचे रिसने में बरसात के चरित्र की भी भूमिका होती है। तेजी से गिरे पानी का अधिकांश भाग यदि ढाल के सहारे बह जाता है तो धीरे-धीरे गिरने वाले पानी का काफी बड़ा भाग जमीन की गहराइयों में उतर जाता है।

इलाके का भूमि उपयोग भी पानी के जमीन में रिसने पर असर डालता है। बंजर जमीन या कठोर अपारगम्य चट्टानों के ऊपर गिरे पानी का अधिकांश भाग यदि सतह पर से बह जाता है तो रेतीली जमीन और जुते खेत के करीब 20 प्रतिशत पानी ही बह कर आगे जा पाता है। इस काम को प्रकृति द्वारा सम्पन्न 'रेन-वाटर हार्वेस्टिंग' कहा जा सकता है।

इनपुट: इंडिया वाटर पोर्टल

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