कृषि संकट: किसानों के परिजन भी कर रहे आत्महत्या

17 साल के एक लड़के आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके पिता फीस नहीं दे पा रहे थे, इससे पहले एक छात्रा ने भी फीस के लिए जान दी थी। वो लड़कियां भी आत्महत्या कर रही हैं, जिनके घरों में शादी के खर्च़ का इंतमाम नहीं हो पा रहा?

Arvind ShuklaArvind Shukla   22 Nov 2019 5:51 AM GMT

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कृषि संकट: किसानों के परिजन भी कर रहे आत्महत्या

लातूर/नांदेड़ (महाराष्ट्र)। कृषि संकट के चलते किसानों के बाद उनके परिवार वाले भी अत्महत्या कर रहे हैं। सूखे के लिए कुख्यात महाराष्ट्र के लातूर जिले में 17 साल के एक छात्र ने फांसी लगा कर जान दे दी। परिजनों का कहना है उसकी 12वीं की फीस और खर्च के लिए पैसे नहीं मिल पा रहे थे, इसलिए उसने जान दे दी।

"मेरे भाई श्रीधर श्रीकृष्ण पाटिल ने 6 नवंबर को आत्महत्या कर ली। उसे पैसे नहीं मिल पा रहे थे, तीन-चार साल से बारिश नहीं हुई तो खेत में कुछ हुआ नहीं, इस साल की सोयाबीन बारिश से बर्बाद हो गई। पैसे को लेकर घर में खींचतान थी, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली, "बाजीराव महादेव पाटिल, अपने चचेरे भाई की मोबाइल में फोटो दिखाते हुए कहते हैं। श्रीधर पाटिल मुंबई से करीब 550 किलोमीटर दूर लातूर जिले की औसा तालुका के बोरोगांव में रहता था और 12वीं के बाद डॉक्टर बनना चाहता था। लातूर मराठवाड़ा के 8 जिलों में से एक है।

महाराष्ट्र में नवंबर के पहले पखवाड़े में जब मुंबई में भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में खींचतान चल रही थी, अपने टूटे-फूटे और बेहद छोटे से घर के बाहर तिरपाल पर बैठे श्रीधर श्रीकृष्ण पाटिल के पिता श्रीकृष्ण पाटिल अपने आप को कोस रहे थे कि काश वो अपने बेटे का सपना पूरा कर पाते। श्रीधर ने हाईस्कूल में 72 फीसदी नंबर पाए थे, परिजनों के मुताबिक वो 12वीं में अच्छे नंबर लाने के लिए कॉलेज में पढ़ाई के साथ ही ट्यूशन भी पढ़ रहा था। मराठवाड़ा में प्रति विषय 12वीं के लिए औसतन 10 से 25 हजार रुपए की ट्यूशन फीस लगती है।

परभणी जिले में एक किसान ने आत्महत्या की। तुरंत बाद उसके भाई की बेटी ने आत्महत्या कर ली और चिट्ठी में लिखा कि मुझे डर है कि कहीं आप भी चाचा की तरह मेरी शादी की खर्च के डर से आत्महत्या न कर लें, तो सिर्फ किसान नहीं उसके परिजन भी आत्महत्या कर रहे हैं। - राजन क्षीरसागर, उपाध्यक्ष, किसान संगठन, सीपीआई

सितंबर से लेकर नवंबर तक हुई भीषण बारिश के चलते 14 अक्टूबर से 11 नवंबर के बीच मराठवाड़ा में 68 किसानों ने जान दी है। भारत में सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्याएं महाराष्ट्र में होती हैं। पिछले महीने आई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की 2016 की 'एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइड' की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में देश में 11,379 किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें से 3,661 किसान महाराष्ट्र से थे। अगर 2016 के ही आंकड़ों को आधार माने तो औसतन रोज 10 किसान महाराष्ट्र में मौत को गले लगा रहे हैं। जबकि बहुत सारे केस सरकार की किसान आत्महत्या की परिधि में नहीं आए, साथ ही किसानों के बेटे-बेटियों की मौत को कृषि संकट में गिना नहीं जाता।

उस्मानाबाद जिले के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता अशोक पंवार 'गाँव कनेक्शन' को बताते हैं, "अपने घरों के हालात (agriculture crisis) देखकर किसानों के बच्चे टेंशन में आ रहे हैं। वो या तो आत्महत्या कर रहे हैं या फिर 10वीं-12वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर मुंबई और पुणे में मजदूरी करने जा रहे हैं। कुछ समय पहले लातूर जिले की चाकूर तहसील में एक छात्रा ने आत्महत्या की थी। मराठवाड़ा में किसान परिवारों का संकट हद से गुजर चुका है।"

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के खंबेगांव में रहने वाले युवा किसान गजानन शिंदे ने सोयाबीन की फसल खराब होने के बाद फांसी लगाकर आत्महत्या कर लगी। कर्ज़ में दबा उनका परिवार अब आर्थिक संकट से जूझ रहा है। फोटो- गांव कनेक्शन

महाराष्ट्र में सीपीआई के किसान संगठन के उपाध्यक्ष राजन क्षीरसागर कहते हैं, "किसान कितना परेशान है ये समझने के लिए महाराष्ट्र के परभणी जिले का एक उदाहरण बताता हूं, यहां पाथरी में किसान ने आत्महत्या की। उसके तुरंत बाद उसके भाई की बेटी ने आत्महत्या कर ली और चिट्ठी में लिखा कि मुझे डर है कि कहीं आप भी चाचा की तरह मेरी शादी के खर्च के डर से आत्महत्या न कर लें, तो सिर्फ किसान नहीं उसके परिजन भी आत्महत्या कर रहे हैं, सरकार इस समस्या को सुलझा नहीं पा रही।"

लातूर के एक कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे श्रीधर के बड़े भाई रुषिकेष पाटिल के मुताबिक उसकी साल में 20 हजार रुपए फीस आती है। इसके अलावा कमरे के 1200 रुपए और मेस के 1800 रुपए महीने के अलग से देने होते हैं। रुषिकेष 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "हमारे कॉलेज में जो फीस आती है, उसे हमारे इलाके से सभी बच्चे 5-6 हजार करके पांच-छह महीने में ही भरते हैं। लेकिन इस बार मेरी और मेरे भाई की फीस एक साथ आ गई। सोयाबीन भी नहीं हुई तो दोनों की फीस देने में मुश्किल हो गई।"

लातूर जिले में श्रीधर पाटिल नामक के १७ साल के युवक ने फांसी लगा ली। वो १२वीं पढ़ता था और डाक्टर बनना चाहता था, लेकिन घर वाले उसकी फीस और खर्च के पैैसे नहीं दे पा रहा था। फोटो- अरविंद शुक्ला

श्रीकृष्ण पाटिल को उम्मीद थी डेढ़ एकड़ में बोई सोयाबीन से वो फीस दें देंगे लेकिन अक्टूबर-नवंबर की बारिश से पूरी फसल चौपट हो गई। श्रीधर की आत्महत्या के दो दिन बाद बेमौसम बारिश से हुई फसल नुकसान के जायजा लेने के लिए सरकार कर्मचारी पहुंचे थे, लेकिन मुआवजा कब और कितना मिलेगा? ये शायद ही किसी को पता हो।

"मेरे चाचा और चाची दोनों बहुत मेहनत करके अपने बच्चों को पढ़ा रहे थे, खेती के अलावा ऑटो भी चलाते थे, दोनों बेटों को पैसे भी देते थे, लेकिन पैसे मिलने में देर लगी थी, आज चाहिए होते थे तो 2-4 दिन लग जाते हैं, " श्रीधर के साथ में पढ़ने वाले उनके चचेरे भाई बाजीराव महादेव पाटिल आगे कहते हैं।

श्रीधर के पिता श्रीकृष्ण पाटिल के पिता के पास साढ़े चार एकड़ जमीन थी, बंटवारे के बाद श्रीकृष्ण और उसके दो भाइयों को डेढ़-डेढ़ एकड़ जमीन मिली। गाँव के अंदर का घर बहुत छोटा था और 1993 के विनाशकारी भूकंप में टूट भी गया था, जिसके बाद ये सभी लोग गाँव के बाहर अपने खेत में अलग-अलग रहने लगे। श्रीकृष्ण के दो बेटे थे। बड़ा बेटा रुषिकेष पाटिल लातूर के एक कॉलेज से इंजीनियर कर रहा है, जहां उसका पहला साल है। जबकि छोटा श्रीधर का इस बार बोर्ड था, वो गाँव के नजदीक कस्बे में रहकर पढ़ाई करता था।

"किसान की परिवार रोजमर्रा की जिंदगी में इतना संघर्ष करता है कि वो तिल-तिल मरना जैसा होता है। लेकिन दूर से किसानों के परिवारों के ये हाल नजर नहीं आता। -संजीवनी पंवार, किसान मित्र नेटवर्क

पिछले कई वर्षों से पानी की किल्लत झेल रहे मराठवाड़ा में ज्यादातर किसानों के पास लैंड होर्डिंग कम है। कर्ज़ में दबे यहां के किसान आदमनी का कोई रास्ता न देखकर आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। फोटो- अरविंद शुक्ला

"पिछले कुछ वर्षों से खेती में कुछ हो नहीं रहा था तो मैंने एक ऑटो खरीद लिया। शुरुआत में अच्छी कमाई हुई लेकिन कुछ दिनों बार इस रूट (औसा-लातूर) पर सरकारी बसों की संख्या बढ़ गई तो ऑटो की आमदनी कम हो गई। मैंने घर नहीं बनवाया, हम दोनों (पति-पत्नी) दिन रात मेहनत कर रहे थे कि बच्चे कुछ बन जाएं, लेकिन...,"मराठी में श्रीकृष्ण पाटिल कहते हैं।

श्रीधर की आत्महत्या के बाद उसके घर ही नहीं गांव में भी मातम जैसा है। बोरेगांव में किसान पहले भी आत्महत्या करते रहे हैं, लेकिन किसी किशोर की आत्महत्या का ये पहला मामला था। श्रीधर की मौत के बाद उनकी मां (आई) सदमे में हैं, पिछले तीन दिनों से उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला था। टीन के छोटे से घर में सिर्फ दो तरफ दीवार थी, बाकी जगह टीन को ही दीवार बनाया गया है जिसमें अरगनी पर कुछ पुराने कपड़े और बिस्तर रखे थे, घर में थोड़े से स्टील और प्लास्टिक के बर्तन, कुछ कनस्तर भी थे, जिसमें शायद राशन रखा जाता होगा। घर को कुछ-कुछ शहरी इलाकों की झुग्गियों सा कह सकते हैं।

अपने घरों के हालात देखकर किसानों के बच्चे तनाव में आ रहे। 10वीं-12वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर मुंबई और पुणे में मजदूरी करने जा रहे हैँ। और कई बार आत्महत्या भी कर रहे। मराठवाड़ा में किसान परिवारों का संकट हद से गुजर चुका है।" अशोक पंवार, सामाजिक कार्यकर्ता और किसान


श्रीकृष्ण पाटिल के पड़ोसी नरसिंह पाटिल किसानों के दर्द कुछ समझाते हैं, "खेती में खर्च (इनपुट) बहुत बढ़ गया है। किसान को जो मिलता है वो बहुत कम होता है। लागत और मुनाफे का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। किसी साल बारिश नहीं होती, किसी साल इतनी ज्यादा बारिश हो जाती है कि फसल चौपट, अगर दोनों बराबर हुए तो मंडी में किसान को भाव नहीं मिलता। किसान का घर चलाना मुश्किल हो गया है। हम बच्चों को ठीक से खाना नहीं खिला पा रहे। पढ़ाई का कैसे कराएं।" नरसिंह पाटिल कहते हैं, "हमारी (किसान) की हालत देखकर हमारे बच्चे बहुत टेंशन में रहने लगे हैं। कई बच्चों के आत्महत्या की ख़बरें आती हैं। दसवीं तक सब पढ़ जाता है, खर्च तो उसके बाद शुरू होते हैं। उसके बाद स्कूल, ट्यूशन, मेस का खर्च किसान कहां से उठाए। कई जवाब बच्चे मर रहे हैं, लड़कियां जान दे रही हैं क्योंकि वो अपने माता-पिता को दु:खी देख रही हैं। जमीन पर हालात बहुत खराब हैं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं।

खेती के संकट का, किसान की आत्महत्या के बाद उसके परिवार पर क्या फर्क पड़ता है। इसे समझने के लिए साल 2015-16 में किसान मित्र नेटवर्क नाम के संगठनों के समूह ने महाराष्ट्र के कई जिलों में एक्शन एड के साथ मिल कर एक सर्वे किया। किसान मित्र नेटवर्क की प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर संजीवनी पंवार गांव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "किसान ज्यादातर बार कर्ज़ के चलते आत्महत्या करते हैं, लेकिन उनका कर्ज़ माफ नहीं होता। कई बार मुआवजा तक नहीं मिलता। मिलता है तो बैंक लोन में काट लेते हैं। किसान का परिवार रोजमर्रा की जिंदगी में इतना संघर्ष करता है। वो तिल-तिल कर मरता है।"

अपनी बात को जारी रखते हुए वो कहती है, "किसान के ज्यादातर परिवारों के बच्चे उच्च शिक्षा नहीं पाते। पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करते हैं। महिलाएं बच्चियां शोषण का शिकार होती हैं। कई बार बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं। कई उन लड़कियों ने भी आत्महत्या की है, जिनके घरों में शादी के लिए खर्च का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। आमतौर पर ऐसे परिणाम दूर से नजर नहीं आते हैं।"

संजीवनी पंवार महाराष्ट्र में एक महिला किसान संगठन से भी जुड़ी हैं, जिसमें शामिल 5 हजार महिलाएं विधवा, तलाक की शिकार और घरों से निकाली गई हैं।


     

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