किसान नेताओं ने कहा, सरकार का छठा बजट किसान के ज़ख्म पर नमक छिड़कने जैसा

Divendra SinghDivendra Singh   2 Feb 2019 6:38 AM GMT

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किसान नेताओं ने कहा, सरकार का छठा बजट किसान के ज़ख्म पर नमक छिड़कने जैसा

हरियाणा के शिकोहपुर गाँव में केंद्रीय बजट सुनने और उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए एकत्रित हुए नौ राज्यों से आए किसान और किसान नेताओं ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को किसानों के ज़ख्म पर नमक छिड़कने जैसा बताया।

बजट भाषण में यह दावा करते हुए कि किसानों को अब साहूकार के पास नहीं जाना होगा और आमदनी दोगुनी करने की दिशा में यह बड़ा कदम है, सरकार ने हर किसान परिवार को वार्षिक 6,000 रुपए देने की घोषणा की है।

रायुथु स्वराज्य वेदिका के किरण कुमार विस्सा ने कहा, "तेलंगाना सरकार के रायुथु बन्धु योजना के तहत हर किसान परिवार को प्रति एकड़ 10,000 रुपए की सहायता मुहैया कराई जाती है, जिसका मतलब कि पांच एकड़ के किसान को सलाना 50,000 रुपए मिल जाते हैं, जिससे लागत मूल्य में सहयोग हो जाता है। यह दावा करना कि 6,000 रुपए की सहायता से किसानों को साहूकारों के पास नहीं जाना पड़ेगा, ये किसानों के साथ मज़ाक है। सामान्यतः एक छोटे किसान की वार्षिक लागत एक लाख रुपए की है।"

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने कहा, "पिछले साल से ही योजना लागू करने के सरकार के निर्णय से साफ है कि सरकार चुनाव से पहले किसानों के खाते में 2,000 रुपए जमा कराना चाहती। ये किसानों का वोट खरीदने की भद्दी कोशिश है। यह किसानों का दोगुना अपमान है कि सरकार समझती है कि किसानों के वोट इतने सस्ते हैं। किसान निश्चित ही इस अपमानजनक सौदे को अस्वीकार कर देंगें।"

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इस घोषणा में और भी कमियां हैं। बटाईदार किसान, खेतिहर मजदूर, लाखों वैसे किसान जिनके पास जमीन का पट्टा नहीं है, विशेषतः आदिवासी किसान और वर्षा वाले क्षेत्रों के भी पांच एकड़ से अधिक भूमि रखने वाले किसानों को इस योजना के दायरे से बाहर रखा गया है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि इतने कम समय में, किसानों के डाटाबेस के अभाव में इस योजना को कैसे लागू किया जा सकेगा।

ब्याज़ दर कम करने की वाली घोषणा भी प्रभावहीन है क्योंकि यह केवल प्रकृतिक आपदा के दौरान लिए गए लोन पर लागू होगी। ऐसी स्थिति में जब सरकार आपदा स्वीकार करने में भी हिचकती है, इस योजना का लाभ 1% किसानों तक भी पहुंचना मुश्किल लग रहा है।

जय किसान आंदोलन के अविक साहा ने कहा "मंत्री ने कहा कि सरकार गौरक्षा के लिए कुछ भी करेगी और उन्होनें इसके लिए एक आयोग का भी गठन किया पर सरकार गायों को पालने वाले किसानों के लिए क्या करेगी, इस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने गौरक्षकों के आतंक व सरकार की तर्कहीन नीतियों से उपजे आवारा पशुओं की समस्या और किसानों को उससे होने वाले नुकसान को स्वीकार करना तक मुनासिब नहीं समझा।" पशुपालन और डेयरी फार्मिंग को दिया जाने वाला सरकार का सहयोग नाकाफ़ी रहा है। सरकार ने 2017-18 में डेयरी इंफ्रस्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड के लिए 10,881 करोड़ रुपए की घोषणा की थी, जिसमें से केवल 440 करोड़ रूपए अभी तक वितरित किए गए हैं।

स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के योगेश पांडेय ने कहा कि गन्ना किसानों पर 11,000 करोड़ रुपए से अधिक बकाया राशि की सरकार ने चर्चा तक नहीं की। सरकार किसानों की वास्तविकता से पूरी तरह अनभिज्ञ है।

जब इस सरकार का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, किसानों को आशा थी कि सरकार नई योजनाओं की घोषणा के बजाए अपनी पिछली योजनाओं के क्रियान्वयन पर सही परिणामों की घोषणा करेगी। सरकार के द्वारा ही जारी किए गए आँकड़ों से स्पष्ट है कि सरकार अपनी पिछली योजनाओं के रिपोर्ट कार्ड से इतना घबराई हुई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लक्ष्य देशभर के 50% फार्म होल्डिंग तक पहुंचना था पर उसका दायरा 2016-17 के 29% से सिकुड़कर 2017-18 में 24% रह गया। 22,000 ग्रामीण हाटों को सुविधाओं से लैश कृषि बाजारों में बदलना 2018-19 के बजट में प्राथमिकता के रूप में चिन्हित किया गया था पर अभी तक केवल 85 हाटों पर काम पूरा हो सका है और 180 हाटों पर काम चल रहा है। ऊपर वर्णित डेयरी डेवलपमेंट फण्ड के अतिरिक्त 2430 करोड़ के लागत की एक पशुपालक विकास फंड की घोषणा की गई थी, जिसका गठन 1 साल बीत जाने पर भी नहीं किया गया है।

किसानों को अहम सवालों, जैसे आमदनी, फसलों के मूल्य, बीमा, ऋणमुक्ति, इत्यादि पर बजट में कोई जवाब नहीं मिला। सरकार को 6 साल में किसानों की आमदनी दुगुनी करने की घोषणा किए हुए 3 साल हो गए हैं, पर सरकार ने आधा समय बीत जाने पर यह नहीं बताया कि आमदनी में अब तक कितनी वृद्धि हुई है। मंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में 'ऐतिहासिक' वृद्धि की बात तो की पर यह नहीं बताया कि इस सीजन में किसानों को क्या मूल्य मिला। जब प्रधानमंत्री आशा योजना का लक्ष्य सभी किसानों तक न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ पहुंचाना था तो सरकार ने उस योजना के लिए केवल 1500 करोड़ क्यों जारी किए? केवल मध्यप्रदेश में 20% से कम किसानों तक भावान्तर योजना का लाभ पहुंचाने में 1800 रूपए खर्च हुए। क्यों फसल बीमा के तहत आने वाले किसानों की संख्या लगातार घटती जा रही है जबकि इस पर होने वाला खर्च गुणा बढ़ा है?

किसान ऋण चक्र से कैसे मुक्त हो सकते हैं? क्यों किसान आत्महत्या के आंकड़ों को 2015 के बाद से जारी नहीं किया गया है। अन्त में, चुनावी वर्ष में बड़ी घोषणा की आशा जगाकर 2019-20 के बजट ने बजट सुनने और उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए शिकोह, हरयाणा में एकत्रित हुए किसानों और किसान नेताओं को बहुत निराश किया। उपस्थित लोगों में नौ राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड के प्रतिनिधि शामिल थे।

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