Lockdown के दौरान 300 से ज्यादा मौतें ऐसी हुईं जिनकी चर्चा नहीं हुई, क्या उनकी जान बचाई जा सकती थी?

लॉकडाउन के दौरान 300 से ज्यादा मौतें ऐसी भी हुई हैं जिनकी चर्चा कोविड-19 की वजह से हो रही है लेकिन वे कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं थे। इनमें मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा है।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   5 May 2020 6:33 AM GMT

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Lockdown के दौरान 300 से ज्यादा मौतें ऐसी हुईं जिनकी चर्चा नहीं हुई, क्या उनकी जान बचाई जा सकती थी?

कोरोना महामारी से लोगों की जान बचाने के लिए लगभग पूरा देश बंद है। इसी बंदी (लॉकडाउन) में लाखों वे लोग भी फंसे हैं, जिनका जहां पर हैं वहां रहना उनके लिए संभव नहीं है। प्रवासी कामगारों, मजदूरों की वापसी पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा में है। श्रमिक स्पेशल ट्रेन चली हैं, बसें चलाई गईं हैं, लेकिन इन सबके बीच एक रिपोर्ट में सामने आया है कि लॉकडाउन के कारण अब तक 300 से ज्यादा मौतें ऐसी हुई हैं जो कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं थे, जिन्हें बचाया जा सकता था।

तबरक अंसारी (50) 25 मार्च को महाराष्ट्र के भिवड़ी से अपने 11 दोस्तों के साथ उत्तर प्रदेश के जिला महाराजगंज के लिए निकले थे, लेकिन अपने घर नहीं पहुंच पाये। रास्ते में मध्य प्रदेश के सेंधवा में उनकी मौत हो गई। भिवंड़ी से महाराजगंज की कुल दूरी लगभग 1,600 किलोमीटर है, लेकिन तबरक कुल 390 किमी कर सफर ही तय कर पाये।

तबरक के साथ रमेश पवार भी यात्रा कर रहे थे। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "तबरक की मौत मध्य प्रदेश के बरवानी के पास संधवा में गुरुवार 30 मार्च को हो गई थी। उसे दिला का दौरा पड़ा था। 11 लोग साइिकल से निकले थे। हम लोग मुंबई में पॉवरलुम में काम करते थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से नौकरी चली गई थी। हमारे पास खाने के लिए एक पैसे नहीं थे।"

धर्मवीर (28) 27 मार्च को अपने सात साथियों के साथ नई दिल्ली से बिहार के खगड़िया जिले के खरैता गांव के लिए साइकिल से निकले थे, लेकिन उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के पास उनबी तबियत खराब होती है और ले जाते-जाते मौत हो जाती है।

शाहजहांपुर कोतवाली पुलिस ने मीडिया को दिये अपने बयान में कहा, "धर्मवीर के ग्रुप में से ही किसी ने डायल 112 पर फोन करके तबियत बिगड़ने की बात कही। हमारी टीम पहुंची तो धर्मवीर सांस लेने में दिक्कत हो रही थी फिर वह अचानक बेहोश हो गया। हम उसे मेडिकल कॉलेज लेकर गए लेकिन वहां डॉक्टरों ने उसे मृत बताया।"


धर्मवीर के साथ उनके जिले और गांव के भी कई लोग थे। उन्हीं में से एक रामनिवास बताते हैं, "हम नई दिल्ली में शकूरबस्ती में रहते थे। लॉकडाउन के बाद से हमें कोई काम नहीं मिलता था। रोजगार छिन गया। हम 34 दिनों तक ही इसके बाद वहां रह पाये। लोगों से मांगकर या कहीं कोई मदद मिल जाती थी, उसी से पेट भरता था, लेकिन इससे कितने दिनों तक जिंदा रह पाते।"

"हमें लगा कि यहां तो रहेंगे तो भूख से ही मर जाएंगे, क्यों ना घर चलें। कम से कम अपनों के बीच में मरें। गाड़ियां सारी बंद थी तो इसलिए हम साइकिल से निकल पड़े। चार दिन साइकिल चलाने के बाद हम गुरुवार की रात हम शाहजहांपुर पहुंचे थे जहां हमने मंदिर में खाना खाया था। शुक्रवार एक मई को धर्मवीर की तबियत बिगड़ गई थी।"

नई दिल्ली से खगड़िया की दूरी लगभग 1,300 किलोमीटर है।

उत्तर प्रदेश के जिला श्रावस्ती के रहने वाले इंसाफ अली (35) 14 दिनों में 1,500 किमी की यात्रा करके 27 अप्रैल को अपने गांव मल्हीपुर के मटखनवा पहुंचे थे। गांव पहुंचे कुछ ही देर हुई थी कि क्वारंटीन सेंटर में उनकी मौत हो गई। मौके पर पहुंची स्वास्थ्य टीम ने नमूना लेकर जांच कराया जिसमें कोरोना निगेटिव पाया गया।


इस मामले पर थानाध्यक्ष मल्हीपुर देवेन्द्र पाण्डेय बताते हैं, "मौत का कोई स्पष्ट कारण पता नहीं चला। इसलिए बिसरा सुरक्षित रख लिया गया। इसके बाद हमने शव परिजनों को सौंप दिया था। मृतक के पिता की भी रिपोर्ट निगेटिव मिली थी।"

इंसाफ की पत्नी सलमा बेगम बताती हैं, "वे वहां मिस्त्री हेल्पर का काम करते थे। तब मैं अपने मायके गई हुई थी। आखिरी बार जब बात हुई थी उन्होंने बताया कि बस बिस्किट खाकर जिंदा हैं। रास्ते में उन लोगों को ट्रक भी मिली थी। इसके बाद पैदल चले। कई जगह पुलिस ने भी पकड़ा था। फिर अचानक से फोन बंद हो गया। बाद में पता चला कि वे लोग घर पहुंच गये हैं। गांव आने के बाद तबियत खराब हो गई।"

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू से 26 साल के हरि प्रसाद अपने घर आंध्र प्रदेश के चित्तूर के लिए पैदल निकले थे। लगभग 121 किलोमीटर की दूरी तय करके वे गांव की दहलीज पर ही पहुंचे थे कि होश खो बैठे। इलाज के लिए ले जाया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका।

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छब्बीस साल के हरि प्रसाद बेंगलुरू में किराये की टैक्सी चलाते थे। लॉकडाउन की वजह से काम बंद हुआ तो खाने की दिक्कत होने लगी। गाड़ियां बंद थी तो घर वाले वापस बुलाने लगे। हरि पसाद पैदल ही घर निकले गये। उनका घर आंध्र प्रदेश के रामासम्रुदम मंडल के जिला चित्तूर, ग्राम पंचायत नाडीपल्ली के गांव मीटापल्ले में है। माता-पिता खेतिहर मजदूर हैं।

हरि प्रसाद के छोटे भाई मल्लिकार्जुन (23) ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "वह सोमवार 27 अप्रैल को बेंगलुरू से निकले थे। हम लोगों ने कहा कि जब वहां दिक्कत है तो अपने घर आ जाओ। वह तीन दिन लगातार चलते रहे और 121 किमी की यात्रा करके बुधवार 29 अप्रैल की सुबह वह गांव में पहुंचे ही थे कि वह गिर पड़े। हमने एंबुलेंस बुलाया और अस्पताल ले जाने लगे लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।"

मध्य प्रदेश के जिला मुरैना, के ग्राम पंचायत बारेह के गांव बाड़फरा के 39 वर्षीय रणवीर सिंह देश की राजधानी नई में दिल्ली में एक होटल में टिपिन डिलीवरी का काम करता थे। लॉकडाउन के बाद होटल बंद हो गया, कमाई भी बंद हो गई। ऐसे में रणवीर ने 27 मार्च को घर जाना ही उचित समझा। नई दिल्ली से उनका घर यही कोई 300 किलोमीटर था, लेकिन वे 200 किमी का ही सफर तय कर पाये और 28 मार्च को आगरा के सिकंदरा थाना क्षेत्र में उनकी मौत हो गई।

भारत में लॉकडाउन की वजह से हुई कुल मौतें। (3 मई 2020 तक)

रणवीर ने आखिरी बार अपनी बहन पिंकी से बात की थी। पिंकी ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "भैया ने 27 मार्च को फोन किया था तब उन्होंने बताया था कि वे आज घर के निकलेगा। उसने बताया कि कोई गाड़ी नहीं है इसलिए पैदल हा आउंगा। फिर उसने 29 को दोपहर में फोन किया और बताया कि उसके सीने में दर्द हो रहा है, यह कहकर उसने फोन काट दिया। फिर शाम लगभग सात बजे फोन आया कि मेरा भाई नहीं रहा।"

घटना के बारे में सिकंदरा थाना के एसएचओ अरविंद कुमार बताते हैं, " हमने पीड़ित को एक जगह लिटा दिया और उसे चाय-बिस्किट दिया। उसने बताया कि उसके सीने में दर्द में हो रहा है। इसी समय उसने अपने किसी रिश्तेदार को भी फोन किया था। शाम के 6:30 बजे रणवीर की मौत हो गई।"

"रणवीर अपने घर के लिए पैदल ही जा रहा था और लगभग 200 किमी पैदल चल चुका था। इसी कारण उसके सीने में दर्द उठा। पूरे एनएच-2 पर पुलिस खाना और पानी लेकर मौजूद थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ये पता चला कि दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई।" अरविंद आगे कहते हैं।

रणवीर, हरि प्रसाद हों या इंसाफ अली, ये सभी मौतें लॉकडाउन के दौरान हुईं और इनमें से कोई भी कोरोना से संक्रमित नहीं था, और ऐसी मौतों की संख्या बहुत ज्यादा है।

तकनीकी जानकारों की एक निजी वेबसाइट thejeshgn.com लॉकडाउन के दौरान हो रही मौतों के आंकड़े पहले दिन से ही जुटा रही है। इनके अनुसार लॉकडाउन की वजह से देश में अब तक कुल 338 मौतें ऐसी हुई हैं जिन्हें कोरोना नहीं था। ये आंकड़े देशभर की मीडिया रिपोर्टस को लेकर तैयार किये गये हैं।


रिपोर्ट को तैयार किया है शोधकर्ता, कार्यकर्ता कनिका शर्मा, थेजेश और कानूनी मामलों के जानकार अमन ने।

रिपोर्ट के बारे में कनिका गांव कनेक्शन को बताती हैं, "लॉकडउन के दौरन ट्रैक की गई समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि लॉकडउन के कारण 300 से अधिक लोगों की मौत हो भूख, पैसों की कमी थकावट, लॉकडाउन के उल्लंघन के बाद पुलिस के अत्याचारों के कारण और समय पर चिकित्सा न मिल पाने के कारण हुई है। 29 मार्च से अब तब हमने ऑनलाइन समाचार पोर्टल और सोशल मीडिया में अंग्रेजी, कन्नड़, मराठी, तमिल, बंगाली, ओडिशा और मलयालम में प्रकाशित हुई ऐसी मौतें को इकट्ठा करके एक डेटाबेस तैयार किया है।"

डेटाबेस के अनुसार लॉकडाउन के दौरान भुखमरी और वित्तीय संकट (जैसे कृषि उपज बेचने में असमर्थतता) से 36, थकावट (घर जाने, राशन या पैसे के लिए कतार) से 24, समय पर चिकित्सा न मिलने की वजह से 38 लोगों की मौत हो गई। 80 लोगों ने आत्महत्या (संक्रमण का डर, अकेलापन) की।

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शराब न मिलने के लक्षणों से जुड़ी 45, पुलिस अत्याचार से 11, लॉकडाउन संबंधी अपराध की वजह से 12 और घर लौट रहे 51 प्रवासियों की मौत दुर्घटनों में हुई है। 41 अन्य मौतें भी हुई हैं जिनका कारण स्पष्ट नहीं है।

"लॉकडाउन के दौरान संक्रमण का डर, अकेलेपन, आने-जाने की स्वतंत्रता की कमी और शराब न मिलने के कारण हुई आत्महत्यों की एक बड़ी संख्या है। बहुत सी आत्महत्या प्रवासी मजदूरों की है जो परिवार से दूर फंस गये सा जिन्होंने संक्रमण की डर से जान दे दी।" वे आगे कहती हैं।

"वायरस शायद अमीर और गरीब में फर्क न करे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान हुई इन मौतों में गरीब तबके के ही लोग हैं। डेटाबेस में सबसे ज्यादा मौतें मजदूरों या उनके परिवार वालों की हुई है। बहुत सी मौतें नुकसान से परेशान किसानों की हैं। अगर इस संकट से उबरने में लोगों की मदद नहीं हुई तो मरने वालों की संख्या बढ़ती ही जायेगी।"

  

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