कृषि अध्यादेशों के खिलाफ बढ़ रहा विरोध, केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने दिया इस्तीफा

कृषि अध्यादेशों के खिलाफ देश में विरोध बढ़ता जा रहा है। किसानों से जुड़े इस नए बिल के विरोध में आज केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने अपना इस्तीफा दे दिया है। वहीं मध्य प्रदेश में किसानों ने कृषि अध्यादेशों के खिलाफ आज हुंकार रैली निकाल कर केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ विरोध जताया।

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कृषि अध्यादेशों के खिलाफ बढ़ रहा विरोध, केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने दिया इस्तीफाकिसानों से जुड़े नए बिल के खिलाफ केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने दिया इस्तीफा।

देश में कृषि अध्यादेशों के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है। किसानों से जुड़े इस नए बिल के खिलाफ केंद्र की एनडीए सरकार में भी मतभेद नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने आज अपना इस्तीफा दे दिया है।

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने ट्वीट कर कहा, "मैंने किसान विरोधी अध्यादेशों और कानून के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने पर मुझे गर्व है।"

इससे पहले पंजाब में भी कृषि अध्यादेशों के खिलाफ किसानों ने जोरदार प्रदर्शन किया था। वहीं एक दिन पहले नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन में कई किसान नेता गिरफ्तार किये जाने के बाद आज प्रधानमंत्री के जन्मदिन के अवसर पर मध्य प्रदेश के विदिशा में सैकड़ों किसानों ने मोटर साइकिल रैली निकाल कर कृषि अध्यादेशों के खिलाफ अपना विरोध जताया।

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन की विदिशा इकाई की ओर से आयोजित इस किसान हुंकार रैली में किसान नेताओं ने ग्राम कामखेड़ा 84 ग्राम में न सिर्फ एक सभा कर केंद्र सरकार के खिलाफ किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि वहां से विदिशा कलेक्ट्रेट तक मोटरसाइकिल रैली निकाल कर किसानों ने कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा।

किसानों के साथ कलेक्ट्रेट पहुंच कर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज ने कहा, "तीनों कृषि अध्यादेश देश के किसानों के हित में नहीं हैं। ऐसे में अलग-अलग राज्यों में केंद्र सरकार के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन जारी रहेगा, गाँव-गाँव जा कर हम केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे।"

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में सभा संबोधित कर कृषि अध्यादेशों के खिलाफ किसानों को जागरूक करते किसान नेता। फोटो : गाँव कनेक्शन

इससे एक दिन पहले 16 सितम्बर को नई दिल्ली में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन समेत कई किसान नेताओं ने केंद्र सरकार के कृषि अध्यादेशों के खिलाफ जंतर-मंतर पर जोरदार प्रदर्शन किया।

इस प्रदर्शन के देश के प्रमुख गैर-राजनीतिक किसान नेताओं में मध्य प्रदेश से शिव कुमार कक्काजी, पंजाब से जगजीत सिंह दल्लेवाल, उत्तर प्रदेश से हरपाल चौधरी बिलारी, राजस्थान से इंदरजीत पन्नीवाला, हरियाणा से अभिमन्यु कोहाड़ समेत संतवीर सिंह, रंजीत राजू, समेत सैकड़ों किसानों ने गिरफ्तारी दी। ये सभी किसान नेता सैकड़ों किसानों के साथ प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर संसद मार्च निकालने की तैयारी में थे।

प्रदर्शन कर रहे किसानों की मुख्य मांगों में तीनों किसान विरोधी कृषि अध्यादेशों को वापस लेने के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की गारंटी का कानून बनाने, स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले के अनुसार किसानों को फसलों का एमएसपी दिया जाने और किसानों को पूर्ण कर्जमुक्त किया जाने की मांगें भी शामिल रहीं।

राष्ट्रीय किसान महासंघ के पदाधिकारी 10 अगस्त से पूरे देश में गाँव-गाँव जाकर किसानों को कृषि अध्यादेशों के नुकसानों के बारे में जागरूक कर रहे हैं।

इससे पहले दिल्ली में सांकेतिक प्रदर्शन के दौरान अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) के संयोजक वीएम सिंह ने कहा था, "हमारे देश में नारा है जय जवान जय किसान लेकिन हमारा किसान बर्बाद हो रहा है, आत्महत्या कर रहा है। सरकार की किसान विरोधी नीतियों के चलते किसान की हालत बद्तर हो रही है। लेकिन अब किसान जब तक संसद चलेगी गांव-गांव में सरकार के विरोध में प्रदर्शन करेंगे।"

इससे पहले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने संसद के चालू सत्र में सभी सांसदों और पार्टियों को पत्र लिखकर अपील किया है कि वो किसान विरोधी कदमों का विरोध कर इन्हें वापस कराएं।

वहीं 10 सितम्बर को हरियाणा की पीपली मंडी में किसानों ने कृषि अध्यादेशों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज किया, जिसमें कई किसान घायल हो गए थे।

किसान सरकार के जिन तीन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं वह क्या और उसका विरोध क्यों हो रहा?

1. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी। अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है।

किसान और किसान संगठनों का मानना है कि सरकार की इस नीति से किसानों को नुकसान होगा। इस बारे में भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ कहते हैं, "समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है। कम्पनियाँ और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे।"

किसान संगठनों का कहना कि इस बदलाव से कालाबाजारी घटेगी नहीं बल्की बढ़ेगी। जमाखोरी बढ़ेगी। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी 1972 में मंडी एक्ट लेकर आए थे। मंडी में औने पौने दामों पर फसल की कीमत न तय हो, इसकी व्यवस्था इसमें थी, लेकिन नीति असफल होती गई।


2. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग-The Farmers Agreement on Price Assurance and Farm Services Ordinance

केंद्रीय कृषि सचिव कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा), संजय अग्रवाल ने एक कार्यक्रम में कहा था कि व्यावसायिक खेती के समझौते वक्त की जरूरत है। विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं।

इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे, लेकिन भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ का मानना है, "इस नए अध्यादेश के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा। इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है।"

"अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है। पिछले साल गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसान संगठनों के विरोध के चलते कम्पनी ने वापस ले लिया था।"

वे आगे कहते हैं। अभिमन्यु आगे कहते हैं, "कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कम्पनियां किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा करती हैं लेकिन बाद में जब किसान की फसल तैयार हो जाती है तो कम्पनियाँ किसानों को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहती हैं और बाद में किसानों के उत्पाद को खराब बता कर रिजेक्ट कर दिया जाता है।"

"केंद्र सरकार का कहना है कि इन तीन कृषि अध्यादेशों से किसानों के लिए फ्री मार्केट की व्यवस्था बनाई जाएगी जिससे किसानों को लाभ होगा, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि अमेरिका व यूरोप में फ्री मार्केट यानी बाजार आधारित नीति लागू होने से पहले 1970 में रिटेल कीमत की 40% राशि किसानों को मिलती थी, अब फ्री मार्केट नीति लागू होने के बाद किसानों को रिटेल कीमत की मात्र 15% राशि मिलती है यानी फ्री मार्केट से कम्पनियों व सुपर मार्केट को फायदा हुआ है।"

"फ्री मार्केट नीति होने के बावजूद किसानों को जीवित रखने के लिए यूरोप में किसानों को हर साल लगभग सात लाख करोड़ रुपये की सरकारी मदद मिलती है। अमेरिका व यूरोप का अनुभव बताता है कि फ्री मार्केट नीतियों से किसानों को नुकसान होता है।" अभिमन्यु कहते हैं।


3. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस

केंद्र सरकार ने जून 2020 में फार्मिंग प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) अध्यादेश 2020 को मंजूरी दे दी थी। इसके तहत किसानों को एपीएमसी में अपनी उपज बेचने की बाध्यता नहीं होगी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने इसे लेकर कहा था कि किसानों को उनकी बिक्री की आजादी के लिए एपीएमसी एक्ट में सुधार नहीं किया गया है बल्कि ये एक नया एक्ट है और यह व्यापार के लिए है। इसका नाम 'किसान उपज व्यापार वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अध्यादेश 2020 है।

वे आगे कहते हैं कि मौजूदा एपीएमसी मंडियां अपना काम जारी रखेंगी। राज्य एपीएमसी कानून बना रहेगा, लेकिन मंडियों के बाहर यह लागू नहीं होगा। अध्यादेश मूल रूप से एपीएमसी मार्केट यार्ड के बाहर अतिरिक्त व्यापारिक अवसर पैदा करने के लिए है ताकि अतिरिक्त प्रतिस्पर्धा के कारण किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके। लेकिन किसानों को लगता है इस बदलाव से उन्हें नुकसान होगा।

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज कहते हैं, "सरकार के इस फैसले से मंडी व्यवस्था ही खत्म हो जायेगी। इससे किसानों को नुकसान होगा और कॉरपोरेट और बिचौलियों को फायदपा होगा।" वे आगे कहते हैं, "फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस में वन नेशन, वन मार्केट की बात कही जा रही है लेकिन सरकार इसके जरिये कृषि उपज विपणन समितियों (APMC) के एकाधिकार को खत्म करना चाहती है। अबर इसे खत्म किया जाता है तो व्यापारियों की मनमानी बढ़ेगी, किसानों को उपज की सही कीमत नहीं मिलेगी।"

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