क्‍या किसानों के गुस्‍से की आग से जली है ये धान की ट्रॉली?

बाराबंकी में पिछले 16 नवंबर को भारतीय किसान यूनियन ने धान खरीद न होने से नाराज होकर प्रदर्शन शुरू किया था।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   27 Nov 2018 2:03 PM GMT

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क्‍या किसानों के गुस्‍से की आग से जली है ये धान की ट्रॉली?

बाराबंकी। 'धान खरीद न होने से परेशान किसान ने धान से भरी ट्रॉली को आग के हवाले किया।' इस तरह की लाइन से मिलती जुलती खबरें सोशल मीडिया और अखबारों में दिखीं। बताया जाता है कि बाराबंकी मंडी में किसान ने ट्रॉली को आग के हवाले कर दिया, लेकिन क्‍या ये बात सच है? क्‍योंकि प्रशासन इस बात को सोची समझी साजिश बता रहा है तो वहीं किसान यूनियन से जुड़े लोग इस खबर को सच बताने में लगे हैं।

बाराबंकी में पिछले 16 नवंबर को भारतीय किसान यूनियन ने धान खरीद न होने से नाराज होकर प्रदर्शन शुरू किया था। भाकियू से जुड़े किसानों ने तय किया था कि वो अपने धान से भरी ट्रॉलियों को लखनऊ के विधानभवन पर छोड़ आएंगे। हालांकि बाराबंकी प्रशासन तुरंत हरकत में आया और किसानों को धान खरीदने का आश्‍वासन देकर जिले में ही रोक लिया गया।

प्रशासन ने 20 नवंबर की शाम किसानों को टोकन दिए ताकि वो अपने धान को बाराबंकी और सफदरगंज मंडी में बेच सकें। इसके बाद किसान अपनी धान से भरी ट्रॉली लेकर बाराबंकी मंडी पहुंचे। ऐसा बताया जाता है कि मंडी पहुंचने के बाद भी जब सोमवार (26 नवंबर) तक एक किसान का धान नहीं खरीदा गया तो परेशान होकर उसने अपनी ट्रॉली को आग के हवाले कर दिया। लेकिन वो किसान कौन था इसकी जानकारी मंडी में मौजूद किसी किसान को नहीं थी। सुबह अखबारों में प्रकाशित हुआ कि ये किसान देवा ब्‍लॉक के शेखपुर गांव का रहने वाला कमलेशानंद उर्फ पप्‍पू है। अपने खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होने से वो आहत था इस लिए धान में आग लगा दी।

बाराबंकी मंडी में धान बेचने आए किसान।

भाकियू से जुड़े बाराबंकी के हासेमऊ गांव के रहने वाले किसान कैलाश वर्मा भी अपना धान लेकर मंडी पहुंचे हैं। ट्रॉली में आग लगाने की घटना का जिक्र करते हुए वो कहते हैं, ''वो किसान पिछले कई दिनों से परेशान था। सोमवार को दिन में कई बार वो दिखा और धान खरीद न होने की बात भी कही। शाम को अचानक उसकी ट्रॉली में आग लग गई और तबसे वो दिख नहीं रहा।'' कैलाश वर्मा से जब उस किसान का नाम पूछा जाता है तो वो जानकारी होने से इनकार करते हैं।

वहीं, बाराबंकी मंडी में धान बेचने पहुंचे अरुण कुमार भी उस किसान को देखने का दावा करते हैं, लेकिन वो किसान कौन था इस बात की जानकारी उन्‍हें भी नहीं। अरुण कुमार कहते हैं, ''ट्रॉली में धान भरा हुआ था। आग लगने के तुरंत बाद पुलिस आ गई थी। उसके बाद हम लोग कुछ नहीं जान पाए।'' अरुण कुमार कहते हैं, ''इतनी बड़ी मंडी में दूर-दराज से किसान आए हैं कौन किसको जानता है।'' इस सवाल पर कि यूनियन से जुड़े लोग तो एक दूसरे को जानते हैं? अरुण खामोश हो जाते हैं।

बाराबंकी मंडी में मिले एरिया मार्केटिंग ऑफिसर (एएमओ) आलोक रंजन बताते हैं, ''ये सब प्री प्‍लांड था। ट्रॉली में 2 बोरी धान था बस। बाकी भूसा भरा हुआ था। 26 नवंबर की शाम ये लोग पंचर ट्रॉली को खींचकर लाए और उसमें आग लगा दी। पुलिस को बोरी में भरी भूसी भी मिली है।''

आलोक रंजन आगे कहते हैं, ''किसान यूनियन ने धान खरीद को लेकर धरना दिया था। इसके बाद प्रशासन ने 15 केंद्र बाराबंकी मंडी और 10 केंद्र सफदरगंज मंडी में खोले थे। प्रदर्शन कर रहे भाकियू से जुड़े किसानों को 500 ट्रॉली का टोकन दिया गया। इन 500 में से 65 ट्रॉली सफदरगंज चली गईं और बाकी ट्रॉली बाराबंकी मंडी में आ गईं। इसके बाद हमने धान खरीदना शुरू कर दिया। ब्‍लॉक के अनुसार भाकियू के कार्यकर्ताओं को जिम्‍मेदारी सौंप दी गई कि वो अपनी ट्रॉली का तौल करा लें, क्‍योंकि हम करते तो वो लोग झगड़ा करते।''

''इसके बाद भाकियू के कार्यकर्ता गड़बड़ करने लगे। अपनी एक ट्रॉली तौलते थे और फिर उस ट्रॉली को भरकर भेज देते थे। इस तरह हुआ क्‍या कि हम रोज 35 से 40 ट्रॉली तौलते थे, लेकिन ट्रॉली कम ही नहीं होती थी। फिर हमने 23 नवंबर की रात को मंडी में मौजूद ट्रॉलियों की मार्किंग की। भाकियू की 164 ट्रॉली उस वक्‍त मौजूद थीं। हमने तय किया कि पहले मार्किंग की गई ट्रॉलियों की तौल करेंगे और बाद में दूसरी ट्रॉलियों की।''

''24 नवंबर की सुबह भाकियू के जो कार्यकर्ता गड़बड़ कर रहे थे वो आए और हल्‍ला करने लगे। हमें मारने की बात कह रहे थे। उनका कहना था कि हम जो ट्रॉली कहेंगे वही तौली जाएगी। ये बात प्रशासन तक पहुंची और पुलिस भी आ गई। एडीएम साहब के कहने पर हमने तहरीर दी और एफआईआर लिख ली गई। फिर काम शुरू हो गया था।''

''26 नवंबर की शाम काम बंद हो गया और सब जाने लगे। इसी वक्‍त छोटी सी ट्रॉली लेकर आए। उसमें 10-12 बोरी होगी और भूसा भरा हुआ था। भूसे पर मिट्टी का तेल छिड़कर आग लगा दी गई और फोटो खींचने लगे। कुछ मिनट ही हुए होंगे तब तक मीडिया भी आ गई। उनसे ये लोग कहने लगे कि किसान ने परेशान होकर धान में आग लगा दी। एडीएम साहब आए पुलिस प्रशासन भी आया और जब ट्रॉली में देखा गया तो दो बोरी धान था और बाकी भूसा भरा था।''- आलोक रंजन


आलोक रंजन की बात के उलट भाकियू से जुड़े किसान सियाराम कहते हैं, ''प्रशासन झूठ बोल रहा है। ट्रॉली में धान था। हम लोग 16 नवंबर से बैठे हुए हैं, करीब 11-12 दिन होने को आए हैं और हमारा धान नहीं खरीदा जा रहा। ये परेशानी की बात नहीं तो और क्‍या है? इसी लिए परेशान किसान ने अपने धान को आग के हवाले कर दिया।'' इस सवाल पर कि वो किसान कौन था? सियाराम करते हैं, ''उसका पता नहीं चल पा रहा, दिन में देखा था उसे।''

उत्‍तर प्रदेश: धान बेचने की लड़ाई लड़ रहे किसान, मिलर्स ने बढ़ाई परेशानी

जिस ट्रॉली को आग के हवाले किया गया था वो ट्रॉली बाराबंकी कोतवाली के बाहर खड़ी है। पुलिस वालों से बात करने पर वो ट्रॉली के मालिक की पहचान होने से इनकार करते हैं। पुलिस वाले कहते हैं उसकी तलाश की जा रही है। अभी आग लगाने वाला अज्ञात ही है। ट्रॉली के पास ही खड़े सिपाही का कहना है कि जिस हिसाब से ट्रॉली में धान रखा है लगता है कि ये साजिश के तहत आग लगाई गई है।

मंडी में मौजूद किसान ये भी आरोप लगाते हैं कि उनका धान नहीं तौला जा रहा सिर्फ व्‍यापारियों का धान यहां तौला जा रहा है। जब वो आपत्‍त‍ि दर्ज करते हैं तो सरकारी क्रय केंद के कर्मचारी उन्‍हें धमकाते हैं। देवा ब्‍लॉक के मोहनपुर गांव से धान बेचने आए रमेश चंद्र कहते हैं, ''हमारी ट्रॉली की मार्किंग की गई लेकिन उसे खरीदा तो जा नहीं रहा। बाहर से लोग ट्रॉली लेकर आते हैं और उनकी खरीद हो रही है। हर दिन सिर्फ 2 ट्रॉली खरीदा जा रहा है। ऐसे तो कई दिन लग जाएंगे।'' इस आरोप पर आलोक रंजन कहते हैं, ''मार्किंग के बाद अब सिर्फ 119 ट्रॉलियां बची हुई हैं। इनसे पहले किसी का धान नहीं खरीदा जा रहा। 24 नवंबर को बवाल और 25 नवंबर को रविवार होने की वजह से तेजी से खरीद नहीं हो सकी। अब खरीद सुचारू रूप से चल रही है।''

बाराबंकी मंडी में खड़ी धान से भरी ट्रॉलियां।

क्‍या है धान की खरीद का पेंच?

गौरतलब है कि धान का सरकारी रेट 1750 रुपए है। सरकार ने 638 खरीद केंद्रों के माध्यम से 50 लाख टन धान खरीद का लक्ष्य भी रखा, लेकिन एक अक्टूबर से शुरू हुई उत्तर प्रदेश में सरकारी खरीद लक्ष्य के अनुरूप काफी कम है। वहीं, सरकारी खरीद की जटिल प्रक्रिया की वजह से सरकारी केंद्र पर धान बेचना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। हालात ये है कि किसान 11 से 12 सौ रुपये तक में निजी व्यापारियों को धान बेच रहे हैं।

किसानों की धान खरीद न हो पाने के पीछे एक बड़ी वजह मिलर्स की हड़ताल भी है। हड़ताल पर चल रहे उत्‍तर प्रदेश मिलर्स एसोसिएशन की मांग है कि सरकारी रिकवरी का प्रतिशन 67 की बजाए 62 किया जाए। सरकार मिलर्स से 100 किलो धान में 67 किलो चवाल चाहती है, लेकिन मिलर्स का कहना है कि इससे उन्‍हें नुकसान हो रहा है। साथ ही उनकी मांग है 1990 से चले आ रहे कुटाई के दर को बढ़ाया जाए। अभी इन्‍हें धान कुटाई का 1 कुंतल के पीछे 10 रुपए दिया जाता है। मिलर्स की मांग है कि इसे कम से कम 150 रुपए किया जाए।

अलोक रंजन बताते हैं, ''बाराबंकी मंडी में अब तक 9 हजार टन के करीब धान खरीदा गया है। लेकिन मिलर्स की हड़ताल की वजह से ये धान यहां रखा हुआ है। इस बार की नियमावली के तहत मिलर्स ही ट्रांसपोर्ट का काम करेंगे, यानि मंडियों से धान उठाने का कॉन्‍ट्रैक्‍ट भी उनके ही पास है। ऐसे में ये धान यहीं पड़े हुए हैं और हमारे पास जगह भी तो नहीं कि इन्‍हें रखा जा सके।'' इस स्‍थ‍िति को देखते हुए कहा जा सकता है कि फिलहाल धान किसान टोकन, मार्किंग, मानक और मिलर्स के जाल में फंसा हुआ है। इस वजह से उनका गुस्‍सा बढ़ना लाजमी है। ऐसे में ट्रॉली में आग लगाने की घटना उनके गुस्‍से को ही दर्शाता है।


  

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