यूपीए-1 सरकार के दौरान हुए कर्ज माफी योजना के बाद भी आत्महत्या के मामले बढ़ें: रूपाला

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यूपीए-1 सरकार के दौरान हुए कर्ज माफी योजना के बाद भी आत्महत्या के मामले बढ़ें: रूपालाफोटो- Down to Earth

लखनऊ। सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में बताया कि संप्रग (United Progressive Alliance- UPA) सरकार के समय शुरू की गई, 70 हजार करोड़ रुपये की कृषि ऋण माफी योजना के बाद भी किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। पूर्व कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के पूरक प्रश्न के जवाब में पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा कि संप्रग-1 सरकार के समय शुरू की गयी योजना के बाद भी किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़े हैं।

उन्होंने कहा कि योजना के ऑडिट में भी ऐसे मामले सामने आये और यह भी सामने आया कि उन लोगों का कर्ज माफ कर दिया गया जो किसान ही नहीं थे। इस दौरान सरकार के जवाब पर सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आपत्ति जताई, जिस पर रूपाला ने कहा कि किसानों के मुद्दे पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।

पुरुषोत्तम रूपाला

गौरतलब है कि संप्रग-1 सरकार ने 2008 में 70 हजार करोड़ रुपये के कृषि ऋण माफ करने की योजना की घोषणा की थी। इस योजना में अनियमितताओं के आरोप लगे थे। राधामोहन सिंह पिछली सरकार में नरेंद मोदी के नेतृत्व वाली कैबिनेट में कृषि मंत्री थे और रूपाला तब भी उनके सहायक मंत्री थे।

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क्या उच्चतम न्यायालय ने सरकार को किसानों की खुदकुशी पर एक राष्ट्रीय नीति लाने का सुझाव दिया है, इस प्रश्न के उत्तर में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने छह जुलाई, 2017 को अपने आदेश में कहा कि इस तरह के विषय से रातोंरात नहीं निपटा जा सकता और अटॉर्नी जनरल का उचित तरीके से योजनाओं पर काम करने के लिए समय मांगना जायज है।

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के के. रघुराम कृष्ण राजू के एक पूरक प्रश्न के उत्तर में रूपाला ने कहा कि सोमवार को विभि‍न्न राज्यों के कृषि मंत्रियों और अधिकारियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का स्वरूप बदलने पर चर्चा हुई। हालांकि यह तय नहीं हुआ कि इस योजना में शत प्रतिशत प्रीमियम केंद्र सरकार वहन करेगी या नहीं।

राकांपा की सुप्रिया सुले के पूरक प्रश्न के उत्तर में कृषि राज्य मंत्री ने बताया कि राजग सरकार की किसानों को 6000 रुपये वार्षिक सहायता देने की योजना को लागू करने में पहले कुछ राज्य संकोच कर रहे थे लेकिन अब सभी राज्यों ने इसे स्वीकारते हुए किसानों के आंकड़े भेजने पर सहमति जताई है।

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गांव कनेक्शन ने मई महीने में देश के 19 राज्यों में 18 हजार से ज्यादा लोगों के बीच सर्वे किया। सर्वे में ज्यादातर किसानों ने बढ़ती लागत, फसल जोखिम, बाजार में अच्छे रेट का ना मिलना और पानी (सिंचाई) की समस्या को किसानों की राह की बाधा बताया। गांव कनेक्शन ने सर्वे के साथ-साथ हजारों किसानों, उनके परिजनों से खेती की समस्याओं को लेकर विस्तार से बात भी की।

भारत की जनगणना (2011) के मुताबिक देश में किसान (14.5 करोड़) और खेतिहर मजदूरों की संख्या करीब 27 करोड़ है। लेकिन खेती पर निर्भरता की बात करें तो करीब 60 करोड़ लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से इससे जुड़े हैं। 48 फीसदी किसान परिवार नहीं चाहते उनके बच्चे करें खेती सर्वे में किसानों से सवाल किया गया था कि क्या वो चाहते हैं कि उनकी आने वाली पीढ़ियां खेती करें? इसके जवाब में 48 फीसदी लोगों ने कहा हम नही चाहते कि हमारी आने वाली पीढ़ी खेती करे। जबकि इस दौरान 13.9 फीसदी ने लोगों कहा कि वो चाहते हैं कि उनके बच्चे खेती करें, लेकिन बच्चे नहीं चाहते। इस दौरान 38 फीसदी लोगों ने कहा कि वो (किसान) और उनके बच्चे दोनों चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी खेती करे। (इनपुट भाषा)


   

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