मध्य प्रदेश: मशहूर बाग हस्तशिल्प कला हुई ठप, हज़ारों कारीगरों के सामने रोज़गार का संकट

धार जिले की ये कला देश-विदेश तक मशहूर, ठप्पा प्रिंट की इस कला से आस-पास के 30 से ज्यादा गाँवों हजारों कारीगर जुड़े हुए हैं, लेकिन पिछले चार महीनों से सब ठप पड़ा है।

Prem VijayPrem Vijay   13 July 2020 5:31 AM GMT

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मध्य प्रदेश: मशहूर बाग हस्तशिल्प कला हुई ठप, हज़ारों कारीगरों के सामने रोज़गार का संकट

धार (मध्यप्रदेश)। एक छोटे से गांव की हस्तशिल्प कला दुनिया में मशहूर है। चाहे वह यूरोप का बड़ा शहर मिलान हो या देश की राजधानी दिल्ली हो। इस प्रिंट से बने हुए कपड़ों को देश और दुनिया में खास पसंद किया जाता है। यहां पर बाग प्रिंट के कपड़े बनाने वाले करीब एक हजार से अधिक हस्तशिल्पी इस समय अपनी आजीविका के लिए परेशान हैं। इनकी गाड़ी पटरी पर आते नजर नहीं आ रही है, क्योंकि इन्हें कई तरह की मार झेलनी पड़ रही है। एक और आत्मनिर्भर होने की बात कही जा रही है तो वहीं अभी भी मजदूरों की कई परेशानी यथावत है।

मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल धार जिले के बाग ग्राम की बाग प्रिंट ठप्पा छपाई पर आधारित है। इसकी एक विशेषता यह है कि इस की छपाई और उसका कपड़ा बहुत ही ईको फ्रेंडली है। क्योंकि इसमें कपास के कपड़े का उपयोग होता है। साथ ही इसे प्राकृतिक रंगों से ही छापा जाता है।

दुनिया में विख्यात बाग प्रिंट को लेकर राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिल्प गुरु युसफ खत्री गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "बाग प्रिंट का कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था। कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मार्च में लॉक डाउन शुरू किया गया। उसके बाद से यह कला और उससे जुड़े हुए लोगों को बहुत प्रभाव पड़ा है। हमारा कपड़े तैयार करने का सबसे महत्वपूर्ण सीजन गर्मी का होता है। क्योंकि गर्मी के दिनों में नमी नहीं होती है। इसलिए कपड़े को तैयार करने के लिए मार्च-अप्रैल और मई का महीना महत्वपूर्ण रहता है। इस दौरान लॉक डाउन रहा और इसी कारण से एक हजार से अधिक मजदूरों और हस्तशिल्प इनका रोजगार ठप पड़ गया।"


कलाकार बिलाल खत्री कहते हैं, "बड़े शहरों में अब इसकी मांग कम हो गई है। बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल फिलहाल खुल नहीं पाए हैं। अभिजात्य वर्ग द्वारा इसकी अधिक खरीदारी की जाती है। और इस वर्ग द्वारा शॉपिंग मॉल और अन्य बड़े प्रतिष्ठान बंद होने के कारण खरीदारी नहीं की जा रही है। इसका असर हमारे आर्डर पर भी पड़ा हुआ है। ऑर्डर लगभग 25% रह गए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पूरा सीजन खराब हो गया। अब हम इन कपड़ों को बारिश में तैयार नहीं करसकते। बारिश के मौसम में बनाया जाता है तो कपड़े में नमी आ जाती है और वह रंग फैल जाता है। जिससे कि बहुत बड़ी दिक्कत आ जाती है। इसलिए यह एक हस्तशिल्प कला कोरोना वायरस संक्रमण के चलते परेशानी भोग रही है। भले ही अन लॉक हो गया है, लेकिन ना हम कपड़े तैयार कर सकते हैं और नहीं बड़े शहरों में अब इनकी मांग रह गई है। जबकि एक मोटे अनुमान के तहत सालाना अपने क्षेत्र में ही करीब 40 से 50 लाख रुपए का सीजन में ही कारोबार कर लेते थे।"

आसपास के आगर, उदियापुरा, महाकालपुरा, घटबोरी, बाकी, कदवाल, पिपरी, रायसिंहपुरा से लेकर करीब 25 से 30 गांव ऐसे हैं, जहां से मजदूर ग्राम बाग पहुंचते हैं। इस स्थान पर अपनी कला के माध्यम से ठप्पा छपाई करके देश और विदेश के बड़े शॉपिंग माल के लिए और वहां के अभिजात्य वर्ग के लिए एक महत्वपूर्ण कपड़ा तैयार करते हैं। जिसे वे बड़े रसूख के साथ में पहनते हैं, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। जिससे कि यह रसूखदार लोग बाग प्रिंट की खरीद नहीं कर पा रहे हैं। अब हालात यह है कि इस क्षेत्र के एक हजार से अधिक लोगों की आजीविका में स्थिरता आ गई है।


आगर गाँव के सुनील चौहान कहते हैं, "हर रोज में 5 किलोमीटर दूर साइकिल चलाकर हस्तशिल्प का काम करने बाग जाता हूं, लेकिन अब बहुत कम काम रह गया है। हालांकि अभी हमें कुछ दिन के लिए जरूर रोजगार दिया गया है। यह कब तक चल पाएगा ,यह कह पाना संभव नहीं है।"

ग्राम बाग के इमरान शाह का कहना है कि यह काम हमारा बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस काम में सरकार द्वारा हमें कोई मदद नहीं दी जा रही है। जबकि सरकार द्वारा हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ सोचा गया है, लेकिन इस हस्तशिल्प कला में काम करने वाले हजारों मजदूरों को लेकर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। क्षेत्र में पिछले 3 माह में हमने अपना जीवन कैसे गुजारा है, यह हम भी जानते हैं।

कलाकार कमल सिंह गहलोत ने बताया कि मैं भी इस कारोबार से जुड़ा हुआ हूं। इस कामकाज में हमें अच्छी खासी मजदूरी मिल जाती थी। एक सम्मानजनक जीवन जीने का मौका मिलता था, लेकिन जब से नई स्थितियां निर्मित हुई है तब से हमारा रोजगार प्रभावित हुआ है।


ठप्पा छपाई के विशेषज्ञ राजू दल ने बताया कि मैं ठप्पा से छपाई करने का अच्छा कलाकार हूं, लेकिन रोजगार का संकट सामने दिखाई दे रहा है। फिलहाल हमारे सेठ कुछ दिन के लिए काम दे रहे हैं। बारिश में काम ठीक से नहीं चल पाना है। ऐसी स्थिति में कई तरह की चिंताएं मन में सताती है ।

इधर इस संबंध में बाग प्रिंट के प्रशिक्षक और जिला पंचायत के कर्मचारी गुरूदत्ता काटे ने कहा कि यह बात सही है कि इस बार बाग प्रिंट के कपड़े कम तैयार हुए हैं। ऑर्डर की संख्या कम हुई है। देश-विदेश में जो शासन के माध्यम से मेले लगे जाते थे, वह भी नहीं लग पाए हैं। ऐसे में कारोबार प्रभावित हुआ है। एक बार फिर हम प्रयास कर रहे हैं कि इस दिशा में किसी तरह से नवीन प्रयोग किया जाए और हस्तशिल्पियों को मजबूती मिले।

जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी संतोष वर्मा ने बताया कि फिलहाल हस्तशिल्प के साथ-साथ अन्य लोग जुड़े हुए हैं, उन को मदद करने के लिए हम विचार कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र की जो योजना है, उनसे लाभान्वित किया जा रहा है। इस काम के मामले में फिलहाल जो बड़े शहरों में स्थितियां हैं, उसके कारण दिक्कत आ रही है।

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