बहुत खास हैं ये राखियां, हर राखी में हैं कई देसी बीज, वर्षों तक अपने रिश्ते को हरा-भरा होते देखिए

Mithilesh DharMithilesh Dhar   14 Aug 2019 5:35 AM GMT

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परंपरा के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के प्यार को दर्शाता है। बहन भाई की कलाई पर धागा बांधकर अपनी सुरक्षा का वचन लेती है। प्यार नुमा धागा आपकी कलाई पर कुछ दिन तक होता है फिर हम उसे भुला देते हैं या धागा कहीं खो जाता है, लेकिन जरा सोचिए, आपकी कलाई पर बंधे धागे में कुछ ऐसा हो जिसे आप लंबे समय तक सींच सकें और भाई-बहन के प्यार के रिश्ते को फलते-फूलते हुए देखें तो ये कितना सुखद होगा। https://youtu.be/IJDYuulh78c

छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) के कुछ युवा महाराष्ट्र के किसानों से देसी कपास खरीदकर उससे छिंदवाड़ा के पारड़सिंगा में राखी बनवा रहे हैं। कपास महाराष्ट्र के अकोला और वर्धा जिले के किसानों से खरीदा जा रहा है। गौरतलब है कि भारत में पिछले दो दशकों में 2 लाख किसानों ने आत्महत्या की है। कपड़ा मिलों में काम करने वाले 1 लाख मजदूर अकेले मुंबई में बेरोजगार हो गए। ये हालात तब हैं जब कपड़ा उद्योग देश में सबसे तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में से एक है। महाराष्ट्र के आत्महत्या करने वाले सबसे ज्यादा कपास किसान होते हैं।

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भारत कपास की पैदावार में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। कपास की दो प्रजातियों का जन्म ही पूर्व एशिआई क्षेत्र में हुआ है। लेकिन यहां पैदा होने वाला 95% कपास अमेरीकी जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) होता है। कपास की ये प्रजाती देसी नहीं होती है और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी क्षति पहुंचाती है। किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाता और किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है। इसी सन्दर्भ में ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट (एनजीओ नहीं) ने खास राखियां तैयार की हैं। इस राखी को बांधने के बाद पहली बार आप सीधे उनसे जुड़ाव महसूस करेंगे जिन्होंने इसे तैयार किया है।

ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट को लीड कर रहीं श्वेता भट्टड ने बताया कि हमारे यहां बीटी कपास उगाया जाता है जो हमारी मिट्टी की उर्रवरक क्षमता को कम कर देता है। ऐसे में हमने महाराष्ट्र के उन किसानों से संपर्क किया जो देसी कपास की खेती करते हैं। हम अकोला और वर्धा के किसानों से कपास खरीदते हैं। फिर वर्धा में ही इसका धागा तैयार होता है और धागे को वहीं प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है। उसके बाद धागा छिंदवाड़ा आता है।

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राखी के रंगीन धागे फिर पहुंचते हैं पारड़सिंगा की नूतन द्विवेदी के हाथों में। नूतन बीएसी द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। वो आसपड़ोस के गाँव खैरीस पारड़सिंगा, संतूर, केलवड़ से करीब 50 महिलाओं को राखी बनाना सिखाती हैं। वहीं नूतन बताती हैं, "इनमें से ज्यादातर महिलाएं गृहणी हैं या खेतों में मजदूरी करती हैं।

राखी से मिलने वाले थोड़े से पैसे भी इनको काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। ये लोग इस बात से भी खुश हैं कि उन्हें अब अपने भाइयों के लिए बाजार से राखियां खरीदने की जरूरत नहीं है। इस साल 1000 हजार राखी बनाई जा चुकी है। खास बात ये है कि राखी ऑनलाइन उपलब्ध है। ये देश के किसी भी कोने से खरीदी जा सकती हैं। ये महिलाएं 4 से 5 हजार रुपए तक की कमाई भी कर चुकी हैं। नूतन के साथ सीए के छात्र गणेश ढोके आैर कोरियोग्राफर परविंदर सिंह भी महिलाओं की मदद कर रहे हैं।

राखी तैयार होने के बाद उसके बीच में भारतीय मूल का देसी बीज लगाया जाता हैं। ये बीज दाल, सब्जी या कपास के है। इसे आप अपने आंगन में या कहीं भी खुली जगह पर बो सकते है। इस बारे में श्वेता ने गांव कनेक्शन को बताया कि सभी राखियों में 20 से 30 छोटे-छोटे बीज होते हैं। ये देसी बीज सब्जियों और कुछ फलों के होते हैं। बेल के बीज को ज्यादा लगाया है क्योंकि ये ज्यादा फायदेमंद होता है। राखी का प्राकृतिक तरीके से बनाने का प्रयास किया गया है। ये इको फ्रेंडली है। प्लास्टिक का प्रयोग बहुत कम किया और बच्चों के लिए खास राखी बनाई गई है। इन राखियों की कीमत 20, 25 और 30 रुपए है।

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