छुट्टा गायों और नीलगाय के चलते खेतों में कट रहीं किसानों की रातें

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   25 Jan 2019 5:04 AM GMT

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अरविंद परमार/अरविंद शुक्ला

ललितपुर/सीतापुर। कड़ाके की सर्दी में जब आप अपने घर और फ्लैट के अंदर रजाई में होते हैं फिर भी सर्दी लगती है। रूम हीटर चलाने पर नींद आती है। लेकिन 70 साल के बुजुर्ग पुन्नू विश्वकर्मा इस कड़ाके की ठंड में पूरी रात खुले आसमान के नीचे बिताते हैं। पुन्नू ही नहीं उनके आस-पड़ोस में ऐसे हजारों किसान हैं जो अपनी फसलों की रखवाली के लिए पूरी रात खेत में बिताने को मजबूर हैं।

पुन्नू विश्वकर्मा दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के दिगवार गांव के रहने वाले हैं। उनका ज्यादातर वक्त खेतों में बीतता है। घर सिर्फ खाना खाने के लिए जाते हैं तो कई बार खाना भी खेत पर पहुंच जाता है। चने के खेत में मचान के किनारे बैठे मिले पुन्नू विश्वकर्मा में रात जागने की वजह बताते हैं, "घर पर सोएंगे तो फसल से राम-राम हो जायेगी। अन्ना (छुट्टा गाएं-बछड़े और साड़) और नीलगाय अन्न का एक दाना भी नहीं छोड़ेंगे। फसल बचानी है तो इसी सर्दी में रातों को जागना पड़ेगा।" पुन्नू की तरह ललितपुर में ही गगनिया गांव के चंद्रपाल सिंह (34 वर्ष) बताते हैं, "पशुओं को इतना आतंक है कि दो महीनो हो गए खेत में ही सोना होता है। अब जब तक फसल कटकर घर नहीं आ जाती, यही चलेगा। महीनों खेत में बिताना पड़ता है।"

कर्ज, भुखमरी, पलायन और किसान की आत्महत्या के लिए पहचाने जाने वाले बुंदेलखंड के इस इलाके में अगर आप इन दिनों आएंगे लगभग हर खेत में मचान मिलेंगे। घास-फूस और पॉलीथीन के बने इन्हीं मचानों के सहारे किसान अपनी फसलें बचाने की कोशिश में रहते हैं।

सिर्फ खेत में रहने से काम नहीं चलता। पूरी-पूरी रात पहरा देना पड़ता है।
पुन्नू, ललितपुर के बुजुर्ग किसान

पुन्नू ने अपने खेत में बहुत सारे उपले, कंडे, लकड़ियां रखे हुए हैं, जिन्हें जलाकर वो सर्दी को मात देते हैं। पुन्नू की तस्वीर देखकर आप को प्रेमचंद कालजयी कहानी 'पूस की रात' की याद आएगी। कहानी का नायक हल्कू थोड़ी सी आग के सहारे कड़ाके की सर्दी में खेत की रखवाली करता है। प्रेमचंद के हल्कू की फसल को खतरा सिर्फ जंगली जानवरों (नीलगाय- सूकर) आदि से खतरा था, लेकिन पुन्नू की सबसे बड़ी समस्या गोवंश हैं, इनमें से ज्यादातर वो गाय हैं जो खुद किसानों द्वारा छोड़ी गई हैं।

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किसानों की समस्या और बढ़ गई


सिर्फ ललितपुर ही नहीं, यूपी के लगभग हर जिला इन पशुओं से परेशान हैं। ललितपुर से करीब 600 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के रामपुरमथुरा ब्लॉक के रमुआपुरवा के राजपाल यादव के इलाके पर कुदरत की मेहरबनी है। जमीन इतनी उपजाऊ है जो कुछ बो दिया जाता है खूब होता है लेकिन उसके लिए किस्मत चाहिए वरना छुट्टा जानवर खेत में ही बर्बाद कर देंगे। राजपाल बताते हैं, "गायों से बहुत परेशान हैं, पूरा-पूरा गन्ना बर्बाद कर देती हैं, इसलिए खेतों में पहरा देना पड़ता है।" किसानों के लिए सिरदर्द बने इन पशुओं से सबसे ज्यादा संख्या उन्हीं गायों की है, जो पिछले कई वर्षों से देशभर में चर्चा का विषय बनी रही हैं। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद गोकशी पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन इन गायों के रहने और खाने के इंतजाम नहीं किए गए, जिससे किसानों की समस्या और बढ़ गई। सदन से लेकर सोशल मीडिया तक लगातर ये मुद्दा गर्माया, आरोप-प्रत्यारोप और सियासत हुई, लेकिन किसानों को राहत नहीं मिली।

झुंड में चलने वाली नीलगाय बर्बाद कर देती हैं खेत के खेत।

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वर्षों तक योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र रहे गोरखपुर में रमवापुर गाँव के अजय मिश्रा (32 वर्ष) को गायों से पूरी हमदर्दी और आस्था है लेकिन समस्या उनकी भी गंभीर है। वो बताते हैं, "गोकशी बंद होने से पूरी आफत किसानों पर आ गई है। पहले सिर्फ नीलगाय से परेशान थे अब छुट्टा गाय, बछड़े और सांड बहुत उत्पात मचाते हैं। रात में 2-3 बार खेत देखकर आते हैं। ये जानवर इन दिनों किसानों के सबसे बड़े दुश्मन हैं।" अजय मिश्रा के पास इस वक्त 2 एकड़ में गोभी और आलू समेत सब्जियां लगी हैं, जिसमें उन्होंने 10 हजार रुपए लगाकर कटीले तार लगवाए हैं, उनके मुताबिक पूरे खेत की तारबंदी कराने के लिए कम से कम 50 हजार रुपए और चाहिए।

19वीं पशुगणना के मुताबिक देश के 51 करोड़ मवेशियों में से गोवंश (गाय-सांड, बैंड बछिया, बछड़ा) की संख्या 19 करोड़ है। उत्तर प्रदेश में दो करोड़ 95 लाख गोवंश हैं। हालांकि इनमें से छुट्टा जानवर कितने हैं, इसकी संख्या ज्ञात नहीं है। देश में हो रही 20वीं पशुगणना में छुट्टा पशुओं की अलग से गणना हो रही है। दूध उत्पादन में दुनिया में भारत नंबर एक है तो देश में यूपी सबसे आगे, लेकिन इसी प्रदेश में इन गायों की संख्या की सबसे ज्यादा बताई जाती है।

बुदेलखंड में इन पशुओं को अन्ना कहा जाता है। यहां दूध निकालने के बाद पशु छोड़ने की परंपरा थी, जिसे अन्ना प्रथा कहा जाता है। लेकिन ये प्रथा यहां के लिए कलंक बन गई है। बांदा से लेकर ललितपुर तक हजारों किसान अगर किसी तरह सिंचाई का इंतजाम कर भी लें तो इन पशुओं के डर से साल के दूसरे महीनों में फसल नहीं लगाते। सीतापुर के राजपाल कहते हैं, सरकार को इस संकट की गंभीरता का शायद अंदाजा न हो। लेकिन किसान बहुत परेशान हैं। रात-रात भर खेत की रखवाली करने वाले ललितपुर के परमूसेन (60 वर्ष) कहते हैं, "जिनके पास पैसा हैं, उन्होने तार लगवा लिए। उनकी फसल का छुट्टा जानवरों से बच जाती हैं! लेकिन नीलगायों की रखवाली तो उन्हें भी ही पडती हैं।"

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छुट्टा गायों की बढ़ती संख्या को देखते हुए योगी सरकार ने हर जिले में गोशालाएं खोलने की कवायद शुरू की है। इसके साथ ही गाय आधारित शून्य बजट प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। पिछले दिनों लखनऊ में आयोजित सुभाष पालेकर के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, हमें किसानों की समस्याओं का अंदाजा है, इसलिए हर जिले में गोशालाएं खोली जाएंगी, लेकिन इसके लिए आम लोगों को भी सामने आना होगा। ' गायों को छुट्टा छोड़ने की एक बड़ी वजह उनका कम उपयोगी होना है।

गांव कनेक्शन दैनिक अख़बार में पेज एक पर प्रकाशित ख़बर

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