किसान अछूते नहीं रहेंगे इस व्यापार युद्ध से...

Suvigya JainSuvigya Jain   21 Jun 2019 1:26 PM GMT

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किसान अछूते नहीं रहेंगे इस व्यापार युद्ध से...

अर्थव्यवस्था पर एक और संकट आता दिख रहा है। बार-बार याद करते रहना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र भी शामिल है। नया संकट यह है कि अमेरिका और भारत के बीच व्यापार युद्ध का नगाड़ा बज गया। अमेरिका कई महीनों से भारत को चेतावनी दे रहा था। वह आगाह कर रहा था कि अमेरिका में बिकने वाले भारत के माल पर टैक्स बढ़ा देगा और पिछले पखवाड़े उसने अपने यहां भारतीय उत्पादों पर भारी टैक्स लगा दिया।

हालांकि दस दिन बाद हमने भी अमेरिका की 28 चीजों पर टैक्स बढ़ाने की सूचना जारी कर दी। अब यह हिसाब लगाया जाना चाहिए कि इन फैसलों का भारत पर क्या असर पड़ेगा? खासतौर पर देश की अर्थव्यवस्था में मंदी या सुस्ती के दौर में कृषि और निर्माण के क्षेत्र में हमारे लिए क्या मुश्किल खड़ी होगी? इस सवाल पर विशेषज्ञों और आर्थिक क्षेत्र के पत्रकारों में सोच विचार फौरन शुरू हो जाना चाहिए।

गौरतलब है कि भारत इस समय अमेरिका को 8300 करोड़ डालर का सामान बेचता है। भारत से अमेरिका को निर्यात की यह रकम 5 लाख 81 हजार करोड़ रुपए बैठती है। जबकि भारत 5800 करोड़ डालर यानी 406000 करोड रुपए यानी चार लाख करोड़ का सामान अमेरिका से खरीदता है।

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कई साल से स्थिति यह थी कि अमेरिका में बिकने वाले भारतीय उत्पाद पर लगने वाले टैक्स में वहां भारी छूट थी। भारत को विकासशील मानकर अमेरिका ये सहूलियत देता था। भारत जैसे दूसरे कई देशों के लिए भी उसकी यही नीति थी। लेकिन अब भारत को यह सहूलियत अमेरिका ने खत्म कर दी। बेशक टैक्स लगाने से अमेरिका का राजस्व बढ़ेगा।

अमेरिका में उसके अपने उत्पाद को दाम की प्रतिस्पर्धा करने में असानी होगी। लिहाजा अमेरिका में मौजूदा सरकार के इस फैसले के विरोध का तो सवाल ही नहीं होता। बल्कि ज्यादा संभावना इस बात की है कि यह अमेरिका में सरकार के एक लोकप्रिय फैसले के रूप में देखा जाएगा लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती। क्योंकि अमेरिका भी अपना माल भारत को बेचता है। भारत ने भी उसके सामान पर कम टैक्स लगा रखा था।



भले ही भारत तुलनात्मक रूप से कुछ कम सामान अमेरिका से खरीदता है लेकिन जब भारत भी टैक्स बढाएगा तो अमेरिकी उत्पादकों को भी मुश्किल तो आएगी ही। यानी भारत और अमेरिका दोनों के उत्पादकों और निर्यातकों के सामने एक विकट स्थिति आई समझी जाए।

पहल अमेरिका ने की है, हमारा करना तो जवाब में है। लेकिन देखने की बात यह है कि अर्थव्यवस्थाओं के लिहाज से कौन सा देश यह मुश्किल आसानी से झेल सकता है और कौन सा नहीं। वैसे अगर दोनों देशों की मौजूदा सरकारों को देखें तो अमेरिका पर उसकी सरकार के इस फैसले का बुरा असर नहीं पड़ना है। फर्क पड़ेगा तो हमारे उन उत्पादकों और निर्यातकों पर पड़ेगा जो इन सामानों से जुड़े हैं।

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रही बात टैक्स के रूप में दोनों सरकारों की आमदनी बढ़ने की तो यह कोई खास असर डालने वाली नहीं होगी। दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं के आकार को देखते हुए चार छह लाख करोड़ के व्यापार पर टैक्स की रकम इतनी बड़ी नहीं बैठती कि इन देशों के बजट पर कोई ज्यादा असर पड़ सकता हो। वैसे भी जब दूसरे देश के सामान पर ज्यादा टैक्स लगता है तो उसका आयात ही कम हो जाता है। यानी बुरा असर उस देश के निर्यात पर पड़ता है जहां से वह सामान खरीदा जाता है।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि दोनों देश ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में मंदी के माहौल में विदेशों से व्यापार का घटना दोनों देशों के उत्पादकों के लिए नई मुसीबत होगी। खासतौर पर उद्योग व्यापार में मौजूदा मंदी के कारण भारत के उत्पादकों के लिए तो बहुत ही बड़ी मुसीबत मानी जानी चाहिए। दोनों देशों के उत्पादकों पर इस व्यापार युद्ध के और क्या असर होंगे यह समझा जाना भी अभी बाकी है।

इतिहास गवाह है कि युद्ध हमेशा के लिए नहीं होते। यानी यह देखना है कि यह युद्ध कब तक चलता है? युद्ध खत्म करने के लिए समझौते होंगे। हालांकि ये बाद में ही पता चलेगा कि समझौते में कौन सा देश किस पर दबिश बनाता है और कौन मुनाफे में रहेगा व किसे नुकसान होगा। फिर भी इतना तय है कि इस व्यापार युद्ध से भारत के उस उम्मीद को बड़ा धक्का लगा है जिसमें हम चाह रहे थे कि भारतीय किसानों के उत्पाद के लिए विदेशों में बाजार ढूंढा जाए।



वैसे इस समय तो हमें अपने औद्योगिक उत्पादों के लिए भी विदेशी बाजार तलाशने और बढ़ाने की सख्त जरूरत थी। खासतौर पर भारत के कृषि क्षेत्र की पतली होती जा रही हालत के मद्देनजर कृषि उत्पाद के निर्यात के अलावा कोई और तरीका सोचा तक नहीं जा पा रहा था। इस लिहाज से यह व्यापार युद्ध भारतीय कृषि क्षेत्र की उम्मीदों को बड़ा भारी धक्का है।

दरअसल पिछले एक दशक से भारतीय खेतीबाड़ी की बुरी हालत पर गंभीरता से सोच विचार हो रहा था। विशेषज्ञों ने अच्छी तरह समझ लिया था कि अगर कृषि उत्पादन और बढ़ा भी लें तो वे चीजें बेचेंगे कहां? क्योकि देसी बाजार में और ज्यादा कृषि उत्पाद खपाने की गुंजाइश नहीं बची है। इसीलिए सरकार पर भी यह जिम्मेदारी आ गई थी कि कैसे भी हो दूसरे देशों में भारतीय कृषि उत्पादों की बिक्री बढ़ाने की जुगत लगाई जाए।

लेकिन ये क्या? अमेरिका और भारत के बीच व्यापार युद्ध के हालात बन गए। यानी यह युद्ध भारत के उद्योग व्यापार, सेवा और कृषि क्षेत्र के लिए शुभ समाचार नहीं है। सोचने के लिए तो हम यह भी सोच सकते हैं कि इस व्यापार युद्ध का हमारे उस बजट पर क्या असर पड़ सकता है जो अगले महीने पेश होने वाला है। हम यह जानते ही हैं कि आम बजट एक साल की आर्थिक नीतियों का दस्तावेज होता है।

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दूसरे देश नजर बनाए रखते हैं कि भारत बजट कैसा बना रहा है। इसमें किसानों के लिए और दूसरे उत्पादकों के लिए क्या सब्‍सि‍डियां या दूसरी राहत दी जा रही है। दूसरे देश चाहते है कि वे जो सामान भारत में निर्यात करना चाहते हैं वह सामान भारत में कम बने। कई देश अपने कृषि उत्पाद खासतौर पर दालें, दुग्ध उत्पाद आदि भारत को बेचना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि किसी तरह भारत में ये चीजें कम पैदा हों और इनके दाम बढ़े तो उनकी चीजें भारत में बेची जा सकें। इसीलिए दूसरे देशों की नजर भारत की आर्थिक नीतियों पर रहती है।

जिस देश का जितना बस चलता है वह पूरी कोशिश करता है कि भारत की नीतियां उसके माफिक बनें। ऐसा चाहने वाले देशों में एक अमेरिका क्यों नहीं हो सकता? ये अलग बात है कि कोई देश खुलकर ऐसी बातें नहीं करता। ये मसले राजनयिक स्तर पर बातचीत के होते हैं। लिहाजा व्यापार युद्ध को इस नजरिए से भी देखना चाहिए।




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खासतौर पर भारत का आमबजट पेश होने के बाद उसका विश्लेषण भी इसी आधार पर होना चाहिए कि बजट में देश में कृषि उत्पादकों के लिए क्या-क्या किया गया। खासतौर पर यह कि कृषि उत्पाद के लिए विदेशी बाजार तैयार करने के लिए सरकार ने बजट में क्या प्रावधान किया। गौरतलब है कि यह अच्छी तरह समझा जा चुका है कि बदहाल भारतीय कृषि को राहत पहुंचाने के लिए कृषि निर्यात बढ़ाना इकलौता विकल्प है।

बहरहाल, यह व्यापार युद्ध अभी नया-नया है। ऐसे मामलों में बहुत आगे की बात सोचना बड़ा मुश्किल होता है लेकिन ऐसे युद्ध भी बिल्कुल तोप गोलों के वास्तविक युद्ध जैसे ही होते हैं और युद्ध कैसा भी हो उसका नुकसान उन देशों की जनता को ही भुगतना पड़ता है। जनता या तो उत्पादक होती है या उपभोक्ता। ऐसे युद्ध में दिक्कत किसी सरकार के लिए नहीं बल्कि जनता के लिए ही खड़ी होती है।

(लेखिका प्रबंधन प्रौद्योगिकी की विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रनोर हैं। ये उनके अपने विचार हैं।)

   

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