यकीन मानिए ये वीडियो देखकर आपके मन में किसानों के लिए इज्जत बढ़ जाएगी …

मंदसौर मध्य प्रदेश के उन जिलों में शामिल है, जहां की मिट्टी पथरीली है। खेत बनाने से पहले बड़े पत्थर हटाए जाते हैं। किसान कम से कम 10-15 साल जब ये प्रक्रिया करते हैं तब जाकर उनके खेत ठीक हो पाते हैं।

Arvind ShuklaArvind Shukla   29 Jun 2020 7:30 AM GMT

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मंदसौर (मध्य प्रदेश)। जो सब्जी, दाल, रोटी आपकी थाली तक पहुंचता है, वो कैसे उगता है.. हो सकता है हममें से तमाम लोगों ने न देखा हो। काफी लोगों को ये भी लगता है और लगता होगा कि किसान खेत में कुछ बीज छिड़क आते हैं और थोड़ी बहुत मेहनत के बाद फसल तैयार हो जाती है.. अगर आप के मन में भी कोई ऐसा पूर्वाग्रह है.. ये वीडियो देखकर आपकी सोच बदल जाएगी।

मैं दावे से कह सकता हूं, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले का ये वीडियो देखकर संभव है हमारी तरह आप किसानों की ज्यादा इज्जत करने लगेंगे, उनके काम को सम्मान देंगे।

दिल्ली से करीब 700 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश में एक जिला है मंदसौर। ये जिला 2017 में किसानों के आंदोलन के चलते चर्चा में आया। मंदसौर की मिट्टी पथरीली है। यहां खेतों में फसल कम पत्थर ज्यादा निकलते हैं। इन पत्थरों के चलते खेत की जुताई,निराई गोड़ाई सब काफी मुश्किल काम हैं।


गांव कनेक्शन की टीम जब मंदसौर पहुंची तो सूरज अपने सितम ढा रहा था। जून की तपती दुपहरी में मल्लारगढ़ में गर्रावद गांव के मंगल चौहान (45 वर्ष) अपने परिवार और मजदूरों के साथ खेत में जुटे थे। ये समय कोई फसल बोने का नहीं बल्कि खेत से पत्थर हटाने का है। पत्थर बीनती महिलाओं ने चेहरा ढंक रखा है, कुछ ने मोटे दास्ताने भी पहन रखे हैं, लेकिन कुछ पत्थर इतने नुकीले थे कि उन दास्तानों में भी छेद हो गए थे।

सिर पर बंधे गमछे से पसीना पोछते हुए मंगल बताते हैं, "खेतों से ये छोटे-छोटे पत्थर नहीं हटाएंगे तो अनाज का एक दाना नहीं होगा। साल में एक बार फसल बोने से पहले हम लोगों को ये काम करना पड़ता है। काफी खर्च भी होता है।" करीब ढाई एकड़ खेत में मंगल 5 मजदूरों के सहारे तीन दिन में एक छोटा हिस्सा साफ करवा पाए थे, बाकि के काम में कम से कम आठ दिन और लगने थे।

ये पत्थर चुभते भी हैं और गर्मी में तपते भी। किसानों के मुताबिक कई बार ये काम करने के लिए मजदूर तक तैयार नहीं होते। यहां तक कि ऐसे खेतों में जुताई के लिए ट्रैक्टर वाले भी नहीं आते हैं क्योंकि उनके ट्रैक्टर के टायर जल्द खराब हो जाते हैं।

मंदसौर मध्य प्रदेश के उन जिलों में शामिल है, जहां की मिट्टी पथरीली है। खेत बनाने से पहले बड़े पत्थर हटाए जाते हैं और एक बार खेती शुरु हुई हो हर साल कई खेतों से किसानों को ये पत्थर बीन-बीन कर खेतों के किनारे लगाने पड़ते हैं।

गर्रावद गांव के प्रगतिशील किसान इंदल सिंह चौहान बताते हैं, यहां की जमीन उपजाऊ है लेकिन पत्थर हटाए बिना क्या होगा। ये पत्थर किसी काम के नहीं। इलाके की जमीन ही पथरीली है तो एक बार पत्थर हटाए गए तो जुताई के बाद फिर वो ऊपर आ जाते हैं। कम से कम 10-15 साल किसान जब ये प्रक्रिया करते हैं तो उनके खेत ठीक हो पाते हैं।"

इंदल सिंह के मुताबिक पत्थर उठाते-उठाते हाथों में फफोले पड़ जाते हैं, तो कई किसानों के पैर छिल जाते हैं।

मंदसौर की मिट्टी काफी उपजाऊ है। सोयाबीन, मक्का, उड़द, चना, प्याज, लहसुन, ईसबगोल, कलौंजी, धनिया खूब होती है। लेकिन उपजाऊ काली मिट्टी के सामने पानी और पत्थर का रोड़ा है। खेती पूरी तरह मॉनसून पर निर्भर है। पानी बरसा तो साल में खरीफ के दौरान सोयाबीन, उड़द और मक्का खूब होगा। पानी कम बरसा तो खरीफ की फसल चौपट होगी ही रबी के सीजन (जाड़े के दौरान, प्याज, लहुसन, अफीम) आदि के होने में भी मुश्किल आएगी। ज्यादातर किसानों के खेतों में कुएं नजर आएंगे। कुछ पक्के तो कुछ सिर्फ चट्टानों के बीच बने गड्ढे जैसे।


पिपलिया मंडी के पास चिल्लौद पिपलिया गांव के पारसनाथ कहते हैं, ऊपर पत्थर हैं, जमीन में 15 फीट नीचे पत्थरों की मोटी चट्टान है। इसीलिए बारिश का पानी रुकता नहीं, वॉटर लेवल (ग्राउंड वॉटर) काफी नीचे है। समर्थ किसानों ने अपने खेतों में कुएं बनाकर बिजली की मोटर रखवा ली है। बारिश अच्छी हुई तो कुएं भर जाते हैं, इनसे 3-4 सिंचाई कर खेती होती है।'

अगर बारिश नहीं हुई तो यहां के ज्यादातर खेत वीरान रह जाते हैं। ऐसे में अगर इनके खेत में जो उगता है उसके अच्छे दाम न मिलें। मंडी जाने पर फसल का भाड़ा न निकले तो किसान की नाराजगी सड़क पर दिखती है। फिर मंदसौर जैसे कांड होते हैं। किसान गोलियां खाते हैं, सरकारी संपत्ति का नुकसान होता है।

इन तमाम दुश्वारियों के बीच यहां दो-तीन अच्छी बाते हैं। भरपूर उपजाऊ मिट्टी और खेत तक बिजली। शिवराज सिंह चौहान की सरकार में यहां के गांवों में 24 घंटे बिजली मिलती है तो खेतों में मोटर चलाने के लिए 10 घंटे आपूर्ति के लिए अलग से लाइन भी हैं। बिजली की मांग को देखते हुए गर्रावद गांव से कुछ दूरी पर नया फीडर भी बन रहा है।


उम्मीद है इन किसानों की मेहनत देखकर आप को न सिर्फ अपना काम अच्छा लगा होगा। अगली बार जब अपनी थाली में खाना छोड़कर उठने लगियेगा तो इन किसानों को जेहन में ले आइएगा। पानी का नल खुला छोड़कर बाथरूम से बाहर निकल आते हों तो इनसे उसकी कीमत पूछ लीजिएगा, कि खेत में अगर प्यास लग गई और साथ लाया मटके या बोतल का पानी खत्म हुआ तो कई किलोमीटर का चक्कर तय मानिए।

    

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