"किसानों के मुद्दे पर बीजेपी अलग-थलग पड़ गई है, उसे हमारी बात माननी होगी"

Hridayesh JoshiHridayesh Joshi   30 Nov 2018 7:40 AM GMT

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किसानों के मुद्दे पर बीजेपी अलग-थलग पड़ गई है, उसे हमारी बात माननी होगी

नई दिल्ली। किसानों में हताशा और गुस्सा लगातार बढ़ रहा है। देश भर के किसानों ने गुरुवार और शुक्रवार को राजधानी दिल्ली विशाल प्रदर्शन किया। किसानों की दुर्दशा और गुस्से को लेकर गांव कनेक्शन के वरिष्ठ सलाहकार संपादक हृदयेश जोशी ने कृषि विशेषज्ञ और किसान नेता कविता कुरुगंटी से बात की ।

सवाल: किसानों में पिछले कुछ वक्त में इतना गुस्सा क्यों दिख रहा है? पिछले दो साल में किसान कई बार सड़कों में उतरे हैं। इस बीच आपका संघर्ष क्या कुछ आगे बढ़ा पाया है?


जवाब: देखिये पिछले कुछ वक्त में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के नेतृत्व में किसान चौथी बार संसद मार्ग पर विरोध करने आये हैं। पिछले साल नवंबर में जब किसान संसद मार्ग पर आये और यहां पर एक महिला किसान संसद की थी तो उसमें दो ड्राफ्ट बिल पेश किये थे और आज के दिन में आप देख सकते हैं कि उस बिल की समीक्षा करके और उसे पहले से बेहतर बना कर प्राइवेट मेंबर बिल की तरह पेश किया गया है। यानी एक बात साफ है कि पहले जहां ये समन्वय समिति कर्ज़माफी और किसानों को लागत के डेढ़ गुना समर्थन मूल्य की मांग लेकर निकली थी वहीं अब आज किसान संगठनों के इतिहास में पहली बार दो कानून बनाकर उसे पेश कर पाये हैं।

इसके अलावा पहले जब हम यहां आये थे तो 130 संगठन हमारे साथ थे आज हमारे साथ 200 से अधिक संगठन हैं। इसके अलावा समाज के दूसरे हिस्सों के लोग हमारे साथ जुड़ रहे हैं जैसे छात्र और किसानों के लिये लड़ रहे वकील हमारे हैं। इससे किसानों का आंदोलन मज़बूत हो रहा है। इसके अलावा राजनीतिक पार्टियों का हमें साथ मिल रहा है और एनडीए के सहयोगी हमें मदद करना चाहते हैं यह एक उपलब्धि है। बीजेपी अलग-थलग पड़ गई है और उसके पास आज कोई रास्ता नहीं बचा है।

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सवाल : लेकिन मैं अपना सवाल फिर दोहराता हूं… आखिर किसानों में इतना गुस्सा क्यों भर गया है उनकी दिक्कतें क्या हैं?

जवाब : किसानों के हितों को कोई सरकार सुरक्षित नहीं कर पायी लेकिन यह सरकार इसलिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार है क्योंकि इसने किसानों से बड़े-बड़े वादे किये, उनके वोट लिये लेकिन कुछ नहीं किया। ये एक धोखा है। अगर आप वादा न करें और मदद न करें तो भी एक संघर्ष किसानों को करना ही होता है लेकिन वादा करके वादा खिलाफी करना… किसान आज इस छल को महसूस कर रहे हैं।


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सवाल : क्या कर्ज़माफी इस समस्या के समाधान का रास्ता है? किसान का कर्ज़ माफ करेंगे वो फिर से कर्ज़ में डूब जायेगा। कई लोग कहते हैं कि यह चक्र खत्म होने वाला नहीं है।

जवाब : इस बार हम कर्ज़माफी ही नहीं बल्कि कर्ज़मुक्ति की भी बात कर रहे हैं। हम कर्ज़माफी के साथ कानूनन एक व्यवस्था चाहते हैं कि किसानों को कर्ज़ से राहत मिले जब जबवो कर्ज़ में डूब जाते हैं। किसान अगर कर्ज़ में डूबता हो तो इसके कई कारण होते हैं। प्राकृतिक आपदा हो सकती है। उसे बाज़ार में अपनी फसल का भाव नहीं मिलता। तीसरा है कि कई किसान ऐसे हैं जिन्हें बैंकों या वित्तीय संस्थाओं से कर्ज़ नहीं मिलता। इसीलिये हमने कहा कि कर्ज़दारी से मुक्ति वाले बिल के साथ ही हमें मूल्य से संबंधित बिल भी चाहिये। किसानों को मूल्य दे भी दें तो फनकी कई परेशानियां हैं जैसे इस साल कई किसान सूखे और चक्रवाती तूफान से प्रभावित हैं। उनका नुकसान हुआ है तो अगर मौजूदा कर्ज़ से मुक्ति नहीं मिलेगी तो फिर वह कैसे शुरुआत कर पाएगा।


सवाल : एक तर्क अक्सर दिया जाता है कि किसानी अब मुनाफे का सौदा नहीं है। किसानों को खेती से निकाला जाना चाहिये। क्या आप इस तर्क को मानती हैं?

जवाब : देखिये ऐसा बार-बार कह के ही ऐसी नीतियां बनाई गई हैं जिससे किसानों की ये कमज़ोर हालत हो गई है। देश के आर्थिक ढांचे को लेकर ऐसी सोच बिल्कुल गलत है और हमारे पास इस देश की अर्थव्यवस्था का सुबूत है कि बाकी क्षेत्र कोई हल नहीं निकाल पा रहे हैं और हमें खेती में ही हल निकालना पड़ेगा। ऐसे में यह बात कहना कि किसान को खेती से निकाल कर देश की उन्नति होगी असल में आज पैदा हुई मुसीबत के लिये यही सोच ज़िम्मेदार है।

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सवाल : किसानों की मुख्य मांगें क्या हैं।

जवाब : हम चाहते हैं कि संसद का एक विशेष सत्र बुलाया जाये जिसमें किसानों मुक्ति बिल पास हों। ये बिल कर्ज़दारी से मुक्ति और फसल की उचित कीमत दिलवाने की गारंटी को लेकर हैं। इसके अलावा हम चाहते हैं कि ज़मीन अधिग्रहण न हो । मुक्त व्यापार के समझौतों से किसानों पर बहुत दबाव पड़ रहा है। इन समझौतों की समीक्षा हो और किसानों के हितों का ध्यान रखा जाये।

सवाल : आखिर में जैविक खेती को लेकर क्या कहेंगी। क्या जैविक खेती रास्ता नहीं है किसान पर भार कम करने का ?

जवाब : कई सारे जगहों में जहां आत्महत्याएं हो रही हैं वहां हम देखते हैं कि फसल उगाने की लागत बहुत बढ़ गई है। इसकी वजह से बाज़ारीकरण को बढ़ावा और प्राकृतिक संसाधनों का विनाश। इसकी वजह से किसान कर्ज़ में हैं और उनका मुनाफा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में स्वावलम्बी और सस्टेनेबल खेती के लिये जैविक खेती को बढ़ाना चाहिये जो पर्यावरण के अनुकूल होगी। इससे किसान आत्म निर्भर होगा, खर्च कम होगा और खेतों में ज़हर नहीं पहुंचेगा।

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