देश की दो-तिहाई आबादी वाले ग्रामीण भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। नई दिल्ली स्थित पर्यावरण अनुसंधान संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के अनुसार मई 2021 में देश में दर्ज किए गए कोरोना संक्रमण के हर दूसरे मामले और मौत भारत के ग्रामीण जिलों से हैं।
सीएसई की नई रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2021’ इस बात पर ध्यान दिलाती है कि मई के पहले 26 दिनों में, वैश्विक स्तर पर हर दूसरे नए कोविड-19 मामले और संक्रमण के कारण हर तीसरी मौत भारत में हुई है। इसका मतलब यह भी है कि पिछले महीने (मई) दुनिया में दर्ज किया गया हर चौथा मामला ग्रामीण भारत का था।
गांव कनेक्शन देश भर के गाँवों में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों पर लगातार रिपोर्ट कर रहा है। एक तरफ, ग्रामीण भारत में कोविड के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी, वहीं दूसरी तरफ वहां टेस्ट सुविधाओं, कोविड वार्डों और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी थी।
ग्रामीणों और स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का दावा है कि ग्रामीण भारत में दर्ज की गई कोविड मौतों की संख्या वास्तविक मौतों की तुलना में बहुत कम है। कुछ जगहों पर जिला प्रशासन ने दावा किया कि वहां हो रही मौतें प्राकृतिक थीं, वहीं परिवार के सदस्यों का कहना था कि मृतक को कोविड के लक्षण थे।
परीक्षण की कमी और इसके साथ ही डर के कारण, अन्य बातों के अलावा, ग्रामीण जिलों में बढ़ती मौतों के वास्तविक कारण का पता लगाना मुश्किल है। फिर भी, उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है।
गांवों में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी
ग्रामीण भारत में कोविड के हमले को संभालना बेहद मुश्किल है क्योंकि वहां बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है।
भारत में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली तीन स्तरों पर संचालित होती हैं – उप-केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी)। एक उप-केंद्र 5,000 लोगों की आबादी के लिए होता है, वहीं एक पीएचसी में 30,000 लोग और सीएचसी के अंतर्गत 120,000 लोग आते हैं।
हालांकि, ‘स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2021’ रिपोर्ट ग्रामीण स्वास्थ्य बुनियादी ढांचों की कमी को दर्शाती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2020 तक उप-केंद्र और पीएचसी स्तर पर 14.1 प्रतिशत एएनएम (सहायक नर्स दाइयों), 35 प्रतिशत पुरुष स्वास्थ्य कर्मियों और 7 प्रतिशत डॉक्टरों की कमी है।
सीएचसी स्तर पर स्थिति और भी खराब है। आंकड़ों के मुताबिक यहां 78.9 फीसदी सर्जन, 69.7 फीसदी प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, 78.2 फीसदी चिकित्सक और 78.2 फीसदी बाल रोग विशेषज्ञों की कमी है। इसके मुताबिक ग्रामीण भारत में विशेष स्वास्थ्य देखभाल के लिए सीएचसी स्तर पर 76.1 प्रतिशत विशेषज्ञों की कमी है।
29 मई को गांव कनेक्शन ने एक रिपोर्ट में बताया था कि ग्रामीण उत्तर प्रदेश में कई उप-केंद्र और पीएचसी की स्थिति कितनी बदहाल है। रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य केंद्रों के भवन जर्जर हो चुके हैं, छतें टपक रही हैं, दरवाजे गायब हैं और वहां पर्याप्त कर्मचारियों का भी अभाव है।
सीएसई की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को कम से कम 38 प्रतिशत अधिक सीएचसी की जरूरत है, जो कि ग्रामीण स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे का पहला स्तर है। यहां ग्रामीण आबादी को विशेषज्ञ डॉक्टरों और रेडियोग्राफरों की सुविधा मिल पाती है।
यह रिपोर्ट बताती है कि अखिल भारतीय स्तर पर देश को 24 प्रतिशत अधिक उप-केंद्रों और 29 प्रतिशत अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की आवश्यकता है। वर्तमान में, ग्रामीण स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों और विशेषज्ञों जैसे लैब तकनीशियनों और रेडियोग्राफरों की भारी कमी है।
गांव कनेक्शन ने 6 मई को जिला अस्पतालों में वेंटिलेटर की उपलब्धता को लेकर भी एक पड़ताल किया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक जिला अस्पतालों में या तो वेंटिलेटर नहीं हैं या हैं भी तो वे अपर्याप्त और खराब हैं। इसके साथ ही अस्पतालों में उन्हें संचालित करने के लिए प्रशिक्षित तकनीशियनों की भी भारी कमी है।
मानव संसाधनों की भारी कमी
सीएसई द्वारा किए गए डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि पुडुचेरी और मिजोरम में सीएचसी स्तर पर एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। गुजरात और त्रिपुरा में सीएचसी में ऐसे डॉक्टरों की 99 फीसदी कमी है। वहीं मेघालय और मध्य प्रदेश में 96 प्रतिशत कमी है।
अधिकांश भारतीय राज्यों में भी सीएचसी में रेडियोग्राफरों की कमी है। इस मामले में बिहार में सबसे ज्यादा 95 फीसदी, केरल में 94 फीसदी, नागालैंड में 86 फीसदी और उत्तराखंड में 84 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक अखिल भारतीय स्तर पर सीएचसी में रेडियोग्राफरों की 56 प्रतिशत कमी है।
इसी तरह पीएचसी में डॉक्टरों की भी भारी कमी है। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में पीएचसी में 69 फीसदी डॉक्टरों की कमी है और वहीं छत्तीसगढ़ में 51 फीसदी की कमी है। उत्तर प्रदेश में पीएचसी डॉक्टरों की केवल 4 फीसदी कमी है। अखिल भारतीय स्तर पर पीएचसी डॉक्टरों की 7 फीसदी कमी है।
इस बीच, पीएचसी और सीएचसी दोनों में लैब तकनीशियनों की भी कमी है, जिसमें हिमाचल प्रदेश (93 प्रतिशत) में सबसे अधिक कमी है, इसके बाद उत्तराखंड में 81 प्रतिशत और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 80 प्रतिशत की कमी है।
अखिल भारतीय स्तर पर सीएचसी और पीएचसी में लैब टेक्नीशियन की 35 फीसदी कमी दर्ज की गई है।
यह बात सबको पता है कि ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे में कई कमियां हैं। पिछले महीने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान यह कमी और उभर कर सामने आई। समय रहते इन्हें दुरुस्त करने की बेहद जरूरत है।
अनुवाद- शुभम ठाकुर