किसान नेताओं और संगठनों ने बजट को बताया निराशाजनक

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किसान नेताओं और संगठनों ने बजट को बताया निराशाजनक

देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2020-21 का आम बजट पेश किया। बजट में उन्होंने किसानों के लिए 16 सूत्रीय फॉर्मूला भी पेश किया है। पढ़िए कृषि बजट को लेकर देश भर के कृषि विशेषज्ञों ने अपनी क्या राय रखी।

गांव के लिए बैलगाड़ी और उद्योगपतियों के लिए रेल गाड़ी : केदार सिरोही

इस साल का बजट हर साल के बजट की तरह आशावान दिखाने की पुरजोर कोशिश की गई लेकिन पिछले वर्ष के बजट का मूल्यांकन औऱ सरकार की पूंजीवादी सोच को देखकर तो निराशा हाथ लगी है। यह बजट अरमानों को कुचलने और मोदी सरकार की कथनी एवम करनी में अंतर का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने वाला है, इस बजट से ग्रामीण औऱ शहरी अर्थव्यवस्था में खाई पैदा करने वाला बजट है क्योकि इस बजट में पूरे बजट में 9.3% ही ग्रामीण भारत को दिया गया है जबकि 70% जनसंख्या का हिस्सा है, ग्रामीण क्रयशक्ति में 9% गिरावट के कारण भारत के साथ साथ विश्व मे मंदी के बादल नजर आने लगे है इसलिए इस बजट में किसानों को आय सुनिश्चित करने का प्रावधान होना था जो दिखाई नही दिया।

उन्होंने आगे कहा देश मे जिस तरह पूंजी का एकत्रीकरण सीमित लोगो के हाथों में जा रहा ऐसे में देश मे किसानों को मजबूत करने के लिए सहकारिता की तरफ ध्यान देना था, वेयरहाउस प्रवंधन, MSP खरीदी, ग्रामीण रोजगार, पलायन, किसान आत्महत्या, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना,सॉइल हेल्थ कार्ड, ई-नाम,डेरी, उद्यानिकी, कृषि अभियांत्रिकी, गुणवत्तापूर्ण आदानों, सिंचाई, एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने जैसे प्रमुख मूद्दो को मोदी जी की मन की बात के लिए छोड़ दिया। आज के बजट में मोदी के कहे शब्द उनके खून में व्यापार की झलक नजर आई है इसलिए गांव के लिए बैलगाड़ी में और उद्योग व्यपार के लिए रेलगाड़ी में बजट का आवंटन किया है।

हमने सुना था कि देश बिकने नही देंगे मगर जिस तरह से बजट का वितरण हुआ है उसे देखकर लगता है कि इनकी मंशा देश के संस्थानों को बेचने नही देने की दिख रही है एवम सबका साथ सबका विकास की जगह चंद घरानों का बजट नजर आया

आज बजट में जब वित्त मंत्री ने शुरूआत की युवाओं को सही जगह पर रोजगार मिले, लेकिन पूरा बजट सुन लिया, इतना बड़ा बजट कभी था नहीं, लेकिन कुछ नहीं मिला। खोदा पहाड़ निकली चुहिया। किसानों के लिए क्या दिया, उम्मीद थी हमें। आज के समय देश को खड़ा करने में जब देश की इकोनॉमी खराब हो रही है

इस बजट में वित्त मंत्री जी द्वारा कई अलग अलग भाषाओं में बड़े बड़े शब्दो जैसे इंट्रीग्रेटेड, फोकस्ड एरिया, मॉर्डन फार्मिंग, बैलेंस यूटिलिटी ऑफ फेर्टिलिसर,नेचुरल फार्मिंग, ऑर्गेनिक मार्केट की बाते कही गई है मगर बातों की बजाय बजट की राशि का आवंटन होना चाहिए था जो हुआ नही है।


बजट ग्रामीण मांग व क्रय क्षमता को प्रोत्साहित नहीं करती जिससे कुल अर्थव्यवस्था सुधर सकती थी : एआईकेएससीसी

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने कहा कि बजट ग्रामीण मांग व क्रय क्षमता को प्रोत्साहित नहीं करती जिससे कुल अर्थव्यवस्था सुधर सकती थी। यह कारपोरेट मुनाफे को बढ़ावा देती है।

बजट 2020 के प्रस्ताव विदेशी व भारतीय कारपोरेट के खेती में लागत की आपूर्ति करने, फसल की खरीद, भंडारण, कृषि प्रसंस्करण, बीमा व फसल की बिक्री में हस्तक्षेप व नियंत्रण को बढ़ावा देगी। यह प्रस्ताव किसानों को लागत के भारी दाम, उनकी फसलों की कम कीमत, फसलों की बहुत सस्ते दाम पर बिक्री व फसल की बरबादी से कोई राहत नहीं देगा। कम्पनियों का शोषण अब और बढ़ेगा जिसमें वे जमीन किराए पर लेंगी, किसानों को कर्ज में फंसाएंगी, उनकी फसलें बेहद सस्ते में खरीदेंगी और खाद्यान्न प्रसंस्करण करके व बिक्री में भारी मुनाफा कमाएंगी।

बजट में कहा गया है कि जो प्रान्त केन्द्र के तीन माॅडल कानून अपनाएंगे, जो भूमि को किराए पर देने, किसानों के उत्पादन व पशुपालन व ठेका खेती से सम्बन्धित हैं और जो फसल की बिक्री, खाद्यान्न प्रसंस्करण, भंडारण व परिवहन में निजी निवेश बढ़ाएंगे, उन्हें केन्द्र सहयोग देगा। बजट में एक जिले में झुंड में एक फसल उगाने, उसकी बिक्री व निर्यात को बढ़ावा देने की बात कही है।


इससे किसानों की न तो आमदनी बढ़ेगी, न बचत और न ही खाद्यान्न प्रसंस्करण व बेरोजगारी की समस्या हल होगी। मनरेगा, ग्रामीण मजदूरी दर, पेंशन, सिंचाई, डीजल, बिजली, खाद व बीज के लिए सब्सिडी और भूमिहीन किसानों, खेतिहर मजदूरों, बंटाईदारों की किसी भी समस्या पर बजट में कुछ नहीं कहा गया है।

मनरेगा के लिए आवंटन इस वर्ष के संशोधित खर्च, 71,001 करोड़ से 9,500 करोड़ घटाकर 61,500 करोड़ रुपये कर दिया गया है जबकि राज्यों से कुल मांग करीब 1 लाख करोड़ रुपये की है।

जहां देश में ग्रामीण आमदनी को विकसित करके लोगों की क्रय क्षमता व भारतीय बाजारों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर था, बजट में इन समस्याओं को हल करने का कोई कदम नहीं उठाया गया।

हालांकि वित्तमंत्री बार-बार आर्थिक विकास व केयरिंग इंडिया (देखभाल) की बात कहती रहीं, बढ़ती बेरोजगारी के समाधान पर एक शब्द नहीं बोलीं।

सरकार ने खेती, सिंचाई व ग्रामीण विकास के लिए 2.83 लाख करोड़ रूपये का खर्च आवंटित किया है जो पिछले साल के 2.68 लाख करोड़ रूपये से मात्र 15 हजार करोड़ रूपये यानी 5.6 फीसदी ज्यादा है। यह मंहगाईदर से भी कम वृद्धि है।

सरकार ने खेती में उधार दिये जाने वाली रकम को बढ़ाकर 15 लाख करोड़ रुपये कर दिया है, जिससे कम्पनियों द्वारा बेचे जा रहे मंहगे लागत के सामान व मशीनों की बिक्री में मदद देगा। इसमें किसानों को मदद देने या उनकी जमीन गिरवी रखे जाने से रोकने का कोई कदम नहीं है। यह तब है जबकि हाल में ही सरकार ने बड़े कारपोरेटों को 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के कर्ज माफ किए थे और 1.45 लाख करोड़ रुपये की टैक्स में छूट दी थी।

पीएम किसान योजना में आवरण व अमल सुधारने का भी कोई प्रस्ताव नहीं है। इसके तहत पहले वर्ष में 2000 रुपये की तीन किश्तों का लाभ 14.5 करोड़ किसान परिवारों में से मात्र 26.6 फीसदी किसानों को मिला था, जबकि 48 फीसदी किसानों को एक भी किश्त नहीं मिली। खेती की लागत के दाम पिछले 5 सालों में 33 से 100 फीसदी बढ़ गये हैं और जीवन चलाने के खर्च दो गुना हो गये हैं।


"ऐसी उम्मीद थी कि सरकार लाभकारी समर्थन मूल्य जो कुल खर्च सी2 का डेढ़ गुना हो, के लिए प्रस्ताव रखेगी और इसमें पीएम आशा योजना को और धन देगी। किसानों के कर्ज की मुक्ति के लिए व फसल के नुकसान की भरपाई फसल की आवारा पशुओं से सुरक्षा तथा फसल बीमा योजना को सुधारने की आवाज भी उठी थी। परन्तु इनको छुआ भी नहीं गया है", ऐसा एआईकेएससीसी ने कहा। पिछले 3 सालों से निजी कम्पनियों ने 18,830 करोड़ रूपये निजी बीमा कम्पनियों ने कमाए हैं, जबकि किसान नुकसान उठाते रहे हैं।

अखिल भारतीय किसान संघर्श समन्वय समिति ने इस बजट पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि "हम इन प्रस्तावों से निराश हैं, बजट दिखाता है कि देश के किसानों के लिए सरकार की योजनाओं में काई जगह नहीं है और वह केवल कम्पनियों को लाभ पहुंचा रही है।"

एआईकेएससीसी ने 13 फरवरी को बजट के कारपोरेट पक्षधर प्रस्तावों और किसानों की कर्जदारी, मंहगी लागत व फसल के अलाभकारी दामों की समस्या को हल न करने के विरुद्ध देश व्यापी संघर्ष की घोषणा की है।

किसानों के लिए बजट निराशाजनक, वित्त मंत्री ने जिस सोलह सूत्रीय कार्यक्रम घोषित किया उससे देश के 10 परसेंट किसान भी कवर नहीं होते : आलोक वर्मा, भाकियू

आज के बजट से यह स्पष्ट हो गया कि देश का बजट एक वार्षिक प्रक्रिया है। इसका गांव गरीब किसान के कल्याण से कोई वास्ता नहीं है जिस तरह का गोलमोल बजट पेश किया गया है उसका विश्लेषण करना भी बड़ा कठिन कार्य है। देश की लगभग 50% जनसंख्या खेती पर आश्रित है लेकिन इतनी बजट बड़ी जनसंख्या के लिए केवल 16 सूत्री कार्यक्रम किसान कल्याण नहीं कर सकते। जिस संकट के दौर से कृषि क्षेत्र गुजर रहा है उसके लिए 16000 छोटे-बड़े कार्यक्रम भी चलाये जाए तो कम है।

किसानों का मुख्य विषय लाभकारी मूल्य और खरीद की गारंटी का बजट भाषण में वित्त मंत्री जी द्वारा जिक्र तक नहीं किया गया इससे बड़ी निराशा किसानों के लिए है।

फसल बीमा में बदलाव,कर्ज़ माफी,किसान सम्मान निधि में बजट न बढ़ाना आदि महतवपूर्ण विषयों को वित्त मंत्री जी ने छुवा तक नही। भारतीय किसान यूनियन इस बजट की निंदा करती है और सरकार से सवाल करती है कि आप यह बताएं कि किस रोड मैप के दम पर आप किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करते हैं। यह दावा किसान के लिए सिर्फ छलावा है ।किसानों को बहला-फुसलाकर भोले भाले किसान की वोट पाने के लिए जुमला है। किसानों की रासायनिक खाद की सब्सिडी कम कर दी गई है जिससे देश के उत्पादन पर भी प्रभाव निश्चित है। प्रस्तुत किए जाने वाले बजट से निश्चित है कि सरकार को गांव गरीब किसान से कोई सरोकार नहीं है बजट में पंचायत स्तर पर वेयर हाउस खोले जाने की घोषणा का हम स्वागत करते हैं।बजट किसानों के लिए पूर्णतय निराशाजनक है।

राजस्थान में श्रीगंगानगर के किसान और किसान नेता हरविंदर सिंह ने कहा कि ये सिर्फ दिखावे का बजट है। सोलर पंप, 100 दिनों में पानी संरक्षण से क्या होगा। किसान के उत्पादातों की सही कीमत कैसे मिलेगी ये तो कहीं बताया ही नहीं गया। जब कीमत मिलेगी तो आमदनी अपने आप बढ़ जाती।""

    

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