सुपौल (बिहार)। उत्तर प्रदेश में जो यूरिया 266.50 रुपए में बिकती है वही 45 किलो की एक बोरी बिहार में 300 से लेकर 360 रुपए तक में मुश्किल से मिल पाती है। बिहार के कई जिलों में किसान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की अपेक्षा 50 से 100 रुपए तक प्रति बोरी ज्यादा देकर यूरिया खरीदने को मजबूर हैं। रेट को लेकर चल रहे विवाद के बाद कई जिलों में दूरदराज के इलाकों में खाद मिलने तक में दिक्कत हो रही है। वहीं सरकार ने जीरो टालरेंस नीति की घोषणा करते हुए निर्धारित रेट से ज्यादा वसूलने पर सख्त कार्रवाई का अल्टीमेटम दिया है।
सुपौल जिले के किसान उमेश राय (65 वर्ष) ने 9 जुलाई को 7 बोरी यूरिया 330 रुपए प्रति बोरी के दर से खरीदा, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP)से 64 रुपए प्रति बोरी ज्यादा है। उमेश की तरह बिहार के लाखों किसान कई दशकों से एमआरपी से अधिक कीमत देकर यूरिया-डीएपी और पोटाश खरीद रहे हैं।
“मेरी पंचायत में अलग-अलग कंपनी की यूरिया के अलग-अलग रेट हैं। शक्तिमान यूरिया का रेट जहां 360 रुपए है वहीं दूसरी कंपनी की एक बोरी (45 किलो) का रेट 330 रुपए है। डीएपी का रेट 1200-1300 रुपए प्रति बोरी (50 किलो) है।” उमेश राय बताते हैं।
“पिछले साल हमने धान 1400 रुपए कुंटल में बेचा था, फिलहाल अभी 1200 रुपए का रेट मांगा जा रहा है।” वे आगे जोड़ते हैं।
उमेश राय का गांव दिल्ली से करीब 900 और बिहार की राजधानी पटना से करीब 200 किलोमीटर दूर सुपैल जिले की पिपड़ा विधानसभा क्षेत्र की विणा पंचायत में है। उनके पास करीब 200 कट्ठा (22 कट्ठा- 1 एकड़) जमीन है। उन्हें धान के सीजन में औसतन 20 से 22 बोरी यूरिया की जरुरत होती है। यानि सिर्फ यूरिया में करीब 1300-1500 रुपए अतिरिक्त देने पड़ते हैं। इतना ही नहीं 1200 रुपए वाली डाई आमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) भी 1300 रुपए के ऊपर मिलती है।
किसान को ज्यादा रेट इसलिए देने होते हैं उन्हें फुटकर विक्रेता महंगी देता है, फुटकार वाले को थोक कारोबारी ज्यादा रेट पर देता है। थोक कारोबारियों के मुताबिक उनकी समस्या ये है कि सरकार उन्हें रैक से उठाकर विक्रय केंद्रों तक पहुंचाने का जो भाड़ा लगता है वो वास्तविक लागत का एक चौथाई ही होता है।
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सरकार ने कहा- शपथ पत्र दो कि MRP पर यूरिया बेचोगे, दुकानदार विरोध में
उर्वरकों की कालाबाजारी, अघोषित मूल्यों को लेकर बिहार के किसान, फुटकर विक्रेता और थोक कारोबारी सब में नाराजगी है, कई बार धरना प्रदर्शन भी हुए है लेकिन इस बार बिहार के कृषि विभाग के एक आदेश के बाद फुटकर और थोक विक्रेताओं ने मोर्चा खोल दिया है। जून महीने में कृषि विभाग की तरफ से थोक और फुटकर विक्रेताओं से शपथ पत्र मांगा गया कि वो एमआरपी पर ही उर्वरक बेंचेगे। कई दुकानदारों ने ऐसे शपथ पत्र देने से मना कर दिया।
“खाद विक्रेता सरकारी दर पर बेचे खाद नहीं तो बंद रखें अपनी दुकान।” मधेपुरा के डीएम श्याम बिहारी मीणा ने विभिन्न खाद कंपनियों के क्षेत्रीय प्रबंधक और खाद के थोक विक्रेता समेत पदाधिकारियों के साथ बैठक में इस बात का सख्त निर्देश दिया।
लेकिन जिले के सभी 12 थोक तथा 640 खुदरा खाद विक्रेताओं में से सिर्फ 2 थोक विक्रेताओं और 140 खुदरा विक्रेताओं ने ही शपथ पत्र जमा किया। वहीं दूसरी तरफ ऐसे ही आदेश के बाद मुजफ्फरपुर में थोक और फुटकर विक्रेताओं ने यूरिया बेचना बंद कर दिया है। मधेपुरा और मुजफ्फरपुर,के साथ-साथ पूर्णिया, बेतिया और बिहार के कई इलाकों में खुदरा विक्रेताओं के द्वारा खाद नहीं खरीदने पर किसानों, कृषि संबंधी से जुड़े पदाधिकारियों के साथ साथ उर्वरक कंपनियों की भी परेशानी बढ़ गई है।
मुजफ्फरपुर जिला खुदरा उर्वरक विक्रेता संघ के अध्यक्ष सुधांशु नारायण सिंह कहते हैं, “निर्धारित कीमत से अधिक दर पर यूरिया बेचना हमारी मजबूरी है। एक तो कंपनी व थोक विक्रेता निर्धारित दर से अधिक लेते हैं। ऊपर से स्टॉफ, दुकान किराया, पूंजी पर ब्याज समेत अन्य खर्च हैं।”
हालांकि 12 जुलाई को कृषि निदेशक बिहार ने जारी आदेश में कहा कि प्रदेश में निर्धारित मूल्य से अधिक रेट पर यूरिया बेचने की शिकायत मिलती रही है। खरीफ 2021 में सरकार ने जीरो टॉलरेंस नीति अपनाते हुए सभी उर्वरक (डीएपी, एनपीके, यूरिया) बिक्री केंद्र तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कंपनी की है। ताकि किसानों को उचित मूल्य पर यूरिया मिल सके। इस मामले में किसी तरह की शिकायत मिलने पर उक्त कंपनी के खिलाफ एफसीओ, 1985 एवं ईसी एक्ट के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन ये आदेश अभी तक किसानों और दुकादानरों को जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। सुपौल के एक फुटकर दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ” कोई आदेश जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। अभी भी सभी काम वैसे जारी है। ग्रामीण इलाकों में दुकानदार छिपा कर ही यूरिया किसानों दे रहे हैं।”
रैक से सेल प्वाइंट तक पहुंचाने के भाड़े को लेकर फंसा है पेंच
बिहार के बाढ़ प्रभावित जिला सुपौल के एक थोक उर्वरक सप्लायर सुमन चौधरी इस समस्या की जड़ और उसके असर के बारे में विस्तार से बताते हैं। फोन पर वे गांव कनेक्शन को बताते हैं, “यूरिया की बिक्री सरकार के नियंत्रण में होती है। यूरिया का रेट और कमीशन भी केंद्र सरकार तय करती है। तो उनकी जिम्मेदारी ये भी होना चाहिए कि सेल प्वाइंट (विक्रय केंद्र) तक मैटेरियल कैसे पहुंचे। लेकिन सरकार हमें रैक प्वाइंट (ट्रेन से जहां माल उतरता है) से विक्रय केंद्र तक का जो भाड़ा देती है वो सिर्फ एक चौथाई होता है। फिर भी सरकार चाहती है कि हम उसे एमआरपी पर बेचे।”
चौधरी के मुताबिक बिहार में ये दिक्कत वर्षों पुरानी है। कई बार किसानों और दुकानदारों ने आवाज़ उठाई लेकिन सुनवाई नहीं हुई। सुपौल जिले में रैक नहीं है। सुपौल जिले के लिए यूरिया पास के जिले मधेपुरा से आती है।
चौधरी कहते हैं, “सुपौल में रैक प्वाइंट नहीं है। मधेपुरा हमारे यहां से 36 किलोमीटर दूर है। जहां से माल आता है। सरकार ने विक्रय प्वाइंट तक जो भाड़ा तय किया है वो 154 रुपए प्रति टन है लेकिन सुपौल में मान लीजिए गनेशनपुर में सेल प्वाइंट है वो यहां से 80 किलोमीटर दूर है और उसका भाड़ा करीब 800 प्रति टन तक जाता है। ऐसे भाड़ा कई गुना बढ़ गया है लेकिन सरकार चाहती है कि हम उसे एमआरपी पर ही बेचे।”
भारत में यूरिया और डीएपी का निर्माण और बिक्री केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित है। जिसके लिए सरकार हर साल भारी सब्सिडी देती है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने आम बजट में उर्वरक सब्सिडी के लिए 2021-22 के लिए 79,530 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था।
पिछले 10 वर्षों के आंकड़ों के मुताबिक देशभर में हर साल करीब 500 लाख मीट्रिक टन उर्वरक की खपत होती है। रासायनिक उर्वरकों में सस्ती होने के कारण सबसे ज्यादा खपत यूरिया की होती है। राज्यसभा में सरकार के जवाब के मुताबिक देश में हर साल लगभग 300 लाख मीट्रिक टन यूरिया की खपत होती है। जो देश की कुल उर्वरक का करीब 55-60 फीसदी है।
2019-20 में देश में सबसे ज्यादा प्रति हेक्टेयर उर्वरक बिहार में खपत हुई
उर्वरकों की खपत के मामले में पंजाब-हरियाणा का नाम लिया जाता है, लेकिन साल 2019-20 के आंकड़े देखेंगे तो पाएंगे सबसे ज्यादा खपत बिहार में हुई थी, बिहार में 245.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रासायनिक खादों का प्रयोग किया गया। बिहार पिछले पांच वर्षों से लगातार 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उर्वरक की खपत करता रहा है।
बिहार देश धान उत्पादक प्रमुख राज्यों में शामिल है, जहां की करीब 76 फीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी है। प्रदेश में करीब 79.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से लगभग 32 लाख हेक्टेयर में चावल की खेती होती है। बिहार में 104.32 लाख किसानों के पास कृषि भूमि है, जिसमें 82.9 प्रतिशत भूमि जोत सीमांत किसानों की है, 9.6 छोटे किसानों के हैं और केवल 7.5 फीसदी किसानों के पास ही दो हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन है। पूरे राज्य में 10 लाख टन यूरिया की सालाना खपत है।
बिहार के किसानों के मुताबिक उन्हें अगले 10-15 दिनों में सबसे ज्यादा यूरिया की जरुरत पड़ने वाली है क्योंकि धान की रोपाई के 10-25 दिन बाद ज्यादातर किसान यूरिया का छिड़काव करते हैं। लेकिन खुदरा मूल्य (एमआरपी) विवाद के बाद कई जिलों के ग्रामीण इलाकों में दुकानदारों ने दुकानें बंद कर दी हैं। हालांकि वो अपने घर या गोदामों आदि पर चोरी छिपे यूरिया बेच रहे हैं।
एक दुकानदार ने गांव कनेक्शन को नाम न छापने की शर्त पर बताया, “पूरे बिहार को ये समस्या पता है। किसान भी जानता है कि ऊपर से खाद महंगी आ रही है। लेकिन धान और गेहूं के सीजन समय कुछ अधिकारी सक्रिय हो जाते हैं जो दुकानदारों पर दबाव बनाते है। अगर कुछ बचेगा नहीं हम बेचेंगे क्यों।”
मुजफ्फरपुर जिला उर्वरक विक्रेता संघ के सदस्य डॉक्टर शंकर सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, “रैक प्वाइंट से थोक विक्रेताओं को एनएफएल की यूरिया खाद 239 रुपए, सीएफसीएल यूरिया 243 रुपए, इफको की 242 व कृभकों की 240 रुपए प्रति बैग उठानी होती है। साथ ही प्रति बैग लाने-पहुंचाने,लोडिंग-अनलो का खर्च अलग से होता है। जबकि रेट 266.50 पैसे फिक्स है।”
कई दुकानदारों ने बातचीत में कहा कि पहले बाकी चीजें जैसे डीएपी और दूसरी खादें, कीटशानक दुकानदार बेचता था तो कुछ मैनेज हो जाता था लेकिन अब डीएपी भी 1200 रुपए फिक्स है तो कहीं से ज्यादा मुनाफे की गुंजाइश नहीं रहती है।
सहरसा जिला के खुदरा खाद विक्रेता हरिशंकर मंडल (61वर्ष) के मुताबिक दुकानदारों को एमआरपी पर खाद बेचने में दिक्कत नहीं है लेकिन उन्हें पीछे से भी कम पैसे पर तो मिले। वे कहते हैं, “किसानों के लिए निर्धारित दर 266.50 रुपए प्रति बैग यूरिया देने के लिए उर्वरक कंपनियों को खुदरा विक्रेताओं के दुकानों तक यूरिया का बोरा उपलब्ध कराना पड़ेगा। साथ ही उसी दर से कमीशन बढ़ाना होगा।”
एक बोरी यूरिया पर 16 रुपए कमीशन- दो हिस्सेदार
सुपौल के थोक कारोबारी सुमन चौधरी कहते हैं, “यूरिया पर कुल कमीशन 354 रुपए टन यानि 16 रुपए प्रति बैग (45 किलो) है। इसमें भी दो लोग शामिल हैं थोक और फुटकार कारोबारी, यानि एक के हिस्से में सिर्फ 8 रुपए प्रति बोरी आए। उर्वरक का जो वितरण है उसमें कंपनी डिस्ट्रीब्यूटर को देगी और वो फुटकर दुकानदार को, किसान को सिर्फ फुटकर दुकानदार ही बेच सकते हैं।”
इस समस्या का समाधान कैसे होगा? इसके जवाब में चौधरी कहते हैं, “सरकार को चाहिए की सेल प्वाइंट्स तक माल पहुंचाए और होल सेलर का कमशीन 5 फीसदी रिटेलर का 8 फीसदी किया जाएगा।”
चौधरी के मुताबिक यूपी में यूरिया और उवर्रक एमआरपी पर बिकते हैं क्योंकि वहां कई उर्वरक इंड्स्ट्री हैं। ” बिहार में खाद का कोई कारखाना नहीं है। इसलिए कंपनियां तर्क देती हैं कि दूसरे राज्यों से लाने में उनका ट्रांसपोटेशन खर्च बढ़ जाता है। फिलहाल बरौनी के एक पुराने कारखाने पर काम चालू है देखो वहां कब तक उत्पादन शुरु होता है।”
पैक्स का रोल क्या है
यूपी की सहकारी समितियों की बजाए बिहार में धान-गेहूं की खरीद से लेकर उर्वरक और कृषि ऋण तक का काम पैक्क के जरिए होता है। प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी (PACS) एक पंचायत और ग्रामीण स्तर की इकाई है। इन पैक्स के जरिए यहां इफको की यूरिया का वितरण भी होता है लेकिन ज्यादातर जगहों पर किसानों को मायूसी ही हाथ लगती है।
बिहार के मोतिहारी जिले के चंद्र मोहन यादव (45वर्ष) बताते के मुताबिक उनके गांव में यूरिया 320 रुपए बोरी है लेकिन किसानों की जरुरत पर 350 तक पहुंच जाती है। वो कहते हैं, “पैक्स के इतनी यूरिया नहीं होती कि गांव और पंचायत की खपत पूरी कर सके। लेकिन जितना भी उपलब्ध हो पाता है। वह सरकारी दर पर ही होता है। बाहर जो यूरिया इन दिनों 320 रुपए की है वो बारिश होने के बाद 350 रुपए तक पहुंच जाती है।
मधुबनी जिले के प्रमुख मधेपुर में खरिक गांव के अरविंद साहू के मुताबिक के यहां यूरिया अभी से 350 में बिक रही है, जबकि डीएपी का रेट 1300 है वो कहते हैं, “यहां 10 सालों से कोई भी पैक्स की सुविधा नहीं है। सब कुछ प्राइवेट डीलर से ही होता है।”