"समान काम, समान वेतन" की आस में देश के एक करोड़ से अधिक संविदाकर्मी, इन्हें कब मिलेगा न्याय?

हम भी इस देश के नागरिक हैं, हमारा भी घर-परिवार है खर्चे हैं, सरकार के निर्देशों पर मेहनत से काम करते हैं। हमारे बच्चे अभाव में जी रहे हैं, आर्थिक दिक्कतें झेल रहे, हमारे साथी अवसाद में हैं और असमय मर रहे हैं। सरकार हमारी गलती क्या है ?: चिदानंद कश्यप (महासचिव अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी संघ )

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   8 July 2019 5:17 AM GMT

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समान काम, समान वेतन की आस में देश के एक करोड़ से अधिक संविदाकर्मी, इन्हें कब मिलेगा न्याय?

लखनऊ। "बीते वर्षों में बिहार, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में आर्थिक दिक्कतों के चलते तमाम रोजगार सेवकों की असामयिक मौत हो चुकी है। मनरेगा योजना के लगभग 13 साल पूरे हो रहे हैं। 2006 में मनरेगा योजना के तहत सरकार द्वारा गाँव के सबसे हाई मेरिट वाले युवक को भर्ती किया गया था, आज 13 साल बाद वो सभी युवा खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। रोजगार सेवक और मनरेगा कर्मियों को मिलने वाला न्यूनतम मानदेय दिहाड़ी मजदूर से भी कम है। वो भी कभी समय पर मिलता नहीं है। मनरेगा कर्मी पिछले 10 सालों से बराबर संघर्ष कर रहे हैं देश के अधिकांश युवा संविदा के जाल में फंस गया है। ये संविदा का जाल अब जानलेवा हो गया हैं।" ये कहना है अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार पंचायत रोजगार सेवक संघ के अध्यक्ष चिदानंद कश्यप का जो पिछले 10 वर्षों से मनरेगा कर्मियों के हक़ की लड़ाई के लिए अनवरत संघर्ष कर रहे हैं।

अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष विष्णु प्रताप सिंह का कहना है, "देखा जाए तो मनरेगा रोजगार की दृष्टि से अब तक की देश की सबसे बड़ी योजना है। मनरेगा का बजट साल दर साल बढ़ा है और अब तक मनरेगा में एक हजार से ज्यादा संशोधन हुए हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि सारी कार्ययोजना को जमीन पर लागू करने का जो अंतिम पायदान रोजगार सेवक हैं, जो की सरकार और जनता के बीच के अंतिम और महत्वपूर्ण कड़ी हैं उसके लिए सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया। ग्राम सचिव के स्तर के सारे कार्य करने वाला रोजगार सेवक को इतना भी मानदेय केंद्र और राज्य सरकार मिल कर नहीं दे रही है, जिससे उनके परिवार की जरुरी जरूरते पूरी हो सकें। संविदा की नौकरी में रोजगार सेवक की हालत गाँव के उस गरीब की तरह हो गयी है जिसें हर कोई दुत्कारता हैं और वो गाँव छोड़कर भाग नहीं सकता। इस बात को लेकर ही अनवरत संघर्ष किया जा रहा है और जरुरत पड़ी तो व्यापक स्तर पर आन्दोलन करेंगे।"

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मनरेगा (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) देश के आन्ध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एंड कश्मीर, झारखंड, कर्णाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, उड़ीसा,पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, यूपी, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना सहित अंडमान निकोबार, दादर एंड नगर हवेली, दमन दीव, गोवा, लक्षदीप, पांडिचेरी और चंडीगढ़ में लागू है।

पिछले दस वर्षों में सिर्फ यूपी में हुई 6 सौ से अधिक रोजगार सेवकों की मौत ...

उत्तर प्रदेश रोजगार सेवक संघ के अध्यक्ष भूपेश कुमार बताते हैं, "रोजगार सेवक आर्थिक रूप से परेशान हैं। पिछ्ले 10 वर्षोंं में पूरे प्रदेश में 6 सौ से अधिक रोजगार सेवकों की मौत हो चुकी है लम्बे समय तक सरकार की सेवा करने के बाद न तो उनके परिवारों के लिए किसी प्रकार की वित्तीय सहायता का प्रावधान है न ही बीमा दिया जाता है। सप्ताह में तीन से चार बार एक रोजगार सेवक को ब्लाक जाना पड़ता है उसका किसी प्रकार का कोई यात्रा भत्ता नहीं दिया जाता। फाइल, फोटो इत्यादि छोटे-छोटे खर्चो का भी भत्ता नहीं दिया जाता। मात्र 6 हजार रूपये का मानदेय उसके लिए भी संघर्ष, धरना प्रदर्शन और ज्ञापन देना पड़ता है। सपा सरकार में रोजगार सेवकों के मानदेय को दो हजार रूपये मासिक से बढाकर 6 हजार किया गया था उसके बाद से मानदेय में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। चुनाव के समय से अब तक भाजपा के बड़े नेताओ द्वारा सिर्फ आश्वाशन दिया गया है। राज्य से लेकर केंद्र तक इस समय भाजपा की सरकार है उतर प्रदेश के रोजगार सेवकों ने जीत जी बधाई देते हुए एक लाख इक्कीस हजार पोस्ट कार्ड मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भारत सरकार को इस आग्रह के साथ भेजा है की वादे के अनुरूप वो संविदाकर्मियों की समस्याओं का निराकरण करेंगे।

कांग्रेस सरकार ने पूरा नहीं किया रोजगार सेवकों से किया वायदा ...

मध्य प्रदेश के ग्राम रोजगार सहायक संघ के प्रदेश अध्यक्ष रोशन सिंह परमार बताते हैं ,"ग्रामीण विकास विभाग मध्य प्रदेश द्वारा पहले ये आश्वासन दिया गया था की ग्राम पंचायत सेवकों को पंचायत के नियमित कर्मचारी के वेतन का 90 प्रतिशत वेतन दिया जायेगा लेकिन बाद में यह लागू नही किया गया। साल 2013 में मध्य प्रदेश सरकार ने ग्राम रोजगार सेवक को सहायक सचिव घोषित किया गया था जिसके हिसाब से ग्राम रोजगार सेवक की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती सिर्फ उसका निलंबन किया जा सकता है लेकिन उसका भी पालन नहीं किया गया।

रोशन सिंह परमार का कहना है कि विधान सभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में रोजगार सेवकों को सरकार बनने के तीन महीनें के अंदर नियमित करने का प्रलोभन दिया था सरकार बन भी गयी और सरकार बनें तीन महीने हो भी गये लेकिन कांग्रेस सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी नहीं मानती सरकार ...

नार्थ ईस्ट के मनरेगा इम्प्लाई एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और आल इंडिया मनरेगा एसोसिएशन के जॉइंट सेक्रेटरी कुकिल बरोह का कहना है "जो नियमित कर्मचारी है उन्हें सरकार सारी सुविधाए देती हैं उन्हें टीए,डीए दिया जाता है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह की नियमित कर्मचारी के समकक्ष काम करने के बावजूद को संविदा कर्मियों को कोई सुविधाए नहीं दी जाती जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार संविदा कर्मियों को "समान काम,समान वेतन " मिलना चाहिए लेकिन नार्थ ईस्ट में असम, अरुणाचल, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, सिक्क्किम, नागालैंड कहीं भी सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश आज तक लागूं नही किया गया। देश के जो युवा संविदा की नौकरी के जाल में फ़स गये है उनका भविष्य भी अन्धकार में हैं।लोग डिप्रेस होकर मर रहे हैं।

तीस दिन काम करने के बाद कितने पैसे मिलेंगे पता नही.....ये रोजगार गारंटी है...

महाराष्ट्र ग्राम रोजगार सेवक के प्रदेश अध्यक्ष शेख मलंग उस्मान बताते है "मेरे तरफ क्या है की महाराष्ट्रा में 27 हजार ग्राम पंचायत है जिसमें 25 हजार ग्राम पंचायत में ग्राम रोजगार सेवक काम कर रहा है इधर बोले तो ग्राम रोजगार सेवक को काम पर सवा दो टका कमीशन मिलता है। मतलब क्या की बरोबर पता नही रहता इधर की महीने के लास्ट में क्या मिलेगा। शुरुआत में क्या की गाँव पंचायत का जो पढने लिखने में अच्छा लोग था उसका भर्ती मनरेगा में किया गया था तब ये नहीं पता था की की ये नौकरी में आकर दो वक्त की रोटी का भी प्रोब्लम हो जायेगा। अभी क्या है की इधर नौकरी करते हुए 13 साल हो गया है उम्र बढ़ गया है अब कोई दूसरी नौकरी अपन लोग मिलेगी क्या ? संविदा का जो रूल होता है उसको देखे तो अब तक सरकार को अपन लोग को नियमित करना चाहिए था पर ऐसा हुआ नहीं।

हरियाणा के ग्राम रोजगार सहायक संघ के अध्यक्ष बूटा राम बताते हैं "हरियाणा में लगभग 13 सौ रोजगार सेवक काम कर रहें हैं। जब मनरेगा में भर्ती हुई थी तो रोजगार सेवक का मानदेय दो हजार रूपये मासिक निर्धारित किया गया था और साथ ही ये भी था कि जिस महीने में अगर कोई काम नहीं होता है तो ग्राम रोजगार सेवक को एक हजार रूपये का न्यूनतम मानदेय दिया जायेगा जो की नान वोर्किंग माह का मानदेय अभी तक रोजगार सेवकों को नहीं दिया गया। रोजगार सेवकों की हालत हरियाणा में बहुत खराब है साल 2015 से 17 तक का बकाया मानदेय लेने के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ें तब जाकर तीन साल बाद उसका भुगतान हुआ और उसमें भी सिरसा जिलें का भुगतान अभी किया नही गया हैं।

वो आगे कहते है की संविदा नियमों के अनुसार अब तक रोजगार सेवकों को नियमित होना चाहिए था जैसे हिमाचल प्रदेश सरकार ने किया है। हरियाणा के नेता, प्रशाशनिक अधिकारी सबके चक्कर काट-काट कर थक चुके है लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। तेरह साल तक काम कराने के बाद अब अधिकारी रोजगार सेवक को नौकरी से निकालने के लिए नये नये बहाने खोज रहे है।

      

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