धान की खेती न करने पर मिलेगा 2000 रुपए प्रति एकड़

भूजल स्तर को बचाने के लिए किसानों को सीधे नगद फायदा देने वाला पहला राज्य बना हरियाणा, 27 मई से शुरू होगी योजना।

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धान की खेती न करने पर मिलेगा 2000 रुपए प्रति एकड़

शील भारद्वाज

लखनऊ। हरियाणा में धान की अधिकता वाले इलाकों में गिरते भूजल को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने एक खास योजना तैयार की है। फसल विविधीकरण के तहत धान को छोड़ पानी की कम खपत वाली फसलें अपनाने वाले किसानों को राज्य सरकार 2000 रुपए प्रति एकड़ वित्तीय सहायता देगी। साथ ही बीज सहित अन्य फायदे भी दिए जाएंगे।

हरियाणा शायद पहला ऐसा राज्य है, जिसने किसानों को धान की खेती न करने पर इंसेंटिव देने की घोषणा की है।

तीन सौ मीटर तक पहुंच जाएगा भूजल स्तर

केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि कृषि राज्य पंजाब व हरियाणा में तेजी से भूजल स्तर गिरा है। पंजाब के 82 फीसदी और हरियाणा के 76 फीसदी हिस्से में तेजी से भूजल स्तर गिरा है। बोर्ड की हालिया ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि हरियाणा, पंजाब व राजस्थान में भूजल स्तर 300 मीटर तक पहुंचने का अंदेशा है। अगले 20 से 25 साल में भूजल स्तर खत्म होने की संभावना भी जताई गई है।


बढ़ते भूजल संकट को देखते हुए 21 मई को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि इस संकट को काबू पाने के लिए धान की खेती को हतोत्साहित करने का निर्णय लिया गया है। हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने पानी व अन्य संसाधनों के संरक्षण के लिए धान बाहुल्य जिलों में किसानों का रूझान धान से हटाने व इसके लिए मक्का, दलहन व तिलहन जैसी अन्य फसलों की ओर प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश के सात खण्डों असंध, पुण्डरी, नरवाना, थानेसर, अंबाला-1, रादौर व गन्नौर में पायलट परियोजना 27 मई, 2019 से शुरू करने का निर्णय लिया है।

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उन्होंने आगे कहा कि इसके लिए विभाग के पोर्टल पर किसानों का पंजीकरण किया जाएगा। इस योजना के तहत गैर-बासमती धान के क्षेत्र में मक्का फसल के विविधीकरण होने से पानी की कुल बचत 0.71 करोड़ सैंटीमीटर (1 सेंटीमीटर=एक लाख लीटर) होना अपेक्षित है।

किसानों का पोर्टल पर किया जाएगा पंजीकरण

मक्का व अन्य फसलें जैसे अरहर के विविधीकरण के इच्छुक किसानों का एक पोर्टल पर पंजीकरण किया जाएगा। इस योजना के तहत पहचान किए गए किसानों को मुफ्त में बीज उपलब्ध करवाया जाएगा, जिसकी कीमत 1200 से 2000 रुपये प्रति एकड़ होगी। बीज के अलावा 2000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से वित्तीय सहायता दो चरणों में प्रदान की जाएगी। इसमें 200 रुपए पोर्टल पर पंजीकरण के समय और शेष राशि 1800 रुपए बिजाई किए गए क्षेत्र के सत्यापन उपरांत किसानों के खाते डाली जाएंगी।


योजना के तहत मक्का फसल की बीमा प्रीमियम राशि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 766 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से भी सरकार वहन करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक किलोग्राम चावल उगाने के लिए 3000 से 3500 लीटर पानी की खपत होती है।

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राज्य के सात जिलों नामत: यमुनानगर, अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद और सोनीपत धान बाहुल्य क्षेत्र में योजना के तहत इन जिलों के सात खंडों के क्षेत्र से धान की खेती को कम करने का प्रस्ताव है। यहां यह उल्लेखनीय है कि 1970 के दशक में मक्का और दलहन हरियाणा की प्रमुख फसलें होती थीं, जोकि अब पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं और इसके स्थान पर धान और गेहूं जैसी जलरोधी फसलों ने कब्जा कर लिया है।


मुख्यमंत्री ने कहा, पुराने मक्का/दलहन क्षेत्र को वापस लाने के लिए धान की फसल का तत्काल विविधीकरण करके इन फसलों के अंतर्गत लाया जाएगा।

तय की जाएगी न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर

हरियाणा में मक्का उपज भी हैफेड, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग जैसी सरकारी खरीद एजेंसियों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर से की जाएगी। इसी तरह खरीफ सीजन के दौरान 2500 हेक्टेयर क्षेत्र में धान के स्थान पर दलहन फसल (अरहर) का भी विविधीकरण किया जाएगा। किसानों को दलहन फसल का बीज भी नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जाएगा और उसी प्रकार से प्रोत्साहन भी दिया जायेगा।


हरियाणा में धान को बदलने के लिए मक्का की फसल ही अंतिम उपाय है। मक्का फसल से हरा चारा, बेबी कॉर्न का उत्पादन भी किया जा सकता है जो कई गुना पानी की बचत, गेहूं की उपज में वृद्धि करने तथा जल संरक्षण के लिए उपयुक्त रहेगा। इससे खेती में कम रसायनों की जरूरत पड़ेगी। बेबी कॉर्न व कम अवधि की सब्जी फसलें उगाने से लोगों की प्रतिदिन की स्थानीय आवश्यकताएं तो पूरी होंगी ही साथ ही स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।

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फसल विविधता योजना शुरू करने का उद्देश्य पानी, बिजली की बचत और मृदा स्वास्थ्य में सुधार करना भी है। राज्य में धान को अपनाने में प्रमुख चिंता पानी की कमी, बिजली की अधिक खपत, मिट्टी और मानव स्वास्थ्य में गिरावट, भविष्य की समस्याओं जैसे कि भूमिगत पानी के स्तर में गिरावट, भूजल प्रदूषण, गेहूं पर बुरा प्रभाव होता है। क्योंकि गेहूं की बिजाई में देरी के कारण गेहूं की परिपक्वता के समय टर्मिनल ताप का बढ़ना जिस कारण गेहूं की पैदावार में कमी हो रही है, जिससे किसानों को सीधा नुकसान हो रहा है।

गेहूं का उत्पादन दस प्रतिशत अधिक होने का अनुमान

मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में धान के स्थान पर मक्का व अरहर की फसल की बुआई होती है तो गेहूं का उत्पादन 10 प्रतिशत अधिक होने का अनुमान है क्योंकि मक्का की फसल 90 से 100 दिन में पक कर तैयार होती है और 10 अक्टूबर तक खेत खाली हो जाते हैं। इसलिए गेहूं की बिजाई का समय पहले मिल जाता है जबकि धान की फसल तैयार होने में 130 से 140 दिन का समय लगता है और नवम्बर में खेत खाली होते हैं और उसके बाद पराली प्रबन्धन की एक समस्या रहती है।


धान की फ़सल कम करना उद्देश्य

योजना के तहत शामिल किये गये सात खण्डों में 195357 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल होती है जिसमें 45 प्रतिशत अर्थात 87900 हेक्टेयर क्षेत्र में गैर बासमती धान होता है और क्षेत्र में धान की फसल कम करना योजना का मुख्य उद्देश्य है। इस योजना के तहत मक्का का बीज मुफ्त दिया जाएगा और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा के प्रीमियम की किस्त भी सरकार द्वारा वहन की जाएगी।

नोट- Down to Earth से इनपुट के साथ।

   

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