दिन-रात खेतों में मेहनत फिर भी किसान का दर्जा नहीं

Ashwani NigamAshwani Nigam   14 Oct 2017 9:12 PM GMT

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दिन-रात खेतों में मेहनत फिर भी किसान का दर्जा नहींमहिला किसान।

अश्वनी निगम/श्रृंखला पांडेय

लखनऊ। रात-दिन खेतों में काम करने के बाद भी रामवती किसान नहीं हैं, न ही उन्हें योजनाओं का लाभ मिल पाता है। क्यूंकि खेती की जमीन पर रामवती का नाम नही है।

लखनऊ जिले के मोहनलालगंज तहसील के मऊगाँव में रहने वाली महिला किसान रामवती देवी की ही तरह देश की करोड़ों महिलाओं को उनकी मेहनत के बावजूद भी किसान का दर्जा नही मिल पा रहा है। उनकी पहचान एक किसान की पत्नी के रूप में रहती है।

महिला किसानों को उनकी पहचान दिलाने के लिए काम करने वाले संगठन 'आरोह' के एक सर्वे के अनुसार देश में 98 प्रतिशत महिला किसान यह महसूस करती हैं कि कृषि उत्पादन के प्रत्येक हिस्से में बराबर की भूमिका के साथ ही घरेलू जिम्मेदारियों का निवर्हन करने के बाद भी उनके काम को पहचान नहीं मिल पाती।

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''खेती से लेकर पशुपालन महिलाएं ही करती हैं, लेकिन जमीन के दस्तावेजों में उनका नाम नहीं होने के कारण उन्हें सरकारी योजनाओं में किसान का दर्जा नहीं मिलता है,'' आरोह संगठन की स्टेट कन्वीनर नीलम ललित बताती हैं।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार फसल सीजन में महिलाएं 3300 घंटे खेत में काम करती हैं, जबकि पुरूष सिर्फ 1860 घंटे। अखिल भारतीय कृषि जनगणना 2010-11 की रिपोर्ट बताती है कि देश में केवल 12.78 प्रतिशत कृषि जोत ही महिलाओं के नाम है। इस वजह से कृषि क्षेत्र में उनकी निर्णायक भूमिका नहीं है।

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उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से लगभग 14 किमी दूर बड़ोखर खुर्द गाँव की रहने वाली सहोदरा (46 वर्ष) की शादी 16 वर्ष की आयु में हो गई थी। शादी के कुछ वर्षों के बाद पति की मृत्यु हो गई और तीन बच्चों की जिम्मेदारी सहोदरा पर आ गई।

''जेठ ने कहा तुम्हें खेत तो मिल नहीं सकता, इसलिए तुम परिवार के साथ रहो, काम करो और खाओ। तब मुझे ये पता भी नहीं था कि जिस खेत पर मैं मजदूरों की तरह मेहनत करती हूं, उसकी कानूनी तौर पर हकदार भी मैं ही थी," सहोदरा बताती हैं।

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भारतीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन दशक में जहां कृषि क्षेत्र में पुरूष किसानों की संख्या घट रही है वहीं महिला किसानों में गिरावट कमी आई है।

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगल बताती हैं, "किसानी में महिलाओं की भूमिका सबसे अधिक होती है, लेकिन उन्हें किसान के तौर पर कानूनी दर्जा नहीं मिल रहा है। इस मुद्दे को लेकर हमने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र भी लिखा है,'' आगे बताती हैं, "राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला किसान अधिकार मंच महिला किसानों को उनका हक दिलाने के लिए संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं।"

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राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 18 प्रतिशत खेतिहर परिवारों का नेतृत्व महिलाएं ही करती हैं। कृषि का कोई कार्य ऐसा नहीं है जिसमें महिलाओं की भागीदारी न हो लेकिन इसके बाद भी महिला किसानों को पुरूषों की अपेक्षा अधिक समय तक काम करने जैसी कई असमानताओं का सामना करना पड़ता है।

मात्र चार प्रतिशत महिलाओं के पास क्रेडिट कार्ड

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश की 8 लाख सहकारितओं में केवल महिलाओं की ओर से संचालित सहकारिताएं मात्र 20014 सहकारिताएं हैं। महिला किसानों पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठन आरोह के एक सर्वे के अनुसार मात्र 4 प्रतिशत महिला किसानों के पास ही क्रेडिट कार्ड है।

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