इस बार मनाइए हर्बल होली , खुद घर में ऐसे बना सकते हैं रंग

Deepak AcharyaDeepak Acharya   28 Feb 2018 7:18 PM GMT

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इस बार मनाइए हर्बल होली , खुद घर में ऐसे बना सकते हैं रंगजानिए कैसे मना सकते हैं हर्बल होली।

रंगों और खुशियों का त्यौहार होली अक्सर कई परिवारों के लिए बेरंग और दुखदायी हो जाती है, वजह है खतरनाक रासायनिक रंगों का दुष्प्रभाव। होली नजदीक है और इस रंग-बिरंगे त्यौहार की खुशियाँ हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। जहाँ लोगों में इस त्यौहार को लेकर उत्साह है वहीं एक चिंता यह भी कि कहीं खतरनाक रंग इस त्यौहार की खुशियों के रंग में भंग ना डाल दें।

जहाँ पुराने समय में होली और रंगों का संबंध सीधे प्रकृति से था, सादगी और समन्वय से था, आज इस त्यौहार में अक्सर रंग में भंग होता देखा जा सकता है, वजहें अनेक हैं लेकिन आज हम चर्चा करेंगे रासायनिक घातक रंगों के दुष्प्रभावों और हर्बल रंगो को घर बैठे तैयार करने की, उनके इस्तमाल करने की। आखिर क्या हैं ये हर्बल रंग?

क्या इन्हें घर पर तैयार किया जा सकता है? गाँव कनेक्शन के माध्यम से आज इस लेख में जानिए होली के रंगों को और भी रंगीन करने की जानकारी, ईको-फ़्रेंडली होली की तैयारी और अनेक देसी नुस्खे जिनका इस्तमाल कर आप खतरनाक रासायनिक रंगों की हमेशा के लिए विदाई कर सकते हैं, वो भी बिल्कुल कम खर्च पर या लगभग मुफ़्त।

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बाजार में बिकने वाले अधिकांश रंग इंडस्ट्रियल डाई या ओक्सिडाईज्ड मेटल्स होते हैं जो कि अक्सर इंजन तेल में मिलाकर बेचे जाते हैं। हरा रंग कोपर सल्फ़ेट से, बैंगनी रंग क्रोमियन आयोडाईड से, सिल्वर रंग एल्युमिनियम ब्रोमाईड से और काला रंग लेड ओक्साईड से तैयार किया जाता है और ये सभी रंग हमारे शरीर के लिए अत्यंत घातक होने के साथ-साथ पर्यावरण पर अपना दुष्प्रभाव छोडनें में भी कमी नहीं करते।

जहाँ एक ओर ये रंग हमारे शरीर पर त्वचा रोग, एलर्जी पैदा करते हैं वहीं दूसरी तरफ आँखों में खुजली, लालपन, अंधत्व के अलावा कई दर्दनाक परिणाम देते हैं और इन रंगों की धुलाई होने पर ये नालियों से बहते हुए बडे नालों और नदियों तक प्रवेश कर जाते है और प्रदूषण के कारक बनते हैं। रसायनों से तैयार रंग जैसे काला, किडनी को प्रभावित करता है, हरा रंग आँखों में एलर्जी और कई बार नेत्रहीनता तक ले आता है, वहीं बैंगनी रासायनिक रंग अस्थमा और एलर्जी को जन्म देता है, सिल्वर रंग कैंसरकारक हैं तो लाल भी त्वचा पर कैंसर जैसे भयावह रोगों को जन्म देता है। जब इतना घातक है रासायनिक रंगो का इस्तमाल तो फिर क्या ऐसी युक्तियां उपलब्ध जिनके जरिए त्यौहार की खूबसूरती भी बची रहे और हमारा शरीर भी..जी हाँ, इस हेतु हर्बल रंगों का दोहन किया जाना जरूरी है।

वैदिक काल से ही प्राकृतिक जड़ी- बूटियों और उनके अंगों का इस्तमाल कर रंग तैयार किए जाते रहे हैं और इन प्राकृतिक रंगों से खूब होली खेली जाती रही है। आयुर्वेद में तो बाकायदा रंगों को तैयार करने का जिक्र किया गया है और हिन्दुस्तान के सुदूर प्राकृतिक क्षेत्रों में आज भी ग्रामीणजन और वनवासी पे़ड़-पौधों का इस्तमाल कर रंगों को तैयार करते हैं और होली का त्यौहार और ग्रीष्मकाल के आगमन का जश्न मनाया जाता है।

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इस लेख के जरिए एक कोशिश है आपको प्रकृति के करीब लाने और होली त्यौहार के वास्तविक आनंद लेने की, ताकि त्यौहार ना सिर्फ़ समाज में खुशियाँ लेकर आए अपितु आप माँ प्रकृति को भी किसी तरह से दुष्प्रभावित ना करें।आईये जानते हैं सूखे और तरल रंगों की तैयारी के बारे में और समझें कि किस तरह से पेड़-पौधों और उनके अंगो का उपयोग कर हम रंगों को घर बैठे तैयार कर सकते हैं।

हर्बल लाल रंग

तरल लाल रंग बनाने के लिए सिंदुरी के बीजों को लेकर पानी में उबालिये और जब यह आधा शेष बचे तो इसे छान कर रंग की तरह इस्तमाल किया जा सकता है। सिंदूरी के सूखे बीजों को एकत्र कर मिक्सर ग्राइंडर में पावडर तैयार करें, यह भी एक जोरदार लाल रंग की तरह काम करता है। लाल चंदन के चूर्ण से महिलाएं अक्सर फ़ेस पैक्स आदि तैयार करती हैं और इसका इस्तमाल गुलाल की तर्ज पर किया जाए तो गजब काम करता है।

यह रंग ना सिर्फ आपके परिजनों का चेहरा लाल करेगा अपितु इसका शरीर पर स्पर्श होना औषधीय महत्व का होता है। यह त्वचा पर सूक्ष्मजीवी संक्रमण को दूर करने में मदद करता है। गुड़हल के खूब सारे ताजे लाल फूलों को एकत्र कर लें और छाँव में सुखा लें और बाद में इन्हें कुचलकर इनका पावडर तैयार कर लें और इस तरह तैयार हो जाएगा सूखा लाल रंग। यह लाल रंग बालों के लिए एक जबरदस्त कंडिशनर होता है साथ ही गुड़हल बालों के असमय पकने को रोकता है और बालों का रंग काला भी करता है।

रंग का त्योहार है होली, लेकिन उसे बदरंग न होने दें।

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गुड़हल के अलावा आप सिंदुरी के बीजों से भी सूखा लाल रंग तैयार कर सकते हैं। तरल (लिक्विड) लाल रंग को तैयार करने के लिए लाल चंदन (50 ग्राम) को 10 लीटर पानी में डालकर 20 मिनट तक उबाला जाए और बाद में इसमें लाल अनार के छिल्के लगभग 100 ग्राम डाल दिये जाएं और पुन: 10 मिनिट तक उबाला जाए और इस तरह तैयार हो जाता है लाल रंग का पानी। लाल रंग तैयार करने के लिए एक और पारंपरिक उपाय है जिसमें एक लीटर पानी में हल्दी का चूर्ण (लगभग 2 चम्मच) डाल दीजिए और लगभग आधा चम्मच पान के साथ खाए जाने वाला चूना डाल दिया जाए, पानी का रंग जबरदस्त लाल हो जाएगा।

हर्बल हरा रंग

हरे सूखे रंग को तैयार करने के लिए हिना या महेंदी का सूखा चूर्ण लिया जाए और इतनी ही मात्रा में कोई भी आटा मिला लिया जाए। सूखी मेंहदी चेहरे पर अपना रंग नहीं छोड़ती और इसके क्षणिक हरे रंग को आसानी से धोकर साफ किया जा सकता है। ध्यान रहे, मेंहदी को पानी में ना डाला जाए वर्ना यह अपना रंग कुछ समय के लिए शरीर पर छोड़ सकती है, यदि ऐसा हो भी जाए तो कोई नुकसान नहीं।

लोग अपने बालों को रंगने के लिए महँगे सलून या ब्यूटी पार्लर तक जाते हैं, यदि होली के त्यौहार पर यह काम मुफ़्त में हो जाए तो इससे बेहतर और क्या? मेंहदी के हरे सूखे रंग को खूब रगड़िये अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के सिर पर और मजे लीजिए होली के। ठीक इसी तरह गुलमोहर की ताजी हरी पत्तियों, गेंहूँ की ताजी हरी पत्तियों या तुलसी की ताजी हरी पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर पावडर तैयार कीजिए और तैयार हो जाएगा हर्बल हरा सूखा रंग।

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हरे रंग के पानी को तैयार करने के लिए एक लीटर पानी में हल्की सी मात्रा में मेंहदी (लगभग 1 चम्मच) अच्छी तरह से मिला लिया जाए और इसमें पालक, धनिया, पुदिना और तुलसी की ताजी हरी पत्तियों के रस को मिलाया जाए, औषधीय गुणों से भरपूर ये हरे रंग आपके त्यौहार का मजा दुगुना जरूर कर देंगे।

हर्बल गुलाबी रंग

एक बीट रूट या चुकन्दर लीजिए, बारीक बारीक टुकड़े करके एक लीटर पानी में डालकर पूरी एक रात के लिए रख दीजिए और सुबह गुलाबी रंग तैयार हो जाएगा। प्याज के छिलकों को आधा लीटर पानी में उबाला जाए और एक रात पानी में छिलकों को रहने दिया जाए और सुबह छानकर इसका इस्तमाल रंग के तौर पर किया जाए। हालाँकि इस पानी में प्याज की हल्की सी गंध आ सकती है लेकिन जब आपके स्वास्थ्य और सुरक्षा की बात हो तो इन गंध को सहने में बुराई नहीं।

हर्बल केसरिया रंग

ग्रामीण भारत में टेसू के फूल, जिन्हें पलाश या ढाक भी कहते हैं, का केसरिया रंग का भरपूर इस्तमाल किया जाता है। इसके फूलों को दो दिनों तक पानी में डुबोकर रखा जाता है और छानकर प्राप्त पानी को केसरिया रंग के रूप में उपयोग में लाया जाता है। अनेक इलाकों में फूलों को पानी में डालकर उबाला जाता है और छानकर ठंडा होने पर रंग के तौर पर उपयोग में लाया जाता है। वैसे मध्यप्रदेश के अनेक इलाकों में लोग इसी तरह से सेमल के फूलों को उबालकर केसरिया रंग तैयार करते हैं। इसी तरह डाँग गुजरात में आदिवासी हरश्रिंगार के फूलों को उबालकर केसरिया रंग बनाते हैं।

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हर्बल पीला रंग

पीला सूखा रंग तैयार करने के लिए हल्दी एक चम्मच और बेसन (2 चम्मच) को मिलाकर सूखा पीला रंग तैयार किया जाता है, ये पीला रंग ना सिर्फ आपकी होली रंगनुमा करेगा बल्कि चेहरा और संपूर्ण शरीर कांतिमय बनाने में मदद भी करेगा क्योंकि त्वचा की सुरक्षा के लिए हल्दी और बेसन के गुणों से आप सभी चिरपरिचित हैं। बेसन की उपलब्धता ना होने पर गेंहूँ, चावल या मक्के के आटा का उपयोग किया जा सकता है।

इसके अलावा पीले रंग का पाउडर तैयार करने के लिए गेंदा, अमलतास या पीली सेवंती के फूल छाँव में सुखा लिए जाएं और इस चूरे के साथ बेसन की दुगुनी मात्रा मिलाकर पीले रंग का पावडर तैयार किया जा सकता है। पीला तरल रंग तैयार करने के लिए 4 चम्मच हल्दी को एक लीटर पानी में डालकर उबाल लिया जाए और इसमें लगभग 50-75 पीले गेंदे के फूल डालकर रात भर डुबोकर रखा जाए, अगली सुबह हर्बल पीला तरल रंग तैयार रहेगा और फिर खेलिये खूब होली इस पीले रंग से।

रसायनिक युक्त रंगों का न करें प्रयोग। फोटो गांव कनेक्शऩ

हर्बल भूरा रंग

हर्बल भूरा रंग बनाने के लिए कत्थे को उपयोग में लाया जा सकता है। कत्थे को पानी में मिलाकर किसी मिट्टी के बर्तन में डालकर रात भर रख दिया जाए और सुबह इस पानी को अच्छी तरह से घोल लिया जाए, भूरा तरल रंग तैयार हो जाएगा।

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हर्बल काला रंग

आँवला के फलों को लोहे के किसी पात्र में उबाला जाए और इस उबले पानी को सारी रात इसी बर्तन में रहने दिया जाए, सुबह होते ही यह पानी काला रंग लिए होगा और इसका इस्तमाल रंग के तौर पर किया जा सकता है।

होली त्यौहार के दौरान प्राकृतिक रंगों का उपयोग वैदिक काल से होता रहा है, रंगों के जरिए होली मनाने का तात्पर्य सामाजिक मेल-मिलाप के अलावा स्वास्थ्य और सेहत की बेहतरी भी रहा है। होली के आते आते ठंड की विदाई हो जाती है और गर्मियों की शुरूआत और ऐसे मौसम में अक्सर सूक्ष्मजीवों का आक्रमण तेज हो जाता है और यदि इस समय तुलसी, हल्दी, बेसन, चंदन, पलाश और अमलतास जैसे पौधों के अंगों का रंगों के रूप में इस्तमाल हो तो काफी हद तक संक्रमण से बचाव में मदद मिलती है।

पौधे से प्राप्त रंग स्वास्थ्य के लिए उत्तम होने के साथ-साथ पर्यावरण मित्र भी होते हैं, इसके उपयोग से त्वचा पर किसी भी तरह की एलर्जी, संक्रमण या रोग नहीं होते हैं और तो और ये सेहत की बेहतरी में मदद जरूर करते हैं। तो आईये, प्रण करें इस होली पर, हर्बल रंगों का इस्तमाल हो और ऐसी होली मनायी जाए कि हर जड़ी-बूटियों के इन रंगों से रंग जाए, हर कोई रंगों को हँसकर स्वीकारे और त्यौहार के साथ-साथ आपकी सेहत भी रंग-बिरंगी हो जाए।

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