किसान आंदोलन: ओड़िशा के किसान नेता का प्रधानमंत्री के नाम खत, 'प्रधानमंत्री जी, विवेक की वैधता की यह लड़ाई किसानों का कर्तव्य है, जिद नहीं'

किसान आंदोलन का आज 14वां दिन है, इन 14 दिनों में किसान नेताओं और सरकार के बीच छह बार बैठक भी हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई परिणाम नहीं निकल पाया है। नवनिर्माण किसान संगठन, ओड़िशा के राष्ट्रीय संयोजक व संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्टी लिखी है।

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किसान आंदोलन: ओड़िशा के किसान नेता का प्रधानमंत्री के नाम खत, प्रधानमंत्री जी, विवेक की वैधता की यह लड़ाई किसानों का कर्तव्य है, जिद नहीं

आदरणीय, प्रधानमंत्री जी

भारत सरकार

नई दिल्ली

महोदय,

तीन नए कृषि कानून और एमएसपी पर खरीद की गारंटी के कानून को लेकर किसान सड़क पर है। पांच बार कृषि मंत्री के साथ वार्ता होने के बाद छठवीं वार्ता नौ तारीख़ को निर्धारित थी। अचानक गृह मंत्री जी ने अनौपचारिक बैठक का आयोजन किया, उसके बावजूद सरकार के पक्ष में कोई अंतर नहीं आया है कि कानून वापस लेंगे। अब नौ की वार्ता स्थगित कर दी गई है और आश्वासन मिला है की फैसला दस को होगा। वार्ता का अब तक कोई सफल परिणाम नहीं निकला है।

वार्ता में सरकार की तरफ से कृषि मंत्री जी बार-बार कहते हैं, कानून में गलतियों के बिंदु बताइए, सुधार लिया जाएगा। जबकि किसानों की तरफ से किसान नेतृत्व ने वार्ता में यह सवाल उठाया है कि, जब तीनों कानून का उद्देश्य ही किसान विरोधी है, गलत है तो क्यों ना इसे रद्द किया जाए ।

भारत का किसान स्वतंत्र, स्वावलंबी, स्वाभिमानी बनकर गांव-परिवार में रहते हुए "वसुधैव कुटुंबकम" को आधार मानकर आगे बढ़ना चाहता है। वो अडानी-अंबानी सहित अन्य विदेशी पूंजीपतियों के सामने अपने खेत और खलिहान का समर्पण नहीं चाहता है। आपकी सरकार विश्व बाजार में हिंदुस्तान के किसान को परावलंबी बना कर खड़ा करने के लिए ये तीनों कानून चोरी-छिपे किसान और किसान संगठनों के बिना मांगे ना जाने किसके इशारे पर अध्यादेश के माध्यम से कोरोना काल के आड़ में लेकर आई है, देश के किसान इसे जानना चाहते हैं?

भारत का किसान विश्व बाजार में मार-काट और लूट वाली स्पर्धा के आधार वाली नहीं, बल्कि आपसी सहयोग वाली भारतीय व्यवस्था का पक्षधर है। इसलिए हम किसान असीमित मुनाफा कमाने वाले कॉर्पोरेट आधारित लूट वाली व्यवस्था के नहीं, बल्कि भारत सरकार द्वारा स्थापित मंडी व्यवस्था वाली एम.एस.पी की कानूनी गारंटी वाली व्यवस्था चाहते हैं। हमारा यह भी मानना है कि पूरे देश में जहां मंडियां नहीं है, वहां खोली जाएँ और सभी फसलों पर घोषित एम.एस.पी की गारंटी खरीद हो। इस नए कानून की रीढ़ कॉर्पोरेट घराने हैं, इसलिए हम तीनों कानून को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग करते हैं।

वार्ता में सरकार की तरफ से कानून के तकनीकी पक्ष की वैधता पर सवाल उठाया जाता है, जबकि भारत का किसान विवेक की वैधता का प्रश्न उठाता है। अब आपको तय करना है कि विवेक की वैधता का साथ देना है या कानून की वैधता का।

महात्मा गांधी कहा करते थे कि, "जो राज्य का कानून मेरे विवेक के कानून के विरोध में हो, उसको मैं विनम्रता के साथ अहिंसक रास्ते से अमान्य करूंगा या तोड़ूंगा, और उस सत्याग्रह के लिए जो भी दंड मिलेगा, उसको सहर्ष स्वीकार करूंगा।"

उसी प्रकार किसानों का नेतृत्व करने वाले हम सबमें सबसे वरिष्ठ किसान नेता बलवीर सिंह 'राजोवाल' जी ने वार्ता में मंत्री जी के जवाब में कहा है कि, "किसान तो अपने न्याय पूर्ण मांग को लेकर सरकार के पास आया है, अगर तब भी सरकार हमारी मांग नहीं मानती है तो, हम किसान खुद कष्ट और पीड़ा उठाकर दूसरे की आत्मा को झकझोर देने को अपना कर्तव्य मानते हैं। इसलिए किसान रास्ते के ऊपर पड़ा हुआ है, आप जो भी जुल्म करो हम सहने के लिए तैयार रहेंगे।"

प्रधानमंत्री जी, विवेक की वैधता की यह लड़ाई किसानों का कर्तव्य है, जिद्द नहीं।

ज़ब किसान दिल्ली अपनी बात रखने के लिए आ रहा थे, तो आपकी सरकारी व्यवस्था ने उनका रास्ता रोका, आंसू गैस छोड़े यहां तक कि दुश्मन जैसा व्यवहार कर पत्थर रखा और सड़क तक को खोद दिया गया। नौजवानों ने किसान के साथ कंधा मिलाकर यह संघर्ष दिल्ली तक पहुंचाया है। किसानों के विरुद्ध सत्ता पक्ष के नेताओं की गलत बयानबाजी ने देश की एकता को तोड़ने की कोशिश की है और गरिमा को तार-तार किया है। किसानों को देश-विरोधी साबित करने की कोशिश की गई। देश के सबसे बड़े पद पर बैठे हुए नेता होने के बावजूद आपकी तरफ से कोई खंडन नहीं आया यह चिंता की बात है। आपके बयान "किसान भ्रम में है" को आधार मानकर अभी तक वार्ता में नौकरशाही "किसानों को अपना भला नहीं पता, उनको समझा दो" वाली नीति में चली है। तेरह दिन बीत जाने के बावजूद, समझाने के भ्रम वाली बात से सरकार अब तक आगे नहीं बढ़ पाई है।

प्रधानमंत्री महोदय, जनता मालिक है, किसान देश के पेट की सुरक्षा करता हैं, वह अपने खेत और खलिहान की सुरक्षा की मांग को लेकर दिल्ली की सड़कों पर बैठा हुआ है, आप या आपके किसी भी प्रतिनिधि ने अब तक उनके बीच आकर उनके दर्द को सुनने और बांटने की कोशिश नहीं की। सवाल उठता है, क्या ऐसे ही लोकतंत्र की स्थापना करने के लिए नौजवान शहीदे आजम भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद से लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी तक का बलिदान व्यर्थ चला जाएगा? सत्ता बदली पर व्यवस्था कब बदलेगी यह सवाल हम सबके सामने है।

प्रधानमंत्री जी, संसद को मंदिर मानकर आपने प्रवेश के पहले दिन द्वार पर नमन किया था। उस मंदिर को बनाने वाले अन्नदाता इस देश के असली मालिक हैं, दुनिया के दूसरे ईश्वर किसान को इज्जत कब मिलेगा?

मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि, संगठित जनमत सड़क पर खड़ा है जिद्द छोड़िए, समस्या का समाधान कीजिए। तीनों कानून को वापस लीजिए, एम.एस.पी की गारंटी का कानून संसद का विशेष सत्र बुलाकर पारित कीजिए। किसान विरोधी कानून वापस लेने का आपका फैसला भारत में लोकतंत्र के भविष्य के लिए शुभांकर होगा ।

आप पर किसी अदृश्य दबाव के कारण अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो सत्ता के घमंड को चुनौती देने के लिए सत्याग्रह का रास्ता देश के किसानों और नौजवानों के सामने एक मात्र विकल्प होगा।

आशा है आप किसान हित में लाल बहादुर शास्त्री जी के नारे "जय जवान, जय किसान" को आधार मानकर विवेक पूर्ण न्याय करेंगे।

धन्यवाद !

जय हिंद! जय किसान!

आपका

अक्षय कुमार

राष्ट्रीय संयोजक

नवनिर्माण किसान संगठन

सदस्य - संयुक्त किसान मोर्चा

(अक्षय कुमार भारत सरकार से वार्ता के लिए संयुक्त किसान मोर्चा - भारत के तरफ से गठित की गई 41 किसान नेतृत्व समूह में उड़ीसा के प्रतिनिधि के रूप में विज्ञान भवन की बैठकों में शामिल रहें हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

ये भी पढ़ें: किसान आंदोलन: गृह मंत्री अमित शाह के साथ किसान नेताओं की बैठक खत्म, किसान नेताओं ने कहा कल सरकार देगी लिखित प्रस्ताव


   

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