देहरादून ( उत्तराखंड) उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के बंदुन गांव में 42 सैंपल में से 30 की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आने से हड़कंप मच गया। ये सैंपल 5 दिन पहले 6 मई को लिए गए थे। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और सतपुली तहसील के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट संदीप कुमार की अगुवाई में एक टीम ने गांव को सील कर दिया। साथ ही वहां एक मेडिकल टीम भी तैनात कर दी। सतपुली से जिला अस्पताल की दूरी 35 किलोमीटर है।
कोरोना की दूसरी लहर का दंश पहाड़ी राज्य उत्तराखंड भी झेल रहा है। राज्य के दूर दराज के क्षेत्रों के कई गांवों को सील किया गया है। साथ ही राज्य सरकार ने 18 मई तक सभी जिलों में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की है।
राज्य के पहाड़ी इलाकों के कई गांवों में पर्याप्त बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी है और निकटतम अस्पताल भी कई किलोमीटर दूर है। इतना ही नहीं कई बार तो लोगों को अस्पताल जाने के लिए साधन पकड़ने भी 8 से 9 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।
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बढ़ते मामले और सील होते गांव
देहरादून स्थित संस्था सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन की ओर से इकट्ठा आंकड़ों की मानें तो 30 अप्रैल से 6 मई के बीच उत्तराखंड में दर्ज 45,484 कोरोना मामलों दर्ज किए गए। इनमें से 12,521 मामले (27.5 प्रतिशत) राज्य के 9 पहाड़ी जिलों में दर्ज किए गए हैं। यह संस्था पिछले साल महामारी शुरू होने के बाद से कोरोना के मामलों पर नजर रख रही है।
इन 9 पहाड़ी जिलों में पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, चमोली, उत्तरकाशी, चंपावत, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और रुद्रयाग शामिल हैं। इनमें से पौड़ी गढ़वाल में 2,258 मामले, टिहरी गढ़वाल में 1,916 और चमोली में 1,553 मामले मिले हैं।
चमोली के जोशीमठ ब्लॉक के रविग्राम पंचायत में बढ़ते मामलों के मद्देनजर जिलाधिकारी ने चंडिका देवी मंदिर के चारों ओर 50 मीटर के दायरे को कंटेनमेंट क्षेत्र घोषित किया है। पिछले तीन दिनों में गांव से लिए गए 100 सैंपल में से 18 सैंपल पॉजिटिव मिले। वहीं रुद्रप्रयाग जिले के एक अन्य गांव बनौली में लिए गए 52 सैंपल में से 12 के पॉजिटिव आने पर गांव को सील कर दिया गया।
इसके अलावा लगभग 65 किलोमीटर दूर, चमोली जिले के डूंगरी गाँव में हाल ही में लिए गए 83 सैंपल में से 41 लोगों के पॉजिटिव आने पर गांव को सील कर दिया गया है। इसी जिले के पोखरी ब्लॉक के ग्राम सरनाचारी को भी 29 लोगों के पॉजिटिव मिलने के बाद कंटेनमेंट जोन घोषित कर सील कर दिया गया है। यहां 200 लोगों के सैंपल लिए गए थे।
सरनाचारी के प्रधान आनंद राणा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “लगभग सभी पहाड़ी गांवों में बुखार के मामले प्रतिदिन बढ़ रहे हैं।” राणा ने कहा कि यह चिंता की बात है कि जब बुखार फैल रहा था तब लोग इसके परिणाम के डर से परीक्षण के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने आगे कहा, “यह वह समय है जब सरकार को लोगों को जागरूक करना चाहिए और कोविड-19 प्रोटोकॉल बनाए रखने पर जोर देना चाहिए।”
प्रधान संगठन, चमोली के जिला अध्यक्ष मोहन नेगी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यह सच है कि गांवों में बुखार तेजी से फैल रहा है। निज़मुला घाटी की 80 फीसदी आबादी को बुखार है।” ऐसे में यह कहा जा सकता है कि वायरस दूर दराज के पहाड़ी गाँवों में भी फैल गया है, जहां इससे निपटने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है।
विभागीय स्वास्थ्य बुलेटिन के मुताबिक, राजधानी देहरादून में 5 मई और 7 मई के बीच 72 घंटे के दौरान 9,882 लोग पॉजिटिव मिले। हरिद्वार में महाकुंभ की शुरुआत के वक्त उत्तराखंड में 31 मार्च तक कुल 1,863 सक्रिय मामले थे, जो 27 अप्रैल को इसके खत्म होते-होते बढ़कर 43,032 हो गए।
राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, महामारी की शुरुआत (मार्च 2020) के बाद से 7 मई, 2021 तक उत्तराखंड में कुल 238,383 कोरोना के मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से आधे से अधिक मामले (130,000) इस साल 1 अप्रैल से 7 मई, 2021 के बीच के बताए गए हैं। महामारी की शुरुआत के बाद से हुईं कुल 1,863 मौतों में से 806 लोगों ने इस साल 1 मई से 7 मई के बीच अपनी जान गंवाई।
सील किए गए कई गांवों के ग्राम प्रधानों से जब गाँव कनेक्शन ने बात की तो यह पता चला कि प्रधानों ने बुखार और कोरोना के मामले बढ़ने पर ही अधिकारियों को जानकारी दी। वहीं परीक्षण में देरी करने और इसकी रिपोर्ट देर से मिलने पर कई ग्राम प्रधान नाखुश थे। उनमें से कुछ ने कहा कि सैंपल की रिपोर्ट आने में लगभग एक सप्ताह लग गया।
कुंभ मेले के आयोजन पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), देहरादून के अध्यक्ष अमित सिंह ने कहा, “अधिकारियों ने सीमाओं को सील करने और टेस्टिंग करने में देर की। वो भी तब जब वे डलब म्यूटेंट वाले वायरस के बारे में जानते थे, जो पहले ही देश के अन्य हिस्सों में अपना असर दिखा चुका था। उत्तराखंड में इतनी तेजी से कोरोना मामलों की संख्या बढ़ने का यह एक प्रमुख कारण है।”
शादी-समारोह भी जिम्मेदार
कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के लिए गांवों में होने वाली शादियों को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। जिला प्रधान संगठन, चमोली के जिला सचिव सुरेंद्र धनतेरा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “साल के शुरुआती महीनों में उत्तराखंड में शादियां और शिवरात्रि से जुड़े त्योहारों की भरमार होती है। साथ ही मार्च और अप्रैल में होने वाले मेले भी हैं, जो दो से छह दिन के बीच होते हैं।” उन्होंने चमोली क्षेत्र की पिंडर घाटी में होने वाले बैसाखी मेले और कर्णप्रयाग में होने वाले एक अन्य भव्य मेले का उदाहरण दिया, जिसमें काफी भीड़ जुटी थी। इसके अलावा धनतेरा ने बताया, “बिना किसी परीक्षण के या बिना किसी प्रोटोकॉल के गांवों में कई पर्यटक और प्रवासी श्रमिक भी आए।”
आईएमए के अमित सिंह ने कहा कि महामारी के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करना केवल अधिकारियों की जिम्मेदारी नहीं है। उन्होंने कहा, ” प्रोटोकॉल, कर्फ्यू और लॉकडाउन का पालन करना नागरिकों की भी अधिक से अधिक जिम्मेदारी है।” यह बेहद जरूरी है कि लोग अपने प्रयासों से सरकार का समर्थन करें। इसके बाद ही कोरोना की चेन को तोड़ा जा सकता है।
इस बीच, नैनीताल हाई कोर्ट ने 29 अप्रैल को चिकित्सा कर्मचारियों की कमी का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को राज्य में 2,500 से अधिक पंजीकृत दंत चिकित्सकों की मदद लेने और कोरोना परीक्षण की संख्या बढ़ाने की सलाह दी।
कोरोना के संक्रमण पर अंकुश लगाने का सबसे प्रभावी तरीका अधिक से अधिक लोगों का वैक्सीनेशन है। माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के नेतृत्व में उत्तराखण्ड में भी टीकाकरण अभियान का तीसरा दौर शुरू हो चुका है जिसके तहत प्रदेश के 50 लाख युवाओं का टीकाकरण होना है। pic.twitter.com/0KnM3uJDK8
— Tirath Singh Rawat (@TIRATHSRAWAT) May 10, 2021
नाराज हैं गांवों के प्रधान
जिला प्रधान संगठन, चमोली के जिला सचिव सुरेंद्र धनतेरा ने खुलासा किया कि विरोधी स्वर भी थे, जिसकी वजह से संभवतः उत्तराखंड में दूसरी लहर के प्रति कार्रवाई करने में देर हुई।
24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस से निपटने में ग्राम प्रधानों के महत्वपूर्ण योगदान की बात कही। वास्तव में उत्तराखंड के कई गांवों में ग्राम प्रधानों ने अपने दिल और आत्मा को इस महामारी से निपटने में लगा दिया था जब यह पिछले साल पहली बार आई थी, लेकिन वे कहते हैं कि वे इस साल सहयोग नहीं करेंगे, क्योंकि राज्य सरकार ने उनकी सेवाओं को कोई स्वीकृति नहीं दी है।
चमोली जिले के नाराज ग्राम प्रधानों ने 28 अप्रैल को खंड विकास अधिकारी को एक पत्र सौंपा, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए कहा कि वे गांव में क्वारोटीन की व्यवस्था करने, सफाई के मामले आदि में वे सहयोग नहीं करेंगे। ऐसे में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में यह एक और कारण हो सकता है मामले बढ़ने का।
चमोली जिले के रविग्राम गांव के समीर डिमरी ने कहा,”गांवों को लोगों और प्रशासन के बीच कोई सहयोग नहीं हुआ है। महामारी के शुरुआत के दिनों में यदि गांव में कोई बाहर से आता था तो हम जानते थे। साथ ही सुनिश्चित करते थे कि वह क्वारंटाइन हुआ है कि नहीं।” उन्होंने आगे कहा, “इस साल किसी भी तरह की सावधानियां नहीं बरती जा रही हैं। हमारे जिले की सीमा पर कोई परीक्षण सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं और न ही हमें हमारे गांवों में बाहर से प्रवेश करने वाले किसी व्यक्ति की जानकारी मिलती है।”
उन्होंने आगे कहा, “पिछले साल ग्राम प्रधानों ने सुनिश्चित किया था कि क्वारंटाइन सेंटरों को कुशलतापूर्वक चलाया जाए, प्रोटोकॉल बनाए रखा जाए। इतना ही नहीं उन्होंने खुद को संक्रमित होने के खतरे से बेखबर दिन-रात काम किया। फिर भी उन्हें ‘कोरोना योद्धाओं’ के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। इसके अलावा सरकारी अधिकारी जो अपने कार्यालयों और घरों में बैठते हैं, उन्हें टीका लगाया गया है। ये फ्रंटलाइन कार्यकर्ता नहीं थे।”
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल के अनुसार, “अधिकारियों और ग्राम प्रधानों को अपने मतभेदों को दरकिनार कर जमीनी स्तर पर काम करना चाहिए। उन्हें अपनी समस्याओं को सुलझाना चाहिए और बढ़ते संकट से जूझने के लिए आगे बढ़ना चाहिए।”
इस बीच उत्तराखंड में पिछले 24 घंटों (10 मई, शाम 7 बजे तक) में 5541 अधिक पॉजिटिव मामले सामने आए और 168 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। राज्य द्वारा जारी स्वास्थ्य बुलेटिन के अनुसार, अब तक 578,296 लोगों को टीकाकरण की दोनों खुराक मिली हैं और राज्य ने 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को टीकाकरण शुरू कर दिया है।