किसान आंदोलन: सरकार ने किसानों को दिया समिति बनाने और कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्ताव

किसान संगठनों और सरकार के बीच दसवें दौर की बैठक समाप्त, 22 जनवरी को होगी अगली वार्ता

Arvind ShuklaArvind Shukla   20 Jan 2021 3:41 AM GMT

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किसान आंदोलन: सरकार ने किसानों को दिया समिति बनाने और कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्तावविज्ञान भवन में सरकार और किसान प्रतिनिधियों के बीच 10वें दौर की वार्ता।

दिल्ली के विज्ञान भवन में चल रही किसान संगठन और केंद्रीय मंत्रियों के बीच बैठक एक बार बेनतीजा समाप्त हो गई है। सरकार ने किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए किसानों को डेढ़ साल तक कृषि कानूनों को स्थगित करने का प्रस्ताव दिया और कहा कि इस दौरान किसान संगठनों और सरकार के प्रतिनिधियों की एक समिति का निर्माण हो जो कृषि कानूनों की आपत्तियों पर बिंदुवार चर्चा करे।

हालांकि किसान संगठनों ने सरकार के इस प्रस्ताव पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। सरकार के इस प्रस्ताव के बाद किसान संगठन के नेताओं ने विज्ञान भवन में ही एक बार आपस में भी वार्ता की लेकिन अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंच सकें। इसके बाद अगले दौर की बैठक 22 जनवरी को रखने का निर्णय हुआ। किसान संगठनों का कहना है कि वह इस दौरान सरकार के प्रस्ताव पर गम्भीरता से विचार करेंगे। हालांकि उन्होंने फिर इस बात पर जोर दिया कि सरकार इन कृषि कानूनों को समाप्त करे।

आल इंडिया किसान सभा के नेता हन्नान मौला ने बैठक से निकलते वक्त पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सरकार ने किसान संगठनों को भरोसे में लेने के लिए यह भी कहा है कि वह इन कानूनों को होल्ड करने के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर भी स्वीकार कर सकता है। इसके अलावा सरकार ने एमएसपी व्यवस्था को सुदृढ़ और निश्चित करने के किसानों की मांग पर भी एक समिति बनाने का प्रस्ताव दिया है और कहा है कि वे किसान नेताओं पर एनआईए के द्वारा लगाए गए मुकदमे के मामले को भी देख रही है।

बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सरकार एक-डेढ़ साल तक कानूनों के क्रियान्वयन को स्थगित करने को तैयार है। अब आगे का निर्णय किसान संगठनों को लेना है। हालांकि उन्होंने पूरी उम्मीद जताई कि अगली बैठक तक कोई ना कोई नतीजा जरूर निकलेगा।

इन तीनों नए कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट ने भी महीने के लिए स्थगित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई एक समिति सभी पक्षों के किसान संगठनों (जो विरोध में हैं और जो पक्ष में हैं दोनों से) और सरकार से वार्ता कर सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। बुधवार को भी इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने साफ किया कि उनके द्वारा बनाई गई समिति कृषि कानूनों पर कोई फैसला नहीं लेगी, सिर्फ सभी पक्षों से बात कर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी।

वहीं 26 जनवरी को किसान संगठनों द्वारा प्रस्तावित ट्रैक्टर मार्च पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश देने से इनकार कर दिया। केंद्र सरकार द्वारा दी गई याचिका पर कोर्ट ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि यह दिल्ली पुलिस के अधिकार क्षेत्र का मामला है और वह इसके लिए निर्णय ले कि वह इस रैली के लिए इजाजत देती है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी पर उठ रहे सवाल पर कोर्ट ने कहा कि कोर्ट समिति में कोई बदलाव नहीं करेगा। सिर्फ भूपेंद्र सिंह मान की जगह एक नए सदस्य को रखा सकता है, जिन्होंने समिति से अपना नाम वापस ले लिया है।

दिल्ली के विज्ञान भवन में चल रही बैठक में किसान नेताओं ने एनआईए के नोटिस भेजे जाने और शिमला में किसानों की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया।

हिमाचल प्रदेश के शिमला में पुलिस ने तीन किसानों को गिरफ्तार किया था पुलिस के मुताबिक सिंघु बॉर्डर से लौटे किसान बिना अनुमति के रिज मैदान में प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे थे।

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किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच आज की बातचीत काफी अहम मानी जा रही है, हालांकि किसान संगठन इस बैठक को लेकर आशान्वित नहीं है। किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सविंदर सिंह चताला ने गांव कनेक्शन के चैट शो गांव कैफ़े में कहा, "जिस तरह से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कह रहे हैं कि किसान कृषि कानून रद्द करने के बजाए विकल्प बताएं उससे लगता नहीं कि सरकार समाधान चाहती हैं क्योंकि किसान संगठन शुरु से तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग करते रहे हैं। इसका कोई विकल्प नहीं है, कानून रद्द करना होगा और न्यूनतम समर्थन कानून लागू करना होगा।"

26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड की तैयारियों में जुटे चताला ने कहा कि बुधवार को करीब एक हजार ट्रैक्टर पंजाब से दिल्ली के लिए रवाना हो रहे हैं, देश के दूसरे राज्यों से भी लगातार किसान दिल्ली पहुंच रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार शायद अभी तक किसान आंदोलन को समझ नहीं पाई है ये अब जन आंदोलन बन चुका है।

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उधर, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "सरकार NIA के नोटिस भेज रही है, मुक्दमें कर रही है। वे किसानों को इसमें उलझाना चाहते हैं ताकि किसानों का ध्यान इस पर केंद्रित हो जाए और वे दूसरे मामलों को छोड़ दें।" राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा समेत 12 लोगों को नोटिस भेजा था, अब तक करीब 40 लोगों को गवाह के तौर पर पूछताछ में शामिल होने के लिए नोटिस भेजे गए हैं। ये पूछताछ खालिस्तानी नेता गुरुपंत सिंह पन्नू, सिख फॉर जस्टिस के खिलाफ दर्ज केस में होनी है। आरोप है कि इनके जरिए आंदोलन में विदेश से पैसा आ रहा है और सिख युवाओं को हिंसा के लिए भड़काया जा रहा है। एनआईए ने 15 दिसंबर 2020 को इस संबंध में केस दर्ज किया था। किसान संगठनों ने बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों के साथ बैठक में इस मुद्दे को उठाया है।


बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में किसान संगठनों के 26 जनवरी की प्रस्तावित टैक्टर परेड पर सुनवाई भी हुई। कोर्ट ने परेड को रोकने से संबंधित किसी फैसले को सुनाने से इनकार करते हुए कहा कि दिल्ली में कानून व्यवस्था दिल्ली पुलिस की ज़िम्मेदारी है और वो ही तय करे कि किसे दिल्ली में आने देना है और किसे नहीं।

उधर, मंगलवार को दिल्ली पुलिस से परेड के संबंध में अनुमति लेने के लिए पुलिस हेडक्वाटर में बैठक के बाद किसान नेता डॉ. दर्शनपाल ने कहा, "हमने पुलिस को बताया कि 26 जनवरी को हम रिंग रोड के ऊपर ट्रैक्टर परेड निकालेंगे। यह परेड पूरी तरह से शांति के साथ होगी। रूट योजना अभी हम तय करेंगे, 6 बॉर्डर से लोग आएंगे।

सुप्रीम कोर्ट की समिति की पहली बैठक 21 जनवरी को

कृषि क़ानूनों और किसान आंदोलन के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की पहली बैठक 21 जनवरी को सुबह 11 बजे होनी है। समिति के सदस्य अनिल घनवट ने एएनआई को बताया, "किसानों के साथ पहली बैठक 21 जनवरी को सुबह 11 बजे होगी। जो किसान संगठन बैठक में नहीं आ सकते हैं हम उनका मत वीडियो कांफ्रेंसिंग से जानेंगे। हमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हैं कि हमें सभी किसान संगठनों (जो क़ानूनों का समर्थन कर रहे हैं और जो क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं), को सुनना है और रिपोर्ट तैयार करके सुप्रीम कोर्ट को भेजनी है।

कृषि कानूनों को लेकर राहुल गांधी ने साधा निशाना- कहा-3-4 उद्योपति पूरी खेती पर कब्जा कर लेंगे

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कृषि क़ानूनों और किसान आंदोलन को लेकर सरकार पर निशाना साधा। दिल्ली में पत्रकार वार्ता में राहुल गांधी ने कहा कि, तीनों जो कृषि कानून हैं वो कृषि अर्थ व्यवस्था को खत्म करने के लिए तैयार किए गए हैं। इन क़ानूनों से मंडियां खत्म होंगी, आवश्यक वस्तु अधियिनम को खत्म किया गया है। इतना नहीं नहीं ये किसान अपने हितों की रक्षा के लिए कोर्ट नहीं जा सकते हैं। ये एक त्रासदी है कि पूरा देश देख रहा है कि देश में क्या हो रहा है। 3 और 4 व्यक्ति पूरे देश पर हावी होते जा रहे हैं। ये तीन चार उद्योगपति पूरी खेती और कृषि व्यवस्था पर कब्ज़ा करते जा रहे हैं।" राहुल गांधी का पूरा बयान यहां देखें

राहुल गांधी के आरोपों पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि देश पर अब किसी परिवार का राज नहीं है। 125 करोड़ जनता का राज है, ये परिवर्तन हुआ है। 50 साल कांग्रेस ने सरकार चलाई तो एक ही परिवार की सरकार चली है।"

उन्होंने आगे कहा"कांग्रेस का खेल क्या है? कल (20 जनवरी) किसान और सरकार के बीच 10वें राउंड की चर्चा है। कैसे भी करके उसे असफल करना है क्योंकि कांग्रेस नहीं चाहती की किसान की समस्या का समाधान हो। किसान और सरकार की वार्ता सफल हो। मैं राहुल गांधी से सवाल पूछ रहा हूं कि अगर आज देश का किसान ग़रीब रहा तो किसकी नीति से ग़रीब रहा? 50 साल कांग्रेस ने जो विनाशकारी नीति चलाई उसके चलते किसान ग़रीब रहा। उसकी उपज का कभी मूल्य नहीं दिया।

   

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